आधुनिक बकरी पालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी

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आधुनिक बकरी पालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी

बकरी पालन-एक परिचय

बकरी पालन प्रायः सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव तथा पालन-पोषण के साथ संभव है। इसके उत्पाद की बिक्री हेतु बाजार सर्वत्र उपलब्ध है। इन्हीं कारणों से पशुधन में बकरी का एक विशेष स्थान है।

उपरोक्त गुणों के आधार पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी बकरी को ‘गरीब की गाय’ कहा करते थे। आज के परिवेश में भी यह कथन महत्वपूर्ण है। आज जब एक ओर पशुओं के चारे-दाने एवं दवाई महँगी होने से पशुपालन आर्थिक दृष्टि से कम लाभकारी हो रहा है वहीं बकरी पालन कम लागत एवं सामान्य देख-रेख में गरीब किसानों एवं खेतिहर मजदूरों के जीविकोपार्जन का एक साधन बन रहा है। इतना ही नहीं इससे होने वाली आय समाज के आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। बकरी पालन स्वरोजगार का एक प्रबल साधन बन रहा है।

भारत जैसे देशो में पशु पालन व्यवसाय सदियों से चला रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन तो आय का प्रमुख स्रोत रहा है। ऐसा ही एक बहुत ही लोकप्रिय है उन में से एक है बकरी पालन व्यवसाय। राजस्थान सरकार द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में बकरियों की कुल संख्या लगभग 12 करोड़ है। विश्व की कुल बकरी संख्या का 20 प्रतिशत भारत में ही पाया जाता है। जो की एक विशाल नंबर है। बकरी एक बहुउपयोगी, सीधा-साधा, किसी भी वातावरण में आसानी से ढलने वाला छोटा पशु है जो अपनी रहन-सहन व खान-पान सम्बंधित आदतों के कारण सबका चाहता पशु है।

बकरी पालन की उपयोगिता

बकरी पालन मुख्य रूप से मांस, दूध एवं रोंआ (पसमीना एवं मोहेर) के लिए किया जा सकता है। झारखंड राज्य के लिए बकरी पालन मुख्य रूप से मांस उत्पादन हेतु एक अच्छा व्यवसाय का रूप ले सकती है। इस क्षेत्र में पायी जाने वाली बकरियाँ अल्प आयु में वयस्क होकर दो वर्ष में कम से कम 3 बार बच्चों को जन्म देती हैं और एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती हैं। बकरियों से मांस, दूध, खाल एवं रोंआ के अतिरिक्त इसके मल-मूत्र से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। बकरियाँ प्रायः चारागाह पर निर्भर रहती हैं। यह झाड़ियाँ, जंगली घास तथा पेड़ के पत्तों को खाकर हमलोगों के लिए पौष्टिक पदार्थ जैसे मांस एवं दूध उत्पादित करती हैं।

बकरी की विभिन्न उपयोगी नस्लें

संसार में बकरियों की कुल 102 प्रजातियाँ उपलब्ध है। जिसमें से 20 भारतवर्ष में है। अपने देश में पायी जाने वाली विभिन्न नस्लें मुख्य रूप से मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। यहाँ की बकरियाँ पश्चिमी देशों में पायी जाने वाली बकरियों की तुलना में कम मांस एवं दूध उत्पादित करती है क्योंकि वैज्ञानिक विधि से इसके पैत्रिकीविकास, पोषण एवं बीमारियों से बचाव पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। बकरियों का पैत्रिकी विकास प्राकृतिक चुनाव एवं पैत्रिकी पृथकता से ही संभव हो पाया है। पिछले 25-30 वर्षों में बकरी पालन के विभिन्न पहलुओं पर काफी लाभकारी अनुसंधान हुए हैं फिर भी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर गहन शोध की आवश्यकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली की ओर से भारत की विभिन्न जलवायु की उन्नत नस्लें जैसेः ब्लैक बंगला, बारबरी, जमनापारी, सिरोही, मारबारी, मालावारी, गंजम आदि के संरक्षण एवं विकास से संबंधित योजनाएँ चलायी जा रही है। इन कार्यक्रमों के विस्तार की आवश्यकता है ताकि विभिन्न जलवायु एवं परिवेश में पायी जाने वाली अन्य उपयोगी नस्लों की विशेषता एवं उत्पादकता का समुचित जानकारी हो सके। इन जानकारियों के आधार पर ही क्षेत्र विशेष के लिए बकरियों से होने वाली आय में वृद्धि हेतु योजनाएँ सुचारू रूप से चलायी जा सकती है। बकरी पालन व्यवसाय भी काफी प्रचलित हो रहा है। ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि यह कम लागत में ज्यादा मुनाफा देता है।

