गर्मी में मुर्गियों में होने वाले प्रमुख रोग – रोकथाम तथा उपचार
मुर्गियों की गर्मियों में देखभाल
मुर्गी दाना कम खाती है और इससे प्राप्त ऊर्जा का बड़ा हिस्सा उनके शरीर की गर्मी बरकरार रखने हेतु खर्च हो जाता हैं अत: उनका अण्डा उत्पादन कम हो जाता हैं। अण्डों का आकार तथा वजन भी कम हो जाता है। अण्डों का कवच (छिलका) पतला हो जाता हैं। इन सबके कारण अण्डों को कम बाजार मूल्य प्राप्त होता हैं।
सभी विपरीत प्रभाव गर्मी के कारण होते हैं अत: गर्मी का असर कम करने के लिए ये उपाय करें।
बाड़े में ज्यादा तादाद में मुर्गियां न रखे। इतनी ही मुर्गियां रखें ताकि वहां ज्यादा भीड़ न हो। बाड़े के इर्दगिर्द घने, छायादार वृक्ष लगायें। मुर्गीफार्म के चारों और सुबबूल या मेहंदी या संपूर्ण वर्ष में ज्यादातर हरे-भरे रहने वाली वनस्पति की बाड़ लगायें। इससे गर्म हवाओं के थपेड़ों की तीव्रता कम हो जाती हैं और मुर्गीफार्म के आसपास का वातावरण ज्यादा गर्म नहीं होता।
अगर मुर्गीफार्म के आसपास पेड़ पौधे नही हैं तो चारों ओर छत से सटकर कम से कम दस बारह फीट चौड़ा हरे रंग के जालीदार कपड़े का मंडप लगवाये। इससे धूप की तीव्रता कुछ कम होगी और वहां का सूक्ष्म वातावरण ज्यादा गर्म नहीं होगा। मुर्गीघर का छत ज्यादा गर्म नहीं होने वाली चीज से बना हो जैसे कवेलू, घांसफूस, बांबू (बांस)। अगर छत टीन की हैं तो ऊपर की सतह पर सफेद रंग लगवायें। इससे छत ज्यादा गर्म नहीं होती तथा मुर्गीघर का भीतरी तापमान में चार डिग्री सेंटीग्रेड की कमी आती हैं।
अगर मुमकिन हैं तो छत के ऊपर टाट/बोरियां बिछा दें तथा उनको पानी की फुहार छोड़कर गीला रखें। इससे छत का तापमान कम हो जाता हैं तथा मुर्गीघर के भीतरी तापमान में चार से चौदह डिग्री सेंटीग्रेड तक कमी आ सकती हैं। इसका मतलब बाहरी वातावरण का तापक्रम अगर 44 डिग्री सेंटीग्रेड भी है तो वह घटकर 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक नीचे आ जायेगा। आगे अगर मुर्गीघर के भीतर पंखा या फॉगर लगाया तो यह तापक्रम और भी 2 से 3 डिग्री सेंटीग्रेड से कम किया जा सकता हैं। आखिर में 27 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान आ गया तो वह मुर्गियों के लिये काफी हद तक बर्दाश्त करने लायक हो जायेगा और मुर्गियों को गर्मी से तकलीफ नहीं होगी।
- बाड़े के ईर्द गिर्द घांस के लॉन (क्यारियां) लगवाये तथा उन पर फुहार पद्धति सिंचाई करें तो आसपास के वातावरण का तापक्रम काफी कम होगा।
- बाड़े के बगलों पर टाट/बोरियों के परदे लगवाये तथा छिद्रधारी पाईप द्वारा उन पर पानी की फुहार दिनभर पड़ती रहेगी ऐसी व्यवस्था करें। इसके लिये छत के ऊपर एक पानी की टंकी लगवायें तथा वह पाइप उससे जोड़ दें तो गुरुत्वाकर्षण दबाव से पानी पर्दों पर गिरता रहेगा। इससे कूलर लगाने जैसा प्रभाव पड़ेगा और मुर्गीघर का भीतरी तापमान काफी कम होगा जो मुर्गियों के लिये सुहावना होगा।
- अगर मुर्गियां सघन बिछाली पद्धति में रखी हैं तो भूसे को सबेरे शाम उलट-पुलट करें।
