नवजात बछड़ियो की मृत्यु दर को कम करने हेतु पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह

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नवजात बछड़ियो की मृत्यु दर को कम करने हेतु पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह

नवजात बछडियों की देखभाल

कहा जाता है कि एक पौधे का जितना अच्छी तरह ध्यान रखा जाएगा, वह उतना ही मजबूत पेड़ बनेगा। इसी तरह पशुपालक जितनी अच्छी तरह बछड़े का ध्यान रखेंगे वह उतना ही तंदुरुस्त बैल या गाय बनेगी। पशुपालक अक्सर गाय के ब्याने के बाद बछड़े के ऊपर ध्यान ही नहीं देते। जिसकी वजह से न केवल बछड़ा कमजोर रह जाता है। बल्कि कई बार बछड़े की मौत तक हो जाती है। जिसका असर गाय के ऊपर भी पड़ता है और कई बार तो गाय दूध तक देना बंद कर देती है। इसलिए जरूरी है कि बछड़े के जन्म के साथ ही उनकी देखरेख अच्छी तरह की जाए। अगर आप भी एक पशुपालक हैं और आपकी गाय ब्याने वाली है, तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि बछड़े की देखभाल किस तरह की जाती है। पशुपालक भाई इस बात का हमेशा ध्यान रखें की नवजात बछड़ी या बछड़ा का रखरखाव उनके जन्म के साथ नहीं वरन् जन्म से पूर्व ही मां के गर्भ में शुरू हो जाता है। गर्भावस्था की अंतिम तृतीय अवधि में गर्भस्थ शिशु का सबसे अधिक और तेजी से विकास होता है। जिसके लिए उसे उचित पोषण की आवष्यकता होती है। चूंकि गर्भावस्था में मां ही शिशु के पोषण का एकमात्र साधन होती है, अत: इस अवधि में मां को मिलने वाला भोजन ही गर्भस्थ में शिशु विकास की दर को निर्धारित करता है। पशुपालकों का चाहिए कि वे इस अवधि में गर्भित गाय-भैंस को उचित पोषण प्रदान करें। इस समय मां को उच्च गुणवत्ता वाला तथा पोषक तत्वों से युक्त हरा चारा उपलब्ध कराएं। साथ ही 2-3 कि.ग्रा. संतुलित दाना निर्वाह हेतु दिया जाना चाहिए, परन्तु बच्चा देने की अपेक्षित तिथि से एक सप्ताह पूर्व दाने की मात्रा कम कर देनी चाहिए ताकि पशु को अपच अथवा बच्चा फंस जाने जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।  बच्चा देने की अपेक्षित तिथि से लगभग एक अथवा दो सप्ताह पूर्व गर्भित मां को बच्चा देने वाले बाड़े में (धुला हुआ, सूखा तथा बिछाली युक्त) बांध देना चाहिए।

पशु पालकों को नवजात बछडियों की उचित देखभाल व पालन-पोषण करके उनकी मृत्यु डर घटना आवश्यक है| नवजात बछडियों को स्वत रखने तथा उनकी मृत्यु डर कम करने के लिए हमें निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए:

1.गाय अथवा भैंस के ब्याने के तुरन्त बाद बच्चे के नाक व मुंह से श्लैष्मा व झिल्ली को साफ कर देना चाहिए जिससे बच्चे के शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से हो सके|

2.बच्चे की नाभि को ऊपर से 1/2 इंच छोडकर किसी साफ कैंची से काट देना चाहिए तथा उस पर टिंचर आयोडीन लगानी चाहिए|

