सिनबॉयोटिक की कुटकुट आहार में उपयोगिता

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सिनबॉयोटिक की कुटकुट आहार में उपयोगिता
डा॰ ओ॰पी॰ दीनानी, सहायक प्राध्यापक
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, अंजोरा, दुर्ग (छ.ग.)

e-mail dr_dinani@rediffmail.com

प्रश्न 1ः प्रोबायोटिक क्या होते हैं ?
उत्तरः प्रोबॉयोटिक शब्द की उत्तपत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘प्रोबॉयोस (च्तवइपव) से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘जीवन के लिए’ (थ्वत सपमि)। परिभाषानुसार, ‘‘प्रोबॉयोटिक जीवित माइकोबिल पूरक आहार है, जो पशु पक्षी की आँत पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।’’

आदर्श प्रोबॉयोटिक के गुण धर्म-
1. उसी पशु / पक्षी से उत्पन्न।
2. संक्रमणहीन।
3. संग्रह तथा प्रोसेसिंग के लिए उपयुक्त।
4. गैस्ट्रिक अम्ल एवं बाइल (पित्त) प्रतिरोधी।
5. एपीथिलियम ऊतक या म्यूकस से चिपकने वाला।
6. पाचन तंत्र में रहने की क्षमता वाला।
7. प्रतिरोधी पदार्थ उत्पन्न करने वाला।
8. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला।
9. सूक्ष्म जीवाणुओं के कार्यकलाप को परिवर्तित करने वाला।
प्रश्न 2ः प्रीबॉयोटिक क्या होते हैं ?
उत्तरः प्रीबॉयोटिक को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है ‘‘प्रीबॉयोटिक अपचाच्य भोज्य पदार्थ होते हैं, जो पशु/पक्षी की बड़ी आँत में चयनात्मक रूप से एक या अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं की वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।’’

