नवीन तकनीक और कार्य प्रणालियों से बदलता भारतीय डेयरी उद्योग क्षेत्र
डॉ. जयंत भारद्वाज,
एम.व्ही.एस.सी शोध छात्र,
पशु विकृति विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.) I
सारांश – भारत की जनसँख्या १ प्रतिशत की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है और कृषि योग्य भूमि ०.०३ मिलियन हेक्टेयर की दर से प्रतिवर्ष घट रही है I कृषि के क्षेत्र में यथासंभव तकनीकें विकसित हो चुकी हैं और ज़मीनी स्तर पर लागू भी हो चुकी हैं I ऐसे में बढ़ती जनसँख्या के लिए भोजन उपलब्ध कराना बहुत बड़ी चुनौती है I इसलिए अब आवश्यकता है डेयरी उद्योग के क्षेत्र में पारम्परिक तकनीकों को छोड़कर नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों को अपनाने की, जैसे कि मिल्क पार्लर, सुविधायुक्त पशु आवास, संतुलित पशु आहार इत्यादि I ऐसा करके ही भारत विश्व में दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर बना रहेगा और भारत का हर किसान आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकेगा I
मुख्य शब्द : तकनीक, कार्यप्रणाली, डेयरी, सॉफ्टवेयर, प्रजनन, निदान I
आज दिन प्रतिदिन जंगल घट रहे हैं और कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं I बढती जनसँख्या और घटती खेती योग्य भूमि ने भारतीय डेयरी उद्योग क्षेत्र पर एक अदृश्य सा दबाव डाला है I ऐसे में आवश्यकता है एक ऐसे उद्योग की जो मानवों को पौष्टिक आहार प्रदान कर सके I कृषि के अतिरिक्त यह क्षमता सिर्फ और सिर्फ पशुपालन में ही है I भारत में पशुपालन न जाने कब से किया जा रहा है I प्राचीन काल से ही कहा जाता रहा है कि भारत में दूध की नदियां बहती हैं I हमने गाय को माता माना है I परन्तु आज बढ़ती जनसँख्या के भरण पोषण के लिए आवश्यकता है डेयरी उद्योग में नवीन तकनीक और कार्य प्रणालियों को अपनाने की I हमने कई हद तक इन्हे अपनाया भी है I इन्ही के कारण तो आज भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में सर्वप्रथम है I आज हम ऐसी ही कुछ नवीन तकनीक और कार्य प्रणालियों पर प्रकाश डालेंगे जो कि भारतीय डेयरी उद्योग क्षेत्र को बदल रही हैं –
- मिल्क पार्लर – बड़ी – बड़ी डेयरियों में पशुओं की संख्या अधिक होती है जिससे दूध निकालने में काफी समय और मेहनत लगती है I परन्तु मिल्क पार्लर इन दोनों ही समस्याओं का समाधान है I मिल्क पार्लर वह स्थान है जहाँ पर पशु से मशीन द्वारा दूध निकाला जाता है I ऐसा करने से समय और मेहनत दोनों बच जाते हैं और मुनाफे में वृद्धि होती है I यहाँ या तो बाल्टी या बर्तन में दूध निकाला जाता है या फिर पाइपलाइन के द्वारा सभी पशुओं का दूध एक जगह इकठ्ठा किया जाता है I आजकल स्वचालित परिभ्रामी ( रोटरी) मिल्किंग पार्लर का भी उपयोग किया जा रहा है जिनकी मदद से कई पशुओं का दूध एक ही बार में निकाला जा सकता है I
आजकल बाजार में ऐसे रोबोट भी उपलब्ध हैं जो कि दूध निकालने के साथ ही पशु के स्वास्थ्य और दुग्ध गुणवत्ता की जानकारी को मोबाइल पर ही भेज देते हैं I ये रोबोट हर बार दूध निकालने पर हर थन में कोशिकाओं की गणना कर सकते हैं जिससे थनैला रोग होने से पूर्व ही उसके खतरे का पता चल जाता है I
