पशुओं में होने वाले दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) एवं उनके रोकथाम

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पशुओं में होने वाले दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) एवं उनके रोकथाम

पशुओं में होने वाले दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) एवं उनके रोकथाम

(Komal*, Richa Arora, Sivaraman Ramanarayanan, Kaushlendra Singh, Abhishek Kumar)

 

परिचय:

दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) एक गंभीर स्थिति है जो गर्भवती गायों और भेड़ों में आमतौर पर देखी जाती है। यह एक चयापचय विकार है, जो आमतौर पर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं को ब्याने के कुछ घंटे या कुछ दिनों बाद होता है। दुधारू पशु के लिये कैल्शियम-फास्फोरस का आहार में संतुलन अति महत्वपूर्ण है। पशु के शरीर में ब्याने के तुरंत बाद या कुछ दिन पहले ऊतकों को कैल्शियम की कमी के कारण यह रोग होता है। सामान्यतः ये रोग गायों में 5-10 वर्ष की उम्र में अधिक होता है। आमतौर पर पहली ब्यांत में ये रोग नहीं होता।

कारण:

मुख्य कारण खून में कैल्शियम की कमी होना है, जिसके कई कारण हो सकते है :

  • कोलस्ट्रम व दूध में अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम का स्त्राव होना ।
  • ब्यावत के समय आहार /खाना पीना कम करना।
  • कैल्शियम-फोस्फोरस बेलेन्स सही नहीं होना
  • विटामिन -डी की कमी होना ।
  • पशु के गर्भकाल के अंतिम समय में मिनरल कम मिलना ।

लक्षण:

 इस रोग के लक्षण ब्याने के 1-3 दिन तक प्रकट होते है। दुग्ध ज्वर के लिये लक्षण तीन अलग-अलग चरणों में वर्गीकृत किये जा सकते है।

चरण 1– पशु लड़खड़ाकर चलता है। आंशिक लकवा व धनुषबान के लक्षण दिखते हैं । पशु को बेचैनी रहती है। दांत किटकिटाना व मुँह में झाग आना । माँसपेसियों व शरीर में हल्की कम्पन अथवा सिर का हिलाना जैसे लक्षण दिखाई देते है।

चरण 2– गाय सुस्त दिखाइ देती है और शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है। आँख की पुतली चौड़ी व फैल जाती है तथा रीफ्लैक्स बंद हो जाते हैं । पशु में कब्ज हो जाती है तथा पेशाब और गोबर बंद कर देता है।

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चरण 3– जानवर उठने व सीधा बैठने में असमर्थ होता है और एक तरफ लेट जाता है । सिर बेहोशी की हालात में इधर-उधर जोर से पटकता है। 12-24 घंटे में इलाज नहीं होने पर पशु कि मृत्यु हो जाती है।

 उपचार:

  • कैल्सीयम साल्ट का इन्जेक्शन मुख्य इलाज है (पराँटल / नस में) ।नस में कैल्सीयम देने से पहले बोतल को हल्का गरम किया जाता है और धीरे धीरे चढ़ाया जाता है ।साथ ही विटामिन -डी का इन्जेक्शन दिया जाता है ।
  • गाय को चूने का घोल गुड मेंमिला कर देना चाहिये। उसके अतिरिक्त अन्य खनिज जैसे मैग्नीशियम, फास्फोरस तथा डेक्सट्रोज भी इसके इलाज में मददगार साबित होते है।
  • चारा और पानी उचित मात्रा मेंदेना चाहियें। उपचार के बाद ठीक हो जाने वाली गायों में 24 घंटे तक दूध नही निकाला जाना चाहिये।प्रारंभिक स्तनपान में गायों को अधिक से अधिक कैल्शियम का पोषण कराना चाहिये जिससे कि गायों को दुग्ध ज्वर से बचाया जा सके।
  • अगर लक्षण जारी रहे तो चमड़ी में भी कैल्सीयम इन्जेक्शन दिया जाता है ।

इस समस्या को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  1. प्रतिदिनकैल्शियमसप्लीमेंटेशन: गर्भवती गायों को गर्भ के अंतिम तिमाही में डेयरी फीड में उचित मात्रा में कैल्शियम सप्लीमेंट देना चाहिए। यह उनके शरीर में कैल्शियम की कमी को कम करेगा और मिल्क फीवर के खतरे को कम करेगा। व्यांत से 2 से 8 दिन पहले इन्जैक्शन द्वारा दिया गया विटामिन-डी-3 उपयोगी हो सकता है । कैल्शियम बोरोग्लुकोनेट का इन्जैक्शन व्यांत से ठीक पहले या ठीक बाद उपयोगी होता है।
  2. पोषकआहार:गायों को स्वस्थ और संतुलित आहार प्रदान करें जिसमें प्रोटीन, विटामिन और अन्य पोषक तत्व होते हैं। मिनरल मिक्सर ब्याने के एक माह पूर्व आहार में देना शुरू कर दें । यह उनके शरीर के लिए आवश्यक होता है ताकि वे स्वस्थ रहें और कैल्शियम का संतुलन बनाए रख सकें।
  3. स्वच्छऔरबेहतर रहना: गायों को स्वच्छ और सुरक्षित रखने के लिए उनके रहने के स्थान की सुरक्षा और स्वच्छता का ध्यान रखें।
  4. नियमितवेटनेरियनकी देखभाल: गायों को गर्भावस्था के दौरान और जन्म के बाद नियमित रूप से वेटरिनरीन के पास ले जाएं। वेटनेरियन  उचित जांच करेंगे और उन्हें सही उपाय और इलाज बताएंगे।
  5. जन्मकेसमय का ध्यान रखें: गायों के जन्म के समय को ध्यान से निगरानी करें और किसी भी संकेत को तुरंत वेटनेरियन  को सूचित करें। यदि मिल्क फीवर के लक्षण दिखाई दे रहे हों, तो तुरंत उपचार शुरू करें।
  6. ब्यावत के बाद दूध कम निकालें एवंब्यावत का समय नजदीक आने पर पशु को ट्रांसपोर्ट ना करे ।
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यदि किसी गाय में मिल्क फीवर हो जाता है, तो वेटनेरियन  के उपचार के अनुसार उपचार दिया जाना चाहिए। इससे उनकी स्वास्थ्य और दुध उत्पादन में सुधार हो सकता है और समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है।

 

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