पशुओं में अनु-उर्वरता एवं बांझपन की समस्या के कारण एवं निवारण

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डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा

पशुओं में अनुउर्वरता एवं बांझपन का अर्थ है गर्भधारण न करना। जब किसी गर्मी में आई हुई गाय या भैंस में जांच किया हुआ जीवित , बीज बार बार डाला जाता है परंतु पशु गर्भ ग्रहण नहीं करता है यह गरभ स्थित होने पर क्षीण हो जाए या बच्चा होना बंद हो जाए तब उसे बांझपन की संज्ञा प्रदान की जाती है। पशुओं में बांझपन एक बहुत बड़ी आर्थिक हानि का कारण बनता जा रहा है । पशुओं के प्रजनन मैं आने वाली कठिनाइयां निम्न प्रकार है:-
१. देरी से युवा होना।
२. कम या बिल्कुल बच्चे ना होना
३. अधिक दिनों तक सूखे रहना।
४. बीच-बीच में बच्चे का गिर जाना।
५. बार-बार गर्वित होने के बावजूद बच्चा पैदा ना करना।
६. प्रजनन के योग्य ना होना
पशुओं में अनु उर्वरता एवं बांझपन अनेक कारणों द्वारा होता है। कुछ कारणों द्वारा अस्थाई तथा कुछ कारणों द्वारा स्थाई बांझपन उत्पन्न हो जाता है। अस्थाई बांझपन उपचार द्वारा दूर किया जा सकता है परंतु स्थाई बांझपन को ठीक नहीं किए जा सकता हैं पशुओं में स्थाई एवं अस्थाई बांझपन होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-
१. शारीरिक कारण:-
पशुओं में इस प्रकार से उत्पन्न हुआ बांझपन नर तथा मादा पशुओं में जननांगों के आकार में दोष तथा अन्य आवश्यक भागों के उत्पन्न होने के कारण होता है। इसके कारण पशुओं में बांझपन या कुछ सीमा तक उनकी प्रजनन शक्ति घट जाती है। संरचनात्मक संबंधी इन कठिनाइयों के कारण नर और मादा दोनों ही पशु स्थाई या अस्थाई रूप से बांध हो सकते हैं-
१. क्रिप्टोरचिडज या रिग-, साडों में उनकी वृषण शरीर से वृषण कोष में नहीं आती है इस अवगुण वाले सांड को क्रिप्टोआर्किडस या रिग कहते हैं। इनमें शुक्राणु नहीं बनते हैं।
२. वृषण हर्निया- शरीर से इंगुइनल नलिका द्वारा वृषण कोष में रक्त इकट्ठा होता है जिसके कारण वृषण में सूजन उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार के सांड में, वीरय ठीक से नहीं बनता है और वह बांझ होते हैं।
३. फ्री-मार्टिन-, जुड़वा पैदा हुए बच्चों ने 90% बछिया बांझ होती है। उनके जनन अंगों का विकास नहीं हो पाता है। इस प्रकार का बांझपन ठीक नहीं किया जा सकता है।
स्थिर योनिचछद/ परसिस्टेंट हाइमन अथवा श्वेत ओसर रोग –
युवा बछिया की योनि के मुंह पर एक पतली झिल्ली होती है जिसे हाइमन कहते हैं। बछिया को पहली बार गाभिन करने पर यह टूट जाती है। कभी-कभी इतनी कड़ी और मोटी हो जाती है कि यह टूटती नहीं है, जिसके कारण बछिया गर्भित नहीं हो सकती है। इसे ऑपरेशन द्वारा कुछ हद तक दूर किया जा सकता है। इस प्रकार का बांझपन अस्थाई होता है।
५. जनन अंगों में दोष-
जैसे शुक्रवाहिनी, गर्भाशय नाल गर्भाशय हारन आदि पूर्ण रूप से खुले ना होकर कभी-कभी ठोस अविकसित एवं जुड़े हुए पाए जाते हैं साथ ही साथ अंगों में अधिकता जैसे दो योनि, दो गर्भाशय ग्रीवा इत्यादि भी मिलते हैं जिससे कि जनन कार्य में बाधा आती है। जनन अंगों के ऊपर या अंदर अनावश्यक भाग उत्पन्न होकर मैथुन गर्भाधान निषेचन तथा गर्भधारण क्रियाओं में बाधा डालते हैं। कभी-कभी इन जनन क्रियाओं का, होना बिल्कुल असंभव हो जाता है। इसमें योनि, शुक्रवाहिनी, अंडाशय आदि पर सिस्ट का बन जाना गर्भाशय ग्रीवा का मुड़ा होना योनि का फूला होना आदि पशुओं को बांझ बनाते हैं। कभी-कभी सांड तथा गाय में जनन अंगों की कमी होती है या वे पूर्ण क्रियाशील नहीं होते हैं जिनके कारण वे बांझ बन जाते हैं। इनमें युग्मक जनन क्रिया नहीं होती है अर्थात अंडाणु और शुक्राणु नहीं बनते हैं। प्रजनन अंगों में इस अवस्था को हाइपोप्लेशिया ऑफ गोनेड, कहां जाता है।