- पशु आवास – हमें पशु के आवास को अधिक से अधिक सुखमय बनाना चाहिए क्यूंकि पशु जितने अधिक आनंद में रहेगा उतना ही अधिक दुग्ध उत्पादन होगा I पशु आवास में हमेशा ही अनुकूल वातावरण होना चाहिए I इसके लिए आवश्यक है कि तापमान, आद्रता, विभिन्न गैसों की मात्रा इत्यादि सब आवश्यकता अनुसार ही हों I कीनोमिस कंपनी ने एक ऐसा आई ओ टी प्लेटफार्म विकसित किया है जो कि पशु आवास में ध्वनि, प्रकाश, तापमान, कार्बोन – डाई – ऑक्साइड, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड इत्यादि गैसों की मात्रा जैसे बीस से अधिक परिवेश सम्बंधित मापदंडों को नियंत्रित कर सकता है I इसके साथ ही डेयरी में पानी के रिसने एवं बिजली विच्छेद को भी बता देता है I हम जानते हैं कि कार्बन – डाई – ऑक्साइड, अमोनिया और हाइड्रोजन सल्फाइड के स्तर में वृद्धि होने पर म्यूकोसिलिअरी गतिविधि कम होने लगती हैं I साथ ही अमोनिया की वजह से फुफ्फुसीय वायुकोष्ठिका नष्ट होने लगती है I इन दोनों ही कारणों से पशु को संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है I परन्तु इस नवीन तकनीक के माध्यम से आज हम इन गैसों के स्तर को नियंत्रित कर सकते हैं और अपने पशुओं को आने वाले संक्रमण के खतरों से बचा सकते हैं I
- पशु आहार – पशु को जैसा भोजन देंगे पशु वैसा ही दूध देगा I अतः हमें पशु को पौष्टिक संतुलित आहार देना चाहिए I ऐसा करने के लिए कम्प्यूटरीकृत आहार प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है I यह प्रणाली पशु की वृद्धि और अन्य आवश्यकताओं की गणना कर पशु को भोजन उपलब्ध कराती है I
बड़ी डेयरियों में पशु आहार की मात्रा बहुत अधिक होती है जिसे कर्मचारियों द्वारा हाथों से सामान रूप से मिलाना बहुत ही कठिन होता है I टी एम आर वैगन मशीन की सहायता से कटे हुए हरे चारे, भूसे और दाने को सही ढंग से आसानी से मिलाया जा सकता है I कहते हैं कि डेयरी पशु के ऊपर जो भी खर्च आता है उसका ७०% आहार के कारण ही होता है I इसलिए पशुओं के राशन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है I राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के द्वारा विकसित एंड्राइड आधारित सॉफ्टवेयर ‘पशुपोषण’ पशुओं के राशन का संतुलन करने में सहायक है I
- पशु पहचान – आजकल पशुपालन को और अधिक आसान बनाने के लिए कई नवीन तकनीक उपलब्ध हैं I पहले पशु पहचान के लिए गोदना, टैगिंग करना, दागना इत्यादि कार्यप्रणाली का उपयोग किया जाता था I मगर आज इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोचिप की सहायता से पशु की पहचान आसानी से की जा सकती है तथा यह तरीका दर्द रहित भी होता है I
- पशु प्रजनन – लिंग वर्गीकृत वीर्य अर्थात ऐसा वीर्य जिससे सिर्फ मादा बच्चे (९०-९५% सम्भावना) का ही जन्म हो, का उपयोग कर कृत्रिम गर्भाधान किया जा सकता है I इससे अनुपयुक्त नर पशुओं की जनसँख्या में भी कमी होगी और सारे के सारे स्त्रोत मादा पशुओं को विकसित करने में लगेंगे जिससे भविष्य में अधिक उत्पादन होगा I
