चारे- दाने के साथ पानी का भी है पशु पोषण में महत्व

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2007
importance -water-animal nutrition
importance of water for animal

चारे- दाने के साथ पानी का भी है पशु पोषण में महत्व

                               मंजू लता, रूकय्या, सिद्दिकी, मनवीन कौर, बी.सी. मण्डल

                       पशु पोशण विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, पन्तनगर

पानी मनुष्य ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों के लिये जीवन का आधार है। पानी के बिना हम जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकतें। यही कारण है कि शास्त्रों में जल को जीवन कहा गया है। पानी पशु के शरीर का एक मुख्य तत्व है तथा इसका पशु के शरीर में 50- 80 प्रतिशत योगदान रहता है। औसतन एक पशु दिन में कम से कम तीन बार पानी पीता है। पानी की कमी होने के कारण इसका सीधा प्रभाव पशु के उत्पादन पर पड़ता है। पशुओं की पानी की आवश्यकता उनकी उम्र, चारे की मात्रा एवं उत्पादन आदि पर निर्भर करती है तथा इस पर वातावरण के तापमान का भी प्रभाव पड़ता है। हरा चारा खाने वाले पशुओं को अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता होती है। गाय व भैंस को 60- 70 लीटर तथा भेड़- बकरी को औसतन 5- 7 लीटर पानी की आवश्यकता रहती है। प्यास लगने पर पशु बार- बार मुंह खोलना, नथने ऊपर उठाना एवं बार- बार जीभ निकालना आदि लक्षण दर्शाता है। पशुओं की स्वच्छ, शुद्ध एवं विषैले पदार्थां से मुक्त पानी ही पिलाना चाहिये। अशुद्ध जल पिलाने से पशुओं में बीमारियां फैलने की सम्भावना रहती है, जिसका सीधा प्रभाव पशु के स्वास्थ्य एवं उत्पादन पर पड़ता है।

पशुओं के शरीर में पानी का महत्व:

1.पानी पशुओं के शारीरिक तापमान को नियमित करने में मदद करता है।

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2.पशु के शारीरिक गतिविधियों से उत्पन्न हानिकारक पदार्थों को समाप्त करने में मदद करता है।

3.यह एक अच्छा घोलक है तथा शरीर में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाओं में महत्वपूर्ण योगदान करता है।

पशुओं में पानी की आवष्यकता मुख्य रूप से तीन प्रकार से पूरी होती है

  1. खुला या मुक्त पानी जैसे- तालाब, नहर, बरसात का पानी जो पशुओं को प्यास लगने पर दिया जाता है।

2.पशुओं के चारे में संग्रहित पानी।

3.मेटाबोलिक वाटर- मेटाबोलिक वाटर शरीर में उपाचय प्रक्रियों द्वारा उत्पादित होता है। अधिकांश पालतू पशुओं में उनकी आवश्यकता का 5- 10 प्रतिशत तक जल उपापचय द्वारा प्राप्त होता है।

निर्जलीकरण के लक्षण

  • भूख न लगना।
  • पशु का सुस्त व कमजोर हो जाना।
  • गाड़ा पेशाब करना।
  • दूध उत्पादन गिर जाना।
  • म्यूकस मेम्ब्रेन का सूख जाना।
  • सूखी एवं खुरदरी चमड़ी होना।

 

कुछ पशुओं के लिये अनुमानित पानी की आवश्यकता निम्न प्रकार हैः

गाय/भैंस- गाय- भैंस को औसत पोषण पर लगभग 27- 28 लीटर पानी की आवश्यकता होती है तथा प्रति कि.ग्रा. दुग्ध उत्पादन के लिये लगभग 3 लीटर पानी की आवश्यकता है।

भेड़/बकरी- एक कि.ग्रा. शुष्क पदार्थ खाने पर लगभग 2 कि.ग्रा. जल की आवश्यकता होती है।

मुर्गी- मुर्गियों में पानी को शरीर में रोकने की क्षमता कम होने के कारण अधिक बार पानी पीना पड़ता है। एक मुर्गी औसतन 250 कि.ग्रा. पानी पी लेती है, इस प्रकार 100 मुर्गियों को प्रतिदिन 20- 30 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

जल की आवष्यकता प्रभावित करने वाले कारक:

चारे की मात्रा एवं गुण- पशुओं को एक कि.ग्रा. शुष्क पदार्थ वाले भोजन के साथ 3- 4 कि.ग्रा. पानी की आवश्यकता होती है, परन्तु यदि आहार में प्रोटीन तथा खनिज लवणों की मात्रा अधिक होती है तो जल की आवश्यकता बड़ जाती है, क्योंकि मूत्र के रूप में जल का ह्रास अधिक होता है।

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निदान- पानी की कमी को जांचने के लिये पशु की चमड़ी उठाकर देखें, चमड़ी को छोड़ने पर अगर एक सेकेण्ड में चमड़ी वापस अपनी सामान्य स्थिति में न आये जो यह पशु में पानी को दर्शाता है। इसके अलावा निर्जलीकरण के विभिन्न लक्षणों को देखकर भी पशुओं में पानी की कमी का पता लगाया जा सकता है।

बचाव– पानी पशु को हर समय भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहना चाहिये। यदि यह सम्भव न हो तो जाड़ों में कम से कम दो बार तथा गर्मियों में तीन बार पशुओं को पानी पिलाना चाहिये। पशुओं को पिलाने वाला पानी साफ एवं स्वच्छ होना चाहिये, अत्यधिक पानी की कमी होने पर पशु को पशु चिकित्सालय ले जाकर नस के द्वारा पर्याप्त मात्रा में नॉर्मल सेलाइन व इलैक्ट्रोलाइट्स दिलायें, जिसमें पानी की कमी को पूरा किया जा सके।

तापमान- वातावरण का तापमान बढ़ने पर पानी की आवश्यकता भी बढ़ती है। सामान्यतः 75 0थ् तापमान तक जल की आवश्यकता में वृद्धि नहीं होती है, परन्तु इससे अधिक बढ़ने पर जल की आवश्यकता में तीव्र वृद्धि होती है तथा यह प्रति कि.ग्रा. आहार के शुष्क पदार्थ की 4.50- 5 गुना तक ही जाती है।

उत्पादन- 1 कि.ग्रा. दूध पैदा करने हेतु लगभग 3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, इसलिये अधिक दूध देने वाले पशु की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार कार्यरत एवं गभ्रित पशुओं को सामान्य पशुओं से अधिक जल की आवश्यकता होती है।

नस्ल- विदेशी नस्ल के पशु भारतीय नस्लों की तुलना में अधिक जल पीते हैं।

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