पशुओं में लंपि स्किन डिजीज: उपचार एवं बचाव के उपाय

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पशुओं में लंपी स्किन डिजीज: उपचार एवं बचाव के उपाय

डॉ निर्भय कुमार सिंह ,असिस्टेंट प्रोफेसर ,बिहार वेटरनरी कॉलेज, पटना

परिचय:                                
लम्पी त्वचा रोग Lumpy Skin Disease (LSD) को स्यूडो-अर्टिकेरिया, नीथलिंग वायरस रोग, एक्थेमा नोडुलरिस बोविस के रूप में भी जाना जाता है। एलएसडी एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है, यह रोग Lumpy Skin Disease Virus (LSDV) से गाय एवं भैंसों में संक्रमण होता है, जिसका बाहक  विभिन्न रक्त-पोषक आर्थ्रोपोड्स (मक्खियों, कीटों एवं टिक्स) होतें हैं, मक्खियों, कीटों एवं टिक्स जब रक्त करने के लिए काटने हैं उसी समय एलएसडी के विषाणु मेजबान पशु में प्रवेश कर जातें हैं । एलएसडी के कारण , ढेलेदार त्वचा एवं खाल को काफी नुकसान होता है, अगर पशु को लम्बे समय तक इस बीमारी से ग्बांरसित होने के कारण पशु में बांझपन, थनेला रोग होने का खतरा बढ़ जाता है, पशु को भूख में कमी और कमजोर हो जाती है । अचानक दुग्ध  उत्पादन में कमी हो जाती है । उचित उपचार के आभाव में पशु की मृत्यु भी हो जाती है (मृत्यु दर 20%) इस तरह पशुपालक को काफी आर्थिक नुकसान झेलना परता है।
लक्षण:
विषाणु से सक्रमण से लेकर प्रथम बार जब इस रोग के लक्षण दिखने में लगभग 1-5 सप्ताह होता है पहलेपहल आंख में पानी या किची, नाक से श्राव, सिर, गर्दन, पेरिनियम, जननांग, थन, टीट्स  के त्वचा पर नोडुल/ढेलेदार 10-50 मिमी व्यास का उभार हो जाता हैं, बाद में ये नोडुल घाव का रूप ले लेती है जिससे पशु को काफी दर्द होती है , मध्यम से तेज़ बुखार (104-107°F) हो जाता है | प्रायः बुखार 6-72 घंटे में कम हो जाता है, परन्तु कभी-कभी बुखार 10 दिनों तक भी हो सकता है | कमजोरी, भूख की कमी, अचानक दुग्ध उत्पादन में कमी, समय से उपचार न होने पट पशु की मृत्यु हो जाती है |
उपचार/ निदान:
एलएसडी वायरस के कारण होता है परन्तु समय से पशु चिकित्सक से उपचार करने पर पशु ठीक हो जाती है | जीवाणु संक्रमण, बुखार एवं सूजन को नियंत्रण और नोडूल या जख्म का अच्छी तरह से ड्रेसिंग कर इस बीमारी को उपचार करना चाहिए | जख्म को लाल पोटाश या फिटकिरी के घोल से अछी तरह से धुल कर एंटीसेप्टिक का उपयोग करें |

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हर्बल उपचार/आयुर्वेदिक उपचार :
पशुपालक पशुचिकित्सक के देख रेख में आयुर्वेदिक उपचार भी कर सकतें हैं |

संक्रमण के पहले तीन दिनों के लिए उपचार |

सामग्री :

10 पान का पता, 10 कलि मिर्च और 10 ग्राम सिंधा नमक मिलाकर पिस लें, गुड के साथ तिन-तिन घंटे पर बीमार पशु को खाने के लिए दें |
2. संक्रमण के 3-14 दिनों से पशु का उपचार |
सामग्री :

2 जौ लहसुन,15 ग्राम धनिया पता, 15 ग्राम जीरा, 15 ग्राम लौंग के पत्ते, 15 ग्राम काली मिर्च, 5 पान के पत्ते, 2 छोटे प्याज, 10 ग्राम हल्दी पाउडर, एक हाथ से पूरा नीम के पत्ते, एक हाथ में तुलसी के पत्ते  मिलाकर पिस लें, गुड के साथ सुबह, शाम एवं रात को प्रतिदिन दें |
3. घाव पर लगाने के लिए हर्बल   मलहम |
सामग्री :

10 नग लहसुन, 10 ग्राम हल्दी पाउडर, ओने हाथ से पूरी तुलसी के पत्ते, एक हाथ से पूरे नीम के पत्ते, एक हाथ से पूरी मेंहदी के पत्ते को पिस कर 500 मिली लीटर नारियल  तेल में उबालें और ठंढा होने पर घाव पर लागंये |
रोकथाम :
अपने पशु को एलएसडी का टिक्का अवश्य दिलायें, गोशाला को गन्दगी से मुक्त एवं साफसुथरा रखें, पानी का जमाव नहीं होने दें, समय-समय पर कीटनाशकों का उपयोग कर मक्खियों, कीटों एवं टिक्स का नियंत्रण करतें रहें | अपने गोशाला में अनावश्यक प्रवेश वर्जित रखें | बीमार पशु को अलग रखें, पशु खरीदते समय क्वारंटाइन का शख्ती से पालन करें जिस क्षेत्र में महामारी फैली हो वहां से पशु का खरीदारी नहीं करें |

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