२. आकस्मिक कारण-
पशु के प्रजनन में प्रयोग होने वाले यंत्रों, लापरवाही आदि के कारण जनन अंगों में चोट लग जाती है जिसके कारण वह भाग नष्ट होकर
अक्रियाशील हो जाता है। इस प्रकार से बांझपन निम्न कारणों द्वारा होता है-
अ. जनन अंगों में घाव, खरोच या सूजन-, शिश्न का सामान्य आकार गर्भाधान कि अनुचित विधियों का प्रयोग करने से गाय के जनन अंगों में घाव, खरोच या सूजन हो जाती है। यदि इसमें असावधानी हो जाती है तो यह अंग नष्ट हो जाते हैं। कम सीमा में हुई इस प्रकार की खरोच,घाव या सूजन आदि को लाल दवा पोटेशियम परमैंगनेट१:१००० के घोल, सेलफोनामाइड, के चूर्ण तथा मलहमो, के प्रयोग से ठीक की जा सकती है।
ब. गर्भाशय तथा यौनि दीवार में छिद्र-, गर्भाशय में त्वचा के घाव या तिरछा हो जाने से पैदा होने में आने वाली बाधाओं के कारण गर्भाशय को हान होती है। कभी-कभी असामान्य शिश्न के प्रवेश के कारण योन की दीवार फट जाती है।
स. गर्भाशय का बाहर निकलना- दुर्बल पशु में बच्चा पैदा होने के कुछ दिन पहले या बाद में गर्भाशय तथा योनि बाहर निकल आते हैं जिससे बच्चा होने में कठिनाई आती है। बाहर निकले भाग में हानि होने की संभावना रहती है। गर्भाशय की गर्भधारण शक्ति घट जाती है। जीवाणु नाशक घोल से धोकर इन्हें तुरंत सामान्य स्थिति में कर देना चाहिए।

