गिलोय के औषधीय गुण एवं उपयोगिता
डॉ गायत्री देवांगन, डॉ. स्वाति कोली, डॉ. ज्योत्सना शक्करपुड़े एवं डॉ. नीतू राजपूत
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय महू, इंदौर
हर्बल दवाओं का उपयोग बढ़ती संख्या में लोगों द्वारा किया जा रहा है क्योंकि माना जाता है कि इन उत्पादों का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है या न्यूनतम दुष्प्रभाव होते हैं। एशियाई और अफ्रीकी देशों में, 80% आबादी अपनी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के लिए पारंपरिक चिकित्सा पर निर्भर है। आधुनिक चिकित्सा एलापैथ अभी शहरों, कस्बों एवं बड़े गाँवों में ही उपलब्ध है जबकि 70% गाँवों में रहनेवाले नागरिक परम्परागत पेड़ पौधों के प्रयोग से ही अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का निराकरण कर लेते हैं। पशु, किसानों के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, कृषि क्षेत्र में दूध से लेकर खेतों में काम करने तक के लिए पशुओं का उपयोग किया जाता है | पशुओं की देखभाल करने में किसान किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ते हैं, इसके बावजूद भी कई बार पशु बीमार या कई रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं | जिसके उपचार में किसानों को बहुत अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है, जिससे किसानों को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है | आधुनिक पशु चिकित्सा पद्धति में एलोपैथिक दवाओं की बहुत दुष्प्रभाव होते है, पशुधन में एंटीबायोटिक प्रतिरोध उत्पन्न होता है, और दूध और अन्य पशु उत्पादों में उच्चा मात्रा में एंटीबायोटिक के अवशेष होने से उपयोगकर्ता पे हानिकारक प्रभाव होता है । ऐसे में किसानों को पशुओं के ईलाज के लिए सस्ता माध्यम के बारे में जानकारी होना आवश्यक है |
गिलोय एक प्रकार की बेल है, जिसमें अनेक प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं। इसे हिन्दी में गुडूची और अमृता के नाम से जाना जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (Tinospora cordifolia) है। संस्कृत में, “गुडुची” का अर्थ है कुछ ऐसा जो पूरे शरीर की रक्षा करता है, और “अमृत” का अर्थ है अमरता I यह पूरे भारत में घने और सूखे जंगलों में पाया जाता है, जो ऊंचाई पर छोटे पेड़ों और झाड़ियों पर उगता है I आयुर्वेद के अनुसार गिलोय की पत्तियां, जड़ें और तना तीनो ही भाग सेहत के लिए बहुत गुणकारी हैं लेकिन बीमारियों के इलाज में सबसे ज्यादा उपयोग गिलोय के तने या डंठल का ही होता है। गिलोय के बेल का इस्तेमाल घरेलू उपचार और कई आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के लिए किया जाता है। गिलोय में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से यह बुखार, पीलिया, गठिया, डायबिटीज, कब्ज़, एसिडिटी, अपच, मूत्र संबंधी रोगों आदि से आराम दिलाती है। बहुत कम औषधियां ऐसी होती हैं जो वात, पित्त और कफ तीनो को नियंत्रित करती हैं, गिलोय उनमें से एक है। गिलोय का मुख्य प्रभाव टॉक्सिन (विषैले हानिकारक पदार्थ) पर पड़ता है और यह हानिकारक टॉक्सिन से जुड़े रोगों को ठीक करने में असरदार भूमिका निभाती है।
गिलोय
गिलोय में पाए जाने वाले पोषक तत्व :
गिलोय में गिलोइन नामक ग्लूकोसाइड और टीनोस्पोरिन, पामेरिन एवं टीनोस्पोरिक एसिड पाया जाता है। इसके अलावा गिलोय में कॉपर, आयरन, फॉस्फोरस, जिंक,कैल्शियम और मैगनीज भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
गिलोय के औषधीय उपयोग
- रोग प्रतिरोधक क्षमता
गिलोय का पहला और सबसे महत्वपूर्ण लाभ है – रोगों से लड़ने की क्षमता देना। गिलोय में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो कि स्वास्थ्य में सुधार लाते हैं और खतरनाक रोगों से लड़ते हैं। गिलोय गुर्दों और जिगर से विषाक्त पदार्थों को दूर करता है और मुक्त कणों (free radicals) को भी बाहर निकालता है। इन सब के अलावा, गिलोय बैक्टीरिया, मूत्र मार्ग में संक्रमण और जिगर की बीमारियों से भी लड़ता है जो अनेक रोगो का कारण बनते हैं। नियमित रूप से गिलोय का जूस का सेवन करने से रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती हैं।
- डायबिटीज
जानवरों और प्रयोगशाला में कोशिकाओं पर किए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कि गिलोय कोशिकाओं को कम इंसुलिन प्रतिरोधी बनाकर रक्त शर्करा को कम करता है I विशेषज्ञों के अनुसार गिलोय हाइपोग्लाईसेमिक एजेंट की तरह काम करती है और टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित रखने में असरदार भूमिका निभाती है। गिलोय जूस ब्लड शुगर के बढे स्तर को कम करती है, इन्सुलिन का स्राव बढ़ाती है और इन्सुलिन रेजिस्टेंस को कम करती है । इस तरह यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी औषधि है।
- अपच
पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, एसिडिटी या अपच के लिए गिलोय बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। गिलोय का काढ़ा, पेट की कई बीमारियों को दूर रखता है। इसलिए कब्ज़ और अपच से छुटकारा पाने के लिए गिलोय का रोजाना सेवन किया जा सकता है । गुडुची के चूर्ण को आंवले या गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करना कब्ज के लिए एक प्रभावी उपाय है। गुडुची के तने से प्राप्त स्टार्च ‘गुडुची सत्व’ पाचन तंत्र के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है I एक अध्ययन से विशेष रूप से पता चला है कि यह पाचन तंत्र के अमीबिक संक्रमण के खिलाफ प्रभावी है।
गिलोय के अन्य फायदे
उपर्युक्त रोगों के साथ-साथ गिलोय और भी कई प्रकार के रोगो में उपयोग किया जाता है –
- इसका उपयोग मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू के कारण होने वाले बुखार को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है। जब इन स्थितियों में दिया जाता है, तो यह रक्त में प्लेटलेट स्तर को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
- गिलोय का सूजन-रोधी गुण इसे बार-बार होने वाली सर्दी-खांसी, अस्थमा और टॉन्सिल संक्रमण जैसी श्वसन संबंधी समस्याओं को कम करने में उपयोगी बनाता है।
- पशु अध्ययनों में, गुडुची को कोलेस्ट्रॉल, फॉस्फोलिपिड्स और मुक्त फैटी एसिड के स्तर को कम करने में दिखाया गया है।
- गिलोय के रस के सेवन से शरीर में खून की कमी (एनीमिया) दूर होती है।
- गिलोय त्वचा और लीवर से संबंधित रोगों के इलाज के लिए, चीनी के साथ प्रयोग किया जाता है।
- यह कीमोथेरेपी (कैंसर उपचार) के कारण होने वाली श्वेत रक्त कोशिकाओं की कमी को रोकने में मदद करता है।
- गिलोय के तने का तरल अर्क मूत्र पथरी को तोड़ने में मदद करता है।
- जानवरों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि गुडुची रक्तचाप और हृदय गति में अस्थायी लेकिन उल्लेखनीय कमी और हृदय की पंपिंग शक्ति और मूत्र उत्पादन में वृद्धि का कारण बनता है।