पशु आहार में मोटे चारे का महत्व

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1990

 

पशु आहार में मोटे चारे का महत्व

मोटे चारे अधिक रेशेदार होने के कारण यह चारे राशन की मात्रा बढ़ाते हैं, जोकि भोजन प्रणाली के तनाव के लिए नितान्त आवश्यक है। मोटे चारे भोजन प्रणाली के अंदर अधिक पानी शोषित करके मृदुरेचक ( Laxative ) प्रभाव पैदा करते हैं। ऐसे चारे अधिक सस्ते एवं शीघ्र शक्तिदायक होते हैं। जुगाली करने वाले पशुओं में इनका और भी अधिक महत्व है।

रुमेन में बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ आदि जीवाणुओं को कार्यान्वित करने के लिए ये चारे अनुकूल अवस्थाएं प्रदान करते हैं। यह जीवाणु इन खाद्यों के रेशे या दुष्पचनीय तन्तु को तोड़कर उनसे वाष्पीकरण वसीय अम्ल ( Volatile Fatty Acids ), जैसे ऐसिटिक, प्रोपिआनिक तथा ब्यूटायरिक अम्ल पैदा करते हैं, जो पशुओं के शरीर के लिए शक्ति प्रदान करते हैं।

ये जीवाणु इन खाद्यों से कुछ आवश्यक एमिनो अम्ल ( Essential Amino Acid ) तथा विटामिन्स भी तैयार करते हैं। कुछ अच्छे प्रकार के मोटे चारे अकेले ही निर्वाह आहार बनते हैं। पाचक-रसों की क्रिया के लिए ये चारे अधिक बड़ी सतह प्रदान करते हैं, जिससे उनका प्रभाव भोजन पर भली प्रकार हो सके।

  पशु आहार में मोटे चारे का फायदा I

  1. मोटे चारे रेशेदार ( Fibrous ) होने के कारण राशन की मात्रा बढ़ाते हैं।
  2. भोजन प्रणाली ( Digestive system ) की दीवारों में तनाव उत्पन्न ने करके पाचक रसों को निकालने के लिए उत्तेजना प्रदान करते हैं।
  3. अंतड़ी की दीवारों से अधिक पानी शोषित ( absord ) करके मृदुरेचक प्रभाव पैदा करते हैं।
  4. मोटे चारे सस्ते तथा शीघ्र शक्तिदायक होते हैं।
  5. मोटे चारे जुगाली करने वाले पशुओं को रूमेन में बैक्टीरिया तथा प्रोटोजोआ आदि जीवाणुओं की क्रिया के लिए अनुकूल अवस्थाऐं प्रदान करते हैं।
  6. मोटे चारे पर रूमेन के जीवाणु ( rumen bacteria ) अपनी क्रिया ( action ) करके एसिटिक ( acetic ), प्रोपिआनिक ( propionic ) तथा ब्यूटायरिक ( butyric ) अम्लों जैसे उड़ने वाले चिकने तेजाब ( volatile Fatty acids ) निकालते हैं जो कि रूमेन की दीवार से सीधे शोषित होकर पशुओं को शक्ति प्रदान करते हैं।
  7. रूमेन के जीवाणु मोटे चारों से कुछ विटामिन तथा अनिवार्य एमिनो अम्ल भी बनाते हैं।
  8. कुछ अच्छे प्रकार के मोटे चारे स्वयं ही निर्वाह आहार ( maintenance ration ) बनते हैं।
  9. भोजन प्रणाली की दीवारों में संकोचन तथा विमोचन ( contraction and expansion ) क्रियाओं के संपन्न होने में सहायता करके भोजन को पचाते हैं।
  10. अंतड़ी में भोजन पर पाचक रसों की क्रियाओं के लिए अधिक बड़ी सतह प्रदान करते हैं।
  11. उत्पादक पशुओं में उनकी अजल पदार्थ ( dry matter ) की कुल आवश्यकता का दो-तिहाई भाग इन्हीं चारों से दिया जाता है।
  12. हरे चारे विटामिन ए का सर्वोत्तम स्रोत होते हैं।
  13. कुछ फलीदार हरे चारे इतने अच्छे होते हैं कि उनका प्रयोग दाने के स्थान पर भी किया जा सकता है।
  14. हरे चारे स्वादिष्ट, शीघ्र पाचक तथा स्वास्थ्यवर्द्धक होते हैं।
  15. इनसे अच्छे किस्म की सूखी घास ( hay ) तथा साइलेज भी बनाई जा सकती है।
  16. पशुओं के लिए हरा चारा विशेषकर फलीदार एक पूर्ण आहार होता है। ऐसा चारा पशुओं को खिलाने से पशुओं के दूध में वृद्धि होती है। इन चारों में प्रोटीन, कैल्शियम तथा विटामिन ए और डी की मात्रा अधिक पाई जाती है.

