कुक्कुट पालन व्यवसाय का किसानों की खाद्य सुरक्षा एवं आर्थिक अर्जन में महत्व

0
2239

कुक्कुट पालन व्यवसाय का किसानों की खाद्य सुरक्षा एवं आर्थिक अर्जन में महत्व

डा. दीप नारायण सिंह, डा. रजनीश सिरोही, डा. यजुवेन्द्र सिंह, डा. ममता, डा. अजय कुमार डा. अमिताव भट्टाचार्य एवं डा0 पी0 के0 शुक्ला
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, दुवासू, मथुरा

कुक्कुट व्यवसाय कृषि के सर्वाधिक लाभकारी उद्योंगों में से एक है, जिसके कारण किसानों के साथ-साथ आज आम आदमी में भी इस व्यवसाय के प्रति निरन्तर अभिरुचि बढती जा रही है। यही कारण है कि आज कुक्कुट उद्योग एक पूर्ण व्यवसाय के रूप में उभरता जा रहा है। कुक्कुट व्यवसाय को प्रारम्भ करना बहुत कठिन नहीं है, बल्कि थोड़े से परिश्रम एवं लगन से इस व्यवसाय से अच्छा-खासा व्यापार एवं मुनाफा कमाया जा सकता है। एक शोध के अनुसार इस इस व्यवसाय में लगभग 25 प्रतिशत की तेजी के साथ बढ़ रहा है, साथ ही विकास की उसीम संभावनाये विद्यमान हैं।
यह व्यवसाय न केवल कृषकों की सामाजिक एवम् आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सक्षम है, बल्कि यह प्रोटीन की कमी एवम् अन्य कुपोषण से सम्बन्धित समस्याओं से भी निजात दिलाने में सक्षम है। कुक्कुट व्यवसाय के अन्तर्गत ऐसे पक्षी आते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्य प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करता है, कुक्कुट कहलाते हैं, जैसे मुर्गी, बत्तख, बटेर, तीतर, गिनीफाउल एवम् टर्की आदि। मुर्गीपालन कुक्कुट पालन व्यवसाय का प्रमुख अंग है।
मुर्गी पालन भूमिहीन किसानों तथा बेरोजगार नौजवानों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का एक प्रभावी व्यवसाय है। यह व्यवसाय लगातार 8-10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही मुर्गीपालन पिछडी तथा कमजोर जातियों के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ है। आवश्यक तकनीकी जानकारी तथा थोडी सी पूॅजी लगाकर यह व्यवसाय प्रारंभ किया जा सकता है । इस कार्य में परिवार का प्रत्येक सदस्य बालक, बुर्जुग तथा महिलायें अपना योगदान दे सकती हैं। इस व्यवसाय को अपनाकर अपनी आमदनी बढाने के साथ-साथ अपने भोजन को भी पौष्टिक बनाया जा सकता है । इस बारे में दो राय नहीं हो सकती कि मुर्गियों से मिलने वाले खाद्य वस्तुओं की आहार पौष्टिकता बहुत ही उत्तम होती है । इनमें अण्डे, मांस आदि शामिल हैं। अतिरिक्त व्यवसाय, अधिक आय व अच्छा आहार इन सब लाभों को मिलाकर मुर्गीपालन ने हमारे देश की बढती हुई बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिये स्वरोजगार सम्यक नये आयाम प्रदान किये हैं ।
उपयोगिता की दृष्टि से मुर्गी पालन व्यवसाय को दो प्रमुख भागों में बांट सकते हैं- ब्रायलर मुर्गी एवं लेयर मुर्गी। मुर्गी की जो प्रजाति अण्डे उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती हैं, वह लेयर मुर्गी कहलाती है, जैसे-लेग हार्न तथा मुर्गी की ऐसी प्रजाति जो मांस उत्पादन हेतु प्रयोग की जाती हैं, अर्थात जिनका वजन 6-8 सप्ताह में ही 1.25-1.50 किलोग्राम तक हो जाता है, जैसे कड़कनाथ, असील, चैब्रो, कावेरी आदि। ब्रायलर मुर्गे एवं मुर्गियों में शारीरिक वृद्वि एवं विकास तेजी से होता है, क्योंकि इनमें दाने एवं चारे को ऊर्जा में बदलने की अभूतपूर्व क्षमता होती है। साथ ही यह बात महत्वपूर्ण है कि मुर्गीपालन उद्योग में उत्पादन अन्य उद्योगों की तुलना में बहुत जल्द शुरू हो जाता है ।

