बारिश के मौसम मे पशुओ मे होने वाली बीमारी, लक्षण एवं बचाव के उपाय

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बारिश के मौसम मे पशुओ मे होने वाली बीमारी, लक्षण एवं बचाव के उपाय

डॉ. अमित कुमार मीणा1, डॉ मदन मोहन माली2, डॉ धर्म सिंह मीणा3,डॉ दीपा मीणा4, डॉ नेहा मीणा5

    बारिश के मौसम मे चारों ओर हरियाली बढ़ जाती है, पशुओ के लिए भी हरा चारा आसानी से उपलब्द हो जाता है| परंतु यह मौसम कई बीमारिया भी साथ लाता है | जिससे पशुओ के बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है, पशुओ के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, दुधारू पशुओ का दूध अत्यधिक कम हो जाता है एवं कई बार पशुओ की मौत भी हो जाती है| इसलिए बहुत जरूरी है की पशुपालक इस मौसम मे अपने पशुओ का विसेष ध्यान रखे |

बारिश के मौसम मे होने वाली मुख्य बीमारिया:  

     बारिश के समय पशुओ मे मुख्य रूप से अनेक बीमारियों का प्रकोप रहता है जो निम्न है-

पशुओ मे ब्लैक क्वार्टर रोग (बी. क्यू.)

पशुओ मे खुर पका मुह पका रोग

पशुओ मे हेमोरेजिक सेप्टीसेमिया (एच. एस.)

पशुओ मे थनेला रोग

पशुओ मे छेरा रोग (लिवर फ्लूक)

आदि कई प्रकार की बीमारिया फैलती है| अतः पशुपालकों के लिए अतिआवश्यक है कि बारिश के मौसम मे पशुओ का विशेष ध्यान रखे |

बारिश के मौसम मे होने वाली मुख्य बीमारी:

खुर पका एवं मुह पका बारिश के मौसम मे पशुओ को अत्यधिक हानी पहुचाने वाली बीमारी है| यह बीमारी पशुओ के मुह एवं पैर मे होने वाली या पैर या मुह का रोग कहलाती है| यह जानवरों मे अत्यधिक संक्रामक रोग है जो एक जानवर से दूसरे जानवर मे फैलता है| यह बीमारी मुख्य रूप से गाय, भैस, भेड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओ एवं हिरण आदि जंगली जानवरों मे होती है| अतः पशुपालकों को इस बीमारी के प्रति जागरूक रहना चाहिए|

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बीमारी के लक्षण:

    खुर एवं मुह पका बीमारी मे मुख्य रूप से जानवरों के मुह के भाग जैसे जीभ, होंठ, मसूड़े, नाक या मुह मे छाले बन जाते है | जिससे उन्हे खाने मे परेशानी होती है तथा पशुओ के पैरों के खुरो के बीच घाव हो जाते है जिस कारण पशुओ को चलने मे भी परेशानी होती है और पशु लंगड़ाकर चलता है| इस बीमारी मे पशु जागदार लार टपकता है| पशुओ को बहुत तेज बुखार आता है| पशु चारा खाना बहुत कम या बंद कर देता है| पशुओ के दूध उत्पादन मे अत्यधिक कमी होती है|

संक्रमण होने का खतरा:

    यह एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है जो पशुओ के एक से दूसरे जगह जाने पर या संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु के संपर्क मे आने पर या संक्रमित चारा पानी देने पर फैल सकती है|

बीमारी से बचाव के उपाय:

इस बीमारी के संक्रमण या प्रसार को रोकने के लिए संक्रमित जानवरों को स्वस्थ जानवरों से अलग रखना चाहिए| नया पशु खरीदकर लाने पर कम से कम 21 दिन उस पशु को बाकी पशुओ से दूर रखना चाहिए ताकि उसमे कोई संक्रमण या लक्षण हो तो उन्हे पहचान के उपचार किया जा सके|

बीमारी का इलाज/उपचार:

     यह बीमारी मुख्य रूप से मुह एवं खुरो को प्रभावित करती है जिन्हे एक प्रतिशत पौटेशियम पेरमैगनेट के घोल से धोना चाहिए| पशुओ के मुह एवं जीभ पर ग्लिसरीन एवं बोरिक एसिड का मलहम लगाना चाहिए| सभी जानवरों का छः महीने के अंतराल मे टीकाकरण कराना चाहिए| बीमारी का असर बढ़ने पर पशुपालकों को पशुचिकित्सक की सलाह एवं उपचार लेना चाहिए|

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Authors Details:

  1. डॉ. अमित कुमार मीणा, पी.एच.डी. विद्यार्थी, पशु औषधि विज्ञानं विभाग, पी.जी.आ.ई.वी.ई.र., जयपुर।
  2. डॉ मदन मोहन माली, सहायक आचार्य, पशु औषधि विज्ञानं विभाग, पी.जी.आ.ई.वी.ई.र., जयपुर।
  3. डॉ धर्म सिंह मीणा, आचार्य, पशु औषधि विज्ञानं विभाग, पी.जी.आ.ई.वी.ई.र., जयपुर।
  4. डॉ दीपा मीणा,एम.वी.एस.सी. विद्यार्थी, सर्जरी और रेडियोलॉजी विभाग, पी.जी.आ.ई.वी.ई.र., जयपुर।
  5. डॉ नेहा मीणा, पशु चिकित्सक, पशुपालन विभाग राजस्थान।
  6. https://www.pashudhanpraharee.com/care-and-managemental-tips-of-farm-animals-during-rainy-seasons-to-livestock-farmers/

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