साइलेज किसे कहते है

0
1641

साइलेज किसे कहते हैं साइलेज बनाते समय कौन-कौन से रासायनिक परिवर्तन होते हैं? चलिये जानने की कोशिश करते हैं

साइलेज किसे कहते हैं :-

हरे चारे को साइलो में दबाकर किण्वन मतलब फर्मेंटेशन प्रक्रिया द्वारा बिना सड़न के जो रसीला पदार्थ प्राप्त होता हैं उसे साइलेज कहते हैं, साइलेज को साइलो में दबाकर रखने से जो लैक्टिक अम्ल बनता है यह साइलेज के पीएच (PH) को कम कर देता हैं जिससे साइलेज में मौजूद हरा चारा अच्छा ताजा सुरक्षित रहता हैं, और इस प्रक्रिया को Ensilage व Ensiling कहा जाता हैं।

  • साइलेज बनाने की विधि एवं साइलेज में होने वाले रासायनिक परिवर्तन :-

साइलेज बनाने के लिए सबसे पहले एक सूखा स्थान ढूंढना चाहिए जो पशुशाला की पास हो पर इतनी ज्यादा पास भी नहीं की बदबू आने लगे।

साइलेज बनाने से पहले जमीन पर अच्छी तरह से घास बिछा दे ताकि इससे बनने वाले चारे में बिलकुल भी मिट्टी नही लगेगी।

फिर गड्ढा बना ले जो 8 फीट गहरा हो या फिर साइलेज बनाने के हिसाब से गहरा हो यह पूरी तरह से निर्भर करता है की आप कितना साइलेज बना रहे हैं।

साइलेज को साइलो या गड्ढे में रखने से पहले इसमें मौजूद चारे की कुटी बना ले।

साइलेज में मौजूद चारे की कुटी के परतों को एक के ऊपर एक अच्छी तरह बिछाते जाए की इसमें हवा न रहे इस प्रक्रिया को बार बार करते रहे जबतक यह गड्ढे के सिरे से दो तीन फीट ऊपर ना चली जाए।

  • फसलों को 1.2 सेंटीमीटर टुकड़ों में काटकर साइलो (silo) में भर देते हैं।
  • इसके पश्चात साइलो को ढक देते हैं ताकि हवा का आगमन ना हो सके।
  • इस प्रकार से साइलेज बनाने में 40 से 50 दिन लगते हैं।
  • इन दीवारों के द्वारा कुछ मात्रा में अल्कोहल का निर्माण होता हैं।
  • साइलेज में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए 1% यूरिया तथा स्वाद बढ़ाने के लिए 0.5% नमक मिलाया जाता है।
  • ऐसी फसलें जिनमें घुलनशील शर्करा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है जैसे मक्का ज्वार बाजरा आदि साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
  • हरे चारे को काटकर इतना सुखाया जाता है कि उसमें नमी 70% रह जाए। चेहरे के छोटे-छोटे टुकड़े में काटा जाते हैं और इसे साइलो में भर दिया जाता हैं कि किसी तरह का एयर स्पेस या वायु पोस्ट ना रहे फिर साइलो को ऊपर से एयर टाइट दक्कन द्वारा बंद कर दिया जाता है।
  • साइलो के अंदर हरे चारे में से एक दो दिन तक ऑक्सीजन गैस निकलती है परंतु 2 दिन बाद कार्बन डाइऑक्साइड का निर्माण शुरू हो जाता है यह जीवाणु कार्बोहाइड्रेट को लैक्टिक अम्ल 90 पर्सेंट में परिवर्तित कर देते हैं जो कि सैलेज में अधिकतम होता है तथा कुछ मात्रा में एसिटिक अम्ल और कॉस्मिक एसिड का निर्माण होता है।
  • ऐसी फसलें जिनमें घुलनशील शर्करा की मात्रा कम होती है, उन फसलों का साइलेज बनाते समय 3 से 3.5%शिरा (molasses) मिलाया जाता है।
  • जिन जिसकी वजह से साइलेज की सुगंध पशुओं की पसंद की हो जाती है बाद में यह जीवाणु प्रोटीन में भी कार्य करते हैं तथा प्रोटीन को पहले अमीनो एसिड तथा बाद में लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं।
READ MORE :  MANAGEMENT OF DAIRY CATTLE DURING WINTER FOR IMPROVING MILK PRODUCTION

