दुधारू पशुओं में लम्पी स्कीन डिसीज (Lumpy Skin Disease) व् महत्वपूर्ण टीकाकरण :
डॉ जय प्रकाश1 , डॉ. पी.के. गुप्ता2
1वैज्ञानिक (पशुपालन), 2परियोजना समन्वयक
कृषि विज्ञान केन्द्र, उजवा दिल्ली
ढेलेदार त्वचा रोग ( लम्पी स्कीन डिसीज – एलएसडी) गौवंशीय में होने वाला विषाणुजनित संक्रामक रोग है। जो कि पोक्स फेमिली के वायरस जिससे अन्य पशुओं में पाॅक्स (माता) रोग होता है। वातावरण में गर्मी एवं नमी के बढ़ने के कारण देष के विभिन्न प्रदेशों में जैसे मध्यप्रदेश, उड़िसा, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल के साथ-साथ हमारे क्षेत्र दिल्ली व् हरियाणा के कुछ इलाको में भी पाया जा रहा है।
संक्रमण कैसे फैलता है :
स्वस्थ पशुओं को यह बिमारी एलएसडी संक्रमित पशुओं के सम्पर्क में आने से व वाहक मच्छर/टिक्स (चमोकन) से होता है। एलएसडी की वजह से दुधारू पशुओं में दुध उत्पादन एवं अन्य पशुओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
लक्षण:
एक या दो दिन तेज बुखार, शरीर एवं पांव में सुजन, शरीर में गठान व चकते, गठान का झड़कर गिरना एवं घाव का निर्माण।
बचाव:
संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखे, पशुओं एवं पशुघर में टिक्स मारक दवा का उपयोग करें।
उपचार:
चूँकि एलएसडी विषाणु जनित रोग है तथा टीका एवं रोग विषेष औषधी न होने के कारण पशु चिकित्सक के परामर्ष से लक्षणात्मक उपचार किया जा सकता है। बुखार की स्थिति में पैरासिटामाल, सुजन एवं चर्म रोग की स्थिति में एन्टी हिस्टामिनिक एवं एन्टी इंफलामेट्री दवाईयां तथा द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने हेतु 3-5 दिनों तक एन्टीवायोटिक दवाईयों का प्रयोग किया जा सकता है।
ढेलेदार त्वचा रोग का आर्थिक प्रभाव :
एलएसडी उच्च रुग्णता लेकिन कम मृत्यु दर के साथ जुड़ा हुआ है। आपके झुंड के 40% तक संक्रमित हो सकते हैं और मृत्यु दर 10% तक जा सकती है। इस रोग से दुग्ध उत्पादन में कमी, स्थायी या अस्थायी हानि हो सकती है। प्रजनन झुंड में प्रजनन क्षमता का कम या पूर्ण नुकसान। गर्भपात के साथ-साथ त्वचा को स्थायी नुकसान।
अपील:
इस रोग में पशु मृत्यु दर नगण्य है। पशुपालकों से आग्रह किया गया है कि एलएसडी से भयभीत न होकर बताये जा रहे तरीकों से पशुओं का बचाव व उपचार करावें। विशेष परिस्थितियों में निकटम पशु चिकित्सक से तत्काल सम्पर्क करें। कुल मिलाकर यह मुख्य रूप से पशु के आर्थिक मूल्य को प्रभावित करता है।
पशुओं में वर्षा ऋतू (जुलाई से सितम्बर) व् अक्टूबर तक महत्वपूर्ण टीकाकरण :
खुरपका मुंहपका
(FMD) |
4 माह से अधिक | प्रत्येक 6 माह के अंतराल पर |
गलगोटू (HS) | 6 माह से अधिक | वर्ष में एकबार |
लंगड़ा बुखार (BQ) | 6 माह से अधिक | जीवन में एक बार |
ब्रूसीलोसिस (Brucellosis) | 4-8 माह से अधिक | 1-2 बार सालाना |
थैलेरिओसिस (Theileriosis) | 3 माह से अधिक | 1-2 बार सालाना |
टीकाकरण के दौरान गाभिन पशुओं में सावधानियां व् उनकी देखभाल :
- ऐसे पशुओं को अंतिम गर्भकाल अवस्था में सबसे अलग सूखे व स्वच्छ स्थान पर रखें I
- ऐसे पशुओं से 60-90 दिन पहले दूध लेना बंद कर देना चाहिए I
- दो-तीन दिन में 1 बार दूध निकाले I
- 2 दिन में एक बार दूध निकाले I
- 3 दिन में एक बार दूध निकाले I
- मादा पशु में शिशु का विकास छह-सात महीनों में बहुत धीमी गति से होता है I
- गर्भकाल के अंतिम 3 महीनों में अधिक तेजी से होता है अतः उस समय उचित पौष्टिक आहार अनिवार्य है I
अतः स्वस्थ व् बीमारीमुक्त पशुपालन के लिए उपरोक्त सभी निर्देशों के अनुपालना करें।
स्वस्थ पशुपालन समृद्ध किसान समृद्ध राष्ट्र
डॉ जय प्रकाश , विशेषज्ञ (पशुपालन ), कृषि विज्ञान केन्द्र, उजवा दिल्ली
मोबाइल नंबर – 09813803111 ईमेल – jptruth11@gmail.com
https://www.pashudhanpraharee.com/lumpy-skin-disease-ka-upchar/
https://epashupalan.com/hi/7054/animal-disease/lumpy-skin-disease/