आजकल ऐसे पटटे उपलब्ध हैं जो कि पशु के गर्मी में आने का, उसके ग्याबन होने का इत्यादि के बारे में बता देते हैं I कोलार और स्टेल्लप्पस कंपनी द्वारा विकसित पट्टे तो पशु के स्वास्थ्य, व्यवहार, उत्पादन, गर्मी में आना, ग्याबन होना, प्रतिदिन पशु कितना चला, जुगाली करना, भोजन ग्रहण करना इत्यादि की जानकारी पट्टे से जुड़े मोबाइल फ़ोन पर ही बता देते हैं I प्रजनन के सहारे हम ऐसी नस्लों को प्रोत्साहित करें जो कि अधिक उत्पादक होवें I भ्रूण प्रत्यारोपण जैसी तकनीकें इसमें सहायक सिद्ध होंगी I
- अभिलेख बनाना – अभिलेख बनाना या दस्तावेजीकरण करना एक अधिक समय लेने वाली, मेहनत भरी एवं उबाऊ कार्यप्रणाली है I मगर आज के आधुनिक दौर में हम भारत के डिजिटल होने का स्वप्न देख रहे हैं I ऐसे में आवश्यकता है कि हम यह कार्य ऑनलाइन ही कर लेवें I ऐसा करने से समय और मेहनत दोनों ही बचेगी और अभिलेख बनाते समय गलती करने के रास्ते भी बंद हो जायेंगे I अगर हम इस कार्यप्रणाली को अपना लेते है तो हमारी डेयरी में अगर कोई भ्रष्ट कर्मचारी भी होगा, तो वह चाहकर भी भ्रष्टाचार नहीं कर पायेगा I इसके लिए अमूल आई किसान, अमूल एएमसीएस फार्मर्स, अमूल एआई एप्प, अमूल पशु सेवा एप्प इत्यादि का उपयोग आसानी से किया जा सकता है I
- रोग निदान – किसी भी रोग का सटीक उपचार तभी संभव है जब उस रोग का निदान सही ढ़ंग से किया जाए I पशु चिकित्सा के क्षेत्र में आज भी हम पशु के रोग ग्रस्त होने के बाद ही उसके रोग का निदान कर पाते हैं और कई बार तो वो भी नहीं I ऐसे में आवश्यकता है ऐसी रोग निदान की तकनीकों को विकसित करने की जो कि रोग के लक्षण दिखने से पूर्व ही रोग का निदान कर सकें I ऊष्म बिंब (थर्मल इमेजिंग) तकनीक द्वारा थनेला, लंगड़ापन, नील जिव्हा (ब्लू टंग) रोग, बम्बल फुट रोग इत्यादि रोगों का पता उनके होने से पूर्व ही लगाया जा सकता है I
- पशु उपचार – आजकल डेरियों में अंधाधुंध एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग हो रहा है, जिसका परिणाम पशुओं में ही नहीं अपितु मानवों में भी देखने को मिल रहा है I पशु उत्पादों में इन एंटीबायोटिक्स का कुछ अंश आ जाता है जो कि इन उत्पादों का सेवन करने पर मानव में पहुंच जाता है I परिणामस्वरूप एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधकता देखने को मिलती है I इसलिए हमें नवीन तकनीकों का उपयोग इस तरह से करना चाहिए कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता को कम या खत्म किया जा सके I इसके लिए हमें नवीन तकनीकों की सहायता से जैविक पशुपालन करना होगा I जैविक पशुपालन ऐसा पशुपालन होता है जिसमे पशुओं को किसी भी प्रकार का रसायन जैसी कि एंटीबायोटिक्स, हॉर्मोन इत्यादि न दिया जावे I कोई रोग हो जाने पर देसी इलाज करना होगा I हमारे भारत में आयुर्वेद अनंत समय से प्रचलित रहा है I आज आवश्यकता है कि नवीन तकनीकों की सहायता से इन पुरानी आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं को ऐसे विकसित करने की कि ये जल्द असरदार हों और कम लागत वाली हों I ऐसा करने से एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता में कमी आएगी और आवश्यकता पड़ने पर एंटीबायोटिक्स अधिक असरदायक होंगी I
- अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण – हम जानते है कि पशुओं से मीथेन गैस निकलती है जो कि वातावरण के लिए अत्यंत ही हानिकारक होती है I ९० से ९५ प्रतिशत तक यह गैस पशु की नासिका से निकलती है I जेड ई एल पी प्रोजेक्ट के अंतर्गत ऐसी मोहरी विकसित की गयी है जो कि नासिका से निकलने वाली मीथेन गैस का ऑक्सीकरण कर उसे नष्ट कर देती है I
पशुओं के अपशिष्ट पदार्थ का उपयोग कर बायोगैस बनायीं जा सकती है जिसका उपयोग भोजन पकाने में, बिजली उत्पादन करने में इत्यादि कार्यों में किया जा सकता है तथा बचा हुआ भाग खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है I हमें पशुपालन को कृषि से जोड़ना होगा I ऐसा करने से पशुओं के अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग जैविक खेती को संबल देने में होगा I राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड द्वारा ‘सुधन’ नाम से बाजार में गोबर से बनी खाद बेचीं जा रही है I ऐसा ही हर पशुपालक भी कर सकता है I
- पशु उत्पादों का संरक्षण और बाजार – हम जानते है कि हम कच्चे दूध को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रख सकते क्यूंकि दूध जीवाणुओं के विकास के लिए एक अत्यंत ही सरल माध्यम है I अतः हमें दूध को संरक्षित करने की नवीन तकनीक जैसे की पाश्चुरीकरण इत्यादि पर ध्यान देना चाहिए I साथ ही दूध को अन्य उत्पादों में बदलना होगा जैसे कि पनीर, घी, मावा इत्यादि I इन उत्पादों की बाजार में कीमत भी ज्यादा होती है I हमें बाजार पर भी नियमित ध्यान देना होगा I इसके लिए उपलब्ध एप्प जैसे कि ‘मेरी डेरी’ का उपयोग किया जा सकता है I
- अन्य नवीन तकनीकियां –
ड्रोन – ऐसे ड्रोन जिनमें कैमरे लगे हो, उनकी सहायता से पशुओं का सटीक स्थान, आवारा पशु की उपस्थिति, पशु की गिनती, पशु का इधर – उधर घूमना इत्यादि का पता आसानी से पशु आवास में, जंगल में, दिन और रात दोनों में ही घर में बैठकर किया जा सकता है I साथ ही यह पशुओं की चोरी रोकने में भी सहायक होते हैं I
स्वचालित ब्रश – आजकल बाजार में ऐसा ब्रश उपलब्ध है जो कि पशु के सीधे सम्बन्ध में आने पर स्वतः ही चलने लगता है और पशु के चले जाने पर यह स्वतः ही बंद भी हो जाता है I यह ब्रश पशु के शरीर के हर अंग पर कार्य कर पशु को आराम पहुँचाता है और साथ ही रक्त प्रवाह को बढ़ाता है I
- प्रशिक्षण – हम प्रयोगशाला में चाहे कितनी ही नवीन तकनीक विकसित कर लें, परन्तु जक तक भारत के आखिरी छोर पर बसे पशुपालक को उस तकनीक का लाभ नहीं मिलेगा तब तक ऐसी तकनीक का विकास निरर्थक ही होगा I अतः हमें चाहिए कि सरकार, एनजीओ या अन्य सम्बंधित संस्था समय – समय पर विकसित नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों पर आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम करवाएं I ऐसा करने से ही ज़मीनी स्तर पर भी ये तकनीक फलेंगी – फूलेंगी और किसानों की आय बढ़ाएंगी I
आज के आधुनिक दौर में हर क्षेत्र में नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों का उपयोग किया जा रहा है I ऐसे में डेयरी उद्योग का क्षेत्र भी इनसे अछूता नहीं रह सकता I भारत सरकार का स्वप्न है किसानों की आय को दोगुना करने का I ये स्वप्न भारतीय डेयरी उद्योग क्षेत्र के द्वारा नवीन तकनीकों और कार्यप्रणालियों को अपनाने पर ही संभव है I जिस दिन भारत का गरीब से गरीब पशुपालक भी इन तकनीकों को अपनाकर मुनाफा कमाने लगेगा, उस दिन ही हम गर्व से कह सकेंगे कि सच में भारत भूमि सुखदाम् वरदाम् भूमि है I