दुधारू गायों का विकार श्दुग्ध ज्वरश्. कारण, लक्षण, उपचार एवं रोकथाम

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milk fever in dairy cattle
milk fever in dairy cattle

दुधारू गायों का विकार श्दुग्ध ज्वरश्. कारण, लक्षण, उपचार एवं रोकथाम

आकांक्षा तिवारी 1, आलोक खण्डूडी 2, ज्योत्सना भटट्र 3
1 सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशु पालन विज्ञान महाविद्यालय पन्तनगर
2 पशुचिकित्साधिकारी पशुपालन विभाग, उत्तराखण्ड
3 शल्य चिकित्सा विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा एवं प्शु पालन विज्ञान महाविद्यालय, पन्तनगर

परिचय
दुग्ध ज्वर मुख्य रूप से दुधारू गायों का एक चयापचयी विकार है। यह गायों के रक्त मंे कैल्श्यिम की कमी के कारण होता है और मुख्य रूप से प्रसव के बाद स्तन्य काल की शुरूआत मंे होता हैै। प्रसव से चार सप्ताह पहले और चार सप्ताह बाद के दौरान पशु इस रोग से सबसे ज्यादा प्रभावित होते है। इसे पोस्ट पाटर्यूरेंट हायपोकाल्सेमिया या पाटर्यूरेंट पेरेसिस के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग मुख्य रूप से उच्च दुग्ध उत्पादक जर्सी गायों मंे पाया जाता है। दुग्ध उत्पादन मंे कमी, उपचार एवं रोकथाम मंे व्यय के कारण यह एक आर्थिक रूप से काफी नुकसानदेय रोग है। श्ज्वरश् नाम इस रोग के लिये पूर्णतः उचित नही है क्योंकि रोग के दौरान शरीर के तापमान मंे आमतौर पर वृद्वि नहीं होती है। आमतौर पर बडे जानवरों (जिनमें हड्डी से कैल्श्यिम को जुटाने की क्षमता कम हो जाती है) और कुछ नस्लों (जैसं चैनल आइलैंड नस्लों) मंे यह समस्या ज्यादा पायी जाती है।

कारण
शुष्क अवधि (गर्भावस्था, गैर दुग्ध श्रवण) के दौरान, डेयरी गायों मंे अपेक्षाकृत कम कैल्श्यिम की आवश्यकता होती है। दुग्ध उत्पादन के दौरान रक्त से कैल्श्यिम की निकासी की दर बढ़ जाती है, जिसकी पूर्ति आंतों व हड्डियों मंे भंडारित कैल्श्यिम अथवा आहार से मिलने वाले कैल्श्यिम से नहीं हो पाती है। दुग्ध उत्पादन के दौरान स्तन से कैल्श्यिम की निकासी प्रतिदिन 50 ग्राम से अधिक हो जाती है जो इस समस्या को उत्पन्न करता है। इस रोग के लगभग 80 प्रतिशत मामले बछिया/बछडे के जन्म के 24 घंटे के भीतर हाते है क्योंकि इस दौरान रक्त मंे मौजूद कैल्श्यिम की अधिक मात्रा दूध एवं खीस मंे प्रवाहित हो जाती ह,ै जिसकी पूर्ति तुरन्त शरीर मंे नही हो पाती है। उच्च उत्पादन वाली गायों का चयन करने से इस समस्या मंे वृद्वि हो सकती है क्योंकि इनके रक्त मंे कैल्श्यिम स्तर मंे गिरावट अधिक होती है। पशु की आयु भी इस रोग मंे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पहली व्यांत वाली गाय बहुत कम प्रभावित होती है। पुरानी गायों मंे पांचवी या छटवीं व्यांत तक रोग मंे वृद्वि होती है क्योंकि वे अधिक दूध पैदा करते हंै और रक्त मंे प्रस्तुत कैल्श्यिम को तुरन्त बदलने मंे असक्षम होते है। शुष्क्काल (बच्चे के जन्म से 2 हफ्ते पहले) उचित भोजन खिलाना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह रक्त मंे प्रस्तुत कैल्श्यिम को शरीरिक कैल्श्यिम मंे बदलने की क्षमता को प्रभावित करता है, जिसके साथ उपलब्ध कैल्शियम का उपयोग किया जा सकता है। जब आंत से कैल्शियम को अवशोषित करने के क्षमता और हड्डियों से कैल्शियम स्थानान्तरित करने की दक्षता दोनो बहुत कम हो जाती है और आहार मंे कैल्शियम की मात्रा की कमी होती है तो दुग्ध ज्वर की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। यह आमतौर पर फीड, विशेष रूप से आहार मंे कैल्शियम की कमी के कारण होता है, जो तेजी से बढते भू्रण या प्रारंभिक स्तनपान मंे दूध उत्पादन के कारण कैल्शियम की भारी मांग को पूरा करने के लिये अपर्याप्त होता है। कुछ गायों मंे यह रोग प्रसव से 2-3 हफ्ते पहले अथवा उसके 2-3 हफ्ते बाद भी हो सकता है। यह मुख्यतः खाने मंे कैल्शियम की कमी, जो कि प्रसव पूर्व बढते हुये बच्चे की शारीरिक जरूरतों या प्रसव के बाद दुग्ध उत्पादन के समय कैल्शियम की पूर्ति न होने के कारण होता है। किसी भी प्रकार के तनाव जैसे अधिक व्यय , लम्बा सफर, खाने की कमी आरै वह पशु जो आक्सालेट युक्त पौधों को चरें, उनमंे यह रोग ज्यादा पाया जाता है। आक्सालेट पशु के शरीर में कैल्शियम के साथ मिल के एक अणु बना देता है, जिससे फिर पशु के शरीर को कैल्श्यिम की आपूर्ति हो जाती हे।

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लक्षण
दुग्ध ज्वर के लिये लक्षण तीन अलग-अलग चरणों मंे वर्गीकृत किये जा सकते है।
चरण 1- गायों मंे अति संवेदनशीलता और उत्तेजना के संकेत दिखते है जैसे बेचैनी, कंपकंपी, कान और सिर का हिलाना एवं गति भंगता जैसे लक्षण दिखाई देते है, यदि इलाज नही किया जाता है तो लक्षण आम तौर पर चरण दो मंे प्रगति करते है।
चरण 2- गाय अपनी रीढ़ की हड्डी पर बैठी रहती है। सुस्त दिखाइ देती है और शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है। पेशाब करने मंे असमर्थता हो सकती है।
चरण 3- गाय एक तरफ लेट जाती है और मांस पेशियों मंे तनाव खत्म हो जाता है जिस कारण गाय किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने मंे असमर्थ होती है अतः ये प्रगाढ वेहोशी जैसी सिथति हो जाती है इस सिथति मंे इलाज न मिलने पर गाय की मृत्यु भी हो सकती है।

उपचार
जितनी जल्दी हो सके उपचार दिया जाना चाहिये, उपचार मंे मुख्य रूप से कैल्शियम बोरोग्लुकोनेट (40 प्रतिशत) या कैल्शियम और फास्फोरस का मिश्रण नसों द्वारा सीधे रक्त मंे दिया जाना चाहिये। गाय को चूने का घोल गुड मंे मिला कर देना चाहिये। उसके अतिरिक्त अन्य खनिज जैसे मैग्नीशियम, फास्फोरस तथा डेक्सट्रोज भी इसके इलाज मंे मददगार साबित होते है। अफारे सं छुटकारा पाने के लिये गाय को सामान्य विश्राम स्थिति मंे रखना चाहिए। चारा और पानी उचित मात्रा मंे देना चाहियें। उपचार के बाद ठीक हो जाने वाली गायों मंे 24 घंटे तक दूध नही निकाला जाना चाहिये। प्रारंभिक स्तनपान मंे गायों को अधिक से अधिक कैल्शियम का पोषण कराना चाहिये जिससे कि गायों को दुग्ध ज्वर से बचाया जा सके।

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रोकथाम
उचित मात्रा मंे पशु आहार का सेवन कराना दुग्ध ज्वर को रोकने मंे अत्यंत सहायक हो सकता है । जब कैल्शियम की मांग व्यांत के समय बढ़ जाती है तो कैल्शियम को आहार की तुलना मंे हड्डी से अधिक तेजी से एकत्रित किया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप दुग्ध ज्वर को रोका जा सकता है। व्यांत के नजदीक गायों को लगातार निगरानी मंे रखा जाना चाहिये, ताकि दुग्ध ज्वर का लगातार अवलोकन और प्रारंभिक पहचान सम्भव हो सके। व्यांत से पहले और बाद मंे उपलब्ध फीड और कैल्शियम की किसी भी प्रकार की कमी पशु को नही होनी चाहिये। जहां पशुओं के लिये आहार की मात्रा अपर्याप्त है, अन्य तरीको का कभी-कभी उपयोग किया जाता है जैसे व्यांत से 2 से 8 दिन पहले इन्जैक्शन द्वारा दिया गया विटामिन-डी-3 उपयोगी हो सकता है, क्यूंकि व्यांत की निश्चत तिथी की अक्सर भविष्यवाणी करना कठिन होता है । बार-बार उपचार कभी-कभी आवश्यक होता है। दुग्ध ज्वर को रोकने के लिये उपयोग किया जाने वाला एक आम उपचार कैल्शियम बोरोग्लुकोनेट का इन्जैक्शन व्यांत से ठीक पहले या ठीक बाद उपयोगी होता है। कुछ गायों को एक से अधिक उपचार दिये जाते है। यह काफी सफल होता है क्योंकि यह कैल्श्यिम दूध और खीस के लिये आवश्यक समय पर रक्त कैल्श्यिम बढाने के लिये एक जलाशय का काम करता है। पशुओं को चारे के साथ 1.5 प्रतिशत चूना पीस के भी खिला सकते है इससे कैल्श्यिम की पूर्ति रहती है।

 

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