3.जन्म के 2 घंटे के अन्दर बच्चे को माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाना चाहिए| खीस एक प्रकार का गढा दूध होता है जिसमें साधारण दूध की अपेक्षा विटामिन्स, खनिज तथा प्रोटीन्स की मात्रा अधिक होती है| इसमें रोग निरोधक पदार्थ जिन्हें एन्टीवाडीज कहते हैं भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं|एन्तिबडीज नवजात बच्चे को रोग ग्रस्त होने से बचाती है|खीस में दस्तावर गुण भी होते हैं जिससे नवजात बच्चे की आंतों में जन्म से पहले का जमा मल (म्युकोनियम) बाहर निकल जाता है तथा उसका पेट साफ हो जाता है| खीस को बच्चे के पैदा होने के 4-5 दिन तक नियमित अंतराल पर अपने शरीर के बजन के दसवें भाग के बराबर पिलाना चाहिए| अधिक मात्र में खीस पिलाने से बच्चे को दस्त लग सकते हैं|

4.यदि किसी कारणवश (जैसे माँ की अकस्मात् मृत्यु अथवा माँ का अचानक बीमार पड़ जाना आदि) खीस उपलब्ध न हो तो किसी और पशु की खीस को प्रयोग किया जा सकता है| और यदि खिन और भी यह उपलब्ध न हो तो नवजात बच्चे को निम्नलिखित मिश्रण दिन में 3-4 बार दिया जा सकता है| 300 मि.ली. पानी को उबाल कर ठंडा करके उसमें एक अंडा फेंट लें| इसमें 600 मि.ली.साधारण दूध व आधा चमच अंडी का तेल मिलाएं| फिर इस मिश्रण में एक चम्मच फिश लिवर ओयल तथा 80मि.ग्रा.औरियोमायसीन पाउडर मिलाएं| इस मिश्रण को देने से बच्चे को कुछ लाभ हो सकता है लेकिन फिर भी यह प्राकृतिक खीस की तुलना नहीं कर सकता क्योंकि प्राकृतिक खीस में पाई जाने वाली एंटीबाड़ीज नवजात बच्चे को रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है| खीस पीने के दो घंटे के अन्दर बच्चा म्युकोनियम (पहला मल) निकाल देता है लेकिन ऐसा न होने पर बच्चे को एक चम्मच सोडियम बाईकार्बोनेट को एक लीटर गुनगुने पानी में घोल कर एनीमा दिया जा सकता है|

5.कई बार नवजात बच्चे में जन्म से ही मल द्वार नहीं होता इसे एंट्रेसिया एनाई कहते हैं| यह एक जन्म जात बिमारी है तथा इसके कारण बच्चा मल विसर्जन नहीं कर सकता और वह बाद में मृत्यु का शिकार हो जाता हैं| इस बीमारी को एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा ठीक किया जा सकता है| मल द्वार के स्थान पर एक +के आकार का चीर दिया जाता है तथा शल्य क्रिया द्वारा मल द्वार म्ब्नाक्र उसको मलाशय (रेक्टम) से जोड़ दिया जात है जिससे बच्चा मल विसर्जन करने लगता है| यह कार्य पशुपालक को स्वयं न करके नजदीकी पशु चिकित्सालय में करना चाहिए क्योंकि कई बार इसमें जटिलतायें पैदा हो जाती है|

6.कभी-कभी बच्छियों में जन्म से ही चार थनों के अलावा अतिरिक्त संख्या में थन पाए जाते है| अतिरिक्त थनों को जन्म के कुछ दिन बाद जीवाणु रहित की हुई कैंची से काट कर निकाल देना चाहिए| इस क्रिया में सामान्यत: खून नहीं निकलता| अतिरिक्त थनों को न काटने से बच्छी के गाय बनने पर उससे दूध निकालते समय कठिनाई होती है|

7.यदि पशु पालक बच्चे को माँ से अलग रखकर पालने की पद्यति को अपनाना चाहता है तो उसे बच्चे को शुरू से ही बर्तन में दूध पीना सिखाना चाहिए तथा उसे मन से जन्म से ही अलग कर देना चाहिए|इस पद्यति में बहुत सफाई तथा सावधानियों की आवश्यकता होती है जिनके बिना बच्चों में अनेक बिमारियों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है|

8.नवजात बच्चों को बड़े पशुओं से अलग एक बड़े में रखना चाहिए ताकि उन्हें चोट लगने का खतरा न रहे| इसके अतिरिक्त उनका सर्दी व गर्मीं से भी पूरा बचाव रखना आवश्यक है|

  बछड़े या बछड़ी की देखभाल बचपन में कैसे करें?

