ऊंटनी के दूध के बारे में रोचक जानकारी

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ऊंटनी के दूध के बारे में रोचक जानकारी

 

ऊंट को रेगिस्तान का एक जहाज कहा जाता है इसे रेगिस्तान मे रहने वाले लोग पशु के रूप मे पालते है तथा इसे अपनी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए पालते है इसे फौज मे सेना के जवान भी इस्तेमाल मे लाते है।

ऊट के शरीर मे बहुत सारी ऐसी खूबिया होती है जिस वजह से वह रेगिस्तान जैसी जमीन पर जी पाता है वो भी कई डीनो तक बिना कुझ खाए पिये। ऊट एक बार मे 45 से 46 लीटर पानी पीने की क्षमता रखता है, इसके इलवा इसले पीठ पर एक कूबड़ होता है

जिसमे यह भोजन को वसा के रूम मे स्टोर करके रखता है इसलिए कई दिनो तक बिना खाए रह सकता है। इसके पंजे गद्देदार हार्ड मास के होते है जिस वजह से यह रेगिस्तान मे गरम रेत पर बड़ी आसानी से चल और भाग पता है।

रेगिस्तान मे गर्म हवाए चलती है जिनसे बचाव के लिए ऊट की आख और कान पर लंबे बाल होते है। कानो और पल्कों पर लंबे बाल होने की वजह से गर्म हवाए और रेत उनके कानो मे नही घुसती।

ऊंट प्रजाति मरुस्थलीय व शुष्क क्षेत्रों में पाया जाने वाला बहुपयोगी पशुधन है। ऊंटनी का दूध केवल पोषण की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, भारत व अन्य देशों में इसका उपयोग कई बीमारियों में बहुत लाभप्रद पाया गया है।

पिछले दो दशकों में ऊंटनी के दूध के औषधीय मूल्यों के कारण दूध उपयोग में वृद्धि और दिलचस्पी बढ़ती देखी गई है। इसलिए ऊंटनी दूध के जैव-सक्रिय घटकों से संभावित स्वास्थ्य लाभों का अध्ययन करने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित हुआ है। ऊंटनी का दूध पीलिया, यकृत, पेट अलसर और बवासीर इत्यादि बीमारियों में उपयोगी बताया जाता है। दूध में इन्सुलिन/इन्सुलिन की भांति प्रोटीन पाई जाती है जो  मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक है। ऊंटनी दूध को विभिन्न प्रकार के क्षय रोगियों में भी उपयोगी पाया गया है।

ऊंटनी दूध की वैश्विक मांग में वृद्धि के कारण, दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका में उष्ट्र पालन के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने ऊंटनी के दूध से कई प्रकार के उत्पाद तैयार किए हैं, जिनमें विभिन्न स्वादयुक्त कुल्फी, सुगन्धित दूध, किण्वित दूध, पनीर, बर्फी, गुलाब जामुन, चॉकलेट, चाय एवं कॉफी शामिल है। ऊंटनी दूध से निर्मित अमूल चॉकलेट भी स्थानीय बाजारों में उपलब्ध हैं। 

वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित कर दिया गया है कि ऊंटनी दूध के घटक पौष्टिक दृष्टिकोण से उत्कृष्ट हैं, क्योंकि इसमें एंटी-बैक्टीरिया और एंटी-वायरल पदार्थों का उच्च अनुपात उपस्थित होता है। मधुमेह से लेकर कैंसर तक के विभिन्न विकारों वाले मरीजों में ऊंटनी दूध से प्राप्त लैक्टोफेरिन, इम्यूनोग्लोबुलिन, लाइसोजाईम, विटामिन बी, विटामिन सी जैसे तत्वों का अध्ययन उनके औषधीय गुणों के लिए किया गया है। ऊंटनी के दूध में विटामिन ’, ‘बीएवं विटामिन की मात्रा क्रमशः 10.1-30. 0 माइक्रोग्राम प्रतिशत, 13.2-26.0 माइक्रोग्राम प्रतिशत व 19.9-45.5 माइक्रोग्राम प्रतिशत तक पाई जाती है। विटामिन सीकी मात्रा 4.84-5.26 मिलीग्राम प्रतिशत तक होती है। ऊंटनी के दूध में नियासिन एवं विटामिन-ई की मात्रा गाय के दूध से काफी अधिक पाई जाती है। विटामिन-ई एक एंटी-ऑक्सीडेंट है, जो हमारे शरीर की मूलभूत जरूरतों को पूरा करता है। त्वचा से जुड़ी अनेक बीमारियों के इलाज में भी विटामिन-ई काफी मददगार होता है। विटामिन-ई की मदद से त्वचा पर पड़ने वाली झुरियों से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है और इससे त्वचा की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत होती है। त्वचा कैंसर में भी विटामिन-ई फायदेमंद बताया गया है। ऊंटनी दूध अल्फा-हाइड्रोक्सी अम्ल का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है, जिसे त्वचा विकारों एवं त्वचा गुणवता के समग्र सुधार के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र ने ऊेटनी दूध से चेहरे पर लगाने के लिए क्रीम भी बनाई है।

ऊंटनी दूध में लोहा, जस्ता एवं तांबा की मात्रा 0.88-1. 12 मिलीग्राम प्रतिशत, 1.19-2.02 मिलीग्राम प्रतिशत व 0.40-0.48 मिलीग्राम प्रतिशत के लगभग पाई जाती है, जो गाय के दूध की तुलना में काफी अधिक है।

ऊंटनी का दूध गाय, भैंस, भेड़, आदि के दूध की तुलना में अधिक पौष्टिक है, क्योंकि इसमें वसा या लैक्टोज की मात्रा कम  होती है। वसा की मात्रा 1.95-2.99 प्रतिशत होती है एवं ऊंटनी के दूध में लघु श्रृंखला वसीय अम्ल (सी 4-सी 12) तुलनात्मक रूप से कम एवं असंतृप्त अम्ल (सी 14-सी 18) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। ऊंटनी दूध नियमित पीने से प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है, क्योंकि इसमें कई प्रकार के रक्षात्मक प्रोटीन लाइसोजाईम, लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरऑक्सीडेज, इम्यूनोग्लोबुलिन जी, इम्यूनोग्लोबुलिनए एवं पैप्टीडोग्लाइकान पहचान प्रोटीन पाए जाते हैं। लाइसोजाईम, लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरऑक्सीडेज एवं पैप्टीडोग्लाइकान पहचान प्रोटीन की मात्रा क्रमशः 0.65 मिलीग्राम प्रतिशत, 2.5 मिलीग्राम प्रति मिलीलीटर, 2.23 यूनिट प्रति मिलिलीटर एवं 10.7 मिलीग्राम प्रतिशत पाई गई है।

यह देखा गया है कि जिन लोगों को गाय दूध पीने से एलर्जी होती है, उनको ऊंटनी दूध से एलर्जी नहीं होती है क्योंकि ऊंटनी दूध में एलर्जी कारक प्रोटीन की मात्रा नगण्य होती है। अनुसन्धान से पता चला है कि ऊंटनी दूध में मस्तु प्रोटीन्स की मात्रा गाय दूध की तुलना में काफी अधिक होती है। दूध में मस्तु प्रोटीन्स की प्रचुरता कैंसर, मधुमेह एवं हृदय रोग अवरोधी मानी जाती है।

ऊंटनी दूध में मुख्य रूप से दो सक्रिय तत्व लैक्टोफेरिन और इम्यूनोग्लोबुलिन होते हैं। ऊंटनी दूध से प्राप्त लैक्टोफेरिन पर हुए अध्ययनों से पता चलता है कि इसमें एंटी-बैक्टीरिया, एंटी-फंगल, एंटी-वायरल,एंटी-इंफ्लैमेटरी, एंटी-ऑक्सीडेंट एवं एंटी-ट्यूमर इत्यादि गुण हैं। ऊंटनी दूध में इंसुलिन जैसी खास प्रकार की प्रोटीन पाई गयी है, जिस पर पेट में पाचन एंजाइमोंका असर कम होता है एवं मधुमेह रोगियों में उपयोगी पाई गई है।

ऊंटनी दूध में इम्यूनोग्लोबुलिन भी चिकित्सीय रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इम्यूनोग्लोबुलिन में केवल दो भारी श्रृंखलाएं उपस्थित होती हैं, एवं हल्की श्रृंखलाएं अनुपस्थित होती हैं, जिनका विभिन्न प्रकार के मरीजों के लिए प्रतिरक्षा चिकित्सा में उपयोग किया जा सकता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि ऊंटनी दूध में अति महत्वपूर्ण जैव-सक्रिय घटकों की उपस्थिति होने के कारण इसका उपयोग करके स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तथापि इन तथ्यों की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए और अनुसन्धान अध्ययनों की अत्यन्त आवश्यकता है।  द कैमल पार्टनरशिप परियोजना के माध्यम से  उरमूल ट्रस्ट और सेंटर फॉर पास्त्रुलिजम कच्छ गुजरात ने ऊंटनी दूध को एक आय-स्रोत के रूप में लाने के लिए कदम उठाया है।

अपने देश में कई इलाकों में तो दूध 52-55 रुपये प्रति लीटर उपलब्ध है, पर राजस्थान के लोगों को 1 लीटर दूध के बदले में 3000 रुपये तक की आमदनी हो रही है।

चौंकिए मत! यह कैमल मिल्क (ऊंटनी का दूध) है जिसकी अमेरिका में काफी मांग है। कैमल मिल्क और इससे बने मिल्क पाउडर की डिमांड अमेरिका से लगातार बढ़ रही है और यही वजह है कि एक लीटर दूध की कीमत 50 डॉलर तक पहुंच गई है। आइए समझते हैं कि कैमल मिल्क से कैसे  ज्यादातर ग्राहक अमेरिका के हैं और वे एक लीटर कैमल मिल्क के लिए 3000 रुपये तक दे रहे हैं।

– राजस्थान में ऊंट मालिकों के लिए यह किसी अप्रत्याशित उपहार से कम नहीं है, जो बीकानेर, कच्छ और सूरत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिटों को मिल्क बेचते हैं। मिल्क को 200ml के टेट्रा-पैक में बेचा जाता है जबकि प्रोसेस्ड पाउडर को 200 और 500 ग्राम के पैकेटों में भरकर बेचा जाता है।

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– आगे की राह को ई-कॉमर्स ने आसान बना दिया है, जहां बायर्स और सेलर्स जुड़े होते हैं। एक कंपनी 6000 लीटर कैमल मिल्क हर महीने ऐमजॉन डॉट कॉम पर बेचती है।

– आज के समय में कैमल मिल्क काफी स्पेशल है। ईरान की मसाद यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं का कहना है कि कैमल मिल्क में गाय के दूध की तुलना में कम लैक्टोज होता है और इस तरह यह उन लोगों के अच्छा विकल्प है जो ज्यादा लैक्टोज नहीं ले सकते।

– यह डायरिया का कारण बननेवाले वाइरस का एक अच्छा उपचार है।

– एक अध्ययन के मुताबिक कैमल मिल्क में इंसुलिन की तरह का तत्व होता है और इससे जानवरों में इंसुलिन की जरूरत कम हो जाती है। हालांकि इंसानों पर असर को लेकर स्टडी नहीं हुई है।

– कैमल मिल्क कई तरह के संक्रमण से भी बचा सकता है। इसमें कई पोषक तत्व होते हैं। यह आसानी से पच भी जाता है।

कितना लाभदायक ऊंटनी का दूध

यदि आप नमकीन होने की वजह से ऊंटनी के दूध से परहेज करते हैं तो सबसे पहले इसके फायदे जान लीजिए। इन फायदों को जानकर आप ऊंटनी का दूध पीने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।

कई बिमरियों मे रामबाण और शोध रिपोर्ट

हॉलैंड में विशेषज्ञ यह शोध कर रहे हैं कि ऐतिहासिक तौर पर लाभदायक समझे जाने वाले ऊँटनी के दूध में क्या रोग से लड़ने की क्षमता है?

मिस्र के सेनाई प्रायद्वीप के बद्दू प्राचीन ज़माने से यह विश्वास करते हैं कि ऊँटनी का दूध शरीर के अंदर की लगभग हर बीमारी का इलाज है.

उनका विश्वास है कि इस दूध में शरीर में मौजूद बैकटीरिया को ख़त्म करने की क्षमता है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस और क़ज़ाकिस्तान में आम तौर पर डॉकटर कई प्रकार के रोगियों के लिए ऊँटनी के दूध की सलाह देते हैं.

भारत में ऊँटनी का दूध पीलिया, टीबी, दमा, ख़ून की कमी और बवासीर जैसी ख़तरनाक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयुक्त रहा है. और उन क्षेत्रों में जहां ऊँटनी का दूध रोज़ाना के खान-पान में शामिल है वहां लोगों में मधुमेह की औसत बहुत कम पाई गई है.

ऊंटनी का दूध कई सारे रोगों में फायदेमंद होता है। ऊंटनी का दूध शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है जिससे मौसमी बीमारियां शरीर में नहीं होती। मानसिक बीमारियां ठीक होती हैं।

मधुमेह मे लाभदायक

ऊंटनी का दूध मधुमेह जैसी जटिल बीमारी ठीक करने के अलावा अन्य कई सारी बीमारियां भी ठीक कर देता है। इसका दूध लगातार एक से दो महीने तक पीने से शरीर की कई सारी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। आइए इस लेख में जानें ऊंटनी के दूध के फायदे और उनसे दूर होने वाली बीमारी।

कुपोषण से बचाए

रोजाना ऊंटनी का दूध पीने से बच्चों की मानसिक बीमारियां ठीक होती हैं। इसके अलावा सामान्य शख्स द्वारा रोजाना ऊंटनी का दूध पीने से उसमें सोचने-समझने की क्षमता सामान्य लोगों की

तुलना में ज्यादा विकसित होती है। साथ ही यह बच्चों को कुपोषण से भी बचाता है और उनमें बौद्धिक क्षमता का विकास करता है।

भीटामिन से भरपूर :-

जल्दी पचता है- ऊंटनी का दूध गाय की दूध की तुलना में तुरंत पच जाता है। इसमें दुग्ध शर्करा, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट,सुगर, फाइबर ,लैक्टिक अम्ल, आयरन, मैग्निशियम, विटामिन ए , विटामिन  ई , विटामिन बी 2, विटामिन सी , सोडियम, फास्फोरस ,पोटैशियम, जिंक, कॉपर, मैग्नीज जैसे बहुत सारे तत्व पाए जाते हैं जो कि हमारे शरीर को सुंदर और निरोगी बनाते हैं।

हड्डियां बनाए मजबूत :-

ऊंटनी के दूध में कैल्शियम काफी मात्रा में होता है हड्डियां मजबूत बनाने में सहायक है।

कैंसर से रक्षा करे :-

इसके अलावा इस दूध में लेक्टोफेरिन नामक तत्व पाया जाता है जो कैंसर जैसी घातक बीमारी से लड़ने के लिए शरीर को तैयार करता है।

खून साफ करे और मधुमेह ठीक करे :-

यह खून से सारे टॉक्सिन्स दूर कर लिवर को साफ करता है। ऊंटनी का दूध मधुमेह के लिए सबसे रामबाण इलाज माना जाता है। इससे सालों का मधुमेह महीनों में ठीक हो जाता है। ऊंटनी के एक लीटर दूध में लगभग 52 यूनिट इंसुलिन की मात्रा होती है।

जो कि अन्य पशुओं के दूध में पाई जाने वाली इंसुलिन की मात्रा से काफी अधिक है। इंसुलिन शरीर में प्रतिरोधक क्षमता तैयार करता है और मधुमेह जैसी बीमारियां ठीक करता है।

अन्य बीमारियां भी करे ठीक :-

ऊंटनी का दूध विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर होता है। इसमें एंटीबॉडी भी काफी मात्रा में मौजूद होते हैं। इसके नियमित सेवन से ब्लड सुगर, इंफेक्शन, तपेदिक, आंत में जलन, गैस्ट्रिक कैंसर, हैपेटाइटिस सी, एड्स, अल्सर, हृदय रोग, गैंगरीन ,किडनी संबंधी बीमारियों से शरीर का बचाव करता है।

त्वचा निखारे :-

बीमारियों के अलवा ऊंटनी का दूध त्वचा निखारने का भी काम करता है। इस दूध में अल्फा हाइड्रोक्सिल अम्ल पाया जाता है।

जो कि त्वचा को निखारने का काम करता है। इसीलिए इसका इस्तेमाल सौंदर्य संबंधी पोडक्ट बनाने में भी किया जाता है।

ऊंट के बारे में रोचक जानकारी

  1. ऊंट के बच्चों का कूबड़ जन्म से ही नहीं होता हैं।
  2. ऊंट की सुनने और देखने की शक्ति बहुत तेज़ होती है।
  3. ऊंट की तीन पलकें होती हैं। यह रेगिस्तान में चलने वाली तेज हवाओं और धुल मिटटी से उसकी रक्षा करती हैं।
  4. ऊँट की कूबड़ में पूरे शरीर की चर्वी जमा होती है यह चर्वी उसे गर्मी से बचाने में मदद करती है।
  5. ऊंट (Camel) के लगभग34 दांत होते हैं।
  6. ऊँट को रेगिस्तान का जहाज़ भी कहा जाता है क्योंकि वह रेगिस्तान में आसानी से चल और दौड़ सकता है।
  7. ऊंट अरबियन कल्चर में एक एहम भूमिका निभाते हैं अरबियन भाषा में ऊँट के लिए160 से अधिक शब्द हैं।
  8. ऊंट को कभी भी पसीना नहीं आता क्योंकि इसकी मोटी चमड़ी सूर्य की किरणों को रिफ्लेक्ट करती है।
  9. ऊँट एक बार में100 से 150 लीटर तक पानी पी सकता है। ऊँट रोजाना पानी नहीं पीता।
  10. ऊंट सर्दियों में2 महीनो तक बिना पानी के रह सकते हैं।
  11. ऊँट का मुख्य आहार पेड़ों की हरी पत्तियां हैं।
  12. रेगिस्तान में एक ऊँट65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौर सकता है।
  13. एक ऊंट के कूबड़ तक की उंचाई7 फीट के लगभग होती है।
  14. ऊँट की औसतन आयु40 से 50 वर्ष तक की होती है।
  15. ऊंट को रेगिस्तानी इलाकों में सामान ढोने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।
  16. ऊँट की दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं पहली प्रजाति एक कूबड़ बाला ऊँट जो अरब में पाए जाते हैं .

और दूसरी प्रजाति जिसके दो कूबड़ होते हैं ये पूर्वी एशिया में पाए जाते हैं।

17.ऊँट रगिस्तान के इलाकों में कई– कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है।

18.ऊँट एक ऐसा जानवर है यो अपनी कूबड़ की वजह से पहचाना जाता है।

       

क्यों ऊंटनी के दूध से दही नहीं जमता?

हाल ही में एक स्कूली बच्ची ने सवाल पूछा था कि क्या यह सही है कि ऊंटनी के दूध से दही नहीं बनता? बातचीत के दौरान यह बात भी उठी कि ऊंटनी का दूध काफी मीठा होता है इसलिए उसमें कीड़े पड़ जाते हैं। सवाल पश्चिम निमाड़ के एक स्कूल की बच्ची ने पूछा था जहां राजस्थान से लाए गए ऊंट सिर्फ ठंड की शुरुआत में दिखाई देते हैं।

ऊंट शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पाया जाने वाला स्तनधारी पालतू पशु है। इसका इस्तेमाल प्राचीन काल से खेती और बोझा ढोने में किया जाता रहा है। वैसे इन इलाकों में ऊंट के मांस, बाल और खाल के अलावा ऊंटनी के दूध का इस्तेमाल भी आम है जहां ये बहुतायत से मिलते हैं। कई देशों, खासकर अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्रों के समुदायों के जीवन में ऊंट अहम भूमिका अदा करते हैं। शुष्क क्षेत्र की प्रतिकूल जलवायु के प्रति अनुकूलन के चलते ऊंटों का इस्तेमाल परिवहन में तो किया ही जाता है साथ ही जब ऊंटनी बच्चे जनती है उस दौरान इनका दूध भी मिल जाता है। ऊंटों का मांस बड़ी मात्रा में खाया जाता है। बहरहाल ऊंटनी के दूध की बात करते हैं।
यह तो हम जानते हैं कि दूध एक कोलायडल विलयन है जिसमें वसा, लेक्टोस शर्करा, कैसीन (एक प्रकार का प्रोटीन), पानी, खनिज तत्व (कैल्शियम, फास्फोरस) प्रमुख हैं।

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विभिन्न स्तनधारियों में दूध का संघटन (प्रति 100 ग्राम)
पदार्थ  गाय बकरी भेड़ उंटनी भैंस मनुष्य
पानी(ग्राम) 87.8  88.9  83.0  88.8  83.3 88.2
ऊर्जा (किलोजूल)   76 253 396 264 385 289
प्रोटीन (ग्राम) 3.2 3.1 5.4 2.0 4.1 1.3
वसा (ग्राम) 3.9 3.5 6.4 4.1 5.9 4.1
लैक्टोस (ग्राम) 4.6 4.4 5.1 4.7 5.9 7.2
कैल्सियम (मि. ग्रा.) 115 100 170 94 175 34

ऊंटनी का दूध

ऊंटनी का दूध सफेद, अल्पपारदर्शक, सामान्य गंध लिए स्वाद में थोड़ा नमकीन और हल्का-सा तीखापन लिए होता है। बताया जाता है कि रेगिस्तानी इलाकों में इसके दूध का इस्तेमाल ऊंट-पालक चाय, खीर, घेवर बनाने में करते हैं। गड़रियों से यह पूछने पर कि क्या ऊंटनी का दूध जल्दी खराब हो जाता है और इसमें कीड़े पड़ जाते हैं, उन्होंने बताया कि यह सही नहीं है। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र बीकानेर ने भी इस बात का उल्लेख किया है कि ऊंटनी का दूध 9 से 10 घंटे तक बिना उबाले रखने पर खराब नहीं होता। अगर बराबर मात्रा में पानी मिला दिया जाए तो यह 12-13 घंटे तक खराब नहीं होता।

दुनिया भर में सालाना 53 लाख टन और भारत में लगभग 21 हज़ार टन ऊंट के दूध का उत्पादन होता है। एक ऊंटनी प्रतिदिन लगभग ढाई से दस लीटर तक दूध देती है। बेहतर पोषण और प्रबंधन के चलते इसे 20 लीटर तब बढ़ाया जा सकता है।

यह सही है कि ऊंटनी के दूध का दही आम तौर पर उन इलाकों में भी नहीं बनाया जाता जहां ऊंट का दूध आसानी से उपलब्ध होता है। बाड़मेर में स्कूली शिक्षा में कार्यरत शोभन सिंह नेगी के अनुसार ऊंटनी के दूध का इस्तेमाल दही बनाने में नहीं होता। उन्होंने बताया कि रेगिस्तानी इलाके में गाय-भैंस के दूध, दही, छांछ और घी का इस्तेमाल आम बात है। मगर ऊंटनी के दूध से दही बनाने का रिवाज़ नहीं है। कारण कि गाय-भैंस के दूध के माफिक ऊंटनी के दूध का दही नहीं जमता।

वैसे, राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र में ऊंटनी के दूध से दही तो 2002 में ही बना लिया गया था लेकिन ऊंटनी के दूध से दही पतला बनता है। इसीलिए इसे ड्रिंकिंग कर्ड कहा गया है। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. राघवेंद्र सिंह के अनुसार दही बनाने में दूध में मौजूद कुल ठोस पदार्थ, खनिज एवं कैसीन की माइसेलर संरचना की अहम भूमिका होती है जिसके कारण दही ठोस रूप धारण करता है।

तो पहले माइसेलर सरंचना को समझा जाए। दूध में एक प्रमुख प्रोटीन कैसीन होता है। कैसीन एक बड़ा अणु होता है और इसकी एक विशेषता होती है। इसके कुछ हिस्से पानी के संपर्क में रहने को तत्पर रहते हैं जबकि अन्य हिस्से पानी से दूर भागने की कोशिश करते हैं। इन्हें क्रमश: जलस्नेही और जलद्वैषी हिस्से कहते हैं। तो पानी में डालने पर कैसीन के अणु गेंद की तरह व्यवस्थित हो जाते हैं। इन गेंदों में जलस्नेही हिस्से बाहर की ओर (गेंद की सतह पर) और जलद्वैषी हिस्से गेंद के अंदर की ओर जमे होते हैं। दूध में कैसीन इसी रूप में पाया जाता है। इस तरह बनी सूक्ष्म गेंदों को माइसेल कहते हैं। दूध में कैसीन के ये माइसेल पानी में तैरते रहते हैं। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो निलंबित रहते हैं। इसी के चलते अन्यथा अघुलनशील कैसीन पानी में घुला रहता है।

कैसीन माइसेल की एक और विशेषता है। इनकी सतह पर थोड़ा ऋणावेश होता है। समान आवेश एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं। इसलिए ये माइसेल एक-दूसरे से दूर-दूर रहते हैं, आपस में चिपकते नहीं।
दही बनने की प्रक्रिया में इन केसीन माइसेल की अहम भूमिका है। केसीन के ये गेंदाकार माइसेल तापमान, अम्लीयता और दबाव के प्रति संवेदनशील होते हैं। आम तौर पर दूध से दही जमाने के लिए हम जामन का इस्तेमाल करते हैं। जामन में मौजूद बैक्टीरिया, लैक्टोस शर्करा को लैक्टिक अम्ल में बदलते हैं। जामन मिले दूध में ये बैक्टीरिया बढ़ते जाते हैं और दूध की अम्लीयता बढ़ने लगती है। अम्लीयता बढ़ने के कारण दूध खट्टा होने लगता है। इसके अलावा, अम्लीयता में यह परिवर्तन कैसीन माइसेल को प्रभावित करता है। अम्लीयता बढ़ने पर कैसीन माइसेल की बाहरी सतह का ऋणावेश कम होने लगता है। अम्लीयता का एक ऐसा स्तर आता है जब माइसेल की बाहरी सतह पर मौजूद ऋणावेश पूरी तरह समाप्त हो जाता है और माइसेल्स को एक-दूसरे से दूर रखने वाला बल समाप्त हो जाता है और ये आपस में चिपकने लगते हैं। कैसीन माइसेल्स का आपस में चिपककर ठोस रूप धारण करने को ही दही जमना कहते हैं। वैसे दूध में केसीन के माइसेल्स को इस तरह परस्पर चिपकाने के लिए पशुओं, वनस्पतियों व सूक्ष्मजीवी स्रोतों से प्राप्त विभिन्न एंज़ाइम भी कारगर होते हैं।

अब देखते हैं कि क्या कारण है कि ऊंटनी के दूध से दही नहीं बन सकता? ऊंटनी के दूध के एंज़ाइम संघटन को लेकर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऊंटनी के दूध से दही तब तक नहीं बनाया जा सकता जब तक कि इसमें बकरी, भेड़ या भैंस का दूध नहीं मिलाया जाता। ज़ाहिर है कि गाय, भैंस या बकरी के दूध में ऐसा कुछ है जो दही जमने के लिए ज़िम्मेदार है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि  दि इसमें बछड़े से प्राप्त रेनेट अधिक मात्रा में मिलाया जाए तो ऊंटनी के दूध से भी दही जमाया जा सकता है। (रेनेट बछड़े के पेट में मौजूद थक्केदार दूध को कहते हैं। इसका उपयोग चीज़ बनाने में किया जाता है। इसमें रेनिन नामक एंज़ाइम काफी मात्रा में पाया जाता है।) ऊंटनी के दूध से दही जमाने के सारे अध्ययन ऐसे ही एंज़ाइमों की मदद से किए गए हैं।

एक प्रयोग में उत्तरी केन्या से ऊंटनी के दूध के 10 नमूने लेकर उनमें बाज़ार में मिलने वाले बछड़े का रेनेट पावडर मिलाया गया। देखा गया कि गाय के दूध की बनिस्बत ऊंटनी के दूध का दही जमने में दो से तीन गुना अधिक समय लगता है। ऊंटनी और गाय के दूध से दही बनने की प्रक्रिया का अध्ययन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप द्वारा भी किया गया। पता चला कि गाय और ऊंटनी दोनों के कैसीन माइसेल गोलाकार ही होते हैं। किंतु गाय के कैसीन माइसेल पूरे क्षेत्र में फैले हुए थे जबकि ऊंटनी के दूध के माइसेल अपेक्षाकृत एक ही जगह पर समूहित रूप में दिखाई देते हैं। ऊंटनी के कैसीन कण तुलनात्मक रूप से साइज़ में बड़े भी थे। दही जमते दूध के इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में अवलोकन से पता चला कि गाय के दूध में कैसीन माइसेल्स का एकत्रीकरण लगभग 60 से 80 फीसदी तक हुआ।ऊंटनी के दूध में उतने ही समय में बहुत कम माइसेल का एकत्रीकरण दिखाई दिया। एक मत है कि माइसेल के शीघ्र एकत्रीकरण की वजह से ही गाय/भैंस के दूध से दही जम पाता है।

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कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने दूध की अम्लीयता के स्तर और कैल्शियम आयनों के प्रभाव का अध्ययन भी किया। देखा गया कि ऊंटनी के दूध के अम्लीयता-स्तर और तापमान बढ़ाकर उसमें कैल्शियम आयन मिलाने पर जमने के समय में कमी तो आती है मगर अंतर फिर भी बना रहता है। कैल्शियम आयन के असर को देखते हुए यह सिफारिश की गई है कि दही जमाने के लिए ऊंटनी के दूध में कैल्शियम की अतिरिक्त मात्रा मिलाई जा सकती है। लेकिन यहां यह जोड़ना आवश्यक है कि कैल्शियम लवण मिलाने के साथ-साथ रेनेट का उपयोग तो करना ही होगा और कैल्शियम लवण भी काफी अधिक मात्रा में मिलाने पर ही वांछित परिणाम मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

वैसे एक मत यह भी बना है कि गाय-भैंस के दूध और ऊंटनी के दूध में उपस्थित कैसीन की माइसेलर संरचना में कुछ अंतर हैं जिनकी वजह से अम्लीयता बढ़ने पर भी ऊंटनी का दूध ठोस रूप में जम नहीं पाता।
संक्षेप में, दुनिया भर की कई प्रयोगशालाओं में किए गए कई प्रयोगों के परिणामों से स्पष्ट है कि ऊंटनी के दूध से दही जमाना असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर है। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करते रहे हैं कि क्यों ऊंटनी के दूध से दही नहीं जमता। कोई एक स्पष्ट जवाब तो नहीं मिला है किंतु प्रयोगों के आधार पर कुछ परिकल्पनाएं ज़रूर प्रस्तुत की गई हैं।

जैसे एक परिकल्पना ऊंटनी के दूध में कैसीन के माइसेल्स की संरचना पर आधारित है। जैसा कि ऊपर बताया गया था, गाय/भैंस के दूध की तुलना में ऊंटनी के दूध में कैसीन के माइसेल्स बड़े होते हैं। एक मत यह है कि जब बड़े मायसेल्स के समूहीकरण की बारी आती है तो वे आपस में उतनी निकटता से नहीं जुड़ पाते और इसलिए दही ठोस नहीं बन पाता। कुछ प्रयोगों से माइसेल की साइज़ और जमने के समय में सम्बंध देखा गया है।
एक अवलोकन यह है कि दूध में कैसीन की मात्रा का भी दही जमने की क्रिया पर असर होता है। ऊंटनी के दूध में कैसीन की मात्रा 1.9-2.3 प्रतिशत के बीच होती है जबकि गाय के दूध में 2.4-2.8 प्रतिशत। एक संभावना यह है कि कैसीन की कम मात्रा के कारण ऊंटनी के दूध से दही नहीं जम पाता।

कुछ रोचक प्रयोग इस बात को लेकर भी किए गए हैं कि दही जमने की प्रक्रिया पर इस बात का भी असर पड़ता है कि दही जमाने के लिए एंज़ाइम किस प्रजाति के प्राणि से लिए गए हैं। जैसे भेड़ से प्राप्त एंज़ाइम ऊंटनी के दूध को जमाने में ज़्यादा कारगर पाया गया, बनिस्बत गाय से प्राप्त एंज़ाइम के। इन प्रयोगों से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला तो यह है कि अलग-अलग प्रजातियों में इन एंज़ाइम की संरचना व क्रिया में अंतर होता है। लेकिन यह भी हो सकता है कि ऊंटनी के दूध में कैसीन ही अलग प्रकार का होता हो या उसकी माइसेलर संरचना भिन्न होती हो।

दही जमने की क्रिया के पहले चरण में कैसीन माइसेल की सतह पर उपस्थित कैसीन के अणुओं का जल-अपघटन होता है। यह देखा गया है कि 80 प्रतिशत अणुओं का जल-अपघटन होने के बाद ही माइसेल्स के एकत्रीकरण और दही जमने की क्रिया शुरू होती है। ऊंटनी के दूध में यह स्थिति आ ही नहीं पाती। इसका कारण यह हो सकता है कि ऊंटनी के दूध में कैसीन की संरचना कुछ ऐसी है कि उनका जल-अपघटन मुश्किल से होता है।

ऊंटनी के दूध से दही जमने में समस्याएं हैं, मगर हम अभी यह नहीं जानते कि इसका ठीक-ठीक कारण क्या है। तब तक ऊंटनी के दूध के अन्य व्यंजनों का लुत्फ उठाने में क्या बुराई है? आजकल ऊंटनी के दूध से बने उत्पादों का पुष्कर और रेगिस्तानी इलाके में जोधपुर, बीकानेर में काफी चलन है। ऊंटनी के दूध से पनीर बनाया जाने लगा है। इसके दूध की चाय और आइस्क्रीम भी आकर्षण के केंद्र हैं। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र में इस दूध से आइस्क्रीम, रबड़ी और दही भी बनाए जा रहे हैं। ऊंटनी के दूध में मुल्तानी मिट्टी और नारियल का तेल मिलाकर साबुन भी राजस्थान में मिलते हैं। विदेशी पर्यटक इनका खूब इस्तेमाल करते हैं। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि ऊंटनी का दूध डायबिटीज़ के रोगियों के लिए काफी काम का है।  (स्रोत फीचर्स)

 

  • ऊंटनी के दूध में मौजूद पोषक तत्व कैंसर जैसे घातक रोग से बचाव में है कारगर
  • ऊंटनी का दूध पीने से पीरियड्स की अनियमितता भी होती है दूर

लोग सेहतमंद रहने के लिए अक्सर गाय और भैंस का दूध पीते हैं, लेकिन क्या आपको पता है इंसान के शरीर के लिए ऊंटनी का दूध बहुत फायदेमंद होता है। इसमें दूसरी चीजों के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन, कैल्शियम और पोषक तत्व होते हैं। ये मेमोरी पॉवर को बढ़ाने के साथ, शरीर को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है।

1.ऊंटनी के दूध में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है। ये दिमाग के सेल्स को विकसित करने में मदद करता है। रोजाना एक गिलास ये दूध पीने से मेमोरी पावर मजबूत होती है। जिससे याद करने की क्षमता का भी विकास होता है। इससे आपका मस्तिष्क कंप्यूटर से भी ज्यादा तेज काम करने लगेगा।

2.ऊँटनी के दूध का प्रयोग पीलिया, टीबी, दमा, खून की कमी और बवासीर जैसी खतरनाक बीमारियों से निपटने में भी फायदेमंद साबित होता है।

3.जिन महिलाओं को पीरियड्स में दिक्कत होती है उन्हें कनकायान वटी को ऊंटनी के दूध के साथ लेना चाहिए। ये एक आयुर्वेदिक दवा है।

4.ऊंटनी का दूध खून से शुगर लेवल कम करने में भी लाभकारी होता है। इससे इंसुलिन की मात्रा संतुलित रहती है।

5.ऊंटनी का दूध कैलोरी और फैट के मामले में दूसरे दूध से ज्यादा बेहतर होता है। इसे पीने से इम्यून सिस्टम बेहतर होता है। जिससे संक्रामक रोगों का खतरा नहीं होता है।

6.ऊंटनी के दूध में लेक्टोफेरिन नामक तत्व पाया जाता है। ये कैंसर जैसी घातक बीमारी से लड़ने के लिए शरीर को तैयार करता है।

7.ऊंटनी का दूध गाय की दूध की तुलना में हल्का होता है। इसमें दुग्ध शर्करा, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट,सुगर, फाइबर ,लैक्टिक अम्ल, आयरन, मैग्निशियम, विटामिन ए जैसे बहुत सारे तत्व पाए जाते हैं जो कि हमारे शरीर को सुंदर और निरोगी बनाते हैं।

8.ऊंटनी के दूध में अल्फा हाइड्रोक्सिल अम्ल पाया जाता है। जो कि त्वचा को निखारने का काम करता है। इसका इस्तेमाल कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी किया जाता है।

9.ऊंटनी का दूध विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर होता है। इसके नियमित सेवन से ब्लड सुगर, इंफेक्शन, तपेदिक, आंत में जलन, गैस्ट्रिक कैंसर, हैपेटाइटिस सी, एड्स, अल्सर, हृदय रोग, गैंगरीन ,किडनी संबंधी बीमारियां नहीं होती है।

10.ऊंटनी के दूध में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम भी होता है। इससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। साथ ही ये लंबाई बढ़ाने में भी मदद करती है।

 डिस्क्लेमर: स्टोरी के टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

 

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