मोटे चारे के प्रकार :-

मोटा चारा दो प्रकार का होता हैं।

  1. सूखा चारा
  2. हरा चारा

सूखा चारा ( Dry Roughages) :-

सूखे चारे में नमी की मात्रा 10 से 15 परसेंट होती है और शुष्क पदार्थों डीएम की मात्रा अस्सी से नब्बे परसेंट होती है।

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सूखा चारा पुनः दो प्रकार का होता है।

  1. हे (Hay) :-

हरि चारों को सुखाकर बनाई जाती है इस में नमी की मात्रा 15% तक होती है अच्छी हे बारसिम,रीजका, सोयाबीन आदि की बनाई जाती है।

हे पुनः दो प्रकार का होता हैं :-

फलीदार हे ( Leguminous Hey) :-

रीजका, चना, ग्वार,अरहर,आदि की हे।

अफलीदार हे (Non leguminous Hey) :-

दूब या घास की हे।

  1. भूसा (Straw) :-

भूसे में संपूर्ण पाचक प्रोटीन (DCP) 0% एवं संपूर्ण प्राकृतिक (TDN) 40 परसेंट होता है पशुओं के लिए ज्यादातर निम्न भूसा (straw) उपयोग किया जाता हैं।

गेंहु का भूसा :-

इसमें फास्फोरस की मात्रा अच्छी एवं पाचक प्रोटीन बिल्कुल नहीं होता है। भारत में पशुओं को गेहूं का भूसा ही सर्वाधिक मात्रा में खिलाया जाता है।

धान का भूसा :-

धान का भूसा खुशबू को लंबे समय तक किराया जाने पर उनमे डेगनेला (dengnela) रोग हो जाता हैं।

इसके अलावा पशुओं को जौ का भूसा, जई का भूसा एवं बाजरे की कुट्टी भी खिलाई जाती हैं।

  1. हरा चारा (Green roughages) :-

हरे चारे में नमी की मात्रा 75 से 80 परसेंट होती है एवं शुष्क पदार्थों के डीएम की मात्रा 20 से 30% होती हैं।

हरे चारे के पुनः निम्न प्रकार हैं :-

उगाया गया हरा चारा (Cultivated green roughages) उगाया गया हरा चारा पुनः दो प्रकार का होता है।

फलीदार (Leguminous Cultivated green roughages) :-

इसमें खरीफ में मूंग ग्वार लोबिया मोट आदि एवं रबी में रिज्का, बरसीम आदि हरे चारे पशुओं के लिए उगाए जाते हैं। फलीदार हरे चारे में पाचक कच्चे प्रोटीन (DCP) 2-3% एवं संपूर्ण पाचक प्रोटीन (TDN) 10-12% होता हैं।

अफलिदार (Non – Leguminous Cultivated green roughages) :-

पशुओं के लिए खरीद में ज्वार मक्का बाजरा सूडान घास आदि एवं रबी में कपास नेपियर घास हाथी घास आदि एवं रबी में कपास , नेपियर घास ,हाथी घास आदि अरलीदार हरे चारे उगाए जाते हैं। अफलीदर हरे चारे में पाचक कच्चे प्रोटीन (DCP) 1-2% संपूर्ण पाचक प्रोटीन (TDN) 15 -17%  होता है।

चरागाह ( Green Pasture) :-

पशुओं के लिए चारागाह प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनो प्रकार के होते हैं।

पेड़ की पत्तियां (Leaves) :-

पेड़ जैसे खेजड़ी , बेर, नीम, अराडू, बबूल आदि की पत्तियां भी हरे चारे के रूप में पशुओं को खिलाई जाती है।

जड़े (Roots) :-

जड़े जिनमें खाद्य संग्रहित होते हैं जैसे गाजर शलजम शकरकंद आदि हरे चारे में शामिल है।

साइलेज (Silage) :-

साइलेज हरे चारे को उसकी प्राकृतिक अवस्था में संग्रहित रख बनाई जाती है। इसमें 30 40% नमी होती है एवं शुष्क पदार्थ 60 70% प्रतिशत होता है।अच्छी साइलेज मक्का एवं ज्वार की बनती हैं।

 

पशु आहार के अवयव एवं उनके कार्य –

पशुओं की सेहत के लिए और पशुओं से अच्छी मात्रा में पशुधन रुपी लाभ प्राप्त करने के लिए पशुओं का पर्याप्त रूप से पोषण रूपी पशु आहार प्राप्त करना बेहद आवश्यक है यह पशु आहार पशु शरीर में होने वाले समस्त कार्य का सुचारू रूप चलाता है और पशु को आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करता है।

