गर्मी के मौसम में दुधारू पशुओं का प्रबंधन

0
990
SUMMER-MANAGEMENT-DAIRY-CATTLE
SUMMER MANAGEMENT OF DAIRY CATTLE

गर्मी के मौसम में दुधारू पशुओं का प्रबंधन

डॉ केशव कुमार1, डॉ विद्या शंकर सिन्हा2 , डॉ मनीष कुमार3, डॉ धर्मेंद्र सिंह4 , डॉ अवनीश कुमार गौतम5, डॉ अजीत कुमार झा6

  1. 1. M.V.Sc, VGO, 2. SMS(Vet and Animal Sc.), KVK Sheikhpura, Bihar, 3. M.V.Sc, VAN, 4. Ph.D Scholar (VAN) WBUAFS, Kolkata, 5. Assistant Prof. BVC, BASU,Patna, 6. Ph.D Scholar, VOG, WBUAFS, Kolkata

भारत वर्ष विविध मौसमों का देश है। मौसमीय विविधताओं का प्रभाव हमारे पशु के उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है। गर्मी का मौसम हमारे पशुओं को सर्वाधिक प्रभावित करता है, जिसे वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करके पशुओं को स्वस्थ रख सकते है एवं पशुपालकों की आर्थिक क्षति को भी कम कर सकते हैं। जिसके के लिए निम्नलिखित विंदुओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है –

  1. आवास व्यवस्था:- पशु आवास उत्तर-दक्षिण लंबाई की होनी चाहिए तथा दो आवास एक साथ बनाना चाहिए। जिससे की पूर्व एवं पश्चिम से आने वाले धूप का बचाव पशुओं को एक आवास से दूसरे आवास मे स्थानांतरित करके किया जा सके। आवास के निकट मे छायादार वृक्ष लगाना चाहिए जिससे की तेज धूप एवं लू से पशुओं को बचाया जा सके। पशु आवास में गर्म हवाओं के सीधा प्रवाह को रोकने के लिए बोरी टाट या खस को मुख्य द्वार एवं खिड़की मे गीला करके टांग दे जिससे पशु आवास मे ठंडक बनी रहे। पशुशाला में क्षमता से अधिक पशुओं को नहीं बांधना चाहिए। पशु आवास का छत यदि कंक्रीट या एसबेसटस का हो तो उसके ऊपर 4-6 इंच घास-फूस रख देना चाहिए। गर्मी से बचने के लिए छाया, पंखे, कूलर आदि का उपयोग करना चाहिए तथा चारगाह भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए।

 

  1. आहार प्रबंधन:- गर्मी के मौसम मे दुग्ध उत्पादन एवं पशुओं की शारीरिक क्षमता बनाए रखने के लिए पशु आहार का महत्वपूर्ण योग्यदान है। पशु आहार में गर्मी मौसम में हरे चारे का अधिक उपयोग करना चाहिए। इसके दो लाभ हैं-
  • पशु इसे अधिक चाव से खाकर अपनी पेट भरता है।
  • इसमें 70-90% जल की मात्रा होती है जो पशुओं को समय समय पर पानी की आपूर्ति करता है।
READ MORE :  बेहतर पशु प्रबंधन हेतु पशुपालकों द्वारा किए जाने वाले आवश्यक कार्य

इसके लिय पशु पालको को गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च-अप्रैल में मूंग, मक्का, काऊ-पी(बरबटी) की बुआइ करनी चाहिए जिससे की पूरे गर्मी माह में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके।

सूखे चारे जैसे भूसा एवं कुट्टी का प्रयोग इस मौसम में कम करना चाहिए। इसके जगह रातिव आहार का प्रयोग करने से इसकी उत्पादन क्षमता में ह्रास नहीं होता है।

  1. पानी का प्रबंधन:- गर्मी के मौसम में पशुओं को स्वच्छ पानी आवश्यकता अनुसार या दिन मे तीन बार अवश्य पिलाये इससे पशु के शरीर का तापमान को नियंत्रित रखा जा सके। इसके अलावा पानी मे थोड़ी नमक और आटा या गुड़-पानी मिलाकर पिलाना चाहिए या एलेक्टरल पाउडर 50-60 ग्राम प्रतिदिन देना चाहिए। एक स्वस्थ पशु को गर्मी के मौसम मे 25-30 लिटर पानी जीवन यापन के लिए एवं उत्पादन के लिए 1 लिटर दूध पर 3 लिटर पानी के हिसाब से देना चाहिए। साथ ही कम से कम पशुओं को 2 से 3 बार धोयें जिससे की उसके शरीर का तापमान नियंत्रित रखा जा सके। संकर नस्ल के पशुओं मे इस मौसम मे तीव्र ज्वर की समस्या आम है जिससे पशुपालक घबड़ा जाते है। जिसका निवारण पशुओं को नियमित अंतराल पर धो कर किया जा सकता है एवं उत्पादन क्षमता को भी बरकरार रखा जा सकता है।

 

  1. विटामिन एवं खनिजलवण मिश्रण का प्रयोग:- गर्मी के मौसम मे पशुओं को तनाव रहित रखने के लिए विटामिन एवं खनिज लवण मिश्रण का प्रयोग बड़े पशुओं मे 30-50 ग्राम, बछिया 25-30 ग्राम एवं छोटे पशु को 10-15 ग्राम प्रतिदिन दें। इसके अलावा तनाव रोधी दवा का भी इस्तमाल किया जा सकता है।
  2. स्वास्थ प्रबंधन:- गर्मी के मौसम मे पशुओं की बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है जिसे देख-रेख एवं खान-पान संबंधी मुख्य बातों को ध्यान मे रखने से पशुओं को बीमार होने से बचाया जा सकता है। लू लगाना, अपच होना, ग्रीष्म कालीन थनैला, बाह्य परजीवी का प्रकोप, प्रोटोज़ोल रोग, जीवाणु एवं विशाणु जनित रोग का प्रकोप गर्मी के मौसम मे अधिक होता है।
  • लू लगना:- संकर नस्ल, अधिक मोटे या कमजोर पशु मे लू लगने का खतरा सबसे अधिक होता है। इसका प्रमुख कारण गर्मी मे तापमान का बढ़ जाना, वातावरण मे नमी की अधिकता, एक ही बाड़े मे अधिक पशुओं का रखना, पशुशाला मे हवा निकासी का उत्तम व्यवस्था न होना है। एवं इसके प्रमुख लक्षण हैं- पशु के शरीर के तापमान का बढ़ जाना, बेचैन होना, पसीना आना, लार गिरना, भोजन कम लेना, ऊत्पादन क्षमता मे ह्रास आदि। उपचार एवं बचाव हेतु पशु को रसदार चारा उपलब्ध कराना, पशु को आराम करने देना, बर्फ के टुकरे का इस्तेमाल, तनाव रोधी दवा जैसे- स्ट्रेसनील या अरेस्टोबल या मल्टिस्टार का प्रयोग करना चाहिए। नियमित अंतराल पर ग्लूकोस पानी देना चाहिए। अधिक निर्जली होने पर पशु चिकित्सक की परामर्श पर ग्लूकोस अन्तःशिरा चढ़ाना चाहिए। पशुओं को सीधे गरम हवा के संपर्क से बचाना चाहिए।
  • अपच:- गर्मियों मे अपच की समस्या आम है। इसमे पशु चारा खाना कम कर देता है। पशुओं का भोजन का पाचन ठीक से नहीं होता है। इसका प्रमुख कारण पशुओं मे लार की कमी जो गर्मी मे पशु को मुंह खोल कर सांस लेने के कारण होता है। लार के बाहर निकलने के कारण रुमेन मे चारे का पाचन प्रभावित होता है। इसके प्रमुख लक्षण पेट फूलना, पशु का सुस्त होना, खाना खाने मे अरुचि एवं उत्पादन मे कमी। उपचार एवं बचाव हेतु पशुओं मे हाजमा बढ़ाने वाली दवा हरमीनसा या रुचामैक्स या रुचाबूस्ट का प्रयोग करना चाहिए। पशुओं को उसकी इच्छा अनुस्वार स्वादिष्ट चारा उपलब्ध कराना चाहिए।
  • ग्रीष्म कालीन थनैला:- गर्मी के मौसम मे दुधारू पशुओं मे थनैला एक आम समस्या है। यह मुख्यतः बारे मे साफ सफाई की कमी, गलत तरीके से दूध का दोहन, एवं जीवाणु के कारण होता है। ग्रीष्म कालीन थनैला का प्रमुख लक्षण थनों मे सूजन एवं कड़ापन, दूध का न आना तथा दूध मे खून या मबाद का आना। उपचार हेतु पशु चिकित्सक की परामर्श पर एंटिबयोटिक्स, दर्द निबारक तथा सूजन कम करने वाली दवा का इस्तेमाल करना चाहिए। बचाव हेतु वैज्ञानिक पद्धति से स्वच्छ दूध उत्पादन तकनीक एवं साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए।
  • बाह्य परजीवी:- गर्म एवं नमी युक्त वातावरण मे बाह्य परजीवी जैसे कीलनी, मक्खी, मच्छर, आदि का प्रकोप बढ़ जाता है जो दुधारू पशुओं के लिए अत्यधिक घातक है। यह सिर्फ दूध उत्पादन का ह्रास ही नहीं करता है बल्कि बहुत सारे प्रोटोज़ोल रोगों का भी पशुओं मे प्रसार करता है। बाह्य परजीवी से बचाव के लिए पशुओं के साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पशुओं को सप्ताह मे कम से कम एक बार नीम पानी से धोना चाहिए। करंज या नीम का तेल भी बाह्य परजीवी निवारण के लिए इस्तमाल मे लाया जाता है। कीटनाशी दवा जैसे डेल्टा-मेथरिन 2 मिली प्रतिलिटर पानी मे घोल कर पशु के शरीर पर लगायेँ तथा 2 घंटे बाद साफ पानी से अच्छी तरह पशु को धो दें। कीटनाशी दवा का इस्तेमाल 15 दिन के अंतराल पर 2 बार करें और यह प्रक्रिया प्रत्येक 3 या 4 माह पर करें।
  • जीवाणु एवं विषाणु जनित रोग:- गर्मी के मौसम मे जीवाणु (गला घोंटू) एवं विषाणु जनित (खुरहा, अढ़ैया) रोग का प्रकोप पशुओं मे अधिक होता है जिससे पशुओं मे जान-माल की हानी होती है तथा उत्पादन मे भी कमी आती है। इससे बचाव के लिए टिकाकरण एवं इलाज़ हेतु पशु चिकित्सक का परामर्श लें।
READ MORE :  दूध की संरचना

उचित आवास, आहार प्रबंधन एवं उपरोक्त वर्णित समस्याओं एवं उनके निवारण के उपायों को ध्यान मे रखकर दुधारू पशुओं को गर्मी के मौसम मे स्वस्थ रखकर उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON