MILK PRODUCTION IN INDIA DURING SUMMER.

0
397

गर्मी के मौसम में भारत में दूध उत्पादन

द्वारा- डॉ मुकेश दहिया
परिचय
भारतवर्ष में दूध की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए इसके अधिक उत्पादन हेतु नवीनतम तकनीकियों का विकास करना आवश्यक है। डेयरी गायों में दूध की गुणवत्ता एवं इसका उत्पादन अधिक ताप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। प्राइवेट डेयरियों में आजकल संकर नस्ल की गाय अधिक दुग्ध उत्पादन हेतु लोकप्रिय हो रही है। इन गायों को स्वदेशी नस्लों की तुलना में ताप के कारण होने वाले तनाव की संभावना भी अधिक होती है। गर्म मौसम कई विभिन्न कारकों जैसे वायु का अधिक तापमान, वायु की गति, नमी एवं ऊष्मा विचलन दर पर निर्भर करता है। डेयरी पशुओं की उचित देखभाल हेतु वृक्षों की छाया, विद्युत् पंखों, कूलरों तथा रात के समय चरागाह भेजने जैसी अनेक विधियां अपनाई जाती है। उष्मीय तनाव से पशु कम मात्रा में शुष्क पदार्थ ग्रहण करते हैं जबकि उन्हें अधिक ऊर्जा एवं प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अत: ऐसी परिस्थितियों में पशुओं को अधिक ऊर्जा एवं प्रोटीन-युक्त आहार उपलब्ध कराए जाने की नितांत आवश्यकता है ताकि इनकी उच्च-उत्पादन क्षमता पर गर्मी का कोई प्रभाव न पड़े।

गर्म मौसम प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार से पशुओं की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है, अधिकतम आनुवंशिक क्षमता हेतु पर्यावर्णीय परिस्थितियों के साथ-साथ पशुओं की खुराक में भी परिवर्तन लाना अतिआवश्यक है। दूध देने वाली संकर नस्ल की गायों के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान आरामदेह होता है परन्तु इससे अधिक गर्मी होने पर इनकी दुग्ध-उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती है। गर्म मौसम में शारीरिक तापमान बढ़ जाता है जिससे दुग्ध-उत्पादन क्षमता, उर्वरता तथा शारीरिक वृद्धि दर में कमी आ जाती है। शरीर का तापमान, ऊष्मा लाभ एवं हानि पर निर्भर करता है। उच्च तापमान एवं नमी-युक्त वातावरण में ऊष्मा हानि कम हो जाती है जो दुग्ध-उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अधिक उर्जा-युक्त आहार लेने से शरीर से उत्पन्न होने वाली ऊष्मा तथा दुग्ध उत्पादन दोनों ही बढ़ जाते है। अत: अधिक दूध देने वाली गायों में ऊष्मा उत्पादन बढ़ने से गर्म मौसम का विपरीत प्रभाव भी अधिक होता है। गर्म मौसम में पशुओं का तापमान नियंत्रित रखने के लिए आमतौर पर निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती है।

READ MORE :  SUMMER STRESS MANAGEMENT IN LIVESTOCK: TIPS TO FARMERS

पशुओं के शेड का तापमान कम रखने के लिए इनकी संरचना में सुधार किया जाता है।
पशुओं पर फव्वारे द्वारा पानी डाल कर पंखे चलाए जाते हैं ताकि उनके शरीर को ठंडा रखा जा सके।
भोज्य उर्जा उपयोगिता की क्षमता बढ़ाकर खाने के समय उत्पन्न होने वाली ऊष्मा में कमी लाई जा सकती है।
गर्म मौसम में विभिन्न कारकों से पशुओं की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है।

वायु-ताप एवं नमी
वायु नमी के कारण त्वचा तथा श्वास नली से वाष्पोत्सर्जन द्वारा होने वाली ऊष्मा-हानि पर प्रभाव पड़ता है। अत: अधिक तापमान पर नमी, दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता को काफी हद तक कम कर देती है। गर्मी एवं नमी में पशु अधिक समय तक खड़े रहते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा अपने शरीर से अधिकाधिक ऊष्मा वायु में छोड़ सकें।

ऊष्मा विकिरण
सूर्य एवं पशुओं के आसपास मिलने वाले ऊष्मा विकिरणों के कारण ऊष्मा हानि प्रभावित होती है। गर्मियों के मौसम में पशुओं के शेड के अत्यधिक ऊष्मा विकिरण निकलते हैं जिससे इनके दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है। धूप में पशुओं की त्वचा ऊष्मा सोख लेती है। जिससे इनका शारीरिक तापमान बढ़ जाता है। गर्मी से मुक्ति पाने के लिए पशु तीव्रता से सांस लेते हैं। पशु कम मात्रा में शुष्क पदार्थ ग्रहण करते हैं तथा इनके ऊष्मा उत्पादन में भी कमी आ जाती है। इस प्रकार गर्मी झेलने वाले पशुओं में दुग्ध उत्पादन लगभग बीस प्रतिशत तक कम हो सकता है।

हवाओं का चलना
हवाओं के कारण पशुओं के शरीर से होने वाली ऊष्मा हानि संवहन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा होती है। कम तापमान पर हवाओं के चलने से दुग्ध उत्पादकता प्रभावित नहीं होती परन्तु अधिक तापमान पर हवा चलने से पशुओं को लाभ होता है। गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा उत्पन्न की गई ऊष्मा ताप-तनाव का मुख्य कारण होती है। जब ताप नमी सूचकांक 72 (21 डिग्री सें. तापमान पर सामान्य नमी) से अधिक होता है तो दुग्ध उत्पादन घटना शुरू हो जाता है। ताप नमी सूचकांक की प्रत्येक इकाई के बढ़ने पर दूध की मात्रा लगभग 250 ग्राम प्रतिदिन तक कम हो जाती है।

READ MORE :  Milk Production Scenario in Assam: Strategies to Address Shortfalls in Milk

गर्म मौसम में पशुओं की उत्पादन क्षमता पर प्रभाव
अधिक दूध देने वाली संकर गायों में अपेक्षाकृत कम तापमान पर ही श्वास दर बढ़ने लगती है जबकि कम दूध देने वाले पशुओं में अधिक तापमान सहने की क्षमता पाई जाती है क्योंकि अधिक दुग्ध-उत्पादन करने वाली गायों में चयापचय दर एवं ऊष्मा उत्पादन भी अधिक होती है। इसी प्रकार शुष्क पदार्थो की कम खपत भी दुग्ध-उत्पादन में कमी लाती है।

यदि सावधानीपूर्वक डेयरी पशुपालन प्रबंधन किया जाएं तो अधिक दूध देने वाले पशुओं को उच्चतम दुग्ध-उत्पादन स्तर पर भी गर्मी के कारण होने वाले तनाव से निजात दिलाई जा सकती है। विशेष प्रकार के फव्वारे तथा पंखे चलाकर पशुओं को गर्मी से बचाया जा सकता है।

धुप से सीधे बचाव के लिए साधारण शेड का प्रयोग किया जा सकता है। शेड के आसपास पेड़-पौधे लगाकर इसे और भी अधिक ठंडा एवं प्रभावशाली बनाया जा सकता है। शेड के कारण डेयरी पशुओं का शारीरिक तापमान एवं श्वसन दर सामान्य बनी रहती है। इसी तरह कम तापमान पर तेजी से चलने वाली हवा के कारण पशुओं के शरीर से ऊष्मा अधिक तीव्रता से निकलती है। इससे न केवल सामान्य ताप एवं श्वसन दर बनी रहती है अपितु पशुओं के भार में वृद्धि के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता-युक्त अधिक दूध प्राप्त होता है। परन्तु अधिक तापमान युक्त हवा से पशुओं की त्वचा का तापमान अधिक हो जाता है तथा ताप-तनाव के कारण इनकी उत्पादकता में भी कमी आ जाती है। यदि पशुओं के सर एवं गर्दन को ठंडा रखा जाए तो ये अधिक चारा ग्रहण करते हैं जिससे दुग्ध-उत्पादन बढ़ जाता है। यदि पशुओं को रात के समय चरने दिया जाए तो इन्हें सूर्य की गर्मी से बचाया जा सकता है।

READ MORE :  ESSENCE OF POST MILKING TEAT DIPPING - AN AMELIORATIVE MEASURE FOR THE MASTITIS CONTROL

गर्म मौसम में पशु-पोषण आवश्यकताएं
गर्म मौसम में पशुओं के रखरखाव एवं उत्पादन हेतु उर्जा की मांग तो अधिक होती है जबकि सकल उर्जा की कार्यक्षमता कम हो जाती है। तापमान अधिक होने पर भी चारे की खपत कम हो जाती है। अत: गर्म मौसम में पशुओं की उर्जा आवश्यकता पूर्ण करने हेतु इनको अधिक उर्जायुक्त आहार खिलाने की आवश्यकता पड़ती है। गर्मियों में गायों से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए उन्हें अधिक वसा-युक्त आहार खिलाए जा सकते है। ऐसे आहार खिलाने से इनके शारीरिक तापमान में कोई वृद्धि नहीं होती तथा श्वसन दर भी सामान्य बनी रहती है। अधिक मात्रा में प्रोटीन-युक्त आहार लेने से ऊष्मा का उत्पादन भी बढ़ जाता है जिसका प्रजनन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गर्म मौसम में दुधारू गायों को अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन न मिलने से इनकी शुष्क पदार्थ ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है। गायों को बाई पास प्रोटीन देने से इसकी उपलब्धता अधिक होती है जिससे दूध में वसा की मात्रा एवं दुग्ध-उत्पादन में वृद्धि होती है। पशुओं को ताप-जनित तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत से अनुसंधान किए जा रहे है परन्तु अभी भी दुग्ध उत्पादकता को प्रभावित किए बिना इस समस्या का पूर्ण निदान नहीं हो पाया है। जलवायु तन्यक कृषि आधारित अनुसंधान इस दिशा में एक सार्थक पहल हो सकती है। यदि मौसम के दुष्प्रभावों से बचने के साथ पशुओं की खुराक एवं रखरखाव प्रबन्धन पर ध्यान दिया जाए तो इस में आशातीत सफलता भी मिल सकती है।

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON