दुधारू पशुओ में टीकाकारण का महत्व
डॉ प्रतिभा शर्मा1, डॉ रोहिणी गुप्ता2, डॉ आदित्य अग्रवाल3, डॉ शिल्पा गजभिए3
- पशुपालन विभाग, (म. प्र.)
- पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर, (म. प्र.)
- पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा, (म. प्र.)
पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण अत्यंत आवश्यक होता है। अगर पशुपालक सही समय पर टीकाकरण कराये तो बीमारियों से तो बचाया जा सकता है साथ ही उनके दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि होती है। टीकाकरण संक्रामक रोगों से जुड़े उपचार की लागत को कम करके किसानों के आर्थिक बोझ को कम करने में भी मददगार साबित होता है। पशुओं में कई ऐसी बीमारियाँ होती है, जिनका संक्रमण इंसानों/मनुष्यों में भी फैल सकता है। ऐसे में पशुओं में टीकाकरण के द्वारा जूनोटिक बीमारियो का भी पशुओं से मनुष्यो में संक्रमण को रोका जा सकता है।
टीकाकरण का सिद्धांत :-
टीकाकरण के द्वारा पशुओं के शरीर में रोग विशेष के प्रति एक निश्चित मात्रा में प्रतिरोधक क्षमता (एन्टीबाडी) विकसित होती है। जो पशुओं को उस रोग विशेष से बचाती है। पुनः टीकाकरण या बूस्टर का उद्देश्य शरीर में उचित मात्रा में प्रतिरोधक क्षमता लगातार बनाये रखना तथा उनके प्रतिकूल प्रभाव को कम करना है। प्रत्येक बीमारी का टीका अलग होता है तथा एक बीमारी का टीका केवल उसी बीमारी से प्रतिरक्षा प्रदान करता है। बीमारी का फैलने से रोकने के लिए जिस गांव क्षेत्र अथवा समूह में रोग हो, उसके चारो तरफ के स्वस्थ पशुओं को टीका लगाकर प्रतिरक्षित क्षेत्र उत्पन्न कर देना चाहिए।
टीकाकरण से बचाव की शर्तें :-
सफलतापूर्वक टीकाकरण किए गए पशुओ में सुरक्षा प्रदान करता है, पर टीकाकरण कराने से पूर्व पशुओं को अन्तः परजीवी नाशक दवा पशु चिकित्सक की सलाह पर देनी चाहिए। टीकाकरण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि टीकों का संरक्षण उचित तापमान पर हर स्थिति में होना चाहिए।
अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु :-
- सिर्फ स्वस्थ पशुओं में ही टीकाकरण किया जाना चाहिए।
- अन्तः परजीवी नाशक दवा टीकाकरण के दो हफ्ते पहले दी जानी चाहिए।
- टीकों का संरक्षण उचित तापमान पर ही करना चाहिए।
- पशुओं के टीकाकरण का अभिलेखन होना चाहिए।
दुधारू पशुओं में टीकाकरण की तालिका :-
क्र. | बीमारी/रोग | डोज | तरीका | पहले टीके की उम्र | बूस्टर | आगामी टीके |
1. | खुरपका मुँहपका / एफएमडी | 5 एमएल | चमड़ी के नीचे | 3 माह | 21 दिन बाद | 6 माह पर |
2. | गलघोंटू / एच. एस. | 2 एमएल | चमड़ी के नीचे | 6 माह | – | साल पर |
3. | लंगड़ा बुखार/ बी. क्यू. | 2 एमएल | चमड़ी के नीचे | 6 माह | – | साल पर/6 माह के अंतराल |
4. | संक्रामक गर्भपात / ब्रूसल्ला | 5 एमएल | चमड़ी के नीचे | 6-8 माह (मादा बछियों में) | – | – |
5. | थिलेरिया | 3 एमएल | चमड़ी के नीचे | 3 माह | – | – |
6. | एंथ्रेक्स | 1 एमएल | चमड़ी के नीचे | 4 माह | – | साल पर |
विभिन्न प्रकार के टीके :-
क्र. | बीमारी/रोग | टीका |
1. | खुरपका मुँहपका | (a) रक्षा (b) रक्षा ओवैक |
2. | गलघोंटू | (a) रक्षा – एच एस |
3. | खुरपका मुँहपका + गलघोंटू | (a रक्षा – बायोवैक) (एफएमडी + एच एस) |
4. | खुरपका मुँहपका + गलघोंटू + लंगड़ा बुखार | (b) रक्षा ट्रिओवैक (एफएमडी + एच एस + बी क्यू) |
5. | गलघोंटू + लंगड़ा बुखार | (c) रक्षा एच एस + बी क्यू |
6. | संक्रामक गर्भपात/ ब्रूसल्ला | (a) ब्रुवैक्स |
7. | एंथ्रेक्स | (a) रक्षा – एंथ्रेक्स (स्पोर वैक्सीन) |
(b) स्टर्न वैक्सीन (स्पोर वैक्सीन) |