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३. शरीर क्रियात्मक कारण-
इस प्रकार से उत्पन्न हुआ बांझपन पशुओं में अधिकांशत मिलता है। इस प्रकार का बांझपन पशु शरीर के हार्मोन का आपस में संबंध उनका संतुलन एवं भ्रमण में हेरफेर हो जाने के कारण होता है। यह परेशानी मुख्यता गोनेडोट्रॉपिक हार्मोन जैसे एफ एस एच, एल एच एवं प्रोलेक्टिन हार्मोन तथा
गोनैडल हार्मोन, जैसे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन के कम या अधिक होने से होती है। इन हार्मोन के असंतुलन के कारण जनन में जो कठिनाई उत्पन्न होती है वह निम्न प्रकार से हैं-
अ. पशु का पूर्ण युवा ना होना- पशु शरीर के हार्मोन का नियंत्रण मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा होता है। इस ग्रंथ के उचित क्रियाशील ना होने के कारण गोनैडोट्राफिक हार्मोन, की कमी होती है जिसके कारण सांड और गाय में जनन अंग और उनके सहायक जनन अंगों का विकास नहीं होता है। अतः पशुओं में बांझपन के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
ब. युग्मक जनन का कम होना-, शुक्राणु और अंडाणु, की उत्पत्ति तथा वृद्धि होना गोनेडोट्रॉपिक हार्मोन द्वारा ही नियंत्रित होती है। एफ.एस.एच., अंडाशय से तथा वृषण को उत्तेजित करके क्रमशः अंडजनन तथा शुक्र जनन की क्रिया करते हैं। एल.एच.दूसरी ओर आंतरिक कोशिकाओं को उत्तेजित करके एंड्रोजन को उत्पन्न करते हैं जिससे पशुओं में संभोग की इच्छा उत्पन्न होती है। हार्मोन की कमी से ऐसा नहीं होता है और पशु अस्थाई बांझ हो जाता है । इनको इंजेक्शन देकर अस्थाई बांझपन फिर से ठीक हो सकता है।
स. अनियमित मदचक्र- पशु का गर्मी में आना भी हार्मोन के द्वारा ही नियंत्रित होता है। इसके असंतुलन अथवा कमी के कारण अंडोत्सर्ग के बिना गर्मी समाप्त हो जाती है अथवा गर्मी और अंडोत्सर्ग का संबंध बिगड़ जाना या फिर मैथुन क्रिया ना होना आदि बाधाएं उत्पन्न होती हैं। ऐसी स्थिति में बार-बार पशु को गर्भित कराना पड़ता है।
द. कॉरपस लुटियम का स्थिर बने रहना- मादा पशु जब बच्चा दे देती है तो कार्पस लुटियम जो अंडाशय के ऊपर होती है अपना स्थान छोड़ देती है। परंतु असामान्य अवस्था में यदि कार्पस लुटियम क्रियाशील अवस्था में अंडाशय पर स्थित है तो यह प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन को उत्पन्न करती रहेगी जिसके कारण गोनैडोट्राफिक हार्मोन, का उत्सर्जन कम या नहीं होता है। एफ एस एच के अभाव के कारण अंडाशय के अंदर पुटक, या फॉलकिल की वृद्धि नहीं होगी। इसके कारण एस्ट्रोजन भी नहीं निकलेगा। एस्ट्रोजन की कमी के कारण पशु गर्मी में नहीं आएगा। इस प्रकार के बॉझपन को कार्पस लुटियम को दूर को प्रोस्टाग्लैंडइन का इंजेक्शन दे करके गोनेडोट्रॉपिक हार्मोन और इसट्रोजन का इंजेक्शन देकर ठीक किया जा सकता है।
य. गाय का लगातार गर्माना, या निंफोमानिया- पशु का बार-बार गर्माना, परंतु गर्भित ना होना भी हार्मोन के असंतुलन के कारण होता है। अंडाशय के पुटक बढ़ते हैं परंतु एल.एच.की कमी के कारण अंडोत्सर्ग नहीं होता है। एफ एस एच की अधिकता से और नए पुटक तैयार होते हैं, लेकिन उनका भी अंडोत्सर्ग नहीं होता है। इस प्रकार प्रत्येक नए पुटक के बनने पर, पशु गर्मी में आता है परंतु अंडाणु के ना निकलने के कारण पशु गर्भित नहीं होता है। अंडाशय, ऐसे पुटक, से भर जाता है जिसे सिस्टिक अंडाशय कहते हैं। एस्ट्रोजन की अधिकता एवं देर तक बने रहने का कारण पशु लगातार गर्मी में रहता है। इसके उपचार के लिए एल.एच.हार्मोन अथवा कोरियॉनिक गोनैडोट्राफिक हार्मोन, का इंजेक्शन देकर ठीक किया जा सकता है।
४. पोषण के कारण-
संतुलित आहार न देने के कारण भी पशुओं में अस्थाई बांझपन आ जाता है मुख्यता उस स्थिति में जबकि पशु को कम भोजन मिल रहा है या फिर अधिक भोजन मिलता है जिसके कारण उस पर चर्बी बढ़ रही होती है। व्यायाम की कमी होने से भी यह स्थिति बन सकती है। वे पशु जो खराब प्रकार के चरागाह पर पाली जाती हैं उत्तम चारा न मिलने के कारण उनमें बच्चा पैदा करने की दर घट जाती है। ऐसे पशुओं में बच्चा पैदा करने की शक्ति कम हो जाती है या बच्चा देना बिल्कुल बंद कर देती है। भोजन में फास्फोरस की कमी से जैसा कि थीलर, और उसके साथी ने दक्षिण अफ्रीका में हेनरी ऑस्ट्रेलिया में हाल्ट ने पामीर में इकलस ने दक्षिण अमेरिका में देखा कि पशुओं में गर्भपात तथा बांझपन हो जाता है। फास्फोरस की कमी से प्राय: अंडोत्सर्ग कम होता है। आहार में प्रोटीन फास्फोरस की कमी अथवा कैल्शियम फास्फोरस का अनुपात शरीर में बढ़ जाने से अंडोत्सर्ग के समय में वृद्धि हो जाती है। ऐसे पशुओं को बिनौले की खल और ऐसे दाने और चारे जिन में प्रोटीन तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में हो देने से दशा सुधर जाती है। और 50% पशु बच्चा देने के 1 माह बाद फिर से गर्मी में आ जाते हैं। भोजन में कैल्शियम की कमी के कारण अंडाणु का निषेचन कठिन होता है। कैल्शियम कार्बोनेट देने से दशा सुधारी जा सकती है।कीनीडी, ने प्रयोग किया की कैल्शियम की कमी वाला भोजन पशुओं को बांझ बनाता है हालांकि उनमें अंडोत्सर्ग होता है। इस कमी के कारण गर्भाशय का अक्रियाशील हो जाता है।
प्रोटीन का प्रकार और उसकी भोजन में मात्रा भी पशु के जनन पर प्रभाव डालती है। प्रजनन में प्रोटीन की प्रकार उसमें पाए जाने वाले अमीनो अम्ल की गुणवत्ता एवं मात्रा के कारण ही प्रभाव डालती है।
विटामिन ए की कमी के कारण जनन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसकी कमी से भ्रूण मर जाता है। सांड के अंदर से विटामिन की कमी से अक्रियासील शुक्राणु पैदा होते हैं। वृषण का भार घटने लगता है। विटामिन की भोजन में कमी इस प्रकार की बाधाएं उत्पन्न करके पशुओं को पूर्ण बांझ कर सकती हैं। विटामिंस की कमी को ऐसे भोजन देने से जिसमें यह विटामिन अधिक है कमी दूर की जा सकती है। विटामिन ई की कमी को पूरा करने के लिए गेहूं के अंकुर का तेल उत्तम होता है।