प्रीबॉयोटिक के गुणधर्म-
1. यह शरीर के एन्जाइम या ऊतक के द्वारा टूटते या अवशोषित नहीं होते हैं।
2. चयनात्मक रूप से एक या अनेक वांछित सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करते हैं।
3. बड़ी आँत के सूक्ष्म जीवाणुओं हेतु लाभप्रद होते हैं।
4. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता हेतु लाभप्रद होते हैं।
प्रश्न 3ः सिनबॉयोटिक क्या होते हैं?
उत्तर : प्रोबॉयाटिक तथा प्री बॉयोटिक का सम्मिश्रण सिनबॉयोटिक कहलाता है।
प्रश्न4ः एण्टीबॉयोटिक (प्रति जैविक) क्या होते हैं?
उत्तरः एण्टीबॉयोटिक रोगाणु प्रतिरोधी पदार्थ होते हैं, जो जीवाणु की संख्या में वृद्धि को रोकते हैं या उन्हें मार देते हैं।
कुछ एण्टीबॉयोटिक में प्रति प्रोटोजोआ क्रियाशीलता भी होती है। एण्टीबॉयोटिक सामान्यतया विषाणु (वाइरस) के विरूद्ध जैसे इन्फ्लुएंजा/सर्दी जुकाम कार्य नहीं करते हैं। विषाणुरोधी दवायें एण्टीबॉयोटिक से अलग (भिन्न) होती हैं।
कभी-कभी एण्टीबॉयोटिक शब्द जिसका अर्थ होता है। जीवन के विरूद्ध (ष्व्चचवेपजम सपमिष्) का उपयोग सूक्ष्म जीवाणु रोधी (।दजपउपबतवइपंस) के लिए भी किया जाता है। एण्टीबैक्टिरियल शब्द का उपयोग साबुन एवं फिनाइल इत्यादि में किया जाता है, जबकि एण्टीबॉयोटिक शब्द का उपयोग दवाईयों (डमकपबपदम) में होता है।
प्रश्न5ः एण्टीबॉयोटिक का उपयोग पशु पक्षियों में किस तरह किया जाता है?
उत्तर लगभग 80 प्रतिशत एण्टीबॉयोटिक का उपयोग पशु/पक्षी रोग उपचार में किया जाता है। लगभग 20 प्रतिशत एण्टीबॉयोटिक पानी या आहार द्वारा उनकी वृद्धि दर को बढ़ाने तथा उन्हें फार्म के अनुकूल रहने हेतु उपयोग की जाती है।
रोग प्रतिबंधात्मक उपचार (Therapy)
थरेपी का अर्थ होता है, एक या अनेक पशुओं का बीमार की दशा में उनका रोग प्रतिबंधात्मक उपचार करना। जब पशु प्रक्षेत्र के पशु/पक्षियों में रोग के लक्षण दिखने लगते हैं, तो उपयुक्त एण्टी बॉयोटिक द्वारा उनका उपचार किया जाता है।
पशु औषिधि विज्ञान में तरक्की होने के कारण स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी नकारात्मक स्थिति को परिभाषित, पहचाना एवं उपचारित किया जाना संभव है। इससे सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र किसी भी पशु/पक्षी की हानि से बचाया जा सकता है।
एण्टीबॉयोटिक दवाओं को उपयोग करने का मूलभूत सिद्धांत यह है कि यह शरीर में उपस्थित किसी भी संक्रमण एवं संक्रमित के कारण सूक्ष्म जीवाणुओं को खत्म कर देवें तथा इसका उपयोगकर्ता शरीर पर कम से कम हानिकारक प्रभाव हो।
एण्टीबॉयोटिक का पशु प्रक्षेत्र मवेशियों पर रोग प्रतिबंधात्मक उपयोग पशु उत्पादकता तथा लाभ बढ़ाने हेतु किया जाता है, जिसमें कम कीमत में उच्च गुणवत्ता युक्त पशु से प्रोटीन युक्त आहार प्राप्त हो सके।
खाद्य एवं औषिधि प्रशासन (थ्क्।) एण्टीबॉयोटिक के उपयोग की पशुओं पर प्रभाव व उपचार की निगरानी करता है तथा पशु उत्पादों माँस एवं दूध इत्यादि पर इसकी सुरक्षा को देखता है।
इस तरह एण्टीबॉयोटिक का रोग प्रतिबंधात्मक उपयोग से पशुधन स्वस्थ होते हैं जिससे उनसे स्चछ पशु उत्पादों की प्राप्ति होती है। अतः एण्टीबॉयाटिक को वृद्धि कारक के स्थान पर रोग प्रतिबंधात्मक रूप से उपयोग करना श्रेयकर है।
वृद्धि कारक (Growth promoters) के रूप में-
पशु प्रक्षेत्र पशुधन में एण्टीबॉयाटिक का इसका उपयोग वृद्धिकारक के रूप में होता है।
वृद्धि कारक Growth promoters का अर्थ होता है, एण्टीबॉयोटिक दवाओं का पूरक आहार के रूप में लम्बे समय तक उपयोग करना जिससे उनसे अधिक उत्पादन लिया जा सके।
अनेक एण्टीबॉयोटिक दवायें ऐसी हैं, जिनमें पशु/पक्षी के भार (वजन) में वृद्धि होती है तथा आहार रूपान्तरण क्षमता (थ्ब्त्) में सुधार होता है। एण्टीबॉयोटिक वृद्धि कारक के रूप में आंत्र के सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या को परिवर्तित करते हैं, जिसमें आहार का पाचन अच्छे तरीके से होता है।
मानव पर प्रभाव
एण्टीबॉयोटिक दवाओं को पशु पक्षीयों में वृद्धिकारक (Growth promoters) के रूप में उपयोग करने के कारण इनके अवशेष पशु/पक्षी उत्पादों में पहुँचते हैं तथा पशुओं एवं मानव शरीर पर एण्टीबॉयोटिक प्रतिरोधात्मक उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 6ः पशु प्रक्षेत्र के पशु/पक्षीयों में जीवाणु प्रतिरोधक क्षमता कैसे विकसित कर लेते हैं?
उत्तर : एण्टीबॉयोटिक दवाओं का उपयोग वृहद स्तर पर मानव रोगों के उपचार एवं रोकथाम के लिए होता है। इन एण्टीबॉयोटिक दवाओं का अधिक उपयोग पशुधन में करने से बैक्टीरिया इनके आदि हो जाते हैं। जिससे पशुओं की आँत में यह एण्टीबॉयोटिक का उपयोग करने पर भी रहने लगते हैं और अपने अन्दर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं।
रोधक क्षमता उत्पन्न करने हेतु ये अपने आनुवांशिकी पदार्थ क्छ। में स्वतः उत्परिवर्तन (डनजंजपवद) कर नया क्छ। (प्लाज्मिड) बना लेते हैं। बैक्टीरिया अपने अन्दर तीन तरीकों से प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेते हैं।
अंतः कोशकीय लक्ष्य को परिवर्तित करके
यह स्वतः उत्प्रेरित म्यूटेसन द्वारा क्छ। एवं उसके प्रोटीन की संरचना में परिवर्तन द्वारा होता है।
2. एण्टीबॉयोटिक को अपने से बाहर निकालना-
(च्नउचपदह) यह बैक्टीरिया द्वारा उपार्जित क्छ। के निर्देश से एण्टीबॉयोटिक कोशिका के बाहर निकल जाती है।
3. एण्टीबॉयाटिक को नुकसान रहित करना-
यह भी बैक्टिरिया के क्छ। में उसके निर्देशों के अनुसार होता है।
प्रश्न 7ः एण्टीबॉयोटिक के स्थान पर अन्य वैकल्पिक पूरक आहार सम्मिश्रण कोन से है।
उत्तरः अन्य वैकल्पिक पूरक आहार सम्मिश्रण जिन्हें एण्टीबॉयोटिक के स्थान पर उपयोग किया जा सकता है।
प्रोबॉयोटिक
प्रीबॉयोटिक
सिनबॉयोटिक
फायटो बॉयोटिक इत्यादि।
प्रश्न8ः प्रोबॉयोटिक तथा प्रीबॉयोटिक के क्या-क्या लाभ है?
उत्तरः
1. आँत के सूक्ष्म जीवाणुओं में परिवर्तित कर सुधार।
2. टथ्। का अधिक उत्पादन (वाण्पित फैटी अम्ल)।
3. रोग प्रतिरोधी क्षमता का विकास।
4. आँत के जीवाणुओं में वृद्धि एवं सही मल निकास।
5. सूजन क्रियाओं (प्दसिंउउंजपवद) में कमी।
6. अधिक विटामिन ठ का आँत में उत्पादन।
7. रोग कारक जीवाणुओं की संख्या में कमी।
8. खनिज लवण का अवशोषण बढ़ाना।
9. पशु उत्पादक क्षमता को बढ़ाना।
10. कैंसर रोधी।
11. शव में जीवाणु के प्रकोप को कम करना।
12. रक्त में कालेस्ट्राल घटाना।
13. अमोनिया तथा यूरिया का उत्सर्जन घटाना।

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