किसान मुनाफे के लिए अपनायें समेकित कृषि प्रणाली

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किसान मुनाफे के लिए अपनायें समेकित कृषि प्रणाली
जसवन्त कुमार रेगर1, ज्योति माला2, अजय कुमार3, निनाद भट4 व डॉ. अरूण कुमार मिश्रा5
1सहायक आचार्य, पशु उत्पादन, कृषि महाविद्यालय, बायतु-344034, बाड़मेर
(कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर) राजस्थान
3सहायक आचार्य, पशुधन उत्पादन प्रबन्धन विभाग,
उ.प्र. पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय
ष्2,4षोध छात्र, 3प्रधान वैज्ञानिक, पशुधन उत्पादन प्रबन्धन विभाग,
भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल-132001, हरियाणा

भारत एक कृषि प्रदान देष है, यहाँ पर 70 प्रतिषत से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। भारत में विषाल पशुधन संम्पदा है। जिसमें कुल 535.78 मिलियन पशुधन जनसंख्या है। इसमें से भैंसों की आबादी (109.85 मिलियन), मवेषियों की आबादी (192.49 मिलियन), बकरियों की आबादी (148.88 मिलियन) व भेड़ों की आबादी (74.26 मिलियन) (20 वीं जनगणना के अनुसार) है। विष्व में भारत दूध उत्पादन (209.96 मिलियन टन) में लगातार प्रथम स्थान पर बना हुआ है। इसी तरह 114.8 अरब अंडे और 8.6 मिलियन टन मांस उत्पादन कर रहा है। पशुधन दो-तिहाई ग्रामीण समुदाय को आजीविका प्रदान करता है और लगभग 8.8 प्रतिषत आबादी को रोजगार प्रदान करता है। पशुधन से दूध, मूल्यवान गोबर की खाद, चमड़ा व ऊन इत्यादि का उत्पादन होता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे और सीमांत किसानों के लिए पशुधन आधारित समेकित कृषि प्रणाली एक प्राचीन प्रथा है। किसानों की आय व रोजगार बढ़ाने के लिए डेरी, बकरी पालनए मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, बत्तख पालन आदि के साथ चारा उत्पादन व फसल आधारित कृषि का विविधीकरण आवष्यक है। देष की लगातार बढ़ती जनसंख्या और घटती कृषि जोत आकार किसानों के लिए जोखिम बढ़ा सकती है। किसानों को उत्पादों का सही दाम नहीं मिलने के कारण खेती छोड़कर षहरों की ओर पलायन कर रहे है। अनुमानित वर्ष 2030 तक देष की जनसंख्या 1 अरब 46 करोड़ हो जायेगी। इनके भरण पोषण के लिए अनुमानित भोजन वर्ष 2025 तक अनाज, दूध, सब्जी, फल, खाद्य तेल एवं मांस मछली अण्ड़े की आवष्यकता भी बढ़ेगी। ऐसे में डेरी आधारित समेकित कृषि प्रणाली अपनाकर अपनी भरण पोषण की आवष्यकता के साथ-साथ अच्छी आमदानी भी प्राप्त कर सकता है।
क्या है समेकित कृषि प्रणाली
कृषि से अत्यधिक लाभ प्राप्त करने के लिए यह खेती की एक ऐसी पद्धति है, जिसमें खेत से सम्बंधित उपलब्ध सभी संसाधनों का उपयोग करते हुए कम से कम दो या उससे अधिक घटकों को इस प्रकार से समायोजित किया जाता है कि एक के समायोजन से दूसरे के लागत में कमी हो व उत्पादन में वृद्धि हो। यह प्रणाली किसानों को वर्ष भर अच्छी आमदनी व सालभर पारिवारिक रोजगार करने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। उपयुक्त घटकों को जोड़कर उत्पाद, उपोत्पाद और अपशिष्ट सामग्री का पुनर्चक्रण कृषि प्रणाली की स्थिरता के लिए आवष्यक हैं। इस प्रकार, पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जा सकता है। फसलों के साथ विभिन्न पशुधन घटकों के समेकित के कारण, अंडे, मांस और दूध का उत्पादन किसानों को पोषण सुरक्षा और आय सृजन वर्ष भर प्रदान करता है। फसल को पशुधन उद्यमों के साथ मिलाने से श्रम की आवश्यकता में भी वृद्धि और बेरोजगार की समस्याओं को काफी हद तक कम करने में सहयोग मिलता है। पोषण सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण स्थायी कृषि के लिए प्रमुख चिंता का विषय है। आर्थिक विकास के लिए उपलब्ध संसाधनों और पर्यावरण संरक्षण के उचित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए डेरी पशुओं का अन्य घटकों के साथ समेकित करके कार्य करना होगा।
समेकित कृषि प्रणाली के फायदेंः- उत्पादकता, लाभप्रदता, क्षमता या स्थिरता, संतुलित भोजन, नवोचार, ऊर्जा की बचत, सालभर चारे की आपूर्ति, संतुलित भोजन, ईंधन और लकड़ी का समाधान, पर्यावरण सुरक्षा, पुनर्चक्रण, रोजगार सृजन, कृषि उद्योग और निवेष संसाधनों की दक्षता बढ़ाना।
पशुओं और फसलों से प्राप्त अवशेष को खाद में बदलकर मिट्टी को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के साथ-साथ बहुत से सूक्ष्म पोषक तत्वो की पूर्ति की जा सकती है. जिससे मिट्टी में सुधार होने के साथ साथ मिट्टी की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। अपशिष्ट पदार्थों के फिर से इस्तेमाल करने से उर्वरकों का उपयोग कम किया जा सकता है जिससे मिट्टी की संरचना में सुधार के साथ साथ पर्यावरण में सकारात्मक असर पड़ता है। समेकित खेती अपनाने का एक बड़ा फायदा यह है कि यदि किसी वजह से (मौसम से फसल बर्बाद या पशु मृत्यु) एक काम से आय नहीं भी होती है तो दूसरे काम से गुजारा चलाया जा सकता है यानि पशुपालन, मुर्गी पालन, या अन्य पालन से भी आमदनी आ जाती है. खासतौर पर बाजार में मंदी और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न खतरों से बचाव में भी मदद मिलती है। इसके लिये उपयुक्त कृषि प्रणाली घटकों को अपनाकर स्थान और समय की आवश्यकता को सीमित किया जा सकता है जिससे ग्रामीण आबादी के लिये खाद्य और पौष्टिक आहार के विविध विकल्प सुनिश्चित करने के साथ-साथ बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव, मौसम की विषमता, बाजार से प्राप्त होने वाले घटकों में निर्भरता कम करने, समय-समय पर आमदनी जुटाने और किसानों को रोजगार उपलब्ध कराने में भी मदद मिल सकती है।
समेकित कृषि प्रणाली के विभिन्न घटकः-
 फसल उत्पादन- अनाज की फसलें- मक्का; गेहूं, चावल, बाजरा आदि।
 सब्जी उत्पादन-लोकी, तुराई, कददु, करेला, षिमला मिर्ची, टमाटर, भिड़ी और परवल आदि।
 फलों के पौधे- आम; अमरूद, केला, पपीता, नीबू, अांवला, बेर आदि।
 फलियां फसलें- मूंग, उड़द, चना, सेम, लोबिया, मूंगफली आदि।
 औषधीय फसलें- अश्वगंधा, नीम, एलोवीरा, गिलोय, तुलसी आदि। वहीं कोरोना काल में औषधीय खेती का महत्व भी बढ़ गया है।
 चारा उत्पादन-अजोला, बरसीम, हाथी घास, ज्वार, बाजरा, रिजका व मोंरिगा आदि।
 डेरी- देषी गायें जैसे मुख्य रूप से साहीवाल, गीर व भैंस में मुर्राह।
 बकरी पालन-इसमें बारबरी, सिरोही, जमनापुरी व अन्य उन्नत नस्ल पाल सकते है।
 मुर्गीपालन- कड़कनाथ, वनराजा व अन्य उन्नत नस्ल की भी रख सकते है।
 मत्स्य पालन- जिसमें हम रोहू, कतला, मृगल, कॉमन क्रॉप के साथ ओर कई प्रजातियों की मछलियों को पाला जा सकता है।
 बत्तख पालन-इसमें मुख्यतयः खाकी कम्पबेल, व्हाईट पेंकिन आदि।
 वर्मीकम्पोस्ट-इसमें 12-15 फिट लम्बाई, 3-4 फिट चौड़ाई व 1.5-2 फिट ऊँचाई की 3 से 4 इकाई बना सकते है। और इसमें आइसेनिया फेटिडा नामक प्रजाति के केचुएं मुख्यतय उपयोग में लिये जा सकते है।

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उपोत्पाद और अपशिष्ट सामग्री का पुनर्चक्रण – इस प्रणाली में एक घटक से बचे हुए उत्पादों और अवशेषों को दूसरे घटक के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। वर्षा जल को संग्रहण कर उनका उपयोग पशुओं और फसलों में किया जा सकता है। इन्हीं जल संरचना में मछली पालन किया जा सकता है। साथ में कुछ बत्तख पालन भी कर सकते है। जोकि तालाब में ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखने में मदद करती है और पानी बत्तख के प्रजनन के लिए बहुत आवष्यक है तथा इनकी बीट को मछलियों खाती हैं। अगर इसके साथ गाय-भैँस के आवासों की सफाई की नाली को सीधे मछली के तालाब से जोड़ा जा सकता है। अगर मुर्गीपालन करते हैं तो पोल्ट्री की बीट को मछलियों को खिला सकते हैं। इससे मछली का उत्पादन अधिक होगा, जिससे ज्यादा फायदा होगा और दूसरा उस तालाब का पोषक तत्वों युक्त पानी को सिंचाई के लिए प्रयोग में लिया जा सकता है।
समेकित कृषि प्रणाली के अनिवार्य घटक
मिट्टी की ऊवरकता को बनाए रखना और प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबन्धन से खेत को टिकाऊ आधार प्रदान करना। वे इस प्रकार हैं :
1. मिट्टी को उपजाऊ बनाना : रसायनों का आवश्यकतानुसार प्रयोग करना, फसली अपशिष्ट का पलवार के रूप में उपयोग करना, जैविक और जैव उर्वरकों का उपयोग करना, फसलों को अदला-बदली और उनमें विविधता करके बोना, जमीन की जरूरत से अधिक जुताई नहीं करना और मिट्टी को हरित आवरण यानी जैव पलवार से आच्छादित रखना।
2. तापमान का प्रबन्धन : पेड़-पौधे और बाग लगाना और मेंडों पर झाड़ियाँ उगाना।
3. मिट्टी और वर्षाजल का संरक्षण : जल रिसाव टैंक बनाना, खेतों में तालाबों का निर्माण, मेड़ों पर कम ऊँचाई वाले झाड़ीदार पौधे लगाना।
4. सौर ऊर्जा का उपयोग : विभिन्न प्रकार की फसल प्रणालियों और अन्य पेड़-पौधे उगाकर पूरे साल जमीन को हरा-भरा बनाए रखना।
5. कृषि आधान में आत्मनिर्भरता : अपने लिये बीजों का अधिक-से-अधिक उत्पादन करना, अपने खेतों के लिये खुद कम्पोस्ट खाद बनाना, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मीवॉश, तरल खाद और वनस्पतियों का रस बनाना।
6. मवेशियों के साथ तालमेल : मवेशी कृषि प्रबन्धन के महत्त्वपूर्ण घटक हैं और उनके न सिर्फ कई तरह के उत्पाद मिलते हैं बल्कि वे जमीन को उपजाऊ बनाने के लिये पर्याप्त मात्रा में गोबर और मूत्र भी उपलब्ध कराते हैं।
7. फिर से इस्तेमाल की जा सकने वाली ऊर्जा का उपयोग : सौर ऊर्जा, बायोगैस और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल यंत्रों और उपकरणों का उपयोग।
8. पुनर्चक्रण : खेती से प्राप्त होने वाले अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण कर अन्य कार्यों में इस्तेमाल करना।
9. परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना : परिवार की भोजन, चारे, आहार, रेशे, ईंधन और उर्वरक जैसी बुनियादी जरूरतों को खेत-खलिहानों से ही टिकाऊ आधार पर अधिकतम सीमा तक पूरा करने के लिये विभिन्न घटकों में समन्वय और सृजन।
10. सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पूरे साल आमदनी : बिक्री को ध्यान में रखकर पर्याप्त उत्पादन करना और कृषि से सम्बन्धित मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती, खेत-खलिहान में ही प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन, दर्जीगिरी, कालीन बनाना आदि गतिविधियाँ संचालित करके परिवार के लिये पूरे साल आमदनी का इन्तजाम करना ताकि परिवार की सामाजिक जरूरतें जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य और विभिन्न सामाजिक गतिविधियाँ सम्पन्न हो सकें।
वर्तमान कृषि प्रणालियों में विविधता से इसके फायदों का स्पष्ट पता चलता है। ऐसा देखा गया है कि प्रणालीगत सुधारों से उत्पादकता और लाभप्रदता में दो गुना वृद्धि हो सकती है। इतना ही नहीं, इससे संसाधनों की 40 से 50 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है और किसानों के लिये साल भर आमदनी सुनिश्चित की जा सकती है। विज्ञान पर आधारित समेकित कृषि प्रणाली अपनाने के लिये निम्नलिखित प्रयास आवश्यक हैं :
1. बाजारोन्मुख विविधीकरण, आय बढ़ाने और इसके लिये वैकल्पिक फसल उगाने, अच्छी नस्लों के मवेशी पालने और चारा फसलों के उत्पादन पर विशेष रूप से जोर दिया जाना चाहिए।
2. फसल, पशुधन, मत्स्य पालन और बागवानी कार्यक्रमों के समन्वय पर आधारित राष्ट्रीय समेकित कृषि प्रणाली शुरू की जानी चाहिए ताकि समेकित कृषि प्रणाली को बढ़ावा मिले।
3. समेकित कृषि प्रणाली की अवधारणा का खेती की प्रणालियों के परिप्रेक्ष्य में अग्रिम-स्तर पर प्रदर्शन करने से किसान परिवारों की स्थिति में समग्र रूप से सुधार होगा।
4. मृदा स्वास्थ्य कार्ड से समेकित कृषि प्रणाली स्वास्थ्य कार्ड की ओर जाने की आवश्यकता है ताकि मिट्टी, पौधे, पशुधन और पारिवारिक-स्तर पर मनुष्यों पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके।
5. सम्बद्ध पक्षों (किसानों और विस्तार कार्यकर्ताओं) की क्षमता, खासतौर पर उनके कौशल के विकास की आवश्यकता है जिसमें भौतिक और टेक्नोलॉजी का भी योगदान रहना चाहिए।
6. फसल और चारे वाली फसलों की अदला-बदली करके बुआई : इसके अन्तर्गत फसलों, चारे और उच्च मूल्य वाली फसलें, जैसे सब्जियाँ, फलदार वृक्ष, औषधीय व सुगन्धित पौधों वाली फसलें और फलों के बाग शामिल हैं।
7. किसानों की पसन्द के अनुसार स्थान विशेष के लिये खास मवेशी पालना, खासतौर पर बकरी, भेड़, सुअर जैसे छोटे पशु पाले जाने चाहिए और इसमें टेक्नोलॉजी की मदद भी ली जानी चाहिए।
8. उत्पादों में विविधता लाकर (प्रक्रिया और उत्पादों में भौतिक परिवर्तन की दृष्टि से) किसानों की आमदनी, मासिक आय में सुधार किया जाना चाहिए।
9. मौजूदा प्रणाली के तहत ऐसी गतिविधियों को भी अपनाया जाना चाहिए जिसमें कम जमीन की आवश्यकता हो, जैसे मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन आदि।
10. गतिविधियों का स्थान-विषिष्ट समेकन करना भी आवष्यक है। माननीय प्रधानमंत्री जी का संकल्प ’’वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने’’ को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक आधार पर तैयार की गई तथा उपयुक्त समेकित कृषि प्रणालियों को प्रोत्साहन दिया जाना अत्यावष्यक है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है। इस लक्ष्य को हासिल करने में कृषि क्षेत्र भी बड़ा योगदान दे सकता है बशर्ते किसान को समेकित कृषि प्रणाली अपनाए। एक ही किसान अपने खेत पर कई तरह के कार्य कर ना केवल अपनी आय में इजाफा कर सकता है बल्कि देश की प्रगति में भी सहायक बन सकता है। सभी किसान परिवार को छह बातों में आत्मनिर्भर होना चाहिए जिनमें प्रमुख हैं- खाद्यान्न, चारा, आहार, ईंधन, रेशा और उर्वरक। विविधतापूर्ण कृषि प्रणाली में फसल, मवेशी, मछली पालन, बागवानी, मेड़ पर वृक्षारोपण इत्यादि शामिल रहते हैं। इनमें भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद के मानदण्डों के अनुसार पौष्टिक आहार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये खेतों से ही पर्याप्त मात्रा में अनाज, दलहनों, तिलहनों, सब्जियों, फलों, दूध और मछली का उत्पादन होता है। इसके अलावा, इस तरह के मॉडल मवेशियों के लिये पूरे साल पर्याप्त मात्रा में हरे चारे की उपलब्धता भी सुनिश्चित करते हैं ताकि उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहे। विभिन्न वस्तुओं के खेतों में ही उत्पादन से बाजार पर निर्भरता तो कम होती ही है, पौष्टिक आहार की जरूरत पूरा करने में भी मदद मिलती है जिससे परिवार को अतिरिक्त बचत होती है।

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https://hi.vikaspedia.in/agriculture/crop-production/91d93e930916902921-915947-93293f90f-90592894193690293893f924-91594393793f-9249159289

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