जन्म के ठीक बाद बछड़ी या बछड़ा के नाक और मुंह से कफ अथवा श्लेष्मा इत्यादि को साफ करें। आमतौर पर गाय-भैंस, बछड़ी या बछड़ा को जन्म देते ही उसे जीभ से चाटने लगती है। इससे बछड़ी या बछड़ा के शरीर को सूखने में आसानी होती है और श्वसन तथा रक्त संचार सुचारू होता है। यदि गाय-भैंस, बछड़ी या बछड़ा को न चाटे तो ठंडी जलवायु की स्थिति में बछड़े के शरीर को सूखे कपड़े या टाट से पोंछकर सुखाएं। हाथ से छाती को दबाकर और छोड़कर कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।

नाभ के नाल में शरीर से 2-5 सेमी की दूरी पर गांठ बांध देनी चाहिए और बांधे हुए स्थान से 1 सेमी नीचे से काट कर टिंक्चर आयोडीन या बोरिक एसिड अथवा कोई भी अन्य एंटिबायोटिक लगाना चाहिए। बाड़े के गीले बिछौने को हटाकर स्थान को बिल्कुल साफ और सूखा रखना चाहिए। बछड़े के वजन का ब्योरा रखना चाहिए। गाय के थन और स्तनाग्र को क्लोरीन के घोल द्वारा अच्छी तरह साफ कर सुखाएं।बछड़े को मां का पहला दूध अर्थात् खीस का पान करने दें।बछड़ा एक घंटे में खड़े होकर दूध पीने की कोशिश करने लगता है। यदि ऐसा न हो तो बछड़े या बछड़ी को दूध पिने में मदद करें।

बछड़े या बछड़ी का भोजन:

  • नवजात बछड़े या बछड़ी को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े या बछड़ी के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े या बछड़ी के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े या बछड़ी को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।
  • जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े या बछड़ी को 3-4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़े या बछड़ी वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े या बछड़ी को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े या बछड़ी को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।
  • बछड़े या बछड़ी को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

खीस (कोलोस्ट्रम ) पिलाने का महत्व

  • नवजात बछड़े / बछियों में रोग प्रतिरोध क्षमता बहुत कम होती है. भैंस के बच्चे (कटड़ा / कटड़ी ) में माँ के द्वारा रोग निरोधक स्थानांतरित करने की क्षमता और भी कम होती है.
  • खीस नवजात बछड़े / बछियों के लिए प्रकृति की अमूल्य उपहार है. सम्पूर्ण दूध की तुलना में इसमें 4 -5 गुना अधिक प्रोटीन, 10 गुना विटामिन ए और पर्याप्त मात्रा में खनिज तत्व होते हैं.
  • खीस हल्के मृदु -सारक (हल्के जुलाब ) का कार्य करता है, जो नवजात बछड़े / बछियों की आंतों से पाचक अवशेषों गंदा मल (मैकोनियम) को साफ करने में मदद करता है.

 शुरुआती देखभाल

  • जन्म के ठीक बाद बछड़े के नाक और मुंह से कफ अथवा श्लेष्मा इत्यादि को साफ करें।
  • आमतौर पर गाय बछड़े को जन्म देते ही उसे जीभ से चाटने लगती है। इससे बछड़े के शरीर को सूखने में आसानी होती है और श्वसन तथा रक्त संचार सुचारू होता है। यदि गाय बछड़े को न चाटे अथवा ठंडी जलवायु की स्थिति में बछड़े के शरीर को सूखे कपड़े या टाट से पोंछकर सुखाएं। हाथ से छाती को दबाकर और छोड़कर कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  • नाभ नाल में शरीर से 2-5 सेमी की दूरी पर गांठ बांध देनी चाहिए और बांधे हुए स्थान से 1 सेमी नीचे से काट कर टिंक्चर आयोडीन या बोरिक एसिड अथवा कोई भी अन्य एंटिबायोटिक लगाना चाहिए।
  • बाड़े के गीले बिछौने को हटाकर स्थान को बिल्कुल साफ और सूखा रखना चाहिए।
  • बछड़े के वजन का ब्योरा रखना चाहिए।
  • गाय के थन और स्तनाग्र को क्लोरीन के घोल द्वारा अच्छी तरह साफ कर सुखाएं।
  • बछड़े को मां का पहला दूध अर्थात् खीस का पान करने दें।
  • बछड़ा एक घंटे में खड़े होकर दूध पीने की कोशिश करने लगता है। यदि ऐसा न हो तो कमजोर बछड़े की मदद करें।

