पर्यायवरण एवं मानव हितैषी फसल अवशेषों का औद्योगिक एवं भू-उर्वरकता प्रबंधन

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पर्यायवरण एवं मानव हितैषी फसल अवशेषों का औद्योगिक एवं भू-उर्वरकता प्रबंधन

के.एल. दहिया1, आदित्य 2 एवं जे.एन. भाटिया3

1पशु चिकित्सक, राजकीय पशु हस्पताल, हमीदपुर (कुरूक्षेत्र) हरियाणा

2स्नातकोतर छात्र (पादप रोग), बागवानी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी, हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश)

3सेवानिवृत प्रधान वैज्ञानिक (पादप रोग), कृषि विज्ञान केन्द्र, कुरूक्षेत्र, हरियाणा

बढ़ती आबादी की खाद्य आहार पूर्ति के लिए प्रति एकड़ पैदावार बढ़ाना अतिआवश्यक है। यह भी विधित होना चाहिए है कि एक किलोग्राम अनाज की पैदावार के साथ ही एक किलोग्राम से भी ज्यादा मात्रा में फसल अवशेष की पैदावार होती है। फसल कटाई के बाद अनाज के दानों को अलग करके उनको बाजार में बेच दिया जाता है लेकिन बचे हुए अवांछनीय फसल अवशेषों के महत्तव के बारे में कोई भी उचित समाधान न होने के कारण किसान उनको खेत में ही जला देते हैं। यह भी मालूम है कि बढ़ते औद्योगीकरण के साथ-साथ फसल अवशेषों को जलाने से प्रदूषित पर्यायवरण में मानव सहित सभी जीव-जंतुओं को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संघठन के आंकलन के अनुसार वर्ष 2016 में विश्व की लगभग 91 प्रतिशत आबादी उन जगहों पर रह रही थी जहाँ वायु की दशा जारी किये गये दिशानिर्देशों के स्तर से अधिक थी जिसके कारण विश्वभर में लगभग 42 लाख असामयिक मौतें हुईं। इन में लगभग 58 प्रतिशत मौतें हृदय अरक्तता (Ischaemic heart disease) और आघात (Strokes) से हुईं जबकि 18 प्रतिशत मौतें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और एक्यूट लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन और 6 प्रतिशत मौतें फेफड़ों के कैंसर से हुईं (WHO 2018)। हेल्थ इफेक्ट इंस्टिट्यूट के अनुसार वैश्विक पर्यायवरण प्रदूषण को असामयिक मौतों का पांचवां सबसे बड़ा कारण पाया गया है। वर्ष 2017 के आंकड़ों के अनुसार वायु प्रदूषण से विश्वभर के कुल 49 लाख मृतकों की संख्या में से भारत में 12 लाख व्यक्ति मृत होना पाया गया है (HEI 2019)।

फसल कटाई की बात चाहे हाथ से हो (चित्र 1) या आधुनिक औद्योगिक क्रांन्ति के दौर में कंबाईन हारवेस्टर (चित्र 2) से हो, अनभिज्ञता या मजबूरी वश, फसल अवशेषों को जलाने की परंपरा तो रही है। लेकिन इस मशीनीयुग में इसने गति अवश्य पकड़ी है जो थमने या कम होने का नाम नहीं ले रही है। फसलोपरांत किसान खेत को जल्दी से जल्दी कम समय में फसल अवशेषों का समाधान करके अगली फसल की बिजाई में लगा हुआ है जिसे वह इससे होने वाले नुकसान का ज्ञान होते हुए भी जलाकर (चित्र 3) आसानी से हल कर लेता है।

चित्र 1                                      चित्र 2                                                   चित्र 3

