भारतीय डेयरी पशुओं का कम उत्पादन, चुनौतियॉं एवं शमन नीतियॉ
डॉ ज्योति जैन
अतिरिक्त उपसंचालक, राज्य पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान, भोपाल
भारत एक कृषि प्रधान देश है, कृषि के साथ-साथ ग्रामीण जनों को आय के अन्य स्त्रोत उपलब्ध कराने की आवश्यकता महसूस की गई थी, ताकि कृषक अपने परिवार का पालन पोषण कुशलता से कर सकें, एवं आय का स्त्रोत बढा सकें। इस दृष्टि से पशु पालन को सर्वथा योग्य पाया गया, फलत: वर्तमान में पशु पालन और कृषि एक दूसरे के पूरक है। हमारे भारत वर्ष की पशु संबंधी अर्थ व्यवस्था मुख्यत: उत्तम नस्ल के पशुओं तथा उन्नत पशु पालक विधियों से डेयरी पालन पर ही निर्भर करती है। डेयरी उद्योग हमारे अधिकतम दुग्ध उत्पादकों की आय का प्रमुख स्त्रोत है।
हमारा भारत देश श्वेत क्रांति की सफलता के परिणाम स्वरूप आज दुग्ध उत्पादन में सर्वोत्म स्थान पर हैं और डेयरी उत्पादों का बहुत बड़ा उपभोक्ता है। गाय और भैंस दोनों के दूध की मॉंग के साथ भारत का डेयरी उद्योग अन्य देशों की तुलना में बेहतर हैं, किन्तु भारत में प्रति पशु औसत दूध उत्पादन काफी कम है। भारत में अधिकांश दूध तरल दूध के रूप में विक्रय किया जाता है, जिसमें समग्र मूल्य सवंर्धन एवं डेयरी उत्पादो की पोषण प्रोफाईल बढा़ने की अपार संभावना है।
देश के डेयरी पशुओं का दूध उत्पादन बढाने हेतु, पशु प्रजनन, पशु पोषण के क्षेत्र में एवं पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में संकेन्द्रित प्रयास की आश्यकता है, ताकि उत्पादन में वृद्वि के साथ-साथ मूल्य अनुकूलतम किया जा सकें। प्रजनन में उच्च तकनीक जैसे रोग मुक्त उच्च अनुवांशिक गुणवत्ता वाले सॉड के वीर्य से AI बढ़ाने एवं आधुनिक प्रजनन तकनीकों को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है। संतुलित आहार के द्वारा दुग्ध उत्पादन की लागत कम करने हेतु पशु के आहार संसाधन को भी सुधारने की अविलंब आवश्यकता है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो पशुओं में होने वाले रोगों की रोकथाम करना हैं। जो पशु की पूर्ण उत्पादन क्षमता के लिये आवश्यक है।
डेयरी उद्योगों को लाभकारी एवं दीर्घ कालिक व्यवसाय बनाने के लिये यह अति आवश्यकता है कि पशु पालकों को इष्टतम मूल्य पर उत्पादन बढ़ाने के लिये वैज्ञानिक कार्य प्रणाली को अपनाना होगा, इसके लिये किसानों पशु स्वास्थ्य, प्रजनन व पोषण के मूलभूत सिद्वातों के प्रति जागरूक होना चाहिये।
इस निबंध के माध्यम से पशु स्वास्थ्य, प्रबंधन, पोषण, प्रजनन व हरा चारा उत्पादन इत्यादि पर किसानों को मूलभूत जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया हैं। जो मौजूदा एवं नई तकनीक पर आधारित है जो निश्चित ही डेयरी पशुओं की उत्पादकता बढाने में उपयोगी सिद्व होगा।
चुनौतियॉ
