मिल्क फीवर
डॉ. पुरुषोत्तम (पी.एच.डी. स्कोलर)
एनाटोमी विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविधालय,
राजुवास, बीकानेर-334001, राजस्थान
(Email – purushottam.beniwal@gmail.com)
परिचय
इस बीमारी को पारच्यूरेन्ट पेरेसिस और हाइपोकैलसीमिया भी कहते है । दुधारू पशु के लिये कैल्शियम-फास्फोरस का आहार में संतुलन अति महत्वपूर्ण है । यह एक मेटाबोलिक बीमारी है । व्यस्क मादा पशु में ब्याने के तुरंत बाद या कुछ दिन पहले, तथा ब्याने के बाद या पहले ऊतकों को कैल्सियम आयन की कमी से होती है । इससे पशु में हाइपोकैलसीमिया, माँसपेशियों में कमजोरी व पशु सीने पर या साइड में लेट जाता है ।
कारण
मुख्य कारण खून में कैल्शियम की कमी होना है, जिसके कई कारण हो सकते है :
- कोलस्ट्रम व दूध में अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम का स्त्राव होना ।
- ब्यावत के समय आंतों से कैल्शियम का अवशोषण निम्न कारकों से कम होना :
- ब्यावत के समय आहार /खाना पीना कम करना ।
- अपच/ रुमीनल मूवमेंट कम होना ।
- आन्तो की बीमारी ।
- कैल्शियम-फोस्फोरस बेलेन्स सही नहीं होना ।
- विटामिन -डी की कमी होना ।
- हड्डडयों से खून में कैल्शियम कम मात्रा में मिलना ।
- पैराथाइराइड ग्रंथि से पैराथार्मोन का स्त्राव कम होना ।
- खून में कैल्शियम का स्तर अचानक बढ़ जाना ।
- सूखे पीरीयड में अधिक मात्रा में कैल्शियम देना ।
- पशु के गर्भकाल के अंतिम समय में मिनरल कम मिलना ।
एपिडीमियोलॉजी
- स्पोरैडिक बीमारी है ।
- मुख्यतया गाय और भैंस में होती है पर कभी-कभी अन्य पशुओं में भी हो सकती है।
- मुख्य रूप से वयस्क जानवरों में (5-10 वर्ष) ।
- ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में मुख्य रूप से पाई जाती है ।
- ब्याने के कुछ दिन पहले या तुरंत बाद (48-72 घंटो में) हो सकती है
लक्षण
इस बीमारी के तीन स्तर होते हैं –
- उत्तेजनात्मक / excitatory :
- पशु लड़खड़ाकर चलता है। आंशिक लकवा व धनुषबान के लक्षण दिखते हैं ।
- दांत किटकिटाना व मुँह में झाग आना ।
- माँसपेसियों व शरीर में हल्की कम्पन ।
- सिर को इधर उधर दहलाना ।
- तापमान सामान्य/ हल्का कम /अधिक ।
- स्टर्नल रिकमबेनसी :
- पशु खड़ा नहीं हो पाता है और सीने पर बैठकर सिर फ्लेंक या सोल्डर की तरफ करता है तथा निढाल हो जाता है ।
- चमड़ी ठंडी व तापमान सामान्य से कम हो जाता है ।
- पशु में कब्ज हो जाती है तथा पेशाब और गोबर बंद कर देता है ।
- आँख की पुतली चौड़ी व फैल जाती है तथा रीफ्लैक्स बंद हो जाते हैं ।
- लेट जाने की अवस्था :
- इस स्थिति में जानवर उठने व सीधा बैठने में असमर्थ होता है और एक तरफ लेट जाता है ।
- तापमान सामान्य से काफी कम हो जाता है तथा चमड़ी व मज़ल ठंडी हो जाती हैं ।
- पशु लंबा गहरा सांस लेता है ।
- सिर बेहोशी की हालात में इधर-उधर जोर से पटकता है ।
- आफरा आ जाता और गभाश्य का प्रोलेप्स हो जाता है ।
- अंतिम स्थिति में मैंनेज करना असम्भव सा हो जाता है और 12-24 घंटे में इलाज नहीं होने पर पशु कि मृत्यु हो जाती है ।
निदान
- लक्षणों द्वारा पहचान, तुरंत ब्याने और अधिक दूध देने की हिस्ट्री ।
- स्टर्नल या लैटरल रिकमबेनसी व सामान्य से कम तापमान ।
- सीरम में कैल्सीयम लेवल कम होना ।
उपचार
- कैल्सीयम साल्ट का इन्जेक्शन मुख्य इलाज है (पराँटल / नस में) ।
- नस में कैल्सीयम देने से पहले बोतल को हल्का गरम किया जाता है और धीरे धीरे चढ़ाया जाता है ।
- साथ ही विटामिन -डी का इन्जेक्शन दिया जाता है ।
- एंटी-हिस्टामिनिक दवाई ।
- अगर लक्षण जारी रहे तो चिमड़ी में भी कैल्सीयम इन्जेक्शन दिया जाता है ।
- यदि कीटोसिस के लक्षण हो तो 25% डेक्स्रोज भी दिया जाता है ।
बचाव
- ब्यावत से 1-2 सप्ताह पूर्व आहार में कैल्सीयम कि मात्रा कम कर देवें ।
- ब्यावत के बाद दूध कम निकालें ।
- पशु को ब्यावत के समय साफ सुथरा व सुखी जगह पर रखे और ज्यादा सदी से बचाएं ।
- ब्यावत का समय नजदीक आने पर पशु को ट्रांसपोर्ट ना करे ।
- विटामिन डी-3 का इन्जेक्शन ब्यावत से एक सप्ताह पूर्व लगावे ।
- ब्यावत के तुरंत बाद कैल्सीयम का इन्जेक्शन लगा सकते हैं ।
- मिनरल मिक्सर ब्याने के एक माह पूर्व आहार में देना शुरू कर दें ।
इस तरह पशु पालक जागरूक रहकर अपने दुधारू पशु को इस बीमारी व इससे होने वाले आर्थिक नुकसान से बचा सकते हैं ।
https://indiancattle.com/hi/milk-fever-in-cattle/