बारिश के समय पशुओं की और ध्यान देने वाली योग्य बातें।
लेखक- सबीन भोगरा, पशुधन विशेषज्ञ, हरियाणा
बारिश के नाम से ही एक सुनहरे मौसम कि कल्पना करते हैं।
भला बारिश किसे पसंद नहीं वो इंसान हो या फिर जानवर बारिश सभी को पसंद आती हैं पर ये भी केवल मौसम की बारिश ही होनी चाहिए लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए अन्यथा नुकसान भी कर सकती हैं।
जब नुकसान करती है तो हम इंसान तो फिर भी इससे आसानी से बच जाते है पर इसकी चपेट में पालतू जानवर आ जाते हैं,
हम उन्हें बारिश से पहले ही कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे वो इस बारिश का मजा भी ले सके और इससे सुरक्षित भी रहे।
1. बारिश से पहले ही हमे ढेर सारा चारा इकट्ठा रखना चाहिए।
2. उनके रहने के स्थान को साफ और सूखा रखना चाहिए।
3. उनकी दवाइयों कि भी उचित व्यवस्था रखनी चाहिए जिससे बारिश से यदि बीमार भी हो तो जल्दी से दवा दे सके।
4. उनके डॉक्टर से समय – समय पर सलाह भी लेनी चाहिए।
5. खास बात ये है कि बारिश के मौसम में केवल उन्हें बरसाती चारा ही देना चाहिए।
हम तो बोलकर भी सहायता ले सकते हैं पर वो ऐसा नहीं कर सकते कृपा करके हम सब को ही उनकी मदद करनी होगी।
बारिश के मौसम में बीमार पशु द्वारा मिट्टी और पानी भी संक्रमित हो जाते हैं जिस के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं के संक्रमित होने की सम्भावना बड़ जाती है। इस लिये रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें। इस मौसम में पशुओं में होने वाले प्रमुख संक्रामक रोग जैसे गलघोटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका मुँहपका, न्यूमोनिया आदि हैं। परजीवी रोगों में बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि प्रमुख रोग हैं।
पशुओं में होने वाले संक्रामक रोग जैसे खुरपका मुँहपका, गलघोटू तथा लंगड़ा बुखार प्रमुखता से बरसात के दिनों में गौवंश को प्रभावित करते है तथा कई बार पशुओं की जान भी चली जाती है। इन रोगों से बचाव हेतु बारिश से पहले टीकाकरण करना आवश्यक है।
बारिश के मौसम में पशुओं के रखरखाव में सावधानियां
उपरोक्त बीमारियों को ध्यान में रखने के साथ-साथ पशुपालकों को वर्षा ऋतु में पशु प्रबंधन सम्बंधी बातों पर भी गौर करें।
बारिश के पहले पशुओं के पशुशाला की छत की मरम्मत कर दें जिससे बारिश का पानी ना टपके।
पशुशाला की खिड़कियाँ खुली रखें तथा गर्मी एवं उमस से बचने के लिये पंखों का उपयोग करें।
इस मौसम में साफ सफाई का ख़ास खयाल रखें एवं पानी को एक जगह पर एकत्रित नहीं होने दें जिससे मच्छर ना हों और परजीवी संक्रमण रोका जा सके।
पशुशाला में पशु के मलमूत्र के निकासी का भी उचित प्रबंध हो। पशुशाला को दिन में एक बार फिनाइल के घोल से अवश्य साफ करें जिससे बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया कम हो सकें।
बाड़े में और उसके आसपास कचरा और गंदगी इक्कठा ना होने दें और उसके निकास की उचित व्यवस्था हो। नियमित अंतराल पर कीटनाशक को भी छिड़केंं।
जानवरों को ज्यादा शारीरिक थकावट ना होने दें और बार-बार धूप में ना लाएं।
बारिश के मौसम में पशुओं को बाहर चरने के लिए नहीं भेजें क्योंकि बारिश के मौसम में गीली घास पर कई तरह के कीड़े होते हैं जो पशुओं के पेट में चले जाते हैं और शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं।
पशु को खेतों के समीप गड्ढे या जोहड़ का पानी पिलाने से परहेज करें क्योंकि इस दौरान किसान खेतों में खरपतवार एवं कीटनाशक का इस्तमाल करते है।जो कि रिसकर इनमें आ जाता है। कोशिश करें की पशु को बाल्टी से साफ एवं ताजा पानी पिलाएं।
दाने का भंडारण नमी रहित जगह पर करें और ध्यान दें कि इस मौसम में दाने को 15 दिन से अधिक भंडार न करें।
बारिश से पहले पशुओं में टीकाकरण
टीकाकरण के द्वारा विश्व में करोड़ों पशुओं में विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव संभव है इस तरह पशुपालकों अपने पशुओं का उचित टीकाकरण पशु चिकित्सक की सलाह पर शुरुआत में ही करें तथा प्रति वर्ष पुन: टीकाकरण दोहराना चाहिए। गाय एवं भैंसों में खुरपका मुँहपका, गलघोंटू, टंगिया रोग आदि का टीका बारिश से पहले लगाया जाता है। भेड़ और बकरियों में भी मानसून की शुरुआत में पीपीआर और गलघोंटू का टीका लगाया जाता है।
मानसून के समय में वातावरण में आद्र्रता बढ़ जाती है। पशुशाला के अंदर गरमी, जानवरों का मलमूत्र और निस्कासित हवा में जीवाणुओं की संख्या बडऩे से पशुओं में विभिन्न संक्रामक बीमारियों की संभावना बड़ जाती है। वातावरण में आद्र्रता की अधिकता होने के कारण पशुओं की आंतरिक रोगों से लडऩे की क्षमता पर भी असर पड़ता है परिणामस्वरूप पशु अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता हैं। इसी मौसम के दौरान परजीवियों की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हो जाती है जिससे पशुओं में परजीवी रोग भी हो सकते हैं। इन रोगों के प्रकोप से पशु का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है जिससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
परजीवियों का प्रकोप
बारिश के मौसम में प्राय: परजीवियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती हैं। जिससे पशुओं को शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता हैं। परजीवी प्राय: दो प्रकार के होते हैं –
परजीवी – जैसे पेट के कीड़े, कृमि आदि
बाह्य जीवी – चीचड़, खलील, जूं आदि
लक्षण – रोगग्रसित पशु में सुस्ती, कमजोरी, अनीमिया (खून की कमी) एवं दूध में कमी देखने को मिलती है। पशु को पाचन प्रक्रिया में शिकायत रहती है जिससे पेट में दर्द और पतला गोबर आता है।
उपचार- पशुचिकत्सक की सलाह से पशुओं को उनके वजन के अनुसार परजीवीनाशक दवा नियमित रूप से दो बार पिलायें।
बचाव- बारिश के मौसम में पशुओं को तालाब के किनारे न लेकर जाएं। इसके साथ-साथ तालाब की किनारों वाली घास न खिलाएं, क्योंकि ये घास कीड़ों के लार्वा से ग्रस्त होती है। जो कि पेट में जाकर कीड़े बन जाते हैं और अनेक विकार उत्पन्न करते हैं।
खाज-खुजली बारिश के मौसम में अक्सर पशुओं में खाज-खुजली की शिकायत होती है इसका मुख्य कारण पशुशाला में गंदगी का होना है। इस रोग में पशु की त्वचा पर अत्यंत खुजलाहट होती है, जिसकी वजह से त्वचा मोटी होकर मुरझा जाती है एवं पशु के खुजली करने पर त्वचा छिल जाती है और उस जगह के सारे बाल झड़ जाते हैं। कभी-कभी इन जगह पर जीवाणुओं के संक्रमण से दुर्गन्ध भी आती है।
चीचड़ बारिश के मौसम में अक्सर पशुओं में चीचड़ लग जाते हैं ये चीचड़ पशु का खून चूसते है। जिससे खून की कमी हो जाती है तथा कई प्रकार के रोग भी फैलाते हैं जैसे बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि।
उपचार- पशुचिकित्सक की सलाह से कीटनाशक दवा को पशु के ऊपर लगायें तथा पशुशाला में भी छिड़काव करायें।