पशु आहार पशु शरीर की महत्वपूर्ण क्रियाओं रक्तचाप नियंत्रण, हृदय संबंधी कार्य, उत्सर्जी संबंधी कार्य, एवं शारीरिक सहित मानसिक कार्य को करने के ऊर्जा (energy) प्रदान करता है, यह पशु के तापमान को नियंत्रित रखता है,और पशु की कार्य क्षमता को बढ़ाकर पशु को सेहतमंद स्वस्थ शरीर प्रदान करता है।

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पशु आहार पशु की रोध प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है जिससे पशु स्वस्थ निरोगी रहते है और स्फूर्ति और नई ऊर्जा का संचार होता हैं, साथ ही पशु को किसी प्रकार की चोट लगने पर यह उन कटी कोशिकाओं को भरकर नई कोशिका का निर्माण करने के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करता है।

पशु आहार के बारे में :-

पालतू पशुओं जैसे गाय, बैल, बकरी, सूअर, घोड़ा आदि को खिलाए जाने वाला आहार जिसे 24 घंटे में (दाना चारा) के रूप में पशुओं को पशु शरीर के पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए पोषण हेतु पशुओं को खिलाया जाता हैं, उसे “पशु आहार” कहते हैं। एवं जिस आहार में ज़रूरी पोषक तत्त्व उच्चतम मात्रा में हो उसे “संतुलित आहार” कहते हैं।

पशु आहार के अव्यय और उनके कार्य :-

यह दो प्रकार के होते हैं।

 

  1. कार्बनिक तत्व :-

जल, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन।

  1. अकार्बनिक तत्व :-

मिनिरल।

  1. कार्बनिक तत्व :-
  2. जल (Water) :- 

यह शरीर के लिए सबसे सुगम व आवश्यक पोषक तत्व है। जो कि शरीर का सबसे बड़ा हिस्सा बनाता है।

शरीर का तापमान नियंत्रित करने उत्पादकता बढ़ाने एवं अन्य शारीरिक क्रियाओं जैसे  मल मत्र विसर्जन इत्यादि में जल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

शरीर में 7 से 10% जल की कमी होने पर मृत्यु हो जाती है।

जल ऑक्सीजन व हाइड्रोजन के 2:1 का मोना होता है।

पशु शरीर का 60%, पौधों का 70% तथा दूध का 87% भाग जल होता है।

पशु शरीर जल की मात्रा को तीन प्रकार से ग्रहण करता है :-

  1. Direct Drinking – सीधा पीकर।
  2. खाद्य पदार्थ के द्वारा – आहार के माध्यम से ।
  3. उपापच्य जल – शरीर की उपाप्च्य क्रियाओ द्वारा उत्पन्न पानी की मात्रा।

पशु शरीर में जल के मुख्य कार्य :- 

पानी विभिन्न पोषक तत्व को घोलने का कार्य करता है ताकि उनका उपापच्यान्न व अवशोषण आसानी से हो सके।

पशु आहार व चारे को पचाने के लिए।

पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने के लिए।

शरीर में से अनावश्यक को विषैले तत्वों को उत्सर्जित करने में।

रक्त को तरल बनाए रखने में।

दूध निर्माण प्रजनन क्रियाओ में।

शरीर में अम्ल क्षार संतुलित बनाने के लिए।

  1. कार्बोहाइड्रेट :-

कार्बन हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से मिलकर बनने वाली सरंचना।

इसके मुख्य इकाई शर्करा है।

पशुओं के खाद्य पदार्थ में कार्बोहाइड्रेट दो रूपों में पाया जाता है।

  1. Crude fiber (क्रूड फाइबर) :-

यह सेल्यूलोज, हेमीसेलुलोज व लिग्निन से मिलकर बनता हैं। इसका पाचन अरुमंथी पशुओं में में कम होता है। यह रेशेदार होते है। जैसे : धान, खल, हरा चारा, साइलेज।

  1. Nitrogen Free Extract (नाइट्रोजन फ्री एक्सट्रेक्ट) :-

 

इसके अंतर्गत सभी घुलनशील शार्कर्य आती हैं। खासकर स्टार्च, सुक्रोज, फ्रैक्टोज आदि।यह आसानी से पच जाते हैं। जैसे: धान, खल, हरा चारा, साइलेज।

कार्बोहाइड्रेट के कार्य :-

अंगो के नियामन तथा शरीर में ऊर्जा का स्रोत है।

अंगंग तंत्रों की क्रिया विधि में आवश्यक है।

तापमान नियंत्रण – ये पशु के यकृत में ग्लैकोजन व पशु स्टार्स के रूप में संग्रहित होते हैं तथा आवश्यकता होने पर ग्लूकोस में बदलकर ऊर्जा प्रदान करते हैं।

