खनिज लवण का पशु प्रजनन मे महत्तव
डॉ निधी सिंग चौधरी
औषधि विभाग
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू (म॰ प्र॰)
पशु पालन व्यवसाय मे कुल खर्चे का 65-75 प्रतिशत खर्चा उसके आहार पर जाता है इसलिए आर्थिक दृष्टि से पशु आहार पशुपालन मे एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है l पशु आहार मे मुख्य रूप से प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण एवं विटामिन का समावेश होता है ओर इन्ही पोषक तत्वो के उचित अनुपात मे खिलाने पर पशु स्वास्थ्य एवं अच्छा उत्पादन के साथ साथ उसकी नियमित प्रजनन क्षमता भी बनी रहती है l परंतु हमारे देश मे पशुओ का पोषण कृषि उपज पर निर्भर करता है, चारे व दाने की कमी के कारण पशुओ को निम्न कोटि के चारे जैसे भूसा कड़वी ओर इनके उत्पादो पर निर्भर रहना पड़ता है l इन निम्न कोटि के चारो मे सूक्ष्म पोषक तत्वो जैसे खनिज एवं विटामिन की मात्रा अत्यधिक कम होती है l पशु की नियमित प्रजनन क्षमता को बनाये रखने के लिए उसके आहार मे दीर्घ पोषक तत्वो (ऊर्जा एवं प्रोटीन) के साथ साथ खनिज लवण का भी एक महत्वपूर्ण योगदान होता है l उचित पोषण के आभाव में हमारे पशुओं में कम उत्पादन तो है ही इसके साथ—साथ प्रथम गर्भधारण की उम्र बढ़ना, अनियमित मद चक्र, गर्भ का नही ठहर पाना ओर बांझपन जैसी गंभीर समस्याये देखने को मिलती है ओर इन सब कारणो से पशुपालक को काफी आर्थिक हानि होती है । सामान्यत: पशुपालक आहार निर्माण करते समय ऊर्जा ओर प्रोटीन का ध्यान देते है परंतु ज्ञान के अभाव मे वे खनिज एवं विटामिन का समावेश नहीं कर पाते है ओर फिर इसका परिणाम उपरोक्त नुकसान उठाकर होता है l इस अध्याय मे हम इस लेख के माध्यम से आपको उन सभी सूक्ष्म पोषक तत्वो की जानकारी देंगे जिनके अभाव मे पशु को प्रजनन संबन्धित समस्याये आती है l
खनिज तत्वो का पशु प्रजनन मे महत्तव
पशुओ के शरीर में 3-5 प्रतिशत खनिज पदार्थ पाए जाते हैं जो हड्डियों को मजबुत करने, तंतुओ का विकास करने मे मेटाबोलिज्म को विघटित करने, पाचन शक्ति बढ़ाने, खुन बनाने, दध उत्पादन, प्रजनन एवं स्वास्थय के लिए आवश्यक है। पशुओके शरीर में सामान्यता सभी खनिज तत्व होते हैं। अभी तक पशु आहार में 22 खनीज लवणों के महत्व की जानकारी प्राप्त हो चुकी है। केल्शियम, फासफोरस, मैगनिशियम, सल्फर, सोडियम, पोटेशियम, क्लोरीन, आयरन, तांबा, जिंग, मैगनीज, कोबाल्ट, आयोडिन जैसे खनिज लवण पशुओ के लिए आवश्यक खनिज लवण होते हैं। आमतोर से ये तत्व पशुओं को आहार से प्राप्त हो जाते हैं। ये आवश्यक तत्व सभी आहार में होते हैं लेकिन इनका अनुपात कम मात्रा में होता है। सही मात्रा में खनिज तत्व आहार में देने से पशु स्वस्थ रहते हैं और उनमें बढ बढ़ोत्तरी सामान्य होती है। साथ ही उत्पादन सामान्य रहता है। खनिज मिश्रण व नमक से इन तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। शरीर में इनकी कमी से नाना प्रकार के रोग एवं समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। पशुओं में खनिज लवणों के कमी से पशुओं का प्रजनन तंत्र भी प्रभावित होता है, जिससे पशुओं में प्रजनन संबंधित विकार पैदा हो जाते है, जैसे पशुओं का बार-बार मद में आना , अधिक आयु हो जाने के बाद भी मद में नहीं आना, ब्याने के बाद भी मद में नहीं आना या देर से मद में आना या मद में आने के बाद मद का नहीं रूकना इत्यादि ।
