लम्पी (गांठदार) त्वचा रोग
मोनिका भारद्वाज, मधु सुमन एवं पवन कुमार
पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान महाविद्यालय
हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर
लम्पी त्वचा रोग एक आर्थिक रूप से पशुपालको को प्रभावित करने वाला विषाणुजनित रोग है। यह रोग व्यापक रूप से भारत के कई राज्यों में बहुत तेजी से फैल रहा है। लम्पी त्वचा रोग मुख्य रूप से गाय और भैंस के सभी आयुवर्गों, लिंग अथवा नस्लों में पाया जाता है। दुघारू पशु और गर्भवती गायों में यह बीमारी गंभीर रूप में होती है। हाल ही कि रिर्पोटों के अनुसार इस रोग के लक्षण भेड़, बकरी, जिरॉफ और इम्फाला इत्यादि में भी देखे गए हैं। इन्सानों में इस रोग के होने की संभावना ना के बराबर है। इस गंभीर रोग के व्यापक संक्रमण के कारण बहुत अधिक मृत्यु दर और बीमार पशुओं की संख्या बढ़ जाती है। पिछले कुछ दिनों में हजारों पशु इसकी चपेट में आ चुके हैं ।पशुओं के बढ़ते मृत्युदर और दूध उत्पादन में कमी से किसान अत्याधिक आर्थिक नुक्सान से गुजर रहे हैं। इसलिए इस रोग से पशुओं का बचाव अत्याधिक आवश्यक हो गया है। लम्पी त्वचा रोग को फैलाने के लिए मुख्य प्रजाति कैप्रिपॉक्स विषाणु है, इसके अतिरिक्त गोटपॉक्स और शीपपॉक्स विषाणु दो अन्य प्रजातियां हैं।
लम्पी त्वचा रोग का प्रसार:
यह रोग अफ्रीकी और मध्य पूर्व के देशों में स्वाभविक है। परन्तु पिछले कुछ वर्षों में यह रोग अपने स्थानिक क्षेत्रों से परे अन्य देशों मे फैल चुका है। लम्पी त्वचा रोग की सबसे पहले वर्ष 1929 में अफ्रीका में पुष्टि की गई थी। हालांकि यह रोग अफ्र्रीका और पश्चिम एशिया के कुछ भागों तक ही सीमित रहा है।यह रोग 2012 के बाद से अन्य देशों बाल्कन, काकषस, रूस और कजाकिस्तान में भी तेजी से फैला है। एशिया में यह बिमारी 2019 में बांग्लादेश में दर्ज की गई जिसके बाद अन्य एशियाई देशों जैसे की चीन, भारत, नेपाल, भूटान इत्यादि में भी इस बीमारी को दर्ज किया गया। भारत में यह बीमारी अगस्त, 2019 में उड़ीसा राज्य में सबसे पहले दर्ज की गई, बाद में यह धीरे–2 अन्य राज्यों में फैल गई है। हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में इस रोग के फैलने की पुष्टि हो चुकी है। विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को एक उल्लेखनीय बीमारी के रूप में सूचीबद् किया है।
रोग का फैलावः
1। लम्पी त्वचा रोग मुख्य रूप से मच्छरों, मक्खियो, चीचड़ इत्यादि द्वारा बीमार पशु से स्वस्थ पशु में फैलता है।
2।संक्रमित पशुओं की दूषित लार, पानी और घास भी इसके फैलाव के मुख्य कारणों में से एक हैं।
3।दूषित खून, नाक स्त्राव, अश्रु स्त्राव इत्यदि भी इस रोग के फैलने मे सहायक हैं।
4।बछड़ो में संक्रमित गाय का दूध भी रोग के फैलाव का एक महत्वपूर्ण कारण है।
लक्षणः
पशुओं के शरीर पर गांठें बन जाना, जिसके पीरणामस्वरूप शरीर पर चकते के निशान उभर आना।तेज बुखार, अश्रु स्त्राव और नाक स्त्राव आना। सिर और गर्दन के कई हिस्सों में अत्याधिक दर्द होना।दूधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता कम होना इन तमाम लक्षणों से पशु की मृत्यु भी हो सकती है।
क्या यह रोग मनुष्यों में दूध द्वारा फैल सकता हैः–
यह बीमारी गैर जूनोठिक रोग है, मतलब पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता है।बीमारी पशुओं के मांस एवं डेयरी उत्पादों के सेवन से मनुष्यों में फैलने का किसी भी प््राकार का कोइ खतरा नहीं है। प्रभावित पशुओं के दूध को उबालकर उपयोग में लाया जा सकता है।
निदानः
- लक्षणों के आधार पर बीमार पशुओं के नमूनों से लम्पी स्किन रोग विषाणु को भ्रूण चिक अंडों और वेरो सेल लाइन्स में पहचाना जा सकता है।
- ट्रांसमिशन इलेकट्रॉन माइक्रोस्कापी से लम्पी स्किन विषाणु को बायोप्सी नमूनों मे देखना।
- विषाणु डीएनए को पीसीआर विधि द्वारा पहचाना जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त पशुओं के सीरम में लम्पी स्किन रोग विषाणु के लिए बनी एंटिवॉडीज को विभिन्न परिक्षणों जैसे की इनडायिरेक्ट फलोरीसैंट एंटीबॉडी टेस्ट, वायरस न्यूट्रेलाइजेश्न टेस्ट,एलाइजा इत्यादि से जांचा जा सकता है।
रोकथाम:
- यह बीमारी बकरियों में होने वाले गोटपॉक्स की तरह ही है। पशुओं में इस बीमारी के लक्षण मिलते ही एक किलोमीटर के घेरे मे गोटपॉक्स वैक्सीन द्वारा पशुओं का टीका करण करना चाहिए।
- मक्खियों और मच्छरों की रोकथाम करना
- साफ -सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- जागरूगता अभियान।
- बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग कर देना।
- मृत पशु के शव के गडढे में दबाना चाहिए।
- बछडों को रोगग्रसित मां का दूध उबलाकर बोतल के द्वारा पिलाना चाहिए।
- स्वस्थ व रोगी पशु को अलग–अलग जगह पर बांधना चाहिए।आईसीएआर नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन, हिसार (हरियाणा) ने आईसीएआर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (उत्तर प्रदेश) की मदद से एक वैक्सीन तैयार की है। जल्द ही ये वैक्सीन किसानों के प्रयोग के लिए उपलब्ध कराई जाएगी।
निष्कर्षः–
लम्पी त्वचा रोग एक गंभीर उभरता हुआ रोग है। अभी तक यह रोग हजारें की संख्या में पशुओं की जान ले चुका है। इससे किसानों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। इसलिए इस रोग को और अधिक फैलने से रोकने के लिए सही दिशा में रोकथाम में कदम उठाने पड़ेगें । बचाव के लिये सरकार द्वारा र्निदेशित टीकाकरण अवश्य करवाना चाहिए।