क्या होता है लंपी स्किन डिजीज, जानें इसके लक्षण, कारण और बचाव
Dr.Shally Nagar, Dr.S.R.Nagar & Dr.Manoj Ahirwar
क्या होता है लंपी वायरस
कोरोना वायरस महामारी के बीच एक और वायरस ने दस्तक दी है। यह एक वायरल डिजीज है, जो पशुओं में फैल जाती है. लोग पहले ही कोरोना और मंकीपॉक्स जैसे इंफेक्शन को लेकर खौफ में हैं. ऐसे में एक और नए वायरस को लेकर टेंशन बढ़ गई है. भारत में लम्पी स्किन डिजीज का पहला मामला 23 अप्रैल को गुजरात के कच्छ इलाके में देखा गया था।इसके बाद यह बीमारी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और जम्मू कश्मीर तक फैल गया।राजस्थान इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र है, जिसमें रोजाना 600 से 700 मौत हो रही हैं। वहीं दूसरे प्रदेशों में रोजाना की मौतों का आंकड़ा 100 से नीचे का है।राजस्थान इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला राज्य है, हालांकि, स्थिति से निपटने के लिए सरकार निरंतर कदम उठा रही है। इस वायरस की चपेट में आने से अब तक हजारों मवेशी काल के गाल में समा गए हैं। वहीं, लाखों की संख्या में मवेशी लंपी वायरस की चपेट में सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में लगभग 67 हजार से अधिक मवेशियों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है और लाखों जानवर अभी भी इस से संक्रमित हैं। इससे पहले साल 2019 में लंपी वायरस का कहर भारत में देखने को मिला था।
कारण
लंपी स्किन डिजीज को ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ भी कहा जाता है। वहीं, शार्ट में LSDV कहा जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है, जो एक पशु से दूसरे पशु को होती है।संक्रमित पशु के संपर्क में आने से दूसरा पशु भी बीमार हो सकता । यह बीमारी Capri Poxvirus नामक वायरस के चलते होती है। इस वायरस का संबंध गोट फॉक्स और शीप पॉक्स वायरस के फैमिली से है। मच्छर के काटने और खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए यह बीमारी मवेशियों को होती है। इस रोग के कारण पशुओं की त्वचा पर गांठें होती हैं। एलएसडीवी का प्रकोप उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता से जुड़ा होता हैयह आमतौर पर गीली गर्मी और शरद ऋतु के महीनों के दौरान अधिक प्रचलित होता है, विशेष रूप से निचले इलाकों या पानी के नजदीकी इलाकों में, हालांकि, शुष्क मौसम के दौरान भी प्रकोप हो सकता है।रक्त-पोषक कीट जैसे मच्छर और मक्खियाँ रोग फैलाने के लिए यांत्रिक वाहक के रूप में कार्य करते हैं।
संक्रमण का कारण
- मवेशियों या जंगली भैंसों में यह रोग ‘गाँठदार त्वचा रोग वायरस’ (LSDV) के संक्रमण के कारण होता है।
- यह वायरस ‘कैप्रिपॉक्स वायरस’ (Capripoxvirus) जीनस के भीतर तीन निकट संबंधी प्रजातियों में से एक है, इसमें अन्य दो प्रजातियाँ शीपपॉक्स वायरस (Sheeppox Virus) और गोटपॉक्स वायरस (Goatpox Virus) हैं।
वेक्टर
- यह मच्छरों, मक्खियों और जूँ के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से फैलता है।
- वायरस को रक्त, नाक से स्राव, लैक्रिमल स्राव, वीर्य और लार के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है। यह रोग संक्रमित दूध से दूध पिलाने वाले बछड़ों में भी फैल सकता है।
- प्रायोगिक रूप से संक्रमित मवेशियों में, एलएसडीवी बुखार के 11 दिन बाद लार में, 22 दिनों के बाद वीर्य में और 33 दिनों के बाद त्वचा के नोड्यूल्स में पाया गया। मूत्र या मल में वायरस नहीं पाया जाता है। अन्य चेचक विषाणुओं की तरह, जिन्हें अत्यधिक प्रतिरोधी माना जाता है, एलएसडीवी संक्रमित ऊतकों में 120 दिनों से अधिक समय तक व्यवहार्य रह सकता है।
लंपी स्किन डिज़ीज़ के लक्षण
- इस बीमारी में शरीर पर गांठें बनने लगती हैं. खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास.
- इसके बाद धीरे-धीरे गांठे बड़ी होने लगती हैं और फिर ये घाव में बदल जाती हैं.
- इस बीमारी में गाय को तेज़ बुखार आने लगता है.
- गाय दूध देना कम कर देती है.
- मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है.
- कई बार गाय की मौत भी हो जाती है.
- यह पूरे शरीर में विशेष रूप से सिर, गर्दन, अंगों, थन (मादा मवेशी की स्तन ग्रंथि) और जननांगों के आसपास दो से पाँच सेंटीमीटर व्यास की गाँठ के रूप में प्रकट होता है।
- इसके अन्य लक्षणों में सामान्य अस्वस्थता, आँख और नाक से पानी आना, बुखार तथा दूध के उत्पादन में अचानक कमी आदि शामिल है।
- बुखार, लार, आंखों और नाक से स्रवण, वजन घटना, दूध उत्पादन में गिरावट, पूरे शरीर पर कुछ या कई कठोर और दर्दनाक नोड्यूल (व्यास में 2-5 सेंटीमीटर (1-2 इंच)) दिखाई देते हैं।
- यह नर और मादा में लंगड़ापन, निमोनिया, गर्भपात और बाँझपन का कारण बन सकता है।
निदान
विशिष्ट लक्षणों के आधार पर निदान करना मुश्किल नहीं है। इसे गाय चेचक से अलग करने की जरूरत है, जिसके घाव गैर-बालों वाले हिस्सों थन और अङर तक ही सीमित हैं। प्रयोगशाला द्वारा आसानी से बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
रोकथाम और नियंत्रण
- फार्म और परिसर में सख्त जैव सुरक्षा उपायों को अपनाएं।
- नए जानवरों को अलग रखा जाना चाहिए और त्वचा की गांठों और घावों की जांच की जानी चाहिए।
- प्रभावित क्षेत्र से जानवरों की आवाजाही से बचें।
- प्रभावित जानवर को चारा, पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखा जाना चाहिए, ऐसे जानवर को चरने वाले क्षेत्र में नहीं जाने देना चाहिए।
- उचित कीटनाशकों का उपयोग करके मच्छरों और मक्खियों के काटने पर नियंत्रण। इसी तरह नियमित रूप से वेक्टर विकर्षक का उपयोग करें, जिससे वेक्टर संचरण का जोखिम कम हो जाएगा।
- फार्म के पास वेक्टर प्रजनन स्थलों को सीमित करें जिसके लिए बेहतर खाद प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
- वैक्सीन – एक फ्रीज ड्राय, लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन उपलब्ध है जो बीमारी को नियंत्रित करने और फैलने से रोकने में मदद करता है। निर्माताओं के निर्देशों के अनुसार शेष जानवरों का टीकाकरण करें।
- गाँठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम चार रणनीतियों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं – ‘आवाजाही पर नियंत्रण (क्वारंटीन), टीकाकरण, संक्रमित पशुओं का वध और प्रबंधन’।
उपचार
चूंकि यह वायरल संक्रमण है, इसलिए इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन द्वितीयक जीवाणु संक्रमण से बचने के लिए –
एंटीबायोटिक्स, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीहिस्टामिनिक दवाएं दी जाती हैं।
त्वचा के घावों को 2 प्रतिशत सोडियम हाइड्रॉक्साइड, 4 प्रतिशत सोडियम कार्बोनेट और 2 प्रतिशत फॉर्मेलिन द्वारा एंटीसेप्टिक समाधान के साथ इलाज किया जा सकता है।
वायरस का कोई इलाज नहीं होने के कारण टीकाकरण ही रोकथाम व नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है।
त्वचा में द्वितीयक संक्रमणों का उपचारगैर-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non-Steroidal Anti-Inflammatories) और एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा सकता है
सरकार गॉट पॉक्स वैक्सीन को 100 प्रतिशत प्रभावी होने का दावा कर रही है और प्रभावित हिस्सों में 1.5 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं। भारत में मवेशियों की कुल संख्या 20 करोड़ के लगभग है।