प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले पशुओं के लिए खनिज लवण की बात की जाए तो ये मुख्यतः कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तॉबा, कोबाल्ल्ट, मैगनित आयोडीन एवं जिंक है। इन तत्वों की कमी से पशुओं में मदहीनता अथवा बार-बार मद में आना एवं गर्भ धारण न करने की समस्यायें आती है। आहार में कैल्शियम की कमी के कारण अडांणु का निषेचन कठिन होता है, तथा गर्भाशय पीला तथा शिथिल हो जाता है। पशुओं के आहार में फास्फोरस के कमी से पशुओं में अण्डोतत्सर्ग कम होता है, तथा पशु का गर्भपात हो जाता है। फास्फोरस तथा मैग्नीषियम खनिजों की कमी वाले आहार देने से पशु की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। चारे या दाने में फास्फोरस की कमी के कारण पशु में मद चक्र में गड़बड़ी हो जाती है, जिसके कारण मद पूर्ण रूप् से नहीं आ पाता है या कम प्रबल होता है। इस कारण गर्भधारण काफी विलम्ब से होता है या नहीं भी होता है। कई बार तो फास्फोरस की कमी बनी रहने के कारण मादा बांझ भी हो सकती है। यदि फास्फोरस के साथ उर्जा, प्रोटीन, विटामिन ए एवं जिंक की कमी होती है तो यह गड़बड़ी और भी प्रबल हो सकती है। पशु यदि गर्भधारण कर भी लेता हैं तो केल्शियम, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम की कमी के कारण बच्चे की हड्डियाँ विकसित न होने के कारण गर्भ टिक भी नहीं पाता है और यदि टिक भी गया तो विकसित नहीं हो पाता है। शरीर को लौह की भी आवष्यकता होती है। शरीर में उपस्थित लौह की लगभग 60 प्रतिषत मात्रा हीमोग्लोबिन में पायी जाती है। मायोग्लोबिन में भी लौह एक अनिवार्य घटक है। इनके अतिरिक्त यह कई हीमप्रोटीन और फलेवोप्रोटीन उत्प्रेरक में भी सक्रिय कार्य करता है। शरीर में लोहे की कमी से कई प्रकार के अल्परक्तता (एनिमिया), शारीरिक वृद्धि में गिरावट, प्रजनन संबन्धित व्याधिया तथा अल्परक्तता से मृत्यु तक हो जाती है। जिंक प्रशव के बाद गर्भाशय के अस्तर के पुन:निर्माण ओर मरम्मत मे मदद करता है ज़िंक की कमी से रक्त मे FSH ओर LH हार्मोन की कमी हो जाती है जिससे प्रजनन क्षमता कम हो जाती है l नर पशुओ मे जिंक की कमी से वर्षण का विकास रुक जाता है तथा सेमिनीफेरस नलिकाओ मे अपक्षय होता है जिससे शुक्राणु निर्माण मे बाधा होती है इसी के साथ कामवासना मे भी गिरावट आती है l ताँबा हीमोग्लोबिन संष्लेषण में उत्प्रेरक का कार्य कारता है तथा शरीर की क्रियाओं को सुचारू रूप् से चलाने के लिए जरूरी है।
https://www.pashudhanpraharee.com/importance-of-minerals-in-dairy-cattle-nutrition/
नर पशु मे सेलेनियम की कमी से शुक्राणु की गुणवत्ता मे कमी आती है जिससे प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है l कोलेस्टराल के निर्माण मे मेंगनीज तत्व एक कोफेक्टर की तरह कार्य करता है ओर इसकी कमी से स्टेरोइड हॉरमोन जैसे प्रोजेस्ट्रन, इस्ट्रोजन ओर टेस्टोस्टीरोन का उत्पादन प्रभावित हो जाता है जो सीधे तोर पर पशु की जनन क्षमता को प्रभावित करते है l
जीवनी क्रियाओं में सुचारू संचालन हेतु आयोडिन का एक अनिवार्य खनिज है जिसकी पूर्ति आहारीय आयोडिन तथा आयोडीन युक्त आहार पूरकों से की जाती है। आयोडीन की की आवश्यकता थायरायड ग्रंथि द्वारा हार्मोनों के संष्लेषण में होती है क्योकि यह इन हार्मोंनों का मुख्य घटक है। ये हार्मोन चपायचयी क्रियाओं, प्रजनन क्षमता, शारीरिक वृद्धि, दूध उत्पादन और अस्थि विकास में सक्रिय भाग लेते है । अन्य सूक्ष्म खनिज लवण भी पशुओं में अण्डोत्पादन, शुक्राणुत्पादन, निषेचन, भ्रूण के विकास एवं बच्चा पैदा होने तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभातें है।
सूक्ष्म खनिज तत्वो की कमी से होने वाली समान्य व्याधिया :
- गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में गर्भपात का होना ।
- पशुओ मे के प्रसव के बाद, जेर के गिरने का समय बड़ जाना जिससे कभी कभी जेर गर्भ से पूरी तरह से बाहर नहीं निकलती है और अन्दर फसी रहती है।
- गाय और भैंस मे शांत गर्मी में आना, जिसे पहचानना मुश्किल है और परिणाम स्वरूप, नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- इससे नर पशुओ में संभोग क्षमता तथा इच्क्षा मे की कमी उत्पन्न होती है। वीर्य का कम उत्पादन होता हैं और उसकी गुणवत्ता भी कम हो जाती है। परिणाम स्वरूप, बैलों में वन्ध्यत्व की एक गंभीर समस्या पैदा होती हैं।
- पशुओं के धीमे शारीरिक और यौन विकास के कारण पशुओं की प्रजनन आयु में देरी होती है।
- गर्भावस्था का पता लगने का प्रतिशत घटता है। इससे गायों और भैंसों में शुरुआती गर्भपात होता है। इस वजह से, पशु फिर से गर्मी में आने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। परिणाम स्वरूप, प्रजनन के लिए आवश्यक समय, भोजन का खर्च व्यर्थ होता है और यह आर्थिक नुकसान का कारण बनता है।
- गर्भाशय का विकास अपूर्ण रहता है। यह गर्भावस्था के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होने में बाधा पैदा होती है।
- गर्भपात की प्रतिशतता बढ़ जाती है। • पशु को प्रसूति वेदना का लंबे समय तक सामना करना पड़ता है। • कमजोर और कम वजन वाले बछड़े पैदा होते हैं।
- भेड़/ बकरियों / सूअरों के मामले में, एक समय में अनेक बछडे पैदा होने की संख्या घटती है।
- गाय / भैंसों में बछड़े होने के बाद, गर्भाशय को सामान्य आकार में वापस आने में अधिक समय लगता है। साथ ही, बछड़े के बाद पहली बार गर्मी में आने का समय भी बढ़ता है।
- यह जन्मजात विकलांग बछड़ों की संख्या में वृद्धि करता है मृत जन्मे बछड़ों की संख्या भी बढ़ जाती है।
- पशुओं में थनैला रोग, गर्भाशय की सूजन और अन्य समान बीमारियों के शिकार होते हैं।
- https://www.ijset.net/journal/446.pdf