बछड़े का भोजन (Feeding Calves)

नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

पानी का महत्व

ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।

खिलाने की व्यवस्था

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:

  • बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
  • मक्खन निकाला हुआ दूध देना
  • दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
  • दूध के विकल्प देना
  • काफ स्टार्टर देना
  • पोषक गाय का दूध पिलाना।

पूरी तरह दूध पर पालना

  • 50 किलो औसत शारीरिक वजन के साथ तीन महीने की उम्र तक के नवजात बछड़े की पोषण आवश्यकता इस प्रकार है:
सूखा पदार्थ (डीएम) 1.43 किग्रा
पचने योग्य कुल पोषक पदार्थ (टीडीएन) 1.60 किग्रा
कच्चे प्रोटीन 315 ग्राम
  • यह ध्यान देने योग्य है कि टीडीएन की आवश्यकता डीएम से अधिक होती है क्योंकि भोजन में वसा का उच्च अनुपात होना चाहिए। 15 दिनों बाद बछड़ा घास टूंगना शुरू कर देता है जिसकी मात्रा लगभग आधा किलो प्रतिदिन होती है जो 3 महीने बाद बढ़कर 5 किलो हो जाती है।
  • इस दौरान हरे चारे के स्थान पर 1-2 किलो अच्छे प्रकार का सूखा चारा (पुआल) बछड़े का आहार हो सकता है जो 15 दिन की उम्र में आधा किलो से लेकर 3 महीने की उम्र में डेढ किलो तक दिया जा सकता है।
  • 3 सप्ताह के बाद यदि संपूर्ण दूध की उपलब्धता कम हो तो बछड़े को मक्खन निकाला हुआ दूध, छाछ अथवा अन्य दुग्धीय तरल पदार्थ दिया जा सकता है।

दूध के विकल्पों पर बछड़े को पालना :

  • यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नवजात बछड़े के लिए पोषकीय महत्व की दृष्टि से दूध का कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, दूध के विकल्प का सहारा उस स्थिति में लिया जा सकता है जब दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों की उपलब्धता बिल्कुल पर्याप्त न हो।
  • दूध के विकल्प ठीक उसी मात्रा में दिए जा सकते हैं जिस मात्रा में पूर्ण दुग्ध दिया जाता है, अर्थात् पुनर्गठन के बाद बछड़े के शारीरिक वजन का 10%। पुनर्गठित दूध के विकल्प में कुल ठोस की मात्रा तरल पदार्थ के 10-12% तक होती है।

दुग्ध प्रतिस्थापक / विकल्प (Milk replacer)

