थनेला रोग : लक्षण एवं उपचार
डॉ वैशाली जैन, डॉ ज्योत्सना राजोरिया, डॉ रविन्द्र जैन , डॉ अशोक पाटिल, डॉ नरेश कुरेचिया, डॉ अंशिका तिवारी, डॉ कुरकुती सैलेश साईं
पशु पोषण विभाग
पशु चिकत्सा एवं पशुपालन महाविधालय, महू
दुधारू पशुओं में थनेला (Mastitis) एक संक्रामक रोग है। यह रोग पशुपालकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। यह रोग भारत ही नहीं दुनिया की सबसे महंगी बीमारीयों में से एक है जिसके कारण प्रतिवर्ष करोडों का नुकसान होता है। जन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह रोग महत्वपूर्ण है क्योंकि दूध में आने वाले रोगाणु मनुष्य में भी विभिन्न प्रकार की बीमारियां कर सकते हैं। दुधारू पशुओं के थन में सूजन, कड़ापन और दर्द थनैला रोग के लक्षण होते हैं। थनैला रोग के अलग-अलग प्रकार होते हैं। जैसे-बहुत तेज, तेज और धीमे दीर्घकालीन थनैला रोग में थन सूजे हुए, गर्म, सख्त और दर्ददायी हो जाते हैं। थनों से फटा हुआ, थक्के युक्त या दही की तरह जमा हुआ दूध निकलता हैं। कभी कभी दूध के साथ रक्त भी निकलता है। दूध गंदला और पीले.भूरे रंग का हो जाता हैं। दूध से दुर्गंध आने लगती है। थनों में गांठे पड़ जाती एवं आकर में छोटे भी हो सकते हैं। दूध की मात्रा कम हो जाती है। इस रोग में पशु को बुखार आता है और वह खाना पीना कम कर देता है। यह रोग मुख्य रूप से गाय, भैंस एवं बकरी में होता है।
*थनेला रोग को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जाता है*
- सब क्लीनिकल मैस्टाइटिस– इस स्थिति में पशु संक्रमित होता है, पर लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, हालांकि अच्छा खिलाने के बाद भी दुग्ध उत्पादन धीरे-धीरे गिरता चला जाता है। अलाक्ष्णिक थनैला में रोग के बाहरी लक्षण नहीं दिखते हैं इसलिए इसकी पहचान के लिए दूध की प्रयोगशाला में जांच करवाकर ही पता लगाया जा सकता है। रोग का सफल उपचार प्रारंभिक अवस्था में ही संभव है इसलिए उपचार में कभी देरी न करें।
- एक्यूट मैस्टाइटिस– इस स्थिति में पशु के अयन में सूजन आ जाती है, कभी-कभी दूध के साथ रक्त का थक्का भी निकलता है, अयन गर्म महसूस होता है, पशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है अंत में खाना-पीना बंद कर देता है।
- क्रोनिक मैस्टाइटिस– यहां अयन से दूध की बजाय पानी या दही जैसा दूध, गन्दी बदबू, गंभीर सूजन, जीवाणु संक्रमण हो जाता है, पशु अवसाद का शिकार हो जाता है व अयन में कड़ापन / फाइब्रोसिस हो जाता है।
*कारण*
- थनैला रोग विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाज्मा अथवा कवक से होता है। हमारे देश में यह मुख्य रुप से स्टाफीलोकोकस नामक जीवाणु के कारण होता है।
- संक्रमित पशु के संपर्क में आने, दूध दुहने वाले के गंदे हाथों, पशुओं के गंदे आवास, अपर्याप्त और अनियमित रूप से दूध दुहने, खुरदरा फर्श और थन में चोट लगने व संक्रमण होने से भी यह रोग होता है।
थनेला रोग के लक्षण
१. पशु के थन व अयन में सूजन का आना एवं दूध निकालने पर दर्द होना।
- पशु को कभी-कभी हल्का बुखार तथा पशु सुस्त व चारा कम खाता है।
- सामान्य दूध की जगह दही जैसा फटा हुआ दूध ही आता है। रक्त के चिथड़े भी दूध में आते है l
थनेला रोग से बचाव के उपाय
- सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पशु आवास में मक्खिया नहीं होनी चाहिए l पशु का दूध निकालने से पहले अपने हाथ अच्छी तरह साफ पानी व साबुन से धोने चाहिएं व पशु के अयन को अच्छी तरह साफ पानी से धोकर साफ तोलिये से पोछना चाहिए।
- दूध निकालते समय पहली दो-तीन धार नीचे निकाल / फेंक देनी चाहिए।
- थनैला रोग से बचाव के लिए दुधारू पशुओं के बाडे को समतल, साफ व सूखा रखें, सभी थनों को दूध दुहने के बाद जीवाणु नाशक घोल (एक प्रतिशत लाल दवा के घोल) में डुबोएं या जीवाणु नाशक स्प्रे का छिडकाव करें l
- दूध निकालने के बाद पशु को आधे घण्टे तक नीचे नहीं बैठने देना चाहिए क्योंकि आधे घण्टे तक थन का मुंह खुला रहता है व संक्रमण थन के अंदर प्रवेश कर सकता है।
- थन को चोट व घाव होने से बचाएं तथा घाव होने पर जल्दी उपचार कराएं।
- दुधारू पशुओं का दूध सूख जाने पर उनके थन में प्रतिजैविक उपचार करने पर अगले ब्यात तक थनैला की संभावना कम हो जाती है।
- थनेला होने पर स्वस्थ थन का दूध पहले तथा रोगी थन का दूध बाद में निकालना चाहिए।
- पशुओ के खानपान में खनिज मिश्रण ओर विटामिनो का समावेश करने से इस रोग लगने की आवृत्ति कम हो जाती है l क्युकी इसको खिलाने से उनकी रोगों से लड़ने की शक्ति बनी रहती है।
उपरोक्त बातो को ध्यान में रखकर किसान भाई अपने पशुओ को थनेला रोग से बचा सकते है l