प्रजनन / सकंरण के दौरान सूकर प्रबंधन
अर्पिता श्रीवास्तव, नीरज श्रीवास्तव, राजीव रंजन,अमित कुमार झा,नम्रता उपाध्याय
पषुचिकित्सा एवं पषुपालन महाविद्यालय रीवा
सूकर पालन पषुपालन के क्षेत्र मे एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका है। सूकर प्रबंधन मे प्रमुख रुप से निम्न बिन्दुओं को ध्यान मे रख कर किया जाता हैः
1. सूकर गृह
सूकर गृह का निर्माण थोड़ी ऊॅंचाई वाली भूमि पर करना चाहिए तथा नालियों से गंदे पानी की निवासी अच्छी तरह से हो। छत सीमेंट शीट्स का हो तथा घास इत्यादि भी डाल देना चाहिए ताकि गर्मी से सूकरों को बचाया जा सके। फर्श खुरदुरा हो ताकि फिसलने से शारीरिक चोट या नुकसान न हो। घर में सभी तरफ हवादार हो। तीन फुट ऊंची दीवाल के ऊपर छत व तार की जाली लगाई जा सकती है ताकि पक्षियों का प्रवेश निरोध हो तथा प्रदूषण रहित रहे। कीटाणु, जीवाणु तथा परजीवी नाशक दवाओं का छिड़काव करें ताकि सूकरों को बीमार होने से बचाया जा सके। नीम तथा अन्य छायादार वृक्ष घर के दोनों तरफ लगाये जायें। प्रवेश तथा निर्गम की दिशा दक्षिण-उत्तर हो। नमी सूखा तथा गर्मी से बचाने के उपाय किये जायें। प्रवेश तथा निकास द्वार के आगे सीमेंट का बना टैंक हो जिसमें कीटनाशक दवा भरी हो तथा प्रवेशकर्ता उसमें पैर डुबाकर प्रवेश कर तथा उसी क्रम में वापस हो। प्रवेश द्वार पर बोरा डाला जाय जिस पर बिना बुझा चूना तथा कीटनाशक दवायें डाली जायें और वहीं प्रक्रिया अपनाई जाये टैंक में पैर डुबाकर प्रवेश व निकासी की गई है।
यदि उन्नत चारा उत्पादन हेतु प्रक्षेत्र से लगी भूमि हे. तो गृह की धुलाई तथा मलमूत्र नालियों द्वारा सीधे खेतों में पहुंचाने की व्यवस्था की जाये।
सूकर गृह में पानी तथा दाने में मेन्जर्स सीमेंट के बनाये जा सकते हैं। प्रसव कमरों में दीवाल के 9‘‘ बाहर तथा जमीन से 9‘‘ ऊपर 1‘‘ मोटे जी.आई.पाईप की रेलिंग लगाई जाये जो मादा द्वारा बच्चों को दबाने से बचाने में काम आती है क्योंकि जब बच्चों को दूध पीने के लिए छोड़ा जाता है तब मादा दीवाल का सहारा लेकर लेटती है इसलिए रेलिंग सूकर शावकों को मादा से तथा दीवाल से दबकर मरने से बचाता है।
ग्रामीण परिवेश में विदेशी उन्नत नस्ल के सूकरों की देखभाल करना ज्यादा जरूरी होता है। लगातार अधिक समय तक गर्मी में रखने से उनके मृत्यु की सम्भावना अधिक होती है। गर्मी में सूकरों के ऊपर दिन में 2-3 बार ठंडे पानी का छिड़काव लाभप्रद होता है।
2. मादा सूकरों में गर्मी के लक्षण:-
मादा सूकर सामान्यतः 6-7 माह में 70 कि. वनज की होगर गर्मी दर्शाना शुरू कर देती है लेकिन अधिक सूकर शावक प्राप्त करने के लिए 2-3 गर्मी को छोड़ दिया जाता है अर्थात् फलाया नहीं जाता जिसे तीसरी या चौथी गर्मी पर फलाने से अण्डाशय से अधिक अंडे निकलकर प्रजनन नर से 2-3 बार 12 घंटे के अंतराल में फलाया जाता है ताकि अधिक अण्डे अधिक शुक्राणुओं से निषेचित होकर अधिक सूकर शावक उत्पादित करें। इसलिए सही प्रजनन उम्र मादाओं के 8-9 माह होती है।
जब मादा सूकर गर्मी पर आती है त बवह यहॅा-वहॅा भागती है तथा नर सूकर के आसपास मंडराती है यदि नर सूकर पास है तो ऐसा होता है। दूसरी मादा के ऊपर चढ़ती है। खाना-पीना छोड़ देती है, पेशाब की जगह फुलकर अंदरूनी भाग लाल होता है। लगातार बार-बार पेशाब करती है और चिकना लार के समान स्त्राव निकलता है। नर को अपने ऊपर चढ़ने देती है और चुपचाप खड़ी रहती है।
इस स्थिति में या तो मादा को नर के कमरे में ले जाया जाता है या नर को मादा के कमरे में ले जाते हैं। इसमें 5 से 20 मिनट तक समय लगता है तथा 300-500 सीसी तक वीर्य निकलता है जो जमे हुए बर्फ के समान दिखाई देता है यदि 21 दिन के बाद मादा गर्मी पर नहीं आती है तो मादा फल गई है ऐसा माना जाता है। जनन में 3 माह 24 दिन या 114 दिन का गर्भकाल होता है।
3. ब्रीडिंग साइकिल:
जनन के पश्चात् पुनः 4-7 दिन के भीतर पुनः मादा गर्मी पर आती है। सूकर पालक चाहे तो पुनः मादा से गर्भवती करवाकर साल में 3 बार एक मादा से प्रजनन करवा सकता है लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। जनन के 56 दिन के बाद मादा अपने आप शावकों को अलग ;ॅमंदपदहद्ध कर देती है। सामान्यतः 2 माह मानकर चलते हैं ताकि गर्भाशय को आराम मिले और वीनिंग के बाद 6-7 दिन में पुनः गर्मी पर आती है तथा फलाया जाना चाहिए। इस प्रकार एक वर्ष में दो बार प्रजनन कराया जाकर अधिकतम 3 साल तक प्रजनन करता है तीन साल तक 5 मादाओं को फलाने के लिए आयु निर्धारित है। फिर प्रजनन स्टॅाक बदल देना चाहिए।
4. जनन (फेरोइंग)ः
गर्मीवती मादा सूकर को चरने के लिए छोड़ना चाहिए जिससे व्यायाम के साथ-साथ हरा चारा खाने से विटामिन की पूर्ति होती है तथा पौंधों में जड़े खाने से थोड़ी मिट्टी भी खाती है जो खनिज तत्वों की पूर्ति करती है। इस गर्भकाल में मादा के स्वयं के रखरखाव के लिए 2 कि.ग्रा.राशन प्रतिदिन तथा 0.5 कि.ग्रा. राशन गर्भाशय में पल रहे शावकों की शारीरिक वृद्धि के लिए जाता है। इस प्रकार 1.35 कि.ग्रा. राशन सुबह तथा 1.25 कि.ग्रा. राशन शाम को दिया जाता है। जनन के सात दिन पूर्व मादा को अलग कमरे में रखा जाता है। धान पेरा का बिस्तर बनाया जाता है। सामान्यतः 10-12 सूकर शावक जनन में 1-2 घंटे का समय लगता है लेकिन कभी-कभी 5-6 घंटे भी लगते हैं। कमजोर शावक सबसे बाद में गर्भाशय के बाहर आते हैं। अंतिम दो शावक ;त्नदजद्ध रंट कहलाते हैं। तथा उनके जीवित रहने की सम्भावना न्यूनतम होती है जिन्हें गिनती में नहीं लिया जाता है। प्रत्येक शावक की गर्भाशय थैली अलग-अलग होती है।
5. जनन के पश्चात् मादा तथा सूकर शावकों की देखभाल:
जनन के पश्चात् सूकर शावकों की पोंछकर उनकी नाल निर्जन्तुकृत पद्धति से काटी जाती है तथा समस्त कचरे से बाहर निकालकर दूर जमीन में गड्ढ़े में रखकर जला देते हैं तथा बिना बुझा चूना डालते हैं तथा गड्ढ़े को ढ़क दिया जाता है । सूकर शावकों के मादा का पहला दूध (चीका, पेबस, खीस, कोलस्ट्रम) आदि नामों से जाना जाता है, पिलाना चाहिए जिससे कोलस्ट्रम तत्काल उनके रक्त में अवशोषित होकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ, विटामिन, प्रोटीन, दस्तावर खनिज तत्वों से युक्त होती है तथा आंतों को भी साफ करके कचरे को बाहर निकालता है।
6. दंत काटना:
सूकर शावकों के ऊपर तथा नीचे में जबड़े में सुई के समान ;छममकसमद्ध दांत होेते हैं जो मादा के थनों में घाव बना सकते हैं इसलिए दांत काटने वाली मशीन से उनके दांत काटकर पोटेशियम परमेगनेट कोल से धोना चाहिए। दूध पिलाने से पूर्व शावकों का व्यक्तिगत वनज कुल शावकों का वनज तथा औसत वजन लेना चाहिए। सभी क्रियाओं का अभिलेख तैयार करना चाहिए।
7. पहचान का तरीका:
प्रजनन स्टॅाक की पहचान तथा संतति की पहचान तथा आयु इत्यादि ज्ञात करने के लिए टेटूईंग स्याही (अमिट स्याही) इयर वॅाचिंग, इयर पंचिग, लेग बेंड आदि का उपयोग या टेगिंग करना चाहिए ताकि आय-व्यय का भी लेखा-जोखा रखा जा सके। इसमें वॅाचिंग या टेटूईंग अच्छी विधि है।
8. खानपान:
सूकर शावकों को एक माह तक मादा का दूध पिलने के पश्चात दूध पिलाना कमकर क्रीप राशन देना शुरू कर देना चाहिए। क्रीपर का आशय है कि छोटे बच्चे जो स्वयं की सुरक्षा नहीं कर सकते या मादा में दूध कम हो रहा है जो शावकों को अपर्याप्त है, देना उचित होता है। क्रीप राशन में निम्नानुसार घटक तथा मात्रा होती है:-
ग्रोवर तथा वयस्क सूकरों को खिलाने की पद्धति पूर्व बताई गई है।
9. प्रजनन हेतु सूकरों का चयन:
स्ूाकरों के प्रजनन, शारीरिक वृद्धि तथा क्षमता की गुणवत्ता को उत्रत रखने के लिए सूकरों की उत्पादन क्षमता, उत्पादित सूकर शावकों की संख्या, कितने कम समय से अच्छी शारीरिक वृद्धि हुई है, इसी के आधार पर सूकर का प्रजनन हेतु चयन किया जाता है। इसके लिए उनका सम्पूर्ण रिकार्ड रखना आवश्यक होता है। अच्छे सूकरों के चयन से सूकर पालन व्यवसाय लाभप्रद होता है। शुरू करने के लिए कम संख्या में सूकरों से प्रजनन तथा उत्पादन करना चाहिए इसके बाद ही प्रजनन स्टॅाक मंे वृद्धि करना चाहिए।
सूकर स्वस्थ, मादा अच्छी दूध उत्पादन वाली हो क्योंकि अधिक संतति उत्पादन पर केवल 12 थनों से सभी शावकों को बराबर दूध की मात्रा मिलना असंभव है। कोशिश यह होना चाहिए कि उनके राशन, मजदूरी, उपकरण या पशुगृह के रख-रखाव में कम से कम लागत आये तथा आय अधिक हो। ऐसे नर और मादा सूकरों का प्रजनन हेतु चयन करें जो एक बार फलाने पर फल जाये और एक बार के जनन में 10 से कम शावक उत्पादित न करती हों। संकर प्रजाति की सूकर मादायें अच्छी उत्पादक बाकवा वाली होती हैं तथा अच्छी नर्सिग मदर का कार्य भी करती है।
प्रजनन नर सूकरों के चयन में भी उसकी प्रजनन क्षमता अभिलेख देखकर ही चयन करना चाहिए। इसके लिए रिकार्ड देखकर उसकी वंशावली ;च्वकमहतममद्ध देखा जाना जरूरी है। इनब्रीडिंग रोका जाना चाहिए अन्यथा मृत्यु दर अधिक होती है। इसके साथ ही यदि प्रबंधन ठीक है तो ज्यादा कठिनाई नहीं होती पेरेन्ट-ऑफस्प्रिंग तथ फुल ब्रदर- फुलसिस्टर द्वारा प्रजनन नहीं करना चाहिए।
BREEDING SYSTEM IN PIG
कई प्रकार की प्रजनन पद्धतियॅंा प्रचलित हैं जो तत्कालीन परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
1. चयन एवं आउट- क्रासिंग:- यह पद्धति सूकर प्रजनन प्रक्षेत्रों तथा ऐसे लोगों द्वारा अपनाई जाती है जो मात्र प्रजनन हेतु ही सूकर पालते हैं।
2. ग्रेडिंग-अप ;ळतंकपदह.नचद्ध:- इस पद्धति में शुद्ध विदेशी नस्ल के प्रजनन नर सूकर से शुद्ध देशी मादा सूकर से प्रजनन कराया जाता है। इनसे प्राप्त मादा को पुनः शुद्ध नर से प्रजनन कराया जाकर उससे उत्पादित मादा संतति से फिर विदेशी नर सूकर से प्रजनन कराया जाता है और यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक 99.9: शुद्ध विदेशी संतति उत्पादित नहीं हो जाती है।
3. क्रास बीडिंग ;ब्तवेे ठतममकपदहद्ध:- या तो सिंगल क्रासिंग या क्रिसक्रासिंग इसके लिए उपयुक्त रहती है जो ऐसे सूकर पालकों द्वारा अपनाई जाती है जो सघनीकृत रूप से सूकर उत्पादन हेतु प्रजनन कराते हैं।
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