फोटो: के.एल. दहिया

आधुनिक समय में मौसम की मार को देखते हुए खेत को जल्दी खाली करने के लिए दबाव बना रहता है। ऐसे में कंबाईन हारवेस्टर का उपयोग फसल को काटने में किया जाता है जिससे फसल में दाने तो अलग कर लिये जाते हैं लेकिन खेत में फसल के अवशेष बच जाते हैं जिनका किसान के लिए निष्पादन करना बहुत मुश्किल हो जाता है। अतः अगली फसल की बिजाई से पहले खेत को खाली करने का आसान तरीका किसान को उनमें आग लगाना आसान लगता है जिससे खेत की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है व अगली फसल लेने के लिए उसे पूरक तत्वों को खेत में डालना पड़ता है। अतः फसल का उत्पादन लागत बढ़ जाने से उसको उचित उत्पादन लागत मिल पाना मुश्किल हो जाता है। भूमि की घटती उर्वरा शक्ति एवं बढ़ती उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए विकल्प अपनाने चाहिए ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के साथ-साथ फसल का लागत मूल्य भी नियन्त्रित रह रह सके। आमतौर पर फसल अवशेषों का उपयोग इस प्रकार किया जा रहा है या किया जा सकता है :

  1. पशु आहार में उपयोग 2. सजावटी सामान बनाना
  2. औद्योगिक उपयोग 4. भूमि की उर्वकता बढ़ाने में उपयोगी

 

 

फसल अवशेषों का पशु आहार में उपयोग

वैश्विक भूगोलिक दृष्टि से भारत का 2.4 प्रतिशत क्षेत्रफल है और विश्व के लगभग 15 प्रतिशत पशुओं की आबादी अकेले भारत में ही है जिनके लिए भारत के कुल भूखण्ड की केवल 4.8 प्रतिशत भूमि पर ही चारा उत्पादन किया जाता है। पशुओं के व्यवस्थित आहार के लिए हरे चारे के साथ-साथ सूखे चारे का प्रबन्धन भी अति आवश्यक होता है। सूखे चारे के रूप में फसल अवशेष मुख्य भूमिका निभाते हैं। अतः सूखे चारे के रूप में पशुओं के लिए फसल अवशेष प्रबन्धन और अधिक महत्त्पूर्ण हो जाता है।

आमतौर पर किसान और भूमिहीन मजदूर अपने पशुओं के लिए हरे चारे की उपलब्धता को निश्चित समय पर बिजाई और फसल कटाई के समय सूखे चारे का भण्डारण करके पूरा कर लेते हैं लेकिन भरपेट मात्रा में हरे की अनुपलब्धता के दौरान सूखा चारा ही पालतु पशुओं के जीवन निर्वहन की आवश्यकता को पूरा करता है। गेहूँ की फसल की हाथ से कटार्इ करने के बाद दाने निकालने के लिए एक जगह एकत्रित किया जाता है फिर थ्रैसर की सहायता से दानों एवं भूसे को अलग कर लिया जाता है। लेकिन कंबार्इन से गेहूँ कटार्इ करने के बाद खेत में बचे अवशेषों को रीपर (Reaper) की सहायता से तूड़ी बना जाती है। तूड़ी को एक जगह कूप बना कर एकत्रित कर लिया जाता है (चित्र 4)। धान के अवशेषों को कंबार्इन हारवेस्टर से कटार्इ करने के बाद एकत्रित करना मुश्किल (चित्र 5) लेकिन हाथ से कटार्इ वाले खेतों में थोड़ा आसान (चित्र 6) हो जाता है। हाथ से कटार्इ की हुर्इ धान की पराली को एक ढेर (चित्र 7) में एकत्रित करने से पहले इसको अच्छी प्रकार सुखा लेना चाहिए। गीली पराली में फफूंद उगने की संभावना ज्यादा होती है जो पशुओं को नुकसान पहुंचाती है। अत: पराली को सुखाकर ही इक्कट्ठा करना चाहिए। कंबार्इन से काटी गर्इ धान को सूखाने के बाद बेलर मशीन की सहायता से गांठ बनाकर एकत्रित किया जाता है जिनको पशुओं को चारे के रूप में उपयोग किया जाता है।

फोटो: के.एल. दहिया

चित्र 4                          चित्र 5                                 चित्र 6                    चित्र 7

हालांकि फसल अवशेषों खासतौर से धान की पुआल में पौष्टिक तत्वों की मात्रा बहुत ही कम होती है फिर भी पराली को पशुओं का पेट भरने (Filler) के रूप में खिलाया जाता है ताकि अन्य सामग्री पेट में ज्यादा समय तक रह सके व उसका सही पाचन हो सके।

फसल अवशेषों खासतौर से धान की पुआल या गेहूँ की भूसी अधिकतम 1.0 से 1.2 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम पशु के शारीरिक भार की दर से बिना उपचारित खिलायी जा सकती है जिसकी मात्रा उपचारित करने के बाद बढ़ायी जा सकती है। पशुओं को खिलायी जाने वाली बिना उपचारित किये फसल अवशेषों जैसे कि धान की पराली में 0.62, गेहूँ की तूड़ी 2.72, ज्वार 1.2, रागी 0.2, बाजरा 0.9 और चना में 2.2 प्रतिशत प्रोटीन पचाने योग्य प्रोटीन होती है। इसके अलावा, बिना उचारित किये फसल अवशेषों जैसे कि धान की पराली में 45.9, गेहूँ की तूड़ी 48.3, ज्वार 56.4, रागी 50.0, बाजरा 53.4 और चना में 21.0 प्रतिशत पचाने योग्य पोषक तत्व मौजूद होते हैं।

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फसल अवशेषों का पोषक मान (शुष्क पदार्थ के आधार पर विश्लेषण)

फसल अवशेष

शुष्क पदार्थ

दुग्धोत्पादन के लिए शुद्ध ऊर्जा

कच्ची प्रोटीन

वसा

कच्चे रेशे

NDF

कैल्शियम

फास्फोरस

 

(%)

(MJ/kg)

(%)

(%)

(%)

(%)

(%)

(%)

गेहूँ की तूड़ी

91.6

3.27

3.1

1.3

44.7

73

0.28

0.03

धान की पुआल

83.3

4.11

3.7

1.6

31

64.4

0.11

0.05

जौं की पुआल

88.4

3.69

5.5

3.2

38.2

80.1

0.06

0.07

जई की पुआल

93

4.52

7

2.4

28.4

72.3

0.18

0.01

मक्की की कड़बी

91.8

5.23

6.5

2.7

26.2

70.4

0.43

0.25

ज्वार की कड़बी

95.2

4.69

3.9

1.3

35.6

74.8

0.35

0.21

सोयाबीन की पुआल

89.7

3.85

3.6

0.5

52.1

74

0.68

0.03

बाजरा की पुआल

90.7

4.61

5

1.3

35.9

74.8

0.37

0.03

मूंगफली की पुआल

90

5.7

12

2.7

24.6

88.8

0.13

0.01

आलुओं की पुआल

91.7

5.53

8.4

2.6

19.8

36.6

1.47

0.48

SOURCES: Qingxiang M., 2002 : – Chinese Feeding Standard for Dairy Cattle (Anon., 2000); Xing, 1995; Xiong, 1986.

 

फसल अवशेषों का लोक परम्परागत उपयोग

सदियों से मानव पेड़-पौधों के अवशेषों का दैनिक जीवन में उपयोग करता आया है। पक्के या कच्चे मकानों में रहने से पहले मानव पेड़-पौधों के अवशेषों का उपयोग करके तेज धूप या वर्षा से झोपड़ी बनाकर अपने आपको प्राकृतिक आपदाओं से बचाता था। आज मानव जिनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं है वे भी पेड़-पौधों के अवशेषों से अपना आशियाना बनाते हैं। आशियाना बनाने के साथ-साथ ही वे अपने घर को सजाने के लिए भी फसल अवशेषों का उपयोग सदियों से करते आये हैं।

आधुनिक काल में भी जहाँ एक ओर विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी की छत पेड़-पौधों, फसल अवशेषों की सहायता से बनी छत अर्थात झोंपड़ी में रहती है और उसी में अपने पालतु पशुओं को रखती है तो दूसरी ओर फसल अवशेषों एवं वानस्पतिक उपयोग से आलिशान झोपड़ी अर्थात हट भी बनाई जाती है (चित्र 8)। पर्यटन क्षेत्र में इन हट्स का उपयोग पर्यटकों का लुभाने के लिए भी किया जाता है (चित्र 9)। ग्रामीण आंचल में फसल अवशेषों खासतौर से गेहूँ की तूड़ी का उपयोग कच्चे घरों को वर्षाकाल से पहले रखरखाव हेतु मिट्टी में मिलाकर पुताई की जाती है (चित्र 10)।

चित्र 8                               चित्र 9                                             चित्र 10