इसमें बछड़े को पूर्ण दुग्ध के साथ स्टार्टर दिया जाता है। उन्हें सूखा काफ स्टार्टर और अच्छी सूखी घास या चारा खाने की आदत लगाई जाती है। 7-10 सप्ताह की उम्र में बछड़े का दूध पूरी तरह छुड़वा दिया जाता है। छोटे बछड़े/बछियों को कम से कम 2 महीनों तक रोज 2 लीटर दूध पिलाया जाना चाहिए. जिसकों धीरे-धीरे अच्छी गुणवत्ता वाले शिशु -आहार (काल्फ स्टार्टर) से बदलना चाहिए. दुग्ध उत्पादक इस दूध प्रतिस्थापक एक किफायती वैकल्पिक आहार हो सकता है. जिसमें स्किम मिल्क पाउडर, सोयाबीन की खली, मूंगफली की खली, खाने के तेल, अनाज, विटामिन, खनिज मिश्रण, संरक्षक पदार्थ आदि सम्मिलित होता हैं. दुग्ध प्रतिस्थापक से बनाये गए पुनर्गठित दुग्ध की कीमत की एक तिहाई होती है. पुनर्गठित दुग्ध प्रतिस्थापक में दूध के समान लगभग सभी आवश्यक  पौष्टिक तत्व होते है. यदि एक बछड़े/ बाछियों को सम्पूर्ण दूध के स्थान पर दो लीटर पुनर्गठित दूध पिलाया जाये तो किसान प्रति बछड़े / बछियां प्रति दिन पर्याप्त राशि से बचा सकता है.

दुग्ध प्रतिस्थापक को आहार में देने की विधि

  • दुग्ध उत्पादकों की सामान्य आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह सुझाव दिया जाता है कि खीस पिलाने के बाद एक लीटर पुनर्गठित दूध को एक लीटर सम्पूर्ण दूध के साथ पिलाना चाहिए. धीरे – धीरे सम्पूर्ण दूध को हटा देना चाहिए और एक महीने की उम्र तक पुनर्गठित दूध को बढ़ा कर दिन में दो लीटर कर देना चाहिए, जिसे दो महीने की आयु तक जारी रखना चाहिए.
  • दूसरे सप्ताह से अच्छी गुणवत्ता वाली सूखी घास एवं काल्फ स्टार्टर को भी खिलाना चाहिए, जोकि रुमेन (जुगाली करने वाले पशुओं का पहला पेट) के शीघ्र विकास और वांछित विकास दर को प्राप्त करने में मदद करेगा.
  • शिशु आहार (काल्फ स्टार्टर) पिसे अनाज, प्रोटीन पूरक, खनिज और विटामिन्स का संतुलित मिश्रण है. बछड़े/बछियां को अधिकतम मात्रा में काल्फ स्टार्टर खाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. जिससे उनकी वृद्धि दर  बढ़ेगी. यदि भूखे बछड़े/ बछियां को सूखा भूसा/ घास खिलाया जाता है तो उनकी काल्फ स्टार्टर और अच्छी गुणवत्ता वाली फलीदार सूखी घास खिलाने से रुमेन पेपिलों का शीघ्र विकास होता है. जोकि रुमेन के कार्य के लिए अति आवश्यक है. जिससे आरंभिक आयु में चारे के बहुत बड़े भाग को पचाने में सहायता मिलती है. लगभग छह महीनों के पश्चात काल्फ स्टार्टर को काल्फ ग्रोथ मील से बदलना चाहिए जो बढ़ते हुए बछड़े / बछियों के लिए अधिक किफायती है.

बछड़े को दिया जाने वाला मिश्रित आहार

  • बछड़े का मिश्रित आहार एक सांद्र पूरक आहार है जो ऐसे बछड़े को दिया जाता है जिसे दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों पर पाला जा रहा हो। बछड़े का मिश्रित आहार मुख्य रूप से मक्के और जई जैसे अनाजों से बना होता है।
  • जौ, गेहूं और ज्वार जैसे अनाजों का इस्तेमाल भी इस मिश्रण में किया जा सकता है। बछड़े के मिश्रित आहर में 10% तक गुड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • एक आदर्श मिश्रित आहार में 80% टीडीएन और 22% सीपी होता है।

