भारतीय डेयरी पशुओं की कम दुग्ध उत्पादन क्षमता : चुनौतियॉं एवं शमन रणनीति
डॉ. नीना त्रिपाठी
अतिरिक्त उपसंचालक,
पशुपालन एवं डेयरी विभाग,
भोपाल (म.प्र.)
भारत एक कृषि प्रधान देश है। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवसाय के रूप में जितना अधिक महत्व कृषि का है उतना ही डेयरी व्यवसाय का है। डेयरी अकेला ही ऐसा क्षेत्र है जो राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था में 5 प्रतिशत का योगदान देता है और 8 करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोजगार उपलब्ध करवा रहा है। भारत दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान पर है और वैश्विक दूध उत्पादन में 24.64 प्रतिशत का योगदान देता है। दुग्ध उत्पादन पिछले 9 वर्षों में 5.85 प्रतिशत की चक्रवृद्वि वार्षिक वृध्दि दर (सी ए जी आर) से बढ़ रहा है जो 2014-15 के 146.31 मिलियन टन से बढ़कर 2022-23 में 230.58 मिलियन टन हो गया है। 2021 की तुलना में 2022 के दौरान विश्व दुग्ध उत्पादन में 0.51 प्रतिशत वृद्वि हुई है। देश में दुग्ध उत्पादन पिछले 9 वर्षों में लगभग 57 प्रतिशत बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 2022-23 में 459 ग्राम प्रतिदिन हो गयी है जो इसके पूर्व सिर्फ 303 ग्राम प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन थी । (स्रोत-आउटलुक जून 2023)
प्राकृतिक संसाधनों और भौगोलिक स्थिति के कारण भारत में डेयरी उद्योग के विस्तार की प्रचूर संभावनाएं हैं किन्तु भारतीय नस्ल के दुधारू पशुओं का उत्पादन, संकर जाति की गायों की तुलना में बहुत कम है। नि:संदेह वैज्ञानिक तरीके अपनाते हुये कृषि के साथ-साथ चलने वाले दूध उत्पादन को व्यवसाय की दृष्टि से देखने पर इसके संचालन से भारतीय डेयरी पशुओं की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इससे दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ किसानों की आर्थिक स्थिति में भी इजाफा हो सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक दुग्ध उत्पादन को डेयरी उद्योग के रूप में बदलना होगा।
भारतीय दुधारू पशुओं में निम्न उत्पादकता के कारण –
संकर जाति की गायों की संतति 20-30 माह के बीच वयस्क हो जाती है और एक ब्यांत में 2000-3000 लीटर दुग्ध उत्पादन करती है। इनका दुग्ध विहीन काल भी बहुत छोटा होता है और देशी गायों की तुलना में अधिक संतति को जन्म देती हैं। इनकी तुलना में देशी नस्लों के दुधारू पशुओं की बछिया 40-50 माह की उम्र में वयस्क हो जाती है और एक ब्यांत में इनसे 1000-1500 लीटर तक ही दूध प्राप्त हो पाता है। हमारे देश की दुधारू नस्लों में थारपारकर, साहीवाल, गिर, बचौर, लाला कंधारी, खेरीगढ़ गाय प्रमुख है। इनके अलावा संसार की सर्वोत्म नस्लों की भैसें हमारे देश में पायी जाती है। इनमें मुर्रा, नीली रावी, सूरती, मेहसाना, जाफराबादी, नागपुरी आदि प्रमुख हैं।
डेयरी सेक्टर की चुनौतियॉ–
भारतीय डेयरी उद्योग के सामने चुनौतियॉं कम नहीं है। वर्तमान में भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है और आने वाले समय में भी इसके तेजी से बढ़ने का अनुमान है। इसके लिये देश में दुग्ध उत्पादन एवं दुग्ध उत्पादों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाना होगा। इस क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियॉ हैं-
- चारे/आहार की कमी के कारण पशुओं को नित्य संतुलित आहार न मिलना
औद्योगिकीकरण के कारण हर वर्ष चारागाह क्षेत्र कम होते जा रहे हैं। चारे के लिए जमीन की कमी के चलते ग्रामीण दुधारू पशुओं के लिए चारा आपूर्ति की कमी होती जा रही है। कैटल फीड और चारा में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है। उच्च लागत वाले डेयरी उद्योग में छोटे व सीमांत किसानों द्वारा कैटल फीड और चारा खरीदने की कम क्षमता के कारण भी पशुओं के लिये अपर्याप्त चारा है।
- प्रशिक्षित लेबर का न होना–
डेयरी उद्योग के लिये यह एक बड़ी समस्या है। डेयरी के कार्यों को सुचारू एवं उत्पादक बनाए रखने के लिये प्रशिक्षित लेबर की लगातार जरूरत पड़ती है। इस उद्योग में लेबर पर निर्भरता एक प्रमुख चुनौती है। लेबर की कमी के कारण भी ग्रामीण स्तर पर कृषि के अनुषंगी डेयरी व्यवसाय में कठिनाई आ रही है।
- भारतीय नस्ल के दुधारू पशुओं की कम उत्पादक क्षमता-
कम दूध देने वाली मवेशियों की नस्ल में एक ब्यात में 1000-1500 लीटर तक ही दूध प्राप्त हो पाता है, जो बहुत कम है। हालांकि पशुपालन विभाग द्वारा इस क्षेत्र में ठोस रणनीतियॉं बनाई हैं, कृत्रिम गर्भाधान के जरिए अच्छी नस्ल के दुधारू पशुओं के प्रति लोगों का रूझान बढ़ रहा है किन्तु पशुपालकों की उदासीनता के चलते अच्छे दुग्ध उत्पादक पशुओं की कमी है। पंहुच विहीन स्थानों पर समय पर इलाज और गर्भाधान की व्यवस्था नहीं होने से भी दुधारू पशुओं की कमी है। प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों की कमी, सुदूर क्षेत्रों में पशु चिकित्सा संस्थाओं पर आधुनिक उपकरणों और आवागमन के साधनों की कमी से भी दुधारू नस्ल के पशुओं की कमी बनी हुई है। कई स्थानों पर पशुपालकों की उदासीनता के चलते समय पर नस्लवार (नस्ल के अनुसार वीर्य) की सतत आपूर्ति न होने से भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- अलाभकारी विपणन और मूल्य निर्धारण
भारत में दूग्ध उत्पादन के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई अधिकारिक प्रावधान नहीं है। भारतीय दुधारू पशुओं की कम उत्पादकता दूध की उत्पादन लागत में वृध्दि का एक प्रमुख कारण है। ऐसी स्थिति में दूध व इससे बने उत्पादों के लागत मूल्यों पर नियंत्रण रख पाना एक मुख्य चुनौती है।
5.देशी नस्ल के दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये शमन रणनीति-
देशी दुधारू पशुओं से उनकी उत्पादन क्षमता का अधिकतम उत्पादन तभी प्राप्त किया जा सकता है जब वे स्वस्थ रहें। यह तभी संभव है जब उन्हें वैज्ञानिक विधि के अनुसार आवास, प्रजनन, रखरखाव की सुविधायें उपलब्ध कराई जायें।
निम्न उपायों को अपनाने से देशी दुधारू पशु पालन फायदेमंद हो सकता है। वे इस प्रकार है –
- उन्नत देशी नस्ल का चयन
- उचित आवास व्यवस्था।
- उचित आहार व्यवस्था।
- नवजात बछियों की समुचित देखभाल
- दुधारू पशुओं को निश्चित अंतराल में कृमिनाशक दवा पिलाना।
- पशुओं का सालाना प्रतिबंधात्मक टीकाकरण नियमित तौर पर करवाना।
- दूध देने वाली मादा पशुओं एवं गर्भवती पशुओं की विशेष देखभाल और उनका संतुलित पोषण।
इसके अलावा भी कुछ बातों पर विशेष कदम उठाने की जरूरत है। जिससे डेरी उद्योग अधिक फायदेमंद साबित हो सके।
1 मजदूर का नियमित प्रशिक्षण-
डेरी फार्म में कार्य करने वाले कर्मचारी पैरावेट स्टाफ का किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से प्रशिक्षण करवाना अति आवश्यक है ताकि वह आधुनिक उपकरणों का सही तरीके से इस्तेमाल कर सके। जिन स्थानों पर लेबर फोर्स आसानी से उपलब्ध न हो ऐसे स्थान पर ऑटोमेटिक मशीन द्वारा मिलकिंग कराना अधिक उपयोगी साबित होगा। ऐसे में पशुपालकों को लेबर पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। दुग्ध उत्पादन स्वच्छ वातावरण में किया जा सकेगा।
2 हरे चारे की उपलब्धता-
हरा चारा दुधारू पशुओं के उत्पादन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। बरसात के मौसम में पर्याप्त चारा मिलता है। इसको ‘हे’ या ‘सायलेज’ के रूप में परिरक्षित किया जा सकता है।
3 सहकारी समितियों का गठन-
जिला स्तर पर सहकारी समितियां बनानी जाए जो पशुपालकों को दुग्ध उत्पादन का न्यूनतम मूल्य निर्धारित कर दूध क्रय करने की व्यवस्था हो सके ताकि उन्हें दूध उत्पादन का उचित मूल्य प्राप्त हो सकेगा। दुग्ध उत्पादन के साथ यदि पशुपालक अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे घी, पनीर, दही, मट्ठा आदि के भी प्लांट लगाए। इससे उनको अधिक मुनाफा प्राप्त हो सकेगा।
भारत सरकार की राष्ट्रीय गोवंशीय भैंसवंशीय पशु प्रजनन परियोजना के फलस्वरुप विगत 10 वर्षों में कृत्रिम गर्भधारण से देश में दुग्ध उत्पादन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है तथा देश में आज दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में सतत रूप से प्रथम स्थान पर है। पशु पालकों को भारतीय, उत्तम दुग्ध उत्पादक नस्लों के पशुओं की जानकारी सर्वसुलभ होना चाहिए साथ ही पशुपालन की आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण देकर भी पशुपालकों को इस दिशा में प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
(छायाचित्र सौजन्य-महालक्ष्मी डेयरी फार्म, जबलपुर, मध्यप्रदेश)