- चयनात्मक प्रजनन की कमी – देशी नस्ल हमारे कृषि जलवायु वातावरण के लिए अनुकूल हैं और वे यहॉ पाये जाने वाले अधिकतर रोगों के लिए प्रतिरोधक क्षमता रखते हैं,इनमें से कुछ नस्लें तो अच्छे दूध (उच्च वसा वाले) उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। फिर भी इनमें चयनात्मक प्रजनन की कमी के कारण इन गायों की उत्पादन क्षमता में गिरावट आ रही है, देशी नस्लों का सुधार होना चाहियें, संतति परीक्षण एवं वंशावली चयन कार्यक्रम को अपनाना चाहियें ।
- पशु चारे/आहार की कमी: उपलब्ध चारे और चारे के उपयोग के संबंध में, अनुत्पादक डेयरी पशु अपने उत्पादक समकक्षों के साथ समान संख्या में प्रतिस्पर्धा करते हैं। शहरीकरण और औद्योगिक विकास के कारण कुल चरागाह क्षेत्र हर साल कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप कुल मांग के संदर्भ में चारे और चारे की कमी हो जाती है, चारे की कीमतें बढ़ जाती हैं और परिणामस्वरूप संतुलित आहार नहीं मिलता है। यह लगातार बढ़ती मांग-आपूर्ति का अंतर समग्र दूग्ध उत्पादन को प्रभावित करता है। निम्न गुणवत्ता वाले चारे और डेयरी उद्योग में लगे छोटे सीमांत डेयरी किसानों और खेतिहर मजदूरों की कम क्रय शक्ति पूरी समस्या को बढ़ा देती है। इसके लिये निराकरण के लिये NDBB का आहार संतुलन प्रोग्राम अपनाना चाहियें,यूरिया मोलासेंस ब्लॉक, भूसे का यूरिया उपचार, एजोला कल्चर इत्यादि पद्वतियॉं अपनाना चाहियें ।
- प्रजनन संबंधित चुनौतियां
डेयरी पालन में डेयरी पशुओं में प्रजनन का बहुत महत्व हैं, भारतीय डेयरी पशुओं की नस्लों का देर से परिपक होना एक आम समस्या है। पशु मालिकों के पास हीट चक्र के दौरान गर्मी के लक्षणों का उचित और प्रभावी पता लगाने का यंत्र नहीं है। कभी कभी सायलेट हीट को भी नहीं पता कर पाने से ब्याने का अंतराल (बछड़े के जन्म और गाय से अगले बछड़े के जन्म के बीच का समय अंतराल) बढ़ रहा है, जिससे पशु का उत्पादन कम हो रहा है। आधुनिक एवं विकसित डेयरियां में हीट डिवाइस लगाई जा रही हैं जबकि यह हर डेयरी में होना चाहियें । एक प्रबंधित डेयरी में 10 प्रतिशत से ज्यादा प्रजनन समस्यांए चिंता का विषय है, जिसका शीघ्र ही निदान एवं उपचार कुशल पशु चिकित्सक से करवाना चाहियें । गर्भपात का कारण बनने बाली बीमारियॉं जैसे ब्रुसेलोसिस, विब्रियोसिस, लेप्टोस्पाईरोसिस तथा खनिज तत्वों की कमी, हार्मोनल समस्याएं और विटामिनों की कमी से प्रजनन संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
अधिक दूध उत्पादन के लिये आवश्यक है कि पशु समय पर गर्भित हो एवं ब्यात के बाद 300 दिन तक दूध दे तभी पशुपालन व्यवसाय लाभप्रद होगा। साथ ही बातों पर ध्यान देना चाहियें-
1.गाय और भैंस ब्याने के पश्चात 60 दिन के अंदर अवश्य पुन: ग्याभिन हों।
2.देशी गाय 2 वर्ष से 3 वर्ष की आयु तक गर्भित हो जानी चाहिए
3.एक अच्छी डेरी में 70 से 80 प्रतिशत पशु दूध देने वाले होने चाहिए
- पशु यदि गर्मी के लक्षण प्रदर्शित करता है तक अत्याधुनिक निम्नांकित प्रजनन संबंधी तकनीक से समय पर गर्भित करना चाहियें –
1. कृत्रिम गर्भाधान
2.भ्रूण प्रत्यारोपण
3.सेक्स सॉर्टिड सीमेन टेक्नोलॉजी पशु प्रजनन के क्षेत्र में अगली क्रांति
- इनविट्रो निषेचन