- बाड़े के ऊपर स्थित पानी की टंकियों को सफेद रंग लगवायें। अगर छोटे पैमाने पर मुर्गीफार्म हैं तो बड़ी मिट्टी की नांद या बड़े मटकों में रात्रि में पानी भरकर रखें। दूसरे दिन तक पानी ठंडा होगा तो वह मुर्गियों को प्रदान करें।
- पीने के पानी में ईलेक्ट्रोलाईट पाउडर घोलकर प्रवाहित करें ताकि मुर्गियों को वह उपलब्ध हो सकें।
- मुर्गियों के दाने को (मँश को) पानी को हल्के छींटे मारकर मामूली सा गीला करें।
- दाने में (मॅश में) प्रोटीन की मात्रा बढ़ायें ताकि मुर्गियों के शरीर भार में, पोषण स्तर में और अण्डों का आकार, छिलका, वजन सामान्य रहें।
- मुर्गियों के पीने के पानी में विटामीन ‘सीÓ एक हजार मुर्गियों के दाने में दस ग्राम इस अनुपात में मिलाकर खिलायें।
इस प्रकार प्रबंधन करें तो मुर्गियों को गर्मी के प्रकोप से काफी हद तक बचाया जा सकता हैं तथा इससे अण्डा उत्पादन तथा आकार और वजन में कमी नहीं होगी। अण्डों का छिलका पतला नहीं होगा और वे अनायास नहीं टूटेंगे। नुकसान कम होगा और अण्डा उत्पादन व्यवसाय किफायती होगा।
मुर्गियों में होने वाली बीमारियां
अगर आपको इसके बारे में जानकारी नहीं है और हम इसमें बहुत लापरवाही करते हैं तो मुर्गी पालन के लाभ की जगह बहुत नुकसान हो जाता है | दोस्तों यहाँ जानना आवश्यक है | कि अगर हम मुर्गी पालन की सोच रहें हैं | तो हमें मुर्गियों में होने वाली बीमारियों को जानना भी अति आवश्यक है |
मुर्गियों में कौन सी बीमारियां है और उनके क्या लक्षण हैं ?
मुर्गियों के रोगों की रोकथाम के लिए क्या हमारे पास अनुभव है और क्या उपाय हम कर सकते हैं , ये सब जानकारियां भी आपको अच्छी तरह मालूम होनी चाहिए |
यहाँ तक की बीमारियों का सवाल है | अगर हम रोग नियंत्रण के लिए उपाय करें और रोज के काम में कुछ सावधानियां दें तो बहुत सारी बीमारियों से हम अपनी मुर्गियों को बचा सकते हैं |
मुर्गी पालन में आवश्यक सावधानियां
- दोस्तों अगर आप मुर्गी पालन कर रहे हैं तो उनके लिए उचित जल निकासी की व्यवस्था हो, मुर्गियों के रहने के स्थान के पास कॉपर सल्फेट छिड़काव से संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद मिलती है |
2. शेड को साफ सुथरा रखें और स्वच्छ पेयजल प्रदान करें |
3. संक्रमित मुर्गियों को स्वस्थ्य मुर्गियों से दूर रखें |
4. मृत मुर्गियों को कहीं दूर फेंक दिया जाए |
5. नये चूजे लेते समय स्वस्थ्य चूजे खरीदें |
6. मुर्गियों को समय- समय पर टीकाकरण करवाएं |
सावधानियां बरतने से बहुत सी बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है |
दोस्तों हमें उन बीमारियों के ईलाज के लिए डॉक्टर की जरूरत पड़ती है | तो पहले से ही सर्तक रहें |
हमारी मुर्गियों को कोई खतरनाक बीमारी न घेर ले |
अगर आपके मुर्गियों के झुंड में कोई एक मुर्गी बीमार है तो हमारी सारी मुर्गियों को खतरा रहता है |
दोस्तों अपनी मुर्गियों का सही ढंग से देखभाल करें और उनकी बीमारियों के बारे में जानकारी लेते रहे और भी बहुत से उपाय मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए हैं जिससे आप अपना मुर्गीपालन सफलतापूर्वक कर सकते हैं |
मुर्गीपालन में अत्यधिक संभावनाएं
मुर्गी पालन करना बहुत ही आसान है, हर कोई व्यक्ति मुर्गी पालन कर सकता है | मुर्गी पालन से बहुत लाभ होता है | मुर्गी पालन दोस्तों घर में भी कर सकते हैं |
यह एक बहुत आसान धंधा है, इसमें ज्यादा लागत नहीं लगती है | आप सौ चूजों का पालन भी कर सकते हैं | अगर आपको ज्यादा नहीं करना है तो कम मात्रा में भी कर सकते हैं | लेकिन मुर्गियों का थोड़ा सा ध्यान देना आवश्यक है, इनको कोई बीमारी तो नहीं आ रही है | इस प्रकार दोस्तों आप कुक्कुट पालन ( मुर्गी पालन) पालन कर सकते हैं |
मुर्गियों की गर्मियों के दिनों में देखभाल कैसे करें |
दोस्तों गर्मियों में तेज हवा बदलते तापमान के कारण मुर्गियों में अनेक बीमारियां और अनेक परेशानियां आतीं है |
जैसे –
- मुर्गियों का वजन कम होना,
- बिटस्ट्रीम
- लीवर में सूजन
- किडनी में सूजन आदि |
मुर्गियों में पानी की कमी से होने वाले रोग –
दोस्तों ज्यादातर लोग लापरवाही करते हैं मुर्गियों को पीने के पानी को लेकर,पीने के लिए पर्याप्त पानी न मिलना मुर्गियों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है |
आपने अक्सर देखा होगा जहाँ दो चार मुर्गियाँ पानी पीना शुरू करेगीं, वहाँ बहुत सारी मुर्गियाँ पानी पीने के लिए पहुंच जाती है | और पानी खत्म हो जाता है | तेज गति से हवा चलने के कारण किसी कोने में सभी मुर्गियाँ पहुंच जातीं है | और वहाँ का पानी खत्म हो जाता है | पानी खत्म होने के बाद मुर्गियाँ वहीं बैठीं रहेगीं |
पानी की कमी के कारण किडनी में सूजन आ जाती है | इसलिए आप इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि इस Drinker में कितनी पानी है | पानी खत्म होने के बाद आप उस Drinker में पानी तत्काल भर दें | उस के लिए किसी टप में पानी भरकर रख दें, टप के ऊपर जूट का बोरा लपेट दें और पानी से भिगा दें ताकि पानी ठंडा रहें |
दोस्तों मुर्गियों में तापमान प्राकृतिक रूप से पहले से ही ज्यादा होता है | ऊपर से गर्मी का मौसम और तेज गर्म हवाओं के कारण मुर्गियों के शरीर का तापमान इतना बढ़ जाता है, कि मुर्गियाँ मर तक जातीं है | इसलिए मुर्गियों के रहने के लिए ऐसे घर या मकान की बनावट जहाँ कम से कम लू लगने की संभावना हो |
आपने मरी हुई मुर्गियों पर ध्यान दिया होगा, मुर्गी जब मर जाती है तो उसके बाद अगर आप मुर्गी को उठाकर देखेगें उसके पेट का मांस सफेद रहता है | मरने की वजह है कि गर्मी के कारण उस जगह का मांस बिल्कुल उबल जाता है |
लू से बचाने के उपाय
पोल्ट्री फार्म को झोपड़ीनुमा बना दें, पोल्ट्री की लंबाई 8 से 10 फीट अंतराल पर स्प्रिंकलर लगवाएं | यानि पानी का फुहारा पाईपलाइन के सहारे पानी के फुहारे से पुआल के ऊपर गिरेगा और पुआल बिल्कुल भीग जाएगी, तो पोल्ट्री आपकी बिल्कुल ठंडी रहेगी |
खिड़की पर जूट की पानी से भीगी बोरी इस तरीके से बांध दें जिससे खिड़की से अंदर ठंडी हवा आएगी | मुर्गी के पीने के पानी में इलेक्ट्रानिक पाउडर घोलकर दें | इलेक्ट्रानिक पाउडर घोलकर देने से मुर्गियों के शरीर का तापमान कम होगा | एवं शरीर में पानी की कमी नहीं रहेगी | पोल्ट्री फार्म के लिए इलेक्ट्रानिक पाउडर अलग से आता है, इलेक्ट्रानिक पाउडर की कीमत 187 से 190 रुपये के बीच में आता है |
पैकेट पर लिखे अनुसार उपयोग में लाएं, इससे मुर्गियों के शरीर का तापमान संतुलित रहेगा और लू की समस्या उत्पन्न नहीं होगी |
गर्मियों में मुर्गियों का वजन सही लाने का तरीका
दोस्तों गर्मियों में मुर्गियाँ बहुत कम खाती हैं और पानी ज्यादा पीती हैं | इसलिए रात के पानी में लिवरटॉनिक का इस्तेमाल करें | इससे मुर्गियों का खाना तेजी से पचेगा और तेजी से खाएगी | दिन का भोजन कम करें और रात में ज्यादा खाना दें |
दोस्तों इस प्रकार आप गर्मियों में मुर्गी पालन कर सकते हैं | और आपको बहुत लाभ होगा, अगर आप इस तरीके से मुर्गी पालन करते हैं |
गर्मियों में मुर्गियों के रोग
मुर्गियों में बैक्टीरिया से कई बीमारियां होतीं हैं जो मुर्गियों को गर्मियों में परेशान कर सकती है।
- ई कोलाई (E.Coli)
- सीआरडी (CRD)
- गाउट (Gout)
- चिक चिक (Chik chik)
- गैम्बरू (Gamboro)
- रानीखेत (Ranikhet)
गर्मियों में मुर्गियों में सबसे ज्यादा मात्रा में रोग की संभावना को देखते हुए
ई कोलाई (E.Coli) नामक बीमारी सर्वाधिक आती है | मुर्गियों में गर्मी के समय में ई कोलाई (E.Coli) नामक रोग हो जाने पर किसान भाई इस रोग पहचान इस प्रकार कर सकते हैं –
ई कोलाई (E.Coli) रोग के लक्षण –
मुर्गियों में दस्त होने लगता है |
मुर्गियों के मल में रक्त आना प्रारंभ हो जाता है |
मुर्गियों को उल्टी होने लगती है |
मुर्गियों का शरीर अत्यधिक गर्म ( बुखार) हो जाता है |
ई कोलाई (E.Coli) रोग का रोकथाम और उपचार
इस रोग के उपचार के लिए मुर्गियों में पानी की कमी को दूर किया जाता है | इसके लिए मुर्गियों को चिकित्सक के परामर्श से दो मेडीसिन देना अति आवश्यक हो जाता है
- Restrict- L- 100 mg/kg ( वजन के हिसाब से)
- Enrocine venflox ( 10mg / किलो के हिसाब से)
ई कोलाई (E.Coli) बीमारी जो होती है, वो गर्मी के टाइम में इसलिए आती है क्योंकि गर्मियों के टाइम में जो पानी की क्वालिटी होती है वो थोड़ी सी खराब हो जाती है।
दोस्तों कोशिश करिए की जिस तरीके का पानी आप खुद पी रहे हैं, उस तरीके का पानी अपनी मुर्गियों को भी पिलाएं। और गर्मियों के समय पानी में बैक्टीरिया भी बढ़ जाता है, तो दोस्तों उसे कम करने के लिए आप Aquamax या safeguard 1मिली/10 लीटर के हिसाब से पानी में दे सकते हैं | या फिर दोस्तों उससे सस्ते में दवाई चाहते हैं तो bleaching powder का यूज भी कर सकते हैं।
दोस्तों अगली बीमारी की बात करें तो सीआरडी (CRD) भी गर्मियों के दिन में होने वाली बीमारी है |
सीआरडी (CRD) रोग के मुर्गियों में लक्षण –
- नाक से पानी आना
- साँस लेते वक्त घबराहट
- आंख में सूजन
उपचार – इलाज के तौर पर आप Enrocine venflox जो आप ई कोलाई (E.Coli) में दे रहे थे, वो सीआरडी (CRD) में भी दे सकते हैं। दोस्तों सीआरडी (CRD) मुर्गियों की सबसे बड़ी प्राब्लम है जो गर्मियों के टाइम में देखने को मिलती हैं |
गाउट (Gout) रोग अगर कई सारे नये फार्मर हैं तो वे लोग Gout औरई कोलाई (E.Coli) रोग में कन्फ्यूज हो जाते हैं।गाउट (Gout) रोग से मुर्गियों के ग्रसित होने पर आप लोगों को क्या करना है, अपनी मुर्गियों को ज्यादा से ज्यादा साफ पानी देना है। जैसा आप खुद पीते हैं।
दोस्तों नेक्स्ट प्राब्लम की बात है तो वो है चिक चिक (Chik chik) रोग की, चिक चिक (Chik chik) रोग की प्राब्लम हर सीजन में देखने को मिल जाती है।रानीखेत रोग और Gamboro इनकी ज्यादा संभावना रहती हैं। मतलब यह ऐसी बीमारियां है जो हर सीजन में आ सकती है। रानी खेत और गमबोरो रोग में ऐसा कोई मेडिसिंस है नहीं की दे दो। इससे बचाव के लिए टीकाकरण समय समय पर करवाना है। इस वायरल प्राब्लम से अपनी मुर्गियों को बचा सकते हैं। इसी प्रकार की बीमारियां ज्यादा आती है मुर्गियों में |
किसान भाइयों गर्मियों के मौसम में और भी मुर्गियों के रोग हैं जिनके द्वारा मुर्गियों की बड़ी संख्या में मृत्यु होती है |
अंडा और मांस देने वाली मुर्गियों में गर्मी के मौसम में विभिन्न प्रकार के रोगों की आने की संभावना बनीं रहती है |
हम कुछ रोगों के बारे में और देख लेते हैं –
संक्रामक रोग | परजीवी रोग | पोषकहीनता रोग |
1. विषाणु रोग – रानीखेत, चेचक, लकवा, श्वसन शोथ | | 1. बाह्य परजीवी रोग – चींटी प्रकोप, जूँ पड़ जाना, चिचड़ी पड़ जाना | | पीरोसिस |
2. जीवाणु रोग – कॉलरा, जुकाम, क्षय, चिचड़ी | | 2. आंतरिक परजीवी रोग – फीताकृमि, गोल कृमि, सीकल कृमि | | रिकेट्स |
3. फफूँदी रोग – एस्परजिलोसिस, नीली कलंगी | | कॉक्सीडियोसिस | ए-विटामिनोसिस |
- गम्बोरो रोग
यह विषाणु जनित रोग विषाणु युक्त हवा पानी एवं आहार के द्वारा इस रोग का फैलाव होता है |
लक्षण –
1. शारिरिक तापमान में बढ़ोत्तरी
2. गर्दन के नीचे के पंख फैलाकर बैठना
3. जांघ एवं छाती की मांसपेशियों के ऊपर खून के लाल धब्बे दिखना इसके प्रमुख लक्षण हैं |
इससे मृत्यु दर तीन दिनों तक अधिक होती है |
उपचार एवं बचाव –
1. संक्रमित मुर्गियों अलग करें गुड 150 ग्राम प्रतिदिन पीने के पानी में देना चाहिए |
2. मल्टी विटामिन एवं विटामिन A तथा C योग्य मात्रा में तीन से पांच दिन तक दें |
3. पशु चिकित्सक से आवश्यक परामर्श ले |
4. इस बीमारी से बचाव के लिए ब्रायलर में 10 से 12 दिन अंडे देने वाली मुर्गियों में 10 से 13 दिन व चौथे सप्ताह में टीकाकरण करवाएं
- काक्सीडियोटिस रोग –
यह एक भयानक परजीवी रोग है | जिससे केवल बच्चों में बहुत अधिक मृत्यु होती है, बल्कि अंडा देने की अवस्था में देरी से प्राप्त करती है |
लक्षण –
1. मुर्गियाँ कष्ट में रहेगी,
2. खुजली या पीली दस्त करतीं हैं |
3. लोलक तथा कलंगी का रंग पीला हो जाता है |
4. मुर्गियाँ बिजली के पास सिमटकर बैठती है |
5. मुर्गियाँ आंख बंद करके उंगती रहती है |
उपचार एवं बचाव
1. इस रोग की रोकथाम एवं अंडों से बच्चे निकलने से दसवें दिन उनसे रोग निरोधक दवाईयां, पशु चिकित्सा सलाह अनुसार देना चाहिए |
2. विछावन को सप्ताह में दो बार आवश्यक रूप से पलटते रहना चाहिए |
3. कम स्थान में ज्यादा मुर्गी पालन नहीं करना चाहिए |
- कॉलीवेलोसिस रोग–
कॉलीवेलोसिस रोग जीवाणु से होता है | इस रोग से ग्रसित मुर्गियों की संख्या गर्मियों के दिनों में सामान्य से अधिक पाई जाती है |
लक्षण-
1. मुर्गियों के पेट में पानी भर जाता है |
2. मुर्गियाँ सुस्त हो जाती है |
3. मुर्गियाँ कोने में इकट्ठा होकर बैठ जाती है |
4. उनके आहार में कमी आना,
5. सांस लेने में दिक्कत एवं इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं |
उपचार एवं बचाव
1. मुर्गियों को पीने के लिए स्वच्छ पानी देना चाहिए |
2. इसके अलावा तीन से चार बार उच्च मात्रा में क्लोरीन या ब्लीचिंग पाउडर पीने के पानी में डालना चाहिए |
3. इसके अलावा पशु चिकित्सा से परामर्श ले |
8 सप्ताह से अधिक आयु के चूजों के रोग | युवा कुक्कुट |
लकवा | कालरा |
जुकाम | लकवा |
आँतों की कॉक्सीडियोसिस | कृमि |
- दीर्घकालीन श्वसन रोग –
यह रोग माइक्रो प्लाज्मा नामक जीवाणु से संक्रमित होने से फैलता है | फरवरी से लेकर अप्रैल तक तभी फसलों की कटाई होती है | और इस धूल के कारण यह रोग मुर्गियों में भयानक रूप से फैलता है | यह रोग दीर्घकाल तक रहता है | और मुर्गियों को कमजोर बना देता है |
लक्षण –
1. मुर्गियों की श्वास नलिका प्रभावित होती है |
2. इसके अलावा खांसी आना, हापना, सांस लेने में परेशानी होती है |
3. अगर आप मुर्गी फार्म के आस – पास से गुजरते हैं तो घड़ घड़ की आवाज आना |
उपचार एवं बचाव
1. फसल कटाई के समय परदे बंद रखें
2. मुर्गियों को सीधे हवा के झोके से बचाएं
3. पशु चिकित्सा से योग्य परामर्श ले |
- लू लगना –
गर्मी के मौसम में जब तापमान अधिक हो जाता है तब मुर्गियों को अक्सर लू लग जाती है |
लक्षण-
1. मुंह खोलकर जल्दी जल्दी सांस लेती है तथा सुस्त हो जाती है |
2. मुर्गियाँ दाना, चारा खाना कम कर देती है, और प्यास भी अधिक लगती है |
3. मुर्गियों की मृत्यु तक हो जाती है |
उपचार एवं बचाव
1. रोग से प्रभावित मुर्गियों को ठंडी जगह पर ले जाकर उनके सिर पर पानी डालें एवं हवा दार वातावरण में रखें
2. दोपहर के समय जब लू अधिक चलती है, विछावन पर भी पानी का फुहारा करना चाहिए |
जिससे कुक्कट शाला के तापमान को कम किया जा सकता है |
3. विटामिन A को पीने के पानी में दें, गर्मियों के समय में विटामिनA पानी में भी मिलाकर दिया जा सकता है |
1. रानीखेत बीमारी वायरस द्वारा होती है। |
2. रानीखेत बीमारी मुर्गियों में सर्वप्रथम रानीखेत नामक स्थान में देखी गयी थी। |
3. किलनी बुखार के स्पाइरोचीटा गैलीनेरम के कारण होता है। |
4. अंतः परजीवी प्रायः आँत में पाए जाते हैं। इसके अन्तर्गत गोल कृमि एवं फीताकृमि आते हैं। |
5. बाह्य परजीवी के अन्तर्गत पिस्सू नँ, माइट आते हैं। |
6. परजीवी एक प्रकार के कीटाणु होते हैं। |
7. परजीवी दूसरे जीवों के शरीर के ऊपर या भीतर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। |
8. खूनी दस्त कॉक्सीडिया नामक प्रोटोजोआ परजीवी द्वारा होता है। |
9. मुर्गियों में कीड़ा मारने वाली दवा आन्तरिक परजीवी को निकालने के लिए पिलायी जाती है। |
10. वाइफ्यूरान औषधि कॉक्सीडियोसिस के बचाव हेतु अच्छी है। |
11. रानीखेत का टीका एक सप्ताह के चूजों को लगाया जाता है। |
12. चिरकालिक श्वसन रोग माइकोप्लाज्मा के कारण होता है। |
Compiled & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
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