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५. मनोवैज्ञानिक कारण-
प्रजनन के समय गाय का तनाव में होना, हताश होना, उसकी बच्चा पैदा करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यह अवस्था प्राय: एपीनेप्रीन हार्मोन के उत्पन्न होने के कारण शुक्राणु की गतिशीलता कम हो जाती है ।

६. रोग मूलक कारण-
इस प्रकार का बांझपन स्थाई और अस्थाई दोनों प्रकार का हो सकता है। जो कुछ ज्ञात जीवाणुओं, विषाणुओं तथा प्रोटोजोआ से होते हैं उन्हें विशिष्ट रोग कहते हैं। तथा जिनके बारे में ज्ञान नहीं है उन्हें अवशिष्ट रोग कहते हैं। इन रोगों में से मुख्य रोग निम्न प्रकार से हैं जिनके कारण पशुओं में बांझपन उत्पन्न होता है।

अ. विशिष्ट रोग:
१. ब्रूसेलोसिस या संक्रामक गर्भपात-, यह रोग ब्रूसेला अबारटस नामक जीवाणु द्वारा होता है। 6 से 9 महीने की गर्भावस्था में गर्भ गिर जाता है। इसके साथ ही साथ गर्भाशय में सूजन, जेर का रुक जाना, जीवाणु द्वारा गर्भाशय में कोटलीडॉन को नष्ट कर देना आदि सम्मिलित है। यह जीवाणु , बच्चे की त्वचा को नष्ट कर देता है जिससे बच्चा गर्भाशय में मर जाता है और गर्भपात हो जाता है। सॉडो में उनके वृषण तथा अन्य जनन अंगों में सूजन हो जाती है।
२. कैमपाइलोबैक्टीरियोसिंस-
एक छोटा सा कामा की आकृति का जीवाणु है जिसे कैंपाइलोबेक्टर फीट्स कहते हैं जिसमें 4 से 7 महीने की अवस्था का गर्भपात होता है। शुक्राणु वीर्य द्वारा गर्भाशय में चले जाते हैं और अन्य पशुओं में रोग फैलाते हैं।
३. ट्राइकोंमोनीएसिस-
यह रोग , ट्राई ट्राईकोमोनाश फीटस, नामक प्रोटोजोआ से होता है। यह पशु के जननांगों में वीर्य को संभोग द्वारा प्रवेश पा जाते हैं। यह गाय के 1 से 10 सप्ताह के गर्भ को नष्ट कर देते हैं। कभी-कभी गर्भपात ना होकर बच्चा गर्भाशय में ही घुल जाता है । गर्भाशय में मवाद भर जाता है और पशु बांझ हो जाताहै।

अविशिष्ट रोग-
इस श्रेणी में इस प्रकार के रोग आते हैं जिनका फैलने के कारण तथा रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु का पता ठीक से ज्ञात नहीं है। इन रोगों से जनन अंगों में सूजन, घाव, रक्त, मवाद, गैस, पानी आदि इकट्ठा होकर सड़न उत्पन्न होती है। इससे जनन अंग अयोग्य हो जाते हैं और पशु कुछ ही समय में बांझ हो जाते हैं। इस प्रकार के मुख्य रोग निम्नलिखित हैं-
१. जनन अंगों पर सूजन होना-, विभिन्न जनन अंगों पर रोगों के कारण सूजन आती है इन्हें इस प्रकार जाना जाता है-
भगशोथ- इस रोग में भग में सूजन आ जाती है।
योनिशोथ-, इसमें योनि पर रोग के कारण सूजन पैदा हो जाती है।
गर्भाशय ग्रीवा शोथ – गर्भाशय ग्रीवा में सूजन पैदा हो जाती है जिसके कारण गर्भधारण नहीं होता है।
गर्भाशय शोथ – गर्भाशय में सूजन के कारण गर्भ धारण क्षमता नष्ट हो जाती है। गर्भाशय के कोटलीडांनस, नष्ट हो जाते हैं। पशु कुछ समय के लिए बांझ हो जाते हैं, यदि चिकित्सा न की जाए तो पशु स्थाई बांझ हो जाता है।
अंडाणु जाल शोथ/ सालपिनजाइटिस-
इस रोग में अंड वाहिनी सूज जाती है जिसके कारण अंडाणु का गर्भाशय में पहुंचने का मार्ग बंद हो जाता है। अंडाणु अपने स्थान पर ही नष्ट हो जाता है। अंडाणु के गर्भाशय तक नहीं पहुंचने के कारण पशु बांझ हो जाता है।
अंडाशय शोथ-
अंडाशय का किसी रोग द्वारा सूज जाना ही अंडाशय शोथ कहलाता है। अंडाशय में सूजन आ जाने के कारण अंडाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार भी पशु बांझ हो जाते हैं। यदि दूसरा अंडाशय रोग ग्रस्त नहीं होता है तो उससे अंडा बनता है अथवा अस्थाई बॉझपन हो जाता है है।
जनन ग्रंथि शोथ/ऑर्काइटिस – किसी भी रोग द्वारा जनन ग्रंथियां सूज जाती हैं इसके कारण सांड में वीर्य बनने की क्रिया रुक जाती है।। यदि चिकित्सा न की जाए तो स्थाई बांझपन अथवा सांड की प्रजनन क्षमता घट जाती है।
जनन अंगों में पानी भरा होना जैसे हाइड्रोमेटरा, हाइड्रोसल्पिंक्स, इत्यादि। इस प्रकार के रोगों से शुक्राणु तथा अंडाणु आकर यहां भर जाते हैं और पशु बॉझ हो जाता है ।
जनन अंगों में मवाद भरा
होना-, गर्भाशय में पायोमेट्रा,अंडवाहिनी में मवाद-, नष्ट हुए गर्भ का मवाद बन जाना।