पशु स्वास्थ्य संबंधित चुनौतियॉं
पशुपालक को स्वस्थ पशु का पालन ही लाभदायक होता अन्यथा इलाज कराने और उत्पादन घट जाने से लाभ कम हो जाता हैं । इसके लिये पशु पालकों को बीमार व अस्वस्थ पशु के लक्ष्ण एवं पशुओ की विभिन्न बीमारियों कृमि नियंत्रण एवं टीकाकरण की जानकारी शिविर एवं प्रशिक्षणों, टीवी एवं आकाशवाणी के माध्यम से जागरूकता प्रदान करना चाहिये ।
कृमि नियंत्रण –
पेट में पाये जाने वाले कृमि परजीवी होते हैं जो पशु का रक्त चूसकर उनको निरंतर कमजोर बनाते रहते है । पशुओं में दस्त, खुराक के कमी, शारीरिक विकास दर में किसी दूध उत्पादन में कमी आदि लक्षण देखने को मिलते हैं।
बरसात के पहले एवं बरसात के बाद सभी पशुओं को कृमिनाशक दवा खिलाऍं। छ: माह की उम्र तक प्रत्येक माह कृमि नाशक दवा दें उसके बाद प्रत्येक 6 माह में एक बार कृमिनाशाक औषधियॉं नजदीकी पशु चिकित्सालय से परामर्श लेकर देवें।
पशुओं में टीकाकरण
वर्तमान समय में आर्थिक लाभ किसानों का एक प्रमुख लक्ष्य है तथा इसमें पशुओं के स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि प्रतिवर्ष हजारों दुधारू पशु खतरनाक बीमारियों जैसे गलघोंटू एक टंगिया, मुंहपका व खुरपका इत्यादि के संक्रमण के कारण मृत्यु के प्राप्त हो जाते हैं. जिससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
टीकाकरण तालिका –
क्र. | बीमारी | पहला डोज | बाद में |
1 | खुरपका मुँहपुका | चार माह की उम्र में | साल में दो बार |
2 | गलघोटू | छः माह की उम्र में | प्रत्येक वर्ष |
3 | लंगड़ा रोग | छः माह की उम्र में | प्रत्येक वर्ष |
4 | एन्थ्रेक्स | छ. माह की उम्र में | प्रत्येक वर्ष |
5 | ब्रुसेलोसिस | 4-6 माह की उम्र में केवल बछियों को | (जीवन में एक बार) |
डेयरी पालको को उच्चस्तरीय प्रशिक्षण
उचित एवं वैज्ञानिक तरीके से डेयरी प्रबंधन पर वैज्ञानिक एवं आधुनिक शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम समय की मांग है, और इससे सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों पर काबू पाया जा सकता है। ऐसे कार्यक्रमों में भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए उन्हें प्रभावी ढंग से करने लागू करने की आवश्यकता है। स्वामित्व की भावना विकसित करने और सर्वोतम प्रथाओं का उचित ज्ञान विकसित करने के लिए डेयरी क्षेत्र के सभी कर्मचारियों के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण आवश्यक हो जाता है। डेयरी क्षेत्र में ऐसे कार्यक्रमों को लागू करने लिए प्रबंधन से मजबूत निरंतर प्रतिबद्वता की आवश्यकता होती है। इससे निश्चित ही देशी पशुओं का उत्पादन बढाने में एक नई दिशा मिलेगी।
पशु स्वास्थ्य केन्द्र /चिकित्सा केन्द्र
पशु स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र ऐसे स्थानों पर स्थित हैं जो दूर हैं और उन तक पहुंचना मुश्किल है। पशुओं की आबादी के अनुपात में पशु चिकित्सा संस्थानों की संख्या कम है, जिसके कारण इन पशुओं के लिए अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं हैं। टीकाकरण कार्यक्रम और कृमि मुक्ति कार्यक्रमों में अनियमिमता के कारण बछड़ो, विशेषकर भैंसो में भारी मृत्यु दर होती है। जैसा कि पहले कहा गया है, डेयरी पशुओं में पर्याप्त प्रतिरक्षा की कमी है, जिससे वे बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
डेयरी शेड में स्वच्छता का अभाव
कई पशु मालिक अपने मवेशियों को उचित आश्रय प्रदान नहीं करते हैं, जिससे उन्हें अत्यधिक जलवायु परिस्थितियों और प्रकृति की अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है। पशु शेड और दूध देने के स्थान अस्वच्छ हैं, जिससे थनैला बीमारी को बढ़ावा मिलता है। (इसमें शारीरिक आघात या सूक्ष्मजीव संक्रमण के कारण स्तन ग्रंथियां सूज जाती हैं। यह हमारे देश में डेयरी पशुओं में सबसे आम बीमारी है । जो दूध उत्पादन एवं गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं अत: थनैला की प्रभावी रोकथाम एवं निदान दूध उत्पादन बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदाकर सकते हैं।
मार्केट और मूल्य निर्धारण
डेयरी किसानो को दूध उत्पादन के लिये उचित मूल्य नही मिल पाता। संकर पशु प्रजनन कार्यक्रमों को अपनाने के कारण भी क्रांस ब्रीड गाय दूध में वास की कमी हो जाती है। इस वजह से दूध का उचित मूल्य नही मिल पाता है, क्योकि दूध की कीमत का अनुमान वसा ओर ठोस गैर वसा वाले दूध की मात्रा के कारण लगाया जाता है।उचित शिक्षा, प्रशिक्षण एवं उचित मूल्य निर्धारण की कमी के कारण डेयरी उद्यमों को किसानो द्वारा आजीविका के अन्य साधनों के कारण सही माना जाता। फलत: उत्पादनता प्रभावित होती है।
दूध प्रबंधन और वितरण की ज्यादा लागत एवं कम डेयरी पहॅुच भी दूध उत्पादकता को प्रभावित करती हैा
शमन नीतियॉं निम्नलिखित प्रबंधनों पर निर्भर करेगी –
- टीकाकरण और उपचार सहित पशु स्वास्थ्य प्रबंधन
- आधुनिक प्रजनन प्रबंधन (समयबद्व एआई प्रोटोकॉल के माध्यम से डिलीवरी, सेक्स सॉर्टिड, सीमेन, इनविट्रो निषेचन आदि)
- पोषण प्रबंधन, उम्र एवं उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं के हिसाब से ।
- सक्षम दूध देने का प्रबंधन (प्रक्रियाएं पार्लर की स्थापना, सफाई, स्वच्छता)
- पशु चिकित्सा सेवायें (घर पहुँच MVU चलित पशु चिकित्सा ईकाई टोल फ्री कालॉ
- उत्पादकता प्रबंधन(नस्ल चयन और ट्रेकिंग सहित)
- चारा प्रबंधन (वर्ष भर हरे चारे का उत्पादन हेतु नई तकनीक,फसल चक्र एवं मिक्स क्रापिंग को अपनाना तथा हरा चारा विकास सेवाओं का प्रचार प्रसार)
- अपशिष्ट प्रबंधन (नवजात बछडों सहित)
- दुग्ध उत्पादन वृद्वि हेतु निवेशों को उत्पादको की उपलब्ध करानाया
- संगठनात्मक खाका (जनशक्ति उपयोग सहित)
- उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा का प्रबंधन
- पशुओं का उचित आवास प्रबंधन,स्थान प्रबंधन एवं आधुनिक पशुपालन पद्वतियों का प्रचार प्रसार
यदि इन सभी का प्रबंधन उचित तरीके से किया जाये तो निश्चित ही भारतीय देशी पशुओं के उत्पादन को बढाया जा सकता हैं।