फसल अवशेषों को पशुओं को खिलाने के अतिरिक्त इन्हें गेहूँ की तूड़ी का भण्डारण करने के लिए धान की पराली का उपयोग किया जाता है (चित्र 4)। सर्दी से बचाने के लिए भी फसल अवशेषों का उपयोग किया जाता है और खाद के रूप में परंपरागत उपयोग तो जगजाहिर है।

विभिन्न प्रकार के फसल अवशेषों का उपयोग भिन्न-भिन्न प्रकार की सजावटी आकृतियाँ बनाने में उपयोग किया जाता है जिन्हें बेचकर आमदनी भी की जा सकती है (चित्र 11, 12)। मनोरंजन पार्क में आगन्तुकों को लुबाने के लिए पराली की सहायता से विभिन्न प्रकार के जानवरों की आकृतियाँ बनाकर खड़ी की जा सकती हैं (चित्र 13, 14)। इसके अतिरिक्त फसल अवशेषों का उपयोग फैक्ट्रियों में बने उत्पादों की पैकिंग के लिए किया जाता है जिससे प्लास्टिक या थर्मोकोल के इस्तेमाल को कम करके पर्यायवरण में बढ़ते प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

चित्र 11                चित्र 12                       चित्र 13                                चित्र 14

औद्योगिक उपयोग

आमतौर पर, फसल कटाई के बाद दानों को अलग करने के बाद बचे हुये फसल अवशेषों को बेकार समझा जाता है और इनका निपटान बहुत मुश्किल लगता है। लेकिन अब किसान फसल अवशेषों को बेकार न समझें और इन्हें खेत से निकालकर अतिरिक्त धन भी कमाया जा सकता है। फसल अवशेषों का सफलतापूर्वक उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए किया जा रहा है। जैसा कि विधित है कि भारत में शर्करा आधारित खाद्य आहार का अत्याधिक प्रचलन है लेकिन हमें यह भी विधित होना चाहिए कि अत्याधिक शर्करा का आहारीय सेवन डायबिटीज, हृदय इत्यादि चपापचयी रोगों का कारण बनता है। ऐसे रोगों का खतरा प्रोटीन आधारित आहार के सेवन से नियंत्रित किया जा सकता है। ग्रामीण आंचल में उपलब्ध इन फसल अवशेषों का उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए किया जाता है। अतः किसान इन अवशेषों का उपयोग अपने खेत या घर के पीछे खाली पड़ी जगह में सफलतापूर्वक मशरूम उगाकर अतिरिक्त आमदनी करने के साथ-साथ पौष्टिक आहार की पैदावार कर सकते हैं (चित्र 15)।

चित्र 15 (स्त्रोत: राणा एवं अन्य 2007)

आधुनिक मशीनीयुग में जीवाश्म ईंधन की मांग लगातार बढ़ रही है जिस कारण अब इनके खत्म होने के डर के साथ-साथ मानव एवं पर्यायवरण के लिए हानिकारक ग्रीनहाडस गैसों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। जीवाश्म ईंधन के वैकल्पिक संसाधनों की ओर ध्यान जाने लगा है। इसके साथ ही प्राकृतिक ऊर्जा के स्त्रोतों का भी लगातार दोहन हो रहा है। इन बातों को देखते हुए फसल अवशेषों से ईथेनॉल तैयार करके इसका उपयोग वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में किया जा सकता है जिसकी विश्व के कई भागों में मांग भी बढ़ रही है (Sheoran et al. 1998)। 1970 के दशक में ही यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि बढ़ती हुई घरेलु रसोई गैस एवं पेट्रोलियम उत्पादों की मांग प्राकृतिक संसाधनों से पूरी नहीं हो सकती है। इस अपेक्षित कमी की गंभीरता को कम करने के प्रयास में अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विकास के लिए गंभीर चिंता रही है। उपलब्ध अपशिष्टों या उगाए गए कार्बनिक पदार्थों को तरल और गैसीय ईंधन में परिवर्तित करने की लगातार कोशिश रही है ताकि इस कमी को पूरा किया सके (Graham et al. 1976, Dawson and Boopathy 2007)। इसको ईंधन के रूप में जलाने से बहुत कम मात्रा में कार्बन उत्सर्जित होता है।

मशरूम उत्पादन एवं अक्षय ऊर्जा उत्पादन के अलावा फसल अवशेषों का उपयोग बायोमास इष्टिकाएं और चारकोल बनाने बनाने में भी किया जाता है। कागज एवं गत्ता उद्योग में तो फसल अवशेषों का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है। फसल अवशेषों का उपयोग आकर्षक फर्नीचर, मेज, कुर्सी (मुड्ढे) बनाया जा रहा है। अतः किसान फसल अवशेषों का उपयोग ऐसे उद्योगों को स्थापित कर आमदनी अर्जित करने के साथ-साथ मशरूम उत्पादन एवं अक्षय ऊर्जा उत्पादन के अलावा फसल अवशेषों का उपयोग बायोमास इष्टिकाएं और चारकोल बनाने बनाने में भी किया जाता है। कागज एवं गत्ता उद्योग में तो फसल अवशेषों का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है। अतः किसान फसल अवशेषों का उपयोग ऐसे उद्योगों को स्थापित कर आमदनी अर्जित करने के साथ-साथ रोजगार सृजन का भी कार्य कर सकते हैं।

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भूमि की उर्वकता बढ़ाने में उपयोगी

फसल अवशेष एक महत्त्पूर्ण प्राकृतिक संसाधन है न कि अपशिष्ट पदार्थ। पिछले कई दसकों से कृषि पर हो रहे रसायनों के प्रयोग से भूमि की भौतिक, रसायानिक और जैविक गुणवत्ता पर गहरा असर पड़ा है। लगातार अन्धा-धुन्ध उपयोग किये जा रहे रसानिक खादों एवं दवाओं के कारण मिट्टी एवं भू-जल दूषित होते जा रहे हैं। भू-स्वास्थ्य और सरंचना के लिए आवश्यक जैविक कार्बन का विघटना हुआ है। कृषि भूमि को दोबारा जैविक बनाने के लिए आवश्यक गोबर की खाद एवं दूसरे जैविक स्त्रोतों की कमी के मध्यनजर फसल अवशेष एक बहुत अच्छा विकल्प हैं। कृषि भूमि की बिगड़ी दशा एवं हो रहे जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए किसानों को फसल अवशेषों का खेत में ही प्रबन्धन कर कृषि भूमि का सुधार करना चाहिए। खेत में फसल अवशेष प्रबन्धन में खर्चा अवश्य ही होता है लेकिन लंबे समय तक इन उपायों से मिट्टी के स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक सुधार देखने को मिलते हैं।

फसल अवशेषों में कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात ज्यादा होता है जिस कारण आगामी फसल को शुरूआत में नाइट्रोजन की अनुपलब्धता हो जाती है लेकिन खेत में नमी के साथ अलग से यूरिया के रूप में नाइट्रोजन देकर इस अनुपात को कम किया जा सकता है जिससे अवशेषों के गलने की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है और फसल को नाइट्रोजन की उपलब्धता सुचारू हो जाती है।

समय की आवश्यकता के अनुसार हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने इसके लिए विभिन्न कृषि यन्त्रों को ईजाद किया है जिनका उपयोग खेतों में किया जाना चाहिए जो इस प्रकार हैं :

जीरो टिल सीड-कम-फर्टीलाईजर ड्रिल (चित्र 16): इस उपकरण की सहायता से धान की फसल के कटाई के बाद बिना फाने जलाए ही गेहूँ की बिजाई की जा सकती है। फाने चाहे कितने ही बड़े क्यों न हों, उसी में ही गेहूँ की बिजाई हो जाती है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति एवं सरंचना उत्तम बनी रहती है। इस उपकरण द्वारा बिजाई की गई गेहूँ का जमाव अच्छा व जल्दी होता है तथा पौधे ज्यादा स्वस्थ एवं गहरे हरे रंग के निकलते हैं। इस विधि से बिजाई के बाद पहला पानी लगाने पर गेहूँ के पौधे पीले नहीं पड़ते हैं एवं मण्डूसी इत्यादि खरपतवारों का जमाव भी 30 – 40 प्रतिशत कम होता है।

चित्र 16                                                  चित्र 17

हैपी सीडर (Happy seeder) (चित्र 17): हैपी सीडर की सहायता से खेत में पड़े अवशेषों के बावजूद बिना किसी परेशानी के अगली फसल की बिजाई की जा सकती है। हैप्पी सीडर का उपयोग धान के अवशेषों में ही पानी के गेहूँ की बिजाई के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तकनीकी के साथ-साथ यह पानी की बचत होने के साथ-साथ यह मिट्टी के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के अनुकूल है। हैपी सीडर से बिजाई करने के निम्नलिखित लाभ हैं :

  • इसकी सहायता से बिना सिंचाई के गेहूँ की बिजाई की जाती है।
  • फसल के अवशेषों के रूप में ज्यादा नमी और तापमान के संरक्षण में मदद करता है।
  • फसल अवशेषों के नहीं जलाने से भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है।

टर्बो-हैप्पी सीडर (Turbo-Happy Seeder) (चित्र 18): हैप्पी सीडर के नए रूप टर्बो हैप्पी सीडर के नाम से जाना जाता है। इसमें अवशेष कटाई एवं मल्चिंग इकाई होती है, जो कि अवशेषों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में फैला देती है तथा इसके पीछे लगी उल्टे तरह के हल रेखा द्वारा आसानी से बिना भूमि को ज्यादा खोदे ही सीधी बिजाई हो जाती है (Kienzle and Sims 2015)। इस मशीन द्वारा सफलतापूर्वक बिजाई के लिए धान की फसल के अवशेषों को कम्बाईन हार्वेस्टर के पीछे लगे पंखों द्वारा खेत में समान रूप से बिछा दिया जाता है (अनिल एवं अन्य 2014B)।

चित्र 18                                                          चित्र 19

कन्वेयर सीडर (Conveyor seeder) (चित्र 19): कनवेयर-सीडर गेहूँ की बिजाई के साथ-साथ अव्यवस्थित रूप से बिखरे पूर्व फसल धान के अवशेषों को मल्च के रूप में गेहूँ बिजाई के बाद पूरे खेत में समान रूप से फैला देता है।  इस  मशीन  के  उपयोग  से  धान के खेतों को कम्बाईन से कटाई के बाद गेहूँ की सीधी बिजाई के लिए तैयार किया जाता है। इस मशीन में, जुताई न (No-till) करने वाली मशीन के सामने कनवेयर-कम-एलिवेटर लगाया जाता है जो फसल अवशेषों को उठाकर पीछे की ओर भूमि पर एक समान रूप से बिखेर देता है। कृषि (धान) अवशेषों को भूमि से उठाने के लिए कनवेयर-कम-एलिवेटर में बिजाई के लिए खुड बनाने वाली सीड ड्रिल के सामने कीलियां लगी होती हैं। इसमें लगी सीड ड्रिल की सहायता से बिजाई की जाती है और आगे से उठाए गये अवशेषों को पीछे बिजाई किये गये क्षेत्र के ऊपर फसल अवशेष डाले जाते हैं (Mahal et al. 2016)।

चित्र 20

स्ट्रॉ रीपर (Straw reaper) (चित्र 20): इस मशीन से कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा कटाई के पश्चात बचे  हुए  गेहूँ  के डंठल या खड़े फानों को काटा जाता है एवं उनका बारीक भूसा बनाकर एकत्रित किया जाता है जिसे पशुओं को सूखे चारे के तौर पर खिलाया जाता है। भूसे के साथ ही अनाज के दाने भी एकत्रित होते हैं। कंबाईन से फसल (गेहूँ) कटाई के बाद खड़े फानों को इस मशीन से काट कर भूसा बनाया जाता है जिसे पशुओं को सूखे चारे के रूप में खिलाया जाता है। स्ट्रा रीपर की सहायता से 20 – 40 किलोग्राम तक गेहूँ के दाने भी एकत्रित हो जाते हैं।

स्ट्रॉ चौपर (Straw chopper) (चित्र 21): सभी प्रकार के फसलों जैसे कि गेहूँ, धान, मक्का, ज्वार, सूरजमुखी आदि के अवशेषों को काटने के लिए एक आदर्श मशीन है। यह मशीन फसल के अवशेषों को काटकर जमीन पर फैलाती है। रोटावेटर या डिस्क हैरो की सहायता से भूमि पर कटकर बिखरे हुए अवशेषों को मिट्टी में मिला दिया जाता है।

चित्र 21                                                   चित्र 22

मल्चर मशीन (Mulch machine) (चित्र 22): फसल अवशेषों को दूसरी फसलों में मल्च के लिए प्रयोग किया जा सकता है जिससे फसल का अच्छा जमाव होता है, पानी की बचत होती है और बेहतर खरपतवार नियंत्रण होता है। मल्चर-मशीन से खेतों में खड़े फानों को छोटे टुकड़ों में काट कर मल्च के रूप में खेत में फैलाया जा सकता है।

चित्र 23                                                 चित्र 24

हैरों (चित्र 23): हैरो से पूर्व फसल काटने के बाद जो अवशेष खेत में रह जाते हैं उनको भूमि में मिलाने उपयोगी है। रीपर से फानों को काट भूमि पर बिछाने के बाद इसकी सहायता से उनको भूमि में मिला दिये जाने से भूमि की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होती है जिससे अगली फसल की पैदावार अच्छी हो जाती है। फसल कटाई के पश्चात फसल अवशेष, घासफूस, पत्तियां व डंठल आदि को सड़ाने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़क कर हैरों से जुताई कर दें। कुछ ही दिनों में सभी अवशेष गल सड़ कर आने वाली फसल को पोषक तत्व प्रदान करेंगे।

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फोटो: के.एल. दहिया                                              के.एल. दहिया

रोटावेटर (चित्र 24): रोटावेटर मशीन के प्रयोग से खेत की मिट्टी को अच्छी तरह तैयार किया जाता है। यह मशीन बिजाई के लिए खेत की जमीन को कम समय में तैयार करती है। यह मशीन पूर्व फसल कटने के बाद जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उन्हें जड़ से खोद कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देती है। फसल अवशेषों को गलाने के लिए यूरिया का उपयोग भी किया जा सकता है ताकि रोटावेटर की सहायता से ये अवशेष अच्छी प्रकार भूमि मिलाये जा सकें। रोटावेटर के खास तरीके से डिजाइन किए गए ब्लेडों की खास बनावट रोटावेटर को एक मजबूत मशीन का आकार देती है।

हे रैक (Hay rack) (चित्र 25): हे-रैक खेत से बचे अवशेषों को एक जगह इकट्ठा करने में सहायक है  जिससे स्ट्रा-बेलर की मदद से गांठे बनाने में आसानी होती है।

फोटो: के.एल. दहिया                                          नवीन सैनी, के.वी.के. तेपला (अम्बाला)

चित्र 25                                              चित्र 26

स्ट्रा बेलर (Straw baler) (चित्र 26): स्ट्रा बेलर की सहायता से खेत में बचे हुए धान या अन्य फसलों के  अवशेषों से एक बण्डल में बांधा जाता है। इनका आसानी से भण्डारण भी  किया  जा  सकता है। भण्डारित बण्डलों को पशुओं के चारे के रूप में करने के साथ-साथ इनको जैव-ईंधन आदि के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।

मिट्टी पलटने वाला हल (चित्र 27): इसे रिवर्सिबल प्लो भी कहते हैं। ट्रैक्टर चलित इस तरह के हल की  सहायता से फसल अवशेषों को खेत से बाहर निकाले बिना ही मिट्टी में मिला दिया जाता है जो खेत में कार्बन मूल्यवर्द्धन करने में सहायक होते हैं जिससे भूमि की जलधारण करने की क्षमता बढ़ती है। इस यंत्र के उपयोग से खेत की भूमि ऊँची-नीची अर्थात असमतल हो जाती है जिस कारण खेत में बिजाई के बाद सिंचाई करते समय फसल में पानी एक जगह पर खड़ा होने के कारण फसल खराब भी हो जाती है (चित्र 28)।

चित्र 27                                                          चित्र 28

 

चित्र 29

फोटो: के.एल. दहिया

लेजर लैंड लेवलर  (चित्र 29): लेजर लैंड लेवलर का उपयोग ऊँचे-नीचे खेत को समतल करने के लिए किया जाता है जिससे फसल को पानी देने की मात्रा एवं समय की बचत होती है। इसके निम्नलिखित लाभ हैं (अनिल एवं अन्य 2014A) :

  • ऊबड़-खबड़ खेत में पानी देने के लिए बीच में नालियाँ एवं मेढें बनानी पड़ती हैं जिससे उस खेत में कृषि योग्य क्षेत्र कम हो जाता है और सिंचाई करने में समय भी ज्यादा लगता है। अत: भूमि समतल होने से खेत में नालियाँ एवं मेढें बनाने की आवश्ययकता नहीं रहती व साथ ही सिंचाई करने में समय भी कम लगता है।
  • समतल मिये गये खेत में 30 – 40 प्रतिशत पानी की बचत होने के साथ-साथ खेत में एक समान नमी बरकरार रहती है।
  • खेत में फसल का जमाव एवं बढ़वार एक समान रहती है।
  • कृषि योग्य भूमि में पानी, खाद एवं कीटनाशकों की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है।
  • समतल खेत में बेड प्लांटर, पैडी ट्रांसप्लांटर इत्यादि आधुनिक उपकरणों का उपयोग आसानी से किया जा सकता है।
  • अधिक पानी में उगने वाले खरपतवारों की संख्या में कमी होती है।
  • समतल हुए खेत की मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है।

बढ़ती आबादी की खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने के लिए फसल की पैदावार बढ़ाना अतिआवश्यक है जिसके साथ फसल अवशेषों की मात्रा का बढ़ना निश्चित है। विभिन्न शोधों से यह ज्ञात हो चूका है कि फसल अवशेष मूल्यवान हैं। यदि इन मूल्यवान फसल अवशेषों को इसी गति से जलाने का सिलसिला बदस्तूर चलता रहा तो शुद्ध पर्यायवरण में मानव सहित किसी भी जीव का सांस लेना दूभर हो जायेगा। वह दिन भी आ सकता है जब उपजाऊ भूमि बंजर भी हो जायेगी तो खाद्यान्न सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी। अतः इन बहुमूल्य फसल अवशेषों का मानव जाति के लिए उचित प्रबंधन अतिआवश्यक है जिनके औद्योगिक एवं भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ उपाय इस लेख में बताने की कोशिश की गई।

लिया है तो लौटाना पड़ेगा, आज नहीं तो कल, अवश्य लौटाना पड़़ेगा।

समय अभी बाकी है, कुछ तो लौटा दो भूमाता को फसल अवशेषों के रूप में।।

 

 

 

 

 

संदर्भ

  1. Dawson L. and Boopathy R., 2007, “Use of post-harvest sugarcane residue for ethanol production,” Bioresource technology; 98(9): 1695-1699. [Web Reference]
  2. Graham R.W., Reynolds T.W. and Hsu Y-Y., 1976, “Preliminary assessment of systems for deriving liquid and gaseous fuels from waste or grown organics,” NASA Technical Note. NASA TN D-8165. [Web Reference]
  3. 2019. State of global air 2019: a special report on global exposure to air pollution and its disease burden. Health Effects Institute, Boston, MA. [Web Reference]
  4. Kienzle J. and Sims B., 2015, “Mechanization of conservation agriculture for smallholders: Issues and options for sustainable intensification,” Environments; 2(2): 139-166. [Web Reference]
  5. Mahal J.S., et al., 2016, “Development of A Conveyor Seeder for Direct Sowing of Wheat in Combine-Harvested Rice Field,” Agricultural Research Journal; 53(3): 421-424. [Web Reference]
  6. Sheoran A., et al., 1998, “Continuous ethanol production from sugarcane molasses using a column reactor of immobilized Saccharomyces cerevisiae HAU‐1,” Journal of Basic Microbiology: An International Journal on Biochemistry, Physiology, Genetics, Morphology, and Ecology of Microorganisms; 38(2): 123-128. [Web Reference]
  7. WHO, 2018. Ambient (outdoor) air pollution. World Health Organization. Assessed on October 17, 2020. [Web Reference]
  8. अनिल खिप्पल, अजित सिंह खरब, जसबीर सिंह एवं रमेश चन्द्र वर्मा, 2014A, “लेजर लैंड लेवलिंग के लाभ,” भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय गेहूँ एवं जौं अनुसंधान संस्थान, करनाल। गेहूँ एवं जौं संदेश; 3(2): 8-9. [Web Reference]
  9. अनिल खिप्पल, अजित सिंह खरब, जसबीर सिंह एवं रमेश चन्द्र वर्मा, 2014B, “टरबो सीडर,” भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय गेहूँ एवं जौं अनुसंधान संस्थान, करनाल। गेहूँ एवं जौं संदेश; 3(2): 9-10. [Web Reference]

 

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