दूध में लैक्टोज के रूप में।

रूमन में जीवाणुओ व प्रोटोजोवा के वृद्धि हेतु मददगार साबित होते है।

जब ये शरीर में अधिक मात्रा में होते है तो वसा के रूप में संग्रहित होते है। इसे भंडारित ऊर्जा कहते है।

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Ex :- 1gm. से 4.4 किलो किलोरी ऊषमा उत्पन्न होती है।

  1. प्रोटीन :-

यह एक जटिल नाइट्रोजनिक अकार्बनिक रसायनिक पदार्थ है।

यह कार्बन, हाइड्रोज, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन (C+H+O+N) से मिलकर बनता है व इसमें कुछ मात्रा सल्फर व फास्फोरस की भी होती है।

प्रोटीन की सारंचात्मक व क्रियात्मक इकाई अमीनो अम्ल होती है।

प्रोटीन पशुओं में मांसपेशियों हड्डियों त्वचा बाल पंख ऊन आदि में पाया जाता है।

रमिनेंट्स में NPN के रूप में काम लिया जाता हैं।

प्रोटीन के कार्य :-

पशु शरीर में 17 – 20 % प्रोटीन होता है।

दूध का 3.6% भाग प्रोटीन होता है।

प्रोटीन इंजाईम हार्मोन व पाचक जूस का पशु शरीर में निर्माण करते है।

ये शरीर के अनिवार्य अमीनो अम्ल निर्माण में सहायक होता हैं।

एंटीजन , एंटीबायोटिक के निर्माण में आवश्यक ऊर्जा का स्रोत है।

दूध अंडा व ऊन उत्पादन में सहायक होता है।

  1. FAT (वसा) :-

पशु शरीर में 17 – 26% होता है।

बेंजीन, क्लोरोफॉर्म, ईथर में घुलनशील।

वसा में  कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की तुलना में 2- 2.5 गुना अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

1 ग्राम वसा पूर्ण ऑक्सीजन के पश्चात 9.3 किलो कैलोरी उसमा प्रदान करती है।

वसा वसीय अम्ल व ग्लिसरोल से बनते है।

वसा के कार्य :-

मुख्य कार्य ऊर्जा प्रदान करना।

वसा का भंडारण त्वचा के नीचे।

वसीय ऊतक के रूप में ।

  1. अकार्बनिक तत्व :-

 मिनिरल्स :-

जब किसी और कार्बनिक पदार्थ का पूर्ण रूप से इतना जलाते हैं कि उसमें किसी प्रकार की काले कड़ नही रह जावे तथा जलाने के बाद जो शेष राख बच जाती है, उसे मिनिरल्स कहते है। Ash के अंतर्गत सभी प्रकार के खनिज लवड़ होते है।

मिनिरल्स दो प्रकार के होते है :-

  1. Macro minirals (दीर्घममत्रिक) :-

ऐसे खनिज लवड़ जो शरीर के लिए प्रतिदिन आवश्यक होते हैं। जैसे K, Mg, P, Ca, Na, Cl, S इत्यादि।

  1. Micro minirals (सूक्षममात्रिक) :-

ऐसे खनिज लवण जो शरीर के लिए मैक्रो मिनिरल्स से तुलनात्मक रूप में कम आवश्यक होते है। जैसे Fe, Cu, Mn, Co, Se, I, Mo, F, As आदि।

इसमें कार्बन नही होता , इसलिए इसे अकार्बनिक राख (Ash) भी कहते हैं।

शरीर को ऊर्जा प्रदान नही करते हैं लेकिन उपापाच्य क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।

मिनिरल हड्डियों व अंडा का बाह् आवरण के विशेष अव्यय हैं।

मिनिरल पशु शरीर भार का 3 – 4% होता हैं।

पशु आहार में 0.7 – 16% होता है।

विभिन्न पदार्थों में मिनिरल की मात्रा :-

खल – 5-6%,.   सूखा चारा – 6-7%    हरा चारा –  1.5-2.5% Meat meal – 14- 15%

मिनिरल्स के कार्य :- 

दांत हड्डियों व मास बढ़ाने में जरूरी अव्यय ।

लोहा, तांबा, RBC व Hb निर्माण में ।

Ca+ रक्त का थक्का बनाने में आवश्यक।

बाल, खुर, सींग, निर्माण में ।

प्ररासारण दाब को नियंत्रित करते है।

इंजाइयम तथा हार्मोन बनाने में ।

कोशिका की पारग्म्याता हेतु।

दूध में मिनिरल 0.7%

पाचक रसो की अम्लीय व छारीयता प्रदान करते है।

Cl, P, S अम्ल्याता प्रदान करते है।

Na, K, Mg छारीयता प्रदान करते है।

रक्त में ऑक्सीजन की अवशोषण क्रिया हेतु आवश्यक है।

 

 

———-सभीन भोगरा, पशुधन विशेषज्ञ हरियाणा

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