गायों में गाँठदार त्वचा रोग

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गायों में गाँठदार त्वचा रोग

  डॉ संध्या मोरवाल

सहायक आचार्य

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय

नवानिया, उदयपुर (राजस्थान)

sandhyamorwal@gmail.com

  

   परिचय

गाँठदार त्वचा रोग मवेशियों में होने वाला एक बहुत ही खतरनाक वायरस जनित, संक्रामक रोग है। यह रोग गाय भैंस दोनों को प्रभावित करता है लेकिन इस रोग से गायें ज्यादा संक्रमित होती है। इस वायरस से देशी गायों के मुकाबले संकर गायें जल्दी बीमार होती है। यह रोग सभी उम्र के मवेशीयों को अपनी चपेट में ले लेता है। इस रोग को लम्पी त्वचा रोग, ढ़लेदार त्वचा रोग के नाम से भी जाना जाता है।

रोग का कारक:-

यह वाइरस चेचक (पोक्स) परिवार से संबन्धित रखता है तथा कैप्रीपोक्स उपश्रेणी में आता है जो की बकरी पोक्स और शीपपोक्स के जैसा ही है।

रोग का भौगोलिक विवरण :-

पहली बार यह रोग ज़ाम्बिया में सन 1929 देखा गया था, इसके बाद अधिकांश अफ्रीकी देशों में पाया गया। इस रोग का प्रभाव 1957 मे पूर्वी अफ्रीका (केन्या) मे आया था । 1989 मे इज़राइल मे इस रोग का प्रकोप हुआ था। इस रोग ने जुलाई 2019 मे बाग्लादेश तथा अगस्त मे भारत के उड़ीसा और पश्चिम बंगाल मे पशुओं को संक्रमित किया । वर्ष 2022 मे इस बीमारी ने भारत देश के बहुत सारे राज्यों (महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और उत्तर प्रदेश ) के पशुओ को अपना शिकार बना लिया। भारत में मवेशियों की जुलाई – सितम्बर 2022 के बीच में ढ़ेलेदार त्वचा रोग के प्रकोप से लगभग 80,000 से अधिक मृत्यु दर हुई है। राजस्थान राज्य में सबसे अधिक मौतें हुई है।

रोग का फैलाव और प्रसार :-

  • लम्पी स्किन रोग मुख्यरूप से खून पीने वाले कीट जैसे मच्छरों, मख्खियों ओर चिचड़ीयों के काटने से एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है ।
  • सक्रमित पशु की लार मिले पानी और दाना-चारा खाने से।
  • सक्रमित पशु के सीधे-सीधे सम्पर्क में आने से।
  • यह बीमारी लार, नाक के स्राव या वीर्य के सम्पर्क में आने से भी एक पशु से दूसरे पशु में फैल सकती है ।
  • संयुक्त राष्ट्र खाध्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार संक्रमित जानवर के मुँह और नाक स्राव के माध्यम से वायरस फैलता हैं और इस तरह से यह वायरस खाने पीने को दूषित कर सकता है।
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रोग के लक्षण:-

गायों में ढेलेदार त्वचा रोग के लक्षण इस प्रकार है :-

  • बुखार का आना (शरीर का तापमान 40 से 41.5 डिग्री तक बढ़ जाता है। )
  • भूख कम लगाना या बिलकुल नहीं लगना।
  • आखों और नाक से पानी का बहाव।
  • लसिका ग्रंथी में सूजन आना ।
  • शरीर पर कठोर दर्दयुक्त गाँठे बन जाती है जिनका आकार 1 से 5 सेंटीमीटर तक हो सकता है।
  • जब गाँठे पक्क जाती है तो फट जाती है और इनसे मवाद और खून निकलने लगता है ।
  • पशु के पैरो मे गाँठे होने के कारण पशु मे लंगड़ापन्न आ जाता है।
  • पशु के आगे वाले पैरों के बीच गर्दन मे सूजन आ जाती है ।
  • पशु शरीर के अंगों जैसे फेफड़ों, पेट, गुर्दे, यकृत में भी घाव बन जाते है जो पशु के लिए बहुत पीड़ाजनक होते हैं।
  • पशु पीड़ा की वजह से बैठ भी नहीं पता है और पूरा समय खड़ा रहता है।
  • पशु को श्वास लेने मी भी कठिनाई होती है ।
  • कुछ पशुओ में निमोनिया के लक्षण भी आते है।
  • गर्भवती पशु में गर्भपात भी हो सकता है।
  • पशु का शारीरक वजन कम हो जाता है।
  • दूध का उत्पादन भी कम हो जाता है।

 

 

रोग की जांच :-

  • रोग की पहचान पशुपालक की जानकारी, बीमारी के लक्षण, और इसकी पूरी तरह से जाँच पीसीआर तकनीक से प्रयोगशाला मे कर सकते है इसके लिए खून के और गाठों के नमूने की आवश्कता होती है ।

रोग का उपचार:-

  • लंपी स्किन रोग वायरस जनित रोग है इसलिए इस वायरस का तो कोई विशेष उपचार नही है लेकिन द्वितीयक जीवाणु संक्रमण और विभिन्न लक्षणो के आधार पर उपचार कर सकते है।
  • द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए एन्टीबायोटिक औषधी का टीका लगवाना चाहिए, ये टीका कम से कम 3 दिन से लेकर 5 दिन तक पशु की मासपेशियों में जरूर लगवाये। ( पैनिसिलिन, एनरोफलोकसिन, )
  • इस बीमारी में पशु के शरीर के तापमान में बढ़ोतरी होती है पशु को बुखार आता है इसलिए एक टीका बुखार को कम करने के लिए लगवाना चाहिए कम से कम 3 दिन के लिए, मासपेशियों में या बुखार उतरने तक ।
  • पशु के शरीर पर जो गाँठे बनती है वो बहुत दर्ददायक होती हैं इसलिए सूजन और दर्द को कम करने वाले टीके जैसे मेलोक्सीकैम लगवाना चाहिए।
  • प्रभावित पशु के पैरों में तथा आगे वाले पैरों के बीच मै सूजन आ जाती है तो इसके लिए कोर्टिकोस्टेरोइड्स या एनाबोलिक दवाई का उपयोग कर सकते है ।
  • पशु के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए मिनरल मिक्सर मुँह के द्व्रारा और बहु-विटामिन (ए,डी, ई और सेलिनिएम) का टीका भी लगवाना चाहिए।
  • संक्रमण के थोड़े दिन बाद जब गाँठे अगर फुट जाती है और घाव बन जाते है तो इंनमे से खून और मवाद निकलता है तो इसके लिए इनकी नियमितरूप से ड्रेसिंग करवानी चाहिए।
  • एन्टीसेप्टिक युक्त बॉडी स्प्रे का छिड़काव करना चाहिए साथ ही मक्खियों से भी बचाव करना चाहिए।
  • एंटिहिस्टामिन दवाई का भी टीका लगवाना चाहिए।
  • पशु को खाने के लिए नर्म व हरा चारा और अच्छे से पक्का हुआ या नर्म किया हुआ दाना देना चाहिए।
  • पशु को कठोर सतह पर नही रखना चाहिए और दीवार से भी दूर रखना चाहिये ताकि पशु अपने शरीर को रगड़ लगाकर गाँठो को नुकसान ना पहुचा ले।
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    रोग से बचाव :-

  • सबसे पहले तो प्रभावित पशु को स्वस्थ पशु से अलग कर ले।
  • प्रभावित पशु का खाना पीना स्वस्थ पशु से अलग करवाना चाहिये।
  • बीमार पशु की देखभाल करने वाला और पशु के साथ काम करने वाले आदमी को अपने हाथ अच्छे से साफ करे तथा कपड़े बदलकर ही स्वस्थ पशु को दाना चारा देना चाहिये ।
  • बीमार पशु को खेतो में या बाहर खुले में चरने के लिए नही भेजना चाहिये ।
  • जब बीमारी फ़ैली हुई हो तब कोई नया पशु नही खरीदना चाहिये।
  • अपने पशु के आस पास साफ सफाई का पूरा ध्यान रखे तथा मक्खी, मच्छर और चिचड़ियों से बचाकर रखे।
  • बीमारी से मरे हुई पशु का निस्तारण पूरी सावधानी के साथ करे।
  • इस बीमारी से पशु की मौत तो कम होती है लेकिन यह बीमारी संपर्क में आने वाले सभी पशुओ को अपनी चपेट में ले लेती है।
  • पशु मे इस बीमारी का टीकाकरण करना चाहिये, पशु का टीकाकरण बकरीपोक्स के टीके से ही करते है।

रोग का जूनोटिक महत्व:-

लम्पी त्वचा रोग एक जूनोटिक रोग नही है और संक्रमित पशु के दूध से आदमियों में भी नही फैलता है बस दूध कच्चा नही पीना चाहिए । दूध हमेशा उबालकर ही पीना चाहिए।

रोग का आर्थिक प्रभाव:-

इस बीमारी में पशुपालक को आर्थिक नुकसान बहुत होता है। यह नुकसान पशु की मौत होना, दूध उत्पादन मे कमी होना, पशु की प्रजनन क्षमता का कम हो जाना, वजन घटना , शरीर का विकास कम होना, निमोनिया विशेष रूप से चमड़ी खराब होना और गर्भवती पशु के बच्चे का नुकसान के रूप मे हो सकता है । इसलिए रोग से अपने पशु को बचना जरूर है।

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References: –

 

  1. From Wikipedi, the free encyclopedia , Lumpy skin disease. 4 october 2022. link: https://en.wikipedia.org/w/index.php?title=Lumpy_skin_disease&oldid=1114034139
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  3. Jolly, Bani; Scaria, Vinod (24 September 2022). “The evolution of lumpy skin disease virus”The HinduISSN0971-751X. Retrieved 24 September 2022.
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  10. OIE (2010) Terrestrial Manual of Lumpy Skin Disease, Chapter 2.4.14. Version adopted by the World Assembly of Delegates of the OIE in May 2010, OIE, Paris.

 

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