READ MORE :  PROJECT REPORT FOR POULTRY FEED MANUFACTURING PLANT

चूजे का प्रबन्धन :
प्रथम सात सप्ताह तक चेब्रो प्रजाति की मुर्गियों के लिए फर्श स्थान लगभग 1.0 वर्ग फुट प्रति चूजा है। प्रथम 48 घन्टों में रंगीन अथवा सफेद बल्ब के माध्यम से कृत्रिम प्रकाश अवश्य देना चाहिए। प्रथम दो दिन तीव्र प्रकाश देने के बाद प्रकाश की तीब्रता कम कर देनी चाहिए। प्रारम्भ में 1 वाट प्रति चूजा तथा बाद में 0.5 वाट प्रति चूजे के हिसाब से बल्ब लगाकर ऊष्मा प्रदान की जाती है। बिजली के न होने की स्थिति मे अंगीठी या बुखारी जला कर ऊष्मा प्रदान की जाती है। ब्रुडर ;वाह्य ऊष्मा स्रोतद्ध का तापमान लगभग 85-90 डिग्री फारेनहाइट ;30-32 डिग्री सेल्सियसद्ध के बीच होता है। जैसे-जैसे चूजे बडे होते जाते हैं ब्रुडर का तापमान 5-7 डिग्री फारेनहाइट कम करते जाते हैं। ब्रुडर के अन्दर का तापमान का अंदाजा चूजों के व्यवहारिक क्रियाओं से लगाया जा सकता है। यदि चूजे वाह्य ऊष्मा स्रोत अर्थात ब्रुडर से दूर चले जायें तब इसका अर्थ है कि तापमान अधिक है, और यदि चूजे एक जगह पर एक के ऊपर एक एकत्रित हो जायें तब इसका अर्थ है कि ब्रुडर का तापमान कम है। यदि चूजे ब्रुडर के आस-पास समान रूप से वितरित हों तब इसका मतलब है कि तापमान उपयुक्त है। अतः आवश्यकतानुसार तापमान को नियंत्रित रखना चाहिए तथा लगातार चूजों की गतिविधियों को ध्यान से देखना चाहिए। लगभग तीन सप्ताह या जब तक चूजों का पंख पूरी तरह न निकल आये तब तक वाह्य ऊष्मा स्रोत नही हटाना चाहिए।
चूजे शीघ्र ही खाना-पीना सीख लेते हैं। इन्हें भरपूर मात्रा में प्रतिदिन स्वच्छ एवं ताजा पानी उपलब्ध कराना चाहिए। चूजों के आने से 4 घंटे पूर्व ही पानी ब्रुडर के सामने रख देना चाहिए जिससे पानी का तापमान लगभग 65 डिग्री फारेनहाइट हो जाये। चूजों में प्रारम्भिक मृत्यु दर को कम करने के लिये पानी में चीनी मिलाकर देना फायदेमंद होता है। प्रथम 15 घंटों मे 8 प्रतिशत तक चीनी पानी में मिलाकर दी जा सकती है। यदि चूजे तनावग्रस्त दिखाई दे रहे हों तो 3-4 दिन पानी में विटामिन एवं इलेक्टोलाईट्स घोलकर देना चाहिए।

