उत्तर प्रदेश में बकरी पालन की उपयोगिता एवं बकरी पालन हेतु महत्वपूर्ण निर्देश

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डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा

जनसंख्या के दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश,देश का सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुपात में यहां कृषि योग्य जमीन का क्षेत्रफल कम होता चला जा रहा है। आबादी के दबाव के चलते प्राकृतिक संसाधन भी छीड़ होते चले जा रहे हैं। प्रदेश में लगभग 85% से अधिक किसान सीमांत और लघु सीमांत की श्रेणी में आते हैं। प्रदेश के ग्रामीण अंचल में बहुत बड़ी संख्या में भूमिहीन किसान, मजदूर रहते हैं, जिनके पास दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त रोजगार का दूसरा कोई साधन नहीं है। प्रदेश के ऐसे लोगों के परिवारों के लिए बकरी पालन व्यवसाय की उपयोगिता और अधिक बढ़ जाती है। बकरी पालन एक ऐसा कार्य है जिसे करने के लिए बहुत अधिक संसाधन, शिक्षा और श्रम की आवश्यकता नहीं होती है। ग्रामीण किसान, भूमिहीन मजदूर , महिलाएं आदि बकरी पालन करके अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकती हैं। क्योंकि बकरी पालन कम समय में कम श्रम और कम धन के साथ अधिक मुनाफा देने की क्षमता रखता है। देश व प्रदेश सरकार बकरी पालन हेतु कई योजनाएं संचालित कर रही है जिसका लाभ उठाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से बकरी पालन मांस खाल और दुग्ध उत्पादन के लिए किया जाता है। उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली बरबरी एवं जमुनापारी नस्ल की बकरियां उत्पादन में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

बरबरी नस्ल: यह एक दोकाजू नस्ल है जो मांस और दुग्ध उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है, इनसे व्यांत काल में 600 से 800 ग्राम दूध प्रतिदिन प्राप्त हो जाता है। इस की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होती है।। इनसे 1 वर्ष में ही बच्चे पैदा होना शुरू हो जाते हैं। इस नस्ल की बकरियां लगभग 14 माह में दो बार ब्याने तथा प्रति ब्यात कम से कम 2 बच्चे देने के कारण मांस उत्पादन के लिए शहरी क्षेत्रों में इनकी बहुत मांग है। बरबरी बकरी को घर पर बांध कर दाना -भूसा खिलाकर आसानी से पाला जा सकता है। साथ ही साथ इन्हें चरा कर भी बखूबी पाला जा सकता है। 1 वर्ष की आयु के नर का शारीरिक भार 20 से 25 किलोग्राम और मादा का भार 18 से 20 किलोग्राम तक हो जाता है। जल्दी-जल्दी ब्याने और घर पर बांधकर पालन होने के कारण इस नस्ल की बकरियों की देश के अन्य भागों में भी काफी मांग है।

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जमुनापारी नस्ल: यह नस्ल उत्तर प्रदेश की प्रमुख महत्वपूर्ण नस्ल है जो कि दुग्ध उत्पादन में बहुत अच्छी मानी जाती है। यह मुख्यत: सफेद रंग की होती है जिसके सिर कान एवं गले पर हल्का या गाढा बादामी रंग का धब्बा भी पाया जाता है। इनमें उभरी नाक, लंबे लटके कान तथा जांघों में बालों का गुच्छा होता है। साथ ही ऊपरी जबड़ा निचले से छोटा होने के कारण तोते जैसी आकृति प्रदान करता है। जमुनापारी नस्ल की बकरियां एक दिन में 2 से 3 लीटर तक दूध दे देती हैं, और एक दूध काल में 325 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है। सामान्य पोषण पर 1 वर्ष में नर का शारीरिक भार 35 से 45 किलोग्राम तथा मादा का शारीरिक भार 28 से 35 किलोग्राम तक हो जाता है। इस नस्ल की बकरी वर्ष में एक बार, बच्चा देती है और अधिकतर एक अथवा कभी-कभी 2 बच्चों को जन्म देती है।

बकरी पालन, में अधिक लाभ कमाने के लिए, विशेष रुप से निम्नांकित निर्देशों का आवश्यक रूप से पालन करें-

बकरियों के प्रजनन में अंतः प्रजनन से बचाव करें इसके लिए 15 से 20 बकरियों के झुंड पर 2 से 4 वर्ष की आयु का एक पूर्ण स्वस्थ शुद्ध नस्ल का बकरा रखें जिसे हर दो-तीन साल के अंतराल पर बदलते रहना चाहिए।
समय-समय पर बकरियों के समूह से अनुपयोगी बकरियां जैसे लंगडी ,नाजुक ,छोटी, कमजोर, खराब थन वाली, कम दूध देने वाली अशुद्ध नस्ल ,बीमार , जिनकी टांगे आपस में लड़ती हो आदि, अनुपयोगी बकरियों को अपने फार्म से हटाते रहना चाहिए।
प्राय: यह देखा गया है कि अधिकतर बकरियां और उनके बच्चे सर्दियों में ठंड के प्रकोप के कारण मर जाते हैं। इसलिए सर्दियों के दिनों में बकरियों को ठंड से बचाव के लिए विशेष ध्यान रखना चाहिए। ठंड के दिनों में बकरियों के भार के अनुसार 50 से 100 ग्राम मेथी दाना, 40 से 80 ग्राम गुड, चार से छह लहसुन की कलियां तथा अरहर का भूसा आवश्यक रूप से खिलाना चाहिए। रात के समय बाड़ों में बकरियों को ठंड से बचाने हेतु आग से उन्हें तपाना भी बेहतर रहता है।
बकरियों को हमेशा स्वच्छ एवं ताजा पानी ही पिलाना चाहिए।
बकरियों के आहार में नमक और खनिज लवण मिश्रण का समावेश अवश्य करें।
बकरी बाडों की नियमित साफ-सफाई पर ध्यान रखें इस हेतु बाडों में सप्ताह में कम से कम 1 दिन चूना अथवा फिनाइल के घोल का छिड़काव अवश्य करना चाहिए।
बकरियों को ऐसी जगह पर चराने नहीं ले जाए जहां अन्य रोग ग्रस्त अथवा बीमार बकरियां भी चरने के लिए आती हैं। वहां से छूत के रोग लगने का भय बना रहता है।
बकरियों को पेड़ पौधों की पत्तियां( जैसे पीपल नीम बरगद बबूल आदि) खिला कर आहार पर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है।
मांस के लिए तैयार किए जाने वाले नर बकरों का एक माह के अंदर बधियाकरण करा देना चाहिएl
मांस हेतु बिक्री किए जाने वाले नर बकरों को बकरीद के मौके पर अथवा त्योहारों के अवसर पर बिक्री करने से अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है।

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विशेष सुझाव : बकरी पालन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी बकरियों को प्रत्येक तीन से चार माह के अंतराल
पर अंतः- कृमिनाशक औषधियों का पान अवश्य कराएं। जिससे बकरियां स्वस्थ रहें एवं उनकी वृद्धि दर एवं प्रजनन दर अधिक हो।

सभी बकरियों में समयानुसार पी.पी.आर., एंटीरोटॉक्सीमियां, एवं खुर पका मुंह पका रोग का टीका अवश्य लगवाएं जिसके परिणाम स्वरूप बकरियों में संक्रामक बीमारियां नहीं होंगी अतः औषधियों पर खर्च ना होने से अप्रत्यक्ष रूप से एवं बकरियों की मृत्यु न होने से बहुत ही आर्थिक लाभ होगा।

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