नवजात बछड़े के लिए रेशेदार पदार्थ

  • अच्छे किस्म के तनायुक्त पत्तेदार सूखे दलहनी पौधे छोटे बछड़े के लिए रेशे का अच्छा स्रोत हैं। दलहन, घास और पुआल का मिश्रण भी उपयुक्त होता है।
  • धूप लगाई हुई घास जिसकी हरियाली बरकरार हो, विटामिन-ए, डी तथा बी-कॉम्प्लैक्स विटामिनों का अच्छा स्रोत होती है।
  • 6 महीने की उम्र में बछड़ा 1.5 से 2.5 किग्रा तक सूखी घास खा सकता है। उम्र बढने के साथ-साथ यह मात्रा बढ़ती जाती है।
  • 6-8 सप्ताह के बाद से थोड़ी मात्रा में साइलेज़ अतिरिक्त रूप से दिया जा सकता है। अधिक छोटी उम्र से साइलेज़ खिलाना बछड़े में दस्त का कारण बन सकता है।
  • बछड़े के 4 से 6 महीने की उम्र के हो जाने से पहले तक साइलेज़ को रेशे के स्रोत के रूप में उसके लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
  • मक्के और ज्वार के साइलेज़ में प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त नहीं होते हैं तथा उनमें विटामिन डी की मात्रा भी कम होती हैं।

पोषक गाय के दूध पर बछड़े को पालना

  • 2 से 4 अनाथ बछड़ों को दूध पिलाने के लिए उनकी उम्र के पहले सप्ताह से ही कम वसा-युक्त दूध देने वाली और दुहने में मुश्किल करने वाली गाय को सफलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है।
  • सूखी घास के साथ बछड़े को सूखा आहार जितनी कम उम्र में देना शुरू किया जाए उतना अच्छा। इन बछड़ों का 2 से 3 महीने की उम्र में दूध छुड़वाया जा सकता है।

बछड़े को दलिए पर पालना

  • बछड़े के आरंभिक आहार (काफ स्टार्टर) का तरल रूप है दलिया। यह दूध का विकल्प नहीं है। 4 सप्ताह की उम्र से बछड़े के लिए दूध की मात्रा धीरे-धीरे कम कर भोजन के रूप में दलिया को उसकी जगह पर शामिल किया जा सकता है। 20 दिनों के बाद बछड़े को दूध देना पूरी तरह बंद किया जा सकता है।

काफ स्टार्टर पर बछड़े को पालना

  • इसमें बछड़े को पूर्ण दुग्ध के साथ स्टार्टर दिया जाता है। उन्हें सूखा काफ स्टार्टर और अच्छी सूखी घास या चारा खाने की आदत लगाई जाती है। 7 से 10 सप्ताह की उम्र में बछड़े का दूध पूरी तरह छुड़वा दिया जाता है।

दूध के विकल्पों पर बछड़े को पालना

यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नवजात बछड़े के लिए पोषकीय महत्व की दृष्टि से दूध का कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, दूध के विकल्प का सहारा उस स्थिति में लिया जा सकता है जब दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों की उपलब्धता बिल्कुल पर्याप्त न हो।

दूध के विकल्प ठीक उसी मात्रा में दिए जा सकते हैं जिस मात्रा में पूर्ण दुग्ध दिया जाता है, अर्थात् पुनर्गठन के बाद बछड़े के शारीरिक वजन का 10%। पुनर्गठित दूध के विकल्प में कुल ठोस की मात्रा तरल पदार्थ के 10 से 12% तक होती है।

दूध छुड़वाना

  • बछड़े का दूध छुड़वाना सघन डेयरी फार्मिंग व्यवस्था के लिए अपनाया गया एक प्रबन्धन कार्य है। बछड़े का दूध छुड़वाना प्रबन्धन में एकरूपता लाने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बछड़े को उसकी आवश्यकता अनुसार दूध की मात्रा उपलब्ध हो और दूध की बर्बादी अथवा दूध का आवश्यकता से अधिक पान न हो।
  • अपनाई गई प्रबन्धन व्यवस्था के आधार पर जन्म के समय, 3 सप्ताह बाद, 8 से 12 सप्ताह के दौरान अथवा 24 सप्ताह में दूध छुड़वाया जा सकता है। जिन बछड़ों को सांड के रूप में तैयार करना है उन्हें 6 महीने की उम्र तक दूध पीने के लिए मां के साथ छोड़ा जा सकता है।
  • संगठित रेवड़ में, जहां बड़ी संख्या में बछड़ों का पालन किया जाता है जन्म के बाद दूध छुड़ाना लाभदायक होता है।
  • जन्म के बाद दूध छुड़वाने से छोटी उम्र में दूध के विकल्प और आहार अपनाने में सहूलियत होती है और इसका यह फायदा है कि गाय का दूध अधिक मात्रा में मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है।

दूध छुड़वाने के बाद

दूध छुड़वाने के बाद 3 महीने तक काफ स्टार्टर की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जानी चाहिए। अच्छे किस्म की सूखी घास बछड़े को सारा दिन खाने को देना चाहिए। बछड़े के वजन के 3% तक उच्च नमी वाले आहार जैसे साइलेज़, हरा चारा और चराई के रूप में घास खिलाई जानी चाहिए। बछड़ा इनको अधिक मात्रा में न खा ले इसका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसके कारण कुल पोषण की प्राप्ति सीमित हो सकती है।

बछड़े की वृद्धि

बछड़े की वृद्धि वांछित गति से हो रही है या नहीं इसे निर्धारित करने के लिए वजन की जांच करें।

  • पहले 3 महीनों के दौरान बछड़े का आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है।
  • इस चरण में बछड़े का खानपान अगर सही न हो तो मृत्यु दर में 25 से 30% की वृद्धि होती है।
  • गर्भवती गाय को गर्भावस्था के अंतिम 2-3 महीनों के दौरान अच्छे किस्म का चारा और सांद्र आहार दिया जाना चाहिए।
  • जन्म के समय बछड़े का वजन 20 से 25 किग्रा होना चाहिए।
  • नियमित रूप से कृमिनाशक दवाई दिए जाने के साथ-साथ उचित आहार दिए जाने से बछड़े की वृद्धि दर 10-15 किग्रा प्रति माह हो सकती है।

बछड़े के रहने के स्थान का महत्व

बछड़ों को अलग बाड़े में तब तक रखा जाना चाहिए जब तक कि उनका दूध न छुड़वा दिया जाए। अलग बाड़ा बछड़े को एक दूसरे को चाटने से रोकता है और इस तरह बछड़ों में रोगों के प्रसार की संभावना कम होती है। बछड़े के बाड़े को साफ-सुथरा, सूखा और अच्छी तरह से हवादार होना चाहिए। वेंटिलेशन से हमेशा ताजी हवा अन्दर आनी चाहिए लेकिन धूलगर्द बछड़ों के आंख में न जाएं इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।

बछड़े के रहने के स्थान पर अच्छा बिछौना होना चाहिए ताकि आराम से और सूखी अवस्था में रह सकें। लकड़ी के बुरादे अथवा पुआल का इस्तेमाल बिछौने के लिए सबसे अधिक किया जाता है। बछड़े के ऐसे बाड़े जो घर के बाहर हों, आंशिक रूप से ढके हुए और दीवार से घिरे होने चाहिए ताकि धूप की तेज गर्मी अथवा ठंडी हवा, वर्षा और तेज हवा से बछड़े की सुरक्षा हो सके। पूरब की ओर खुलने वाले बाड़े को सुबह के सूरज से गर्मी प्राप्त होती है और दिन के गर्म समयों में छाया मिलती है। वर्षा पूरब की ओर से प्राय: नहीं होती।

बछड़े को स्वस्थ्य रखना

नवजात बछड़ों को बीमारियों से बचाकर रखना उनकी आरंभिक वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे उनकी मृत्यु दर कम होती है, साथ ही बीमारी से बचाव बीमारी के इलाज की तुलना में कम खर्च में किया जा सकता है। बछड़े का नियमित निरीक्षण करें, उन्हें ठीक तरह से खिलाएं और उनके रहने की जगह और परिवेश को स्वच्छ रखें।

IMAGE-CREDIT GOOGLE

DR T.K SINGH, HAZIPUR

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