READ MORE :  MODEL PROJECT REPORT ON CHICKEN DRESSING & PROCESSING UNIT

आहार प्रबन्धन-
चेब्रो चूजों को प्रथम 4 सप्ताह की आयु तक ब्रायलर स्टार्टर एवं उसके उपरान्त ब्रायलर फिनिशर राशन देना चाहिए। ग्रामीण परिस्थितियों में मुर्गियों हेतू आहार की सम्पूर्ण व्यवस्था अत्यन्त आवश्यक है। मात्र रसोई घर की बची हुई सब्जियां एवं छिलके अथवा मौसमी अनाज को खिलाने से उनकी आहार की पूर्ति नही हो पाती है। अतः मुर्गियों को संतुलित आहार के साथ-साथ खनिज मिश्रण एवं विटामिन्स देना अत्यंत आवश्यक है।
मुर्गी आहार में कुछ प्रमुख पोषक तत्वों की मात्रायें –
पेषक तत्व ब्रायलर स्टार्टर
(0-4 सप्ताह) ब्रायलर फिनीषर
(5-8 सप्ताह) चिक स्टार्टर
(0-8 सप्ताह) चिक ग्रोवर
(9-18 सप्ताह) लेयर
(18-20 सप्ताह से ऊपर)
प्रोटीन (ः) 21 20 21 16 18
उपापचय ऊर्जा
कि0 कै0/कि0 2900 2800 2900 2500 2600

मुर्गी पालन हेतु कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –
 अण्डे या चूजें ऐसी हैचरी से मंगवायें जहाँ पहले किसी बीमारी की शिकायत न हो अन्यथा अण्डों द्वारा कुछ बीमारियां अन्य स्वस्थ मुर्गियों में आ सकती है जैसे – रानीखेत, फाउल पॉक्स, पैराटाफाइट, फाउल टाइफाइड आदि।
 पानी व खाने के बर्तन नित्य साफ करवायें तथा लाल दवा से धुलवायें।
 मुर्गी फार्म पर चूहों का नियंत्रण अत्यन्त आवश्यक है। ये मुर्गियों के खाद्य पदार्थ का नुकसान तो करते ही हैं, साथ में रोगों का प्रसार भी करते है।
 मुर्गियों में टीकाकरण सारणी का विशेष ध्यान रखें, वैक्सीन नियमित समय से लगवायें।
 नियमित समय से कीडे़ मारने की दवा कुक्कुटों को देवें (अन्त एंव बाहय परजीवी)
 चूजों को वयस्कों से अलग रखें अन्यथा रोग फैल सकते है।
 कुक्कुटों को, काक्सीडियोसिस नामक भयंकर बीमारी से बचाने के लिए दवा राशन के साथ देंवे। तथा बीमारी होने पर इसकी दवा बदलकर देवें ताकि वह दवा अच्छी तरह से कार्य करे।
 कुक्कुटों को अगर कमरों में बिछावन पर रखा जाय तो उसमें कुक्कुटों की संख्या ज्यादा नही होनी चाहिए।
 कुक्क्ुटों की विछावन नियमित रुप से बदलनी चाहिए किसी भी रुप में इनका केक के रुप में होना कुक्कुटों की बीमारियों को निमंत्रण देना है।
 एक दिन में 2-3 बार अपने कुक्कुट फार्म के पक्षियों को देखें। कोई कुक्कुट बीमार या सुस्त हो तो तुरन्त उसे अलग करें। और उस कुक्कुट का परीक्षण कराकर फार्म में अन्य पक्षियों को बचाया जा सकता है। ऐसी दशा में पानी में पशुचिकित्सक की सलाह पर विटामिन्स, खनिज मिश्रण और एन्टीबायोटिक भी आवश्यकतानुसार दिया जा सकता है।
 कुक्कुटों को उनकी आयु एवं विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार सन्तुलित आहार देना चाहिए।
 कोई भी संक्रामक रोग होने पर यदि कुक्कुट विछावन पर है तो उसे तुरन्त बदल देना चाहिए, तथा कमरे में चूने से सफाई होना आवश्यक है ताकि रोग के जीवाणु मर सकें। और रोग के प्रसार को रोका ता सके।
 जाडें के समय चूजों व कुक्कुटों का ठंड से उचित बचाव रखें जैसे – कमरों के बाहर परदे लगाकर आवश्यक ऊष्मा का संचय करें।
 प्रक्षेत्र के अन्दर वाहन का आना प्रतिबन्धित रखें।
 किलनियों के नियंत्रण के लिये दवा का छिड़काव करें।
 जैव सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें।
 किसी भी प्रकार की बीमारी दिखाई देने पर तुरन्त नजदीकी पशुचिकित्सक की सलाह लें।

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON