कड़कनाथ: मुर्गो का राजा
मुर्गी की यह नस्ल मध्यप्रदेश के झाबुआ और धार जिले में पाई जाने वाली प्रसिद्ध प्रजाति यहाँ के आदिवासियों और जनजातियों में बहुत लोकप्रिय है । इस मुर्गी का काला रंग, काले पंख और काली टांगों होती है । इसे झाबुआ का “गर्व” और “काला सोना” भी कहा जाता है । जनजातीय लोगों में इस प्रजाति को ज्यादातर “बलि” के लिये पाला जाता है, दीपावली के बाद, त्योहार आदि पर देवी को बलि चढाने के लिये इसका उपयोग किया जाता है । इसकी खासियत यह है कि इसका खून और माँस काले रंग का होता है । लेकिन यह मुर्गी दरअसल अपने स्वाद और औषधीय गुणों के लिये अधिक मशहूर है। शोध के अनुसार इसके मीट में सफ़ेद चिकन के मुकाबले “कोलेस्ट्रॊल” का स्तर कम होता है, “अमीनो एसिड” का स्तर ज्यादा होता है । यह कामोत्तेजक होता है और औषधि के रूप में “नर्वस डिसऑर्डर” को ठीक करने में काम आता है । कड़कनाथ के रक्त में कई बीमारियों को ठीक करने के गुण पाये गये हैं, लेकिन आमतौर पर यह पुरुष हारमोन को बढावा देने वाला और उत्तेजक माना जाता है , ऐसा यहां के आदिवासी लोग कहते हैं जो इस मुर्गी को पालन करते हैं। इस प्रजाति के घटने का एक कारण यह भी है कि आदिवासी लोग इसे व्यावसायिक तौर पर नहीं पालते, बल्कि अपने स्वतः के उपयोग हेतु घर के पिछवाडे़ में पाल लेते हैं । कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले माँस वाला चिकन है । झाबुआ में इसका प्रचलित नाम है “कालामासी” । आदिवासियों, भील, भिलालों में इसके लोकप्रिय होने का मुख्य कारण है इसका स्थानीय परिस्थितियों से घुल-मिल जाना, उसकी “मीट” क्वालिटी और वजन । कड़कनाथ या कालामासी देसी नस्ल् की मुर्ग़ी है जो छत्तीासगढ़ और मध्य प्रदेश में पाई जाती । इसकी कुकड़ कूं की आवाज कड़कदार होती है। इस कारण से ही इसे कड़कनाथ कहते हैं। काले पंखों और इसके मांस के भी काले होने की वजह से इसे कालामासी भी कहते हैं। कड़कनाथ मध्यंप्रदेश और छत्तीासगढ के भील आदिवासियों का पालतू पक्षी रहा है। कड़कनाथ की रोगप्रतिरोधक क्षमता बहुत मजबूत होती है। इसे रोग नहीं के बराबर होता। बाजार में कड़कनाथ 750 रुपए से 1000 रुपए प्रति किलो के दर से बिक रहा है। कई बार इसे विशेष ऑर्डर पर झाबुआ से मंगवाया जाता है।
कड़कनाथ के मांस में प्रोटीन १८-२० प्रतिशत के बीच होती है। कोलेस्ट्रॉल ०-७३-१ प्रतिशत जबकि सफ़ेद चिकन मेँ यह १३-२५ प्रतिशत तथा लौह तत्व २६ प्रतिशत पाया जाता है। कड़कनाथ के अंडे का उपयोग आदिवासी सिरदर्द , प्रसव के बाद होनेवाले सिरदर्द , अस्थमा , गुर्दे की सूजन आदि के इलाज में उपयोग किए जाता है। कड़कनाथ के रक्त में मेलेनिन पिगमेंट ह्रदय में रक्त प्रवाह बढ़ाने का कार्य करता है ठीक वैसे ही जैसे की वियाग्रा या सिलडेनाफिल सिइट्रेट वासोडीलेटर का काम करते हैं यही कारण है की यह कामोत्तेजक – शरीर की ताकत बढाने वाला माना जाता है। इस नस्ल पर कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ बहुत सारा रिसर्च कर रहा है। मुर्गे के इस नस्ल की विशेषता को देखते हुए देश-विदेश में इसकी मांग बढ़ रही है फल स्वरुप देश के विभिन्न जगहों पर भी कड़कनाथ मुर्गी पालन व्यवसायिक तरीके से प्रचारित होते जा रहा है। जरूरत है कि सरकार इस पर विशेष ध्यान दें इसके संरक्षण तथा संवर्धन पर तथा इसकी महत्ता को देखते हुए इसकी उपलब्धता देश की विभिन्न जगहों पर की जाए जिससे कि इसका पालन पूरे देश में व्यवसायिक तरीके से हो सके।
आज जरूरत है कि इस कड़कनाथ मुर्गी के मीट को ऑर्गेनिक मीट के रूप में शहरों में उपलब्ध कराया जाए जिसके चलते गरीब आदिवासी किसान ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके तथा शहर के संपन्न लोग को भी ऑर्गेनिक चिकन मुहैया हो सके।
H P Livestock Farm
(Toxic Free) Jaipur, Rajasthan
Parvinder Singh Chauhan
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