साइलेज बनाने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए :-

वह पदार्थ जिनमे साइलेज बनाना हो उसमें शुष्क पदार्थ व नमी में 30 40% होना चाहिए।

फसल का तना मोटा तथा मार्शल और कार्बोहाइड्रेट ज्यादा होना चाहिए।

साइलो की दीवाल पर भूसे की परत बिछा दें जिससे अन्य तत्व अंदर प्रवेश ना कर सकें।

चारे को साइलो में अच्छी तरह भरा जा सके इसके लिए चारे की कुटी करना आवश्यक हैं।

चारी को साइलो में भरते समय चारे को पतली परत मे बिछाकर दबा दबा कर बनना चाहिए ताकि साइलो के अंदर हवा ना रहे।

चारे को साइलो की धरातल से कुछ ऊपर तक बनना चाहिए ताकि किडव्वन प्रक्रिया के बाद बैठने पर भी भूमि धरातल से ऊपर हों।

साइलो में चारा भरने में कम से कम समय लगाना चाहिए।

साइलो पूरी तरह भरने के बाद इसके ऊपर प्लास्टिक की चादर

बिछा दे फिर उसके ऊपर मिट्टी की मोटी परत 30cm तक डालकर लीप दे।

साइलो में कहीं पर भी छेद नहीं होना चाहिए ताकि बरसात का पानी इसके अंदर न आ पाए।

फसल को फूल व दुग्ध अवस्था के मध्य काटना चाहिए।

शैलेश बनाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त फसल मक्का इसके अतिरिक्त ज्वार बाजरा बरसिम इत्यादि का उपयोग करना चाहिए।

साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त फसले :-

वह फसलें जिनको साइलेज बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता हैं जिनमे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती हैं, जैसे की :मक्का, जौ, जई, बाजरा, इत्यादि।

साइलो (Silo) किसे कहते हैं :-

वह बुर्ज जिनमे हरा चारा भरकर रखा जाता हैं।

READ MORE :  ROLE OF NEFA AND BHBA  AS A PREDICTIVE MARKER  IN PREDICTING METABOLIC DISEASES & PERFORMANCE  DURING TRANSITION PERIOD

साइलो के प्रकार :-

साइलो के प्रकार :-

यह निम्नतः तीन प्रकार के होते हैं।

  • Pit Silo ( इसे गोल और चौकोर गढ़ों में बनाया जाता हैं)
  • Tower Silo (इसे जमीन के ऊपर बनाया जाता हैं)
  • Trench Silo (इसे जमीन के नीचे बनाया जाता है)

 

  • Pit Silo :-

यह जमीन में गड्ढा खोदकर बनाया जाता है जिसका व्यास 3 मीटर तथा गहराई 3.5 से 4 मीटर तक होती है भारत में सैलेज बनाने के लिए समानता “pit Silo” काम में लिया जाता हैं।

  1. Tower Silo :-

यह जमीन के ऊपर बनाया जाता है जिसका व्यास 3 मीटर तथा ऊंचाई 6 से 9 मीटर होती है यह ईट सीमेंट की बनाई जाती है बनाते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए की इसमें कही पर छेद ना हो जिससे की बरसात का पानी अंदर चला जाए इसमें जगह-जगह दरवाजे बनाए जाते हैं और ऊपर से खप्पर छा दिया जाता हैं।

  1. Trench Silo :-

चौड़ाई 3 मीटर गहराई 4 मीटर व लंबाई होती है तथा यह 2.44 मीटर 8 फूट व्यास के 3.66 मीटर 12 फूट गहरे गड्ढे से 5 पशुओं के तीन महीने का संजोकर रखा हुआ व चारा मिल जाता हैं साइलो की दीवाल से जमीन व धरातल ऊपर की तरफ हो जिससे की बरसात का पानी अंदर ना जा सके और ज्यादा नमी और गीलेपन से फसल व चारे को सुरक्षित रखा जा सके।

Silage

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON