पशुओं में थनैला बीमारी: कारण, प्रबंधन एवं उपचार

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पशुओं में थनैला बीमारी: कारण, प्रबंधन एवं उपचार

   डॉ. ममता मील1, डॉ. बलराम यादव2 एवं डॉ. अमित3

  • एम.वी.एससीछात्रा, पशु मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, सी.वी.ए.एस, नवानिया, उदयपुर.
  • एम.वी.एससी. छात्र, पशु विकृति अध्ययन विभाग, सी.वी.ए.एस.,नवानिया, उदयपुर.
  • एम.वी.एससी छात्र, पशु पोषण विभाग, सी.वी.ए.एस, नवानिया, उदयपुर.

थनैला, दुधारू पशुओं की एक प्रमुख बीमारी है। यह बीमारी डेयरी उद्योग से जुड़े पशुपालकों के आर्थिक नुकसान के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण बीमारी है। अकेले इस बीमारी से पूरे भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का नुकसान होता है। पशुओं में यह रोग दो कारणों से होता हैं, पहला थन पर चोट लगने या कट जाने से और दूसरा संक्रामक जीवाणुओं का थन में प्रवेश कर जाने से। पशु को गंदे स्थान पर बांधने, अनियमित रूप से दूध दूहने तथा दुहने वाले की असावधानी के कारण इस बीमारी की सम्भावना बढ़ जाती है। सामान्यतः यह बीमारी अधिक दूध देने वालें पशुओं में ज्यादा होती है, परन्तु ऊँटनी एवं बकरी जैसे पशु जो अपने बच्चों को दूध पिलाते है, में भी होती है। थनैला पशुओं में जीवाणु, विषाणु एवं फफूँद के संक्रमण से होता है।

लक्षण

थनैला रोग से प्रभावित पशुओं के थन में सूजन आ जाती है और उसमें दर्द रहता है। लक्षण प्रकट होते ही ग्रसित थन से खराब दूध (दूध में छटका, खून) एवं कभी कभी मवाद भी आने लगती है। अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के थनैला में थन बिल्कुल सामान्य प्रतीत होता है व दूध भी देखने में ठीक लगता है। प्रयोगशाला में दूध की कैलिफोर्निया मॉस्टाईटिस सोल्यूशन के माध्यम से जांच द्वारा रोग का निदान किया जा सकता है। रोग का उपचार समय पर न कराने से थन की सूजन अपरिवर्तनीय हो जाती है और थन बहुत सख्त हो जाता है। इस अवस्था के बाद थन से दूध आना बंद हो जाता है। प्रारम्भ में एक या दो ही थन प्रभावित होते हैं, लेकिन उपचार नहीं कराने पर यह सभी थनों में फैल जाता है।

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रोग से बचाव एवं रोकथाम

  1. दुधारू पशुओं के रहने / बैठने के स्थान व दूध दुहने के स्थान की नियमित सफाई करनी चाहिए। इन जगहों पर फिनाईल के घोल तथा अमोनिया कम्पाउन्ड का छिड़काव करना चाहिए।
  2. दूध दुहने के पश्चात् थन की सफाई एंटीसेप्टिक घोल जैसे लाल पोटाश या सेवलोन के घोल से करना चाहिए।

३. दूध दुहने की तकनीक सही होनी चाहिए जिससे थन को किसी प्रकार की चोट न पहुंचे, साथ ही दूध निकालने वाले के नाखून व हाथों की स्वच्छता पर भी ध्यान रखना चाहिए।

  1. थन में किसी प्रकार के मामूली खरोंच या चोट का भी समुचित उपचार तुरंत करना चाहिए।
  2. दूध की दुहाई निश्चित अंतराल पर की जानी चाहिए तथा समय-समय पर दूध की जाँच प्रयोगशाला में करवाते रहना चाहिए।
  3. हाल ही में खरीदे हुए नए पशुओं को अन्य पशुओं से कुछ दिन तक अलग बांधना चाहिए।
  4. रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए तथा ऐसे पशुओं को सबसे अंत में दुहना चाहिए।
  5. थनैला के रोकथाम में अच्छी गुणवत्ता वाले संतुलित आहार का योगदान महत्वपूर्ण है। अतः आहार में मिनरल मिक्स्चर (खनिज मिश्रण) की सही मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
  6. शुष्क पशु उपचार भी ब्याने के बाद थनैलारोग होने की संभावना काफी कम कर देता है। अतः इसके लिए पशु चिकित्सक से संपर्क कर शुष्क पशु उपचार करना चाहिए।
  7. इसके अलावा पशुओं का उचित रखरखाव, थन की देखरेख तथा थनैला के लक्षण दिखने पर तुरन्त पशु चिकित्सक की सलाह या उपचार करवाना चाहिए।

अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के थनैला रोग की समय रहते पहचान के लिए निम्नलिखित प्रकार से उपाय किए जा सकते हैं:

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अ. समय समय पर दूध के पी.एच. की जांच या संदेह की स्थिति में कैलिफोर्निया मॉस्टाईटिस टेस्ट द्वारा दूध की जाँच ।

ब. संदेह की स्थिति में दूध कल्चर एवं सुग्राहिता (सेन्सीटिविटी) जांच।

उपचार

दूध निकालने के बाद थन का छेद कुछ देर तक खुला रहता है, जिसके द्वारा जीवाणु आसानी से अन्दर प्रवेश कर थनैला का कारण बन सकते हैं। अतः दूध निकालने के बाद चारों थनों को दवा युक्त पानी में डुबोना चाहिए। इसके लिए एक गिलास में लाल दवा मिश्रित पानी का प्रयोग करना चाहिए तथा पशु को आधे से एक घंटो तक बैठने नहीं देना चाहिए।

थनैला के लक्षण दिखते ही तुरन्त पशु चिकित्सक की सलाह से उपचार शुरू कर देना चाहिए क्योंकि रोग का सफल उपचार प्रारम्भिक अवस्था में ही संभव है अन्यथा रोग के बढ़ जाने पर थन बचा पाना कठिन हो जाता है। उपचार पूर्णरूपेण किया जाना चाहिए, इसे बीच में छोड़ना नहीं चाहिए। ग्रसित पशु के दूध की जाँच समय पर करवा कर पशु चिकित्सक की सलाह से जीवाणुनाशक दवा एवं मलहम द्वारा उपचार करवाना चाहिए। प्रायः यह औषधिया थन में ट्यूब चढ़ाकर तथा साथ ही मांसपेशी में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है।

अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के थनैला में कोई भी लक्षण बाहर से नजर नहीं आते। जिस थन में यह बीमारी होती है, उसमें से कम दूध निकलता है  व दूध में वसा (फैट) की मात्रा कम रहती है। इसलिए थनैला का, पशु चिकित्सक की मदद से कर तुरन्त इलाज करना चाहिए। इसे पहचानने के लिए कैलिफोर्निया मॉस्टाईटिस जांच परीक्षण एक सरल एवं सस्ता उपाय है।

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