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पर्यावरण का प्रभाव-
मौसम तापमान प्रकाश आदि बाहरी प्रभाव भी तो,प्रजनन पर असर डालते हैं। यह प्राय: प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पशुओं के शरीर में हार्मोन के संतुलन में हेरफेर बनाए रखते हैं।यह देखा गया है कि सबसे अधिक बच्चा उत्पन्न करने की शक्ति बसंत और शरद ऋतु में तथा मध्यम पतझड़ के मौसम में और सबसे कम गर्मियों में रहती है।पशु को बुखार या वृषण कोष पर बाल होने के कारण अस्थाई बांझपन उत्पन्न होता है।प्रकाश का भी पशुओं के गर्भित रहने पर अधिक प्रभाव देखा गया है । यदि भेड़ों को अधिक प्रकाश दिया जाए तो वे शीघ्र गरमाती हैं, और यदि अंधेरे कमरे में रखा जाए तो देर से गर्भित होती हैं।
उपरोक्त वातावरण
के प्रभाव के अतिरिक्त, पशुओं की उचित देखरेख भी अधिक प्रभाव डालती है।यदि पशुओं की ठीक प्रकार से देखरेख नहीं कीजाती है। तो उनमें बांझपन उत्पन्न हो जाता है। यह असावधानियों के कारण होता है इसमें मुख्य असावधानियां निम्न प्रकार है-
१.गाय का गर्मी के होने का पता न रखना
२.प्रजनन के गलत तरीके अपनाना
३.गर्भधारण परीक्षा न करना
४.जीवाणु रहित यंत्रों का प्रयोग न करना
५.उपरोक्त रोगोंसे बचाव ना करना।
६.संतुलित पशु आहार या उचित भोजन न देना।

आनुवंशिक कारण-
रचनात्मक समानताएं भी आनुवंशिक होती हैं। यह पैत्रक कहीं जाती हैं इस में आने वाली मुख्य असमानता जिनके कारण बांझपन होता है-
१.जनन ग्रंथि अववृद्धि-
अंड ग्रंथियांऔर अंडाशय का पूर्ण विकास नहीं होता है।
२.श्वेत ओसर रोग-
पशु में योनिछद या हाइमन का, स्थिर बने रहना भी पैत्रक अवगुण होता है।
३.असामान्यशुक्राणु
४.घातक कारण या लीथल जींस

पशुओं में उत्तम जनन योग्यता स्थिर रखने के लिए निम्नलिखित मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए-
१.पशुओं को उत्तम भोजन एवं संतुलित आहार देना चाहिए!
२.गाय से प्रतिवर्ष एक बच्चा एवं भविष्य भैंस से13 महीने में एक बच्चा लेना चाहिए। 2 वर्षीय बच्चा देने वाली गाय और भैंस की जांच करनी चाहिए।
३.गाय को बच्चा पैदा करने के बाद 2 महीने तक गर्भित नहीं कराना चाहिए।
४.गाय कब गर्मी में आती है उसे पता करना चाहिए और उसे गर्मी होने के मध्य से अंतिम अवस्था में गर्भित कराना चाहिए।
५.रोगों से पूर्ण बचाव करना चाहिए।
६.गरभ परीक्षा तथा अन्य असमानयताओं की परीक्षा करते रहना चाहिए।
७.नैसर्गिक प्रजनन के बजाय कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए।
८. फार्म परसब तरह से , स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए।

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