इस लेख में बकरी पालन से संबंधित सारी जानकारी को प्रस्तुत किया गया है, जो बकरी पालकों और उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जो इसमें अपना भविष्य बनाना चाहते है।

  • बकरियों की उपयोगी नस्लें – इस भाग में बकरियों की उपयोगी नस्लों, भारत की उपयोगी नस्लों एवं विदेश की प्रमुख नस्लों के विषय में जानकारी है।
  • झारखंड राज्य के लिए संकर नस्ल के बकरी पालन व उसकी उपयोगिता – इस भाग में प्रजनन हेतु नर के चयन, गर्भवती बकरी की देख-रेख, मांस उत्पादन हेतु बकरी पालन, बकरियों में होने वाले रोग एवं रोग के लक्षण तथा रोकथाम के विषय में जानकारी है।
  • बकरी पालन से संबंधित आवश्यक बातें – इस भाग में बकरी पालन से सम्बंधित आवश्यक बातो का वर्णन है।
  • दस व्यस्क बकरियों के आय-व्यय का ब्योरा – इस भाग में बकरियों के आय-व्यय का ब्योरा है।

बकरी पालन व्यवसाय (Goat farming business plan)

बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो कम जमापूँजी (investment) में अधिक मुनाफा देता है। इसके साथ यह जानवरों को एक अच्छा माहौल प्रदान कराता है। आज के युग में लोग बहुत से जानवरों का पालन करते हैं जिनका दाना-पानी और रहने की व्यवस्था उन्हें काफी महंगी पड़ती है। वहीं बकरी पालन एक सस्ता और टिकाऊ व्यवसाय है जिसमें पालन का खर्च कम होने के कारण आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। बकरी पालकर बेचने का व्यवसाय आपके लिए बहुत ही फायदेमंद और उपयोगी साबित हो सकता है। बकरी पालन के व्यवसाय से निम्न तरीकों से मुनाफा कमाया जा सकता है:

  • दूध देने वाली बकरियों को बेचकर,
  • बकरियों को माँस के रूप में बेचकर,
  • ऊन व खाल द्वारा प्राप्त आय से ,
  • बकरी की मींगणियों को खाद के रूप में बेचकर।

बकरी पालन व्यवसाय लागत (Goat farming investment)

बकरी पालन व्यवसाय में लागत

बकरी पालन शुरू करने के लिए आपको कम से कम 4,00,000 से 5,00,000 रूपये तक की जरूरत पड़ेगी। जिससे आप बकरियों के लिए शेड, उनका दाना-पानी और उनके देखभाल की जिम्मेदारी सकुशलता उठा पाएंगे। यह लागत (goat farming investment) मुख्यतः आपको शुरुआती बकरियाँ खरीदने में, शेड बनाने में, बकरियों का चारा (fodder) खरीदने में व लेबर कॉस्ट (labour cost) में आएगी। इस व्यवसाय से आपको अपनी लागत से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।

बकरी पालन के लिए टिप्स (Tips for goat farming in India)

बकरी पालन यूँ तो काफ़ी आसान बिज़नेस (easy business) है लेकिन हमें इसमें कई महत्वपूर्ण चीजों का ख़ास ध्यान रखना होता है। यह कुछ इस प्रकार से हैं।

  1. बकरी पालन के लिए सबसे पहले ध्यान रखना होता है कि उन्हें बकरियों को ठोस ज़मीन पर रखा जाएजहाँ नमी न हो (no moisture)। उन्हें उसी स्थान पर रखें जो हवादार व साफ़ सुथरा हो।
  2. बकरियों के चारे में हरी पत्तियों (green fodder) को जरूर शामिल करें।हरा चारा बकरियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
  3. बारिश से बकरियों को दूर रखे क्योंकि पानी में लगातार भीगना बकरियों के लिए नुकसान दायक है।
  4. बकरीपालन के लिएतीन चीजें बहुत जरूरी होती हैं:
    1. पैसा :बिना पैसों के कुछ नहीं होता और वैसे ही गोट फार्मिंग के लिए भी पैसा बहुत जरूरी है। भले ही आप छोटे स्तर से शुरुआत करें।
    2. प्लेस: बकरियों के लिए अच्छी जगह चुनें पर याद रहे जगह आपकी खुद की हो तो ज्यादा बेहतर रहेगा जिसे आम भाषा में बाड़ा कहते हैं। इनके लिए 1 से 2 एकड़ की जमीन की आवश्यकता होती है। रेन्ट या किराये पर बकरी पालन उचित नहीं होता व काफ़ी महंगा पड़ता है।
    3. धैर्य: इस व्यवसाय मे आपको धैर्य या patience रखना बहुत जरूरी है। एकदम से इसमें आप मुनाफा नहीं कमा सकते उसके लिए 1 से 2 साल तक इंतजार करना होगा। यह बकरी की नस्ल पर भी काफ़ी हद्द तक निर्भर करता है की आपको मुनाफा कितने समय में शुरू हो जाता है।
  5. बकरी पालन मे बकरियों परबारीकी से ध्यान देना पड़ता है। अगर आप अच्छी ट्रेनिंग लेंगे तो आप उन्हें एक नजर में देखते ही समझ जायेंगे कि कौन बीमार है और कौन दुरूस्त।
  6. बकरियों पर ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। ये जब भी बीमार होती है तो सबसे पहले खाना-पीना छोड़ देती हैं। ऐसी स्थिति में पशु चिकित्सीय परामर्श भी लेते रहें।

बकरियों की सही नस्ल का चुनाव (Choosing the right goat breed)

भारत में बकरियों की 20 स्थापित नस्लें हैं। विशेष बात यह है की यहाँ इन नस्लीय बकरियों की संख्या से कई गुना अधिक अवर्णित नस्ल की बकरियाँ पायी जाती हैं। बकरी पालन के लिए सही बकरी का चुनाव करते समय यह विशेष ध्यान रखें की जो भी बकरी की नस्ल (goat breed) आप चुनें वह आप जिस स्थान पर आप रहते हैं उस वातावरण में ढ़लने लायक हो। अपने स्थान के हिसाब से ही बकरियों की सही नस्ल का चुनाव करें जिससे वो वातावरण के अनुकूल खुद को ढा़ल पाएँ। आपकी मदद के लिए नीचे कुछ राज्यों के हिसाब से नस्लें दी गई हैं।

राज्य के हिसाब से बकरी की उत्तम नस्ल
राजस्थान पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश
सिरोही, बीटल, सोजत ब्लैक बंगाल बारबरी, जमुनापरी
 

बकरी पालन के लिए शेड कहाँ व कैसे बनाए

बकरी पालन के लिए शेड (Goat farm) बनाते समय कुछ ख़ास बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे बकरी पालन के लिए शेड किसी कड़ी जगह पर बनाएं जहाँ पानी का स्तर ज्यादा न पहुँच पाए। बारिश बकरियों के लिए अच्छी नहीं होती है। शेड किसी खाली स्थान जो कि खेतों के बीच में हो ऐसे स्थान पर बनाएं। शेड बनाने के लिए आपको कम से कम 20,000 तक खर्च करना पड़ेगा और इसे बनाने के लिए आपको कम से कम एक से दो एकड़ ठोस जमीन की जरूरत पड़ेगी।

जमुनापारीः

जमुनापारी भारत में पायी जाने वाली अन्य नस्लों की तुलना में सबसे उँची तथा लम्बी होती है। यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगा, यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती है। एंग्लोनुवियन बकरियों के विकास में जमुनापारी नस्ल का विशेष योगदान रहा है।

 

इसके नाक काफी उभरे रहते हैं। जिसे ‘रोमन’ नाक कहते हैं। सींग छोटा एवं चौड़ा होता है। कान 10-12 इंच लम्बा चौड़ा मुड़ा हुआ तथा लटकता रहता है। इसके जाँघ में पीछे की ओर काफी लम्बे घने बाल रहते हैं। इसके शरीर पर सफेद एवं लाल रंग के लम्बे बाल पाये जाते हैं। इसका शरीर बेलनाकार होता है। वयस्क नर का औसत वजन 70-90 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 50-60 किलो ग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियाँ दूध तथा मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ सलाना बच्चों को जन्म देती है तथा एक बार में करीब 90 प्रतिशत एक ही बच्चा उत्पन्न करती है। इस जाति की बकरियाँ मुख्य रूप से झाड़ियाँ एवं वृक्ष के पत्तों पर निर्भर रहती है। जमुनापारी नस्ल के बकरों का प्रयोग अपने देश के विभिन्न जलवायु में पायी जाने वाली अन्य छोटे तथा मध्यम आकार की बकरियाँ के नस्ल सुधार हेतु किया गया। वैज्ञानिक अनुसंधान से यह पता चला कि जमनापारी सभी जलवायु के लिए उपयुक्त नही हैं।

बकरी पालन एक सुगम ब्यवसाय

बीटलः बीटल नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से पंजाब प्रांत के गुरदासपुर जिला के बटाला अनुमंडल में पाई जातीहै। पंजाब से लगे पाकिस्तान के क्षेत्रों में भी इस नस्ल की बकरियाँ उपलब्ध है। इसका शरीर भूरे रंग पर सफेद-सफेद धब्बा या काले रंग पर सफेद-सफेद धब्बा लिये होता है। यह देखने में जमनापारी बकरियाँ जैसी लगती है परन्तु ऊँचाई एवं वजन की तुलना में जमुनापारी से छोटी होती है। इसका कान लम्बा, चौड़ा तथा लटकता हुआ होता है। नाक उभरा रहता है। कान की लम्बाई एवं नाक का उभरापन जमुनापारी की तुलना में कम होता है। सींग बाहर एवं पीछे की ओर घुमा रहता है। वयस्क नर का वजन 55-65 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 45-55 किलो ग्राम होता है। इसके वच्चों का जन्म के समय वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इसका शरीर गठीला होता है। जाँघ के पिछले भाग में कम घना बाल रहता है। इस नस्ल की बकरियाँ औसतन 1.25-2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है। इस नस्ल की बकरियाँ सलाना बच्चे पैदा करती है एवं एक बार में करीब 60% बकरियाँ एक ही बच्चा देती है।

 

बीटल नस्ल के बकरों का प्रयोग अन्य छोटे तथा मध्यम आकार के बकरियों के नस्ल सुधार हेतु किया जाता है। बीटल प्रायः सभी जलवायु हेतु उपयुक्त पाया गया है।

 

बारबरीः

बारबरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है। इस नस्ल के नर तथा मादा को पादरियों के द्वारा भारत वर्ष में सर्वप्रथम लाया गया। अब यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध है।

 

यह छोटे कद की होती है परन्तु इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं। शरीर पर सफेद के साथ भूरा या काला धब्बा पाया जाता है। यह देखने में हिरण के जैसा लगती है। कान बहुत ही छोटा होता है। थन अच्छा विकसित होता है। वयस्क नर का औसत वजन 35-40 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 25-30 किलो ग्राम होता है। यह घर में बांध कर गाय की तरह रखी जा सकती है। इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी विकसित है। 2 वर्ष में तीन बार बच्चों को जन्म देती है तथा एक वियान में औसतन 1.5 बच्चों को जन्म देती है। इसका बच्चा करीब 8-10 माह की उम्र में वयस्क होता है। इस नस्ल की बकरियाँ मांस तथा दूध उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ औसतन 1.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।

 

सिरोहीः

सिरोही नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के सिरोही जिला में पायी जाती है। यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध है। इस नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त है। इसका शरीर गठीला एवं रंग सफेद, भूरा या सफेद एवं भूरा का मिश्रण लिये होता है। इसका नाक छोटा परन्तु उभरा रहता है। कान लम्बा होता है। पूंछ मुड़ा हुआ एवं पूंछ का बाल मोटा तथा खड़ा होता है। इसके शरीर का बाल मोटा एवं छोटा होता है। यह सलाना एक वियान में औसतन 1.5 बच्चे उत्पन्न करती है। इस नस्ल की बकरियों को बिना चराये भी पाला जा सकता है।

 

 

विदेशी बकरियों की प्रमुख नस्लें:

 

अल्पाइन – यह स्विटजरलैंड की है। यह मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त है। इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्रों में औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।

 

एंग्लोनुवियन – यह प्रायः यूरोप के विभिन्न देशों में पायी जाती है। यह मांस तथा दूध दोनों के लिए उपयुक्त है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता 2-3 किलो ग्राम प्रतिदिन है।

 

सानन – यह स्विटजरलैंड की बकरी है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता अन्य सभी नस्लों से अधिक है। यह औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन अपने गृह क्षेत्रों में देती है।

 

टोगेनवर्ग – टोगेनवर्ग भी स्विटजरलैंड की बकरी है। इसके नर तथा मादा में सींग नहीं होता है। यह औसतन 3 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।

 

बकरी पालन से संबंधित आवश्यक बातें:

 

– ब्लैक बंगाल बकरी का प्रजनन बीटल या सिरोही नस्ल के बकरों से करवाएं.

– पाठी का प्रथम प्रजनन 8-10 माह की उम्र के बाद ही करवाएं.

– बीटल या सिरोही नस्ल से उत्पन्न संकर पाठी या बकरी का प्रजनन संकर बकरा से करवाएं.

-बकरा और बकरी के बीच नजदीकी संबंध नहीं होना चाहिए

-बकरा और बकरी को अलग-अलग रखना चाहिए।

READ MORE :  बीटल बकरी की विशेषताएं

-पाठी अथवा बकरियों को गर्म होने के 10-12 एवं 24-26 घंटों के बीच 2 बार पाल दिलावें।

– बच्चा देने के 30 दिनों के बाद ही गर्म होने पर पाल दिलावें।

-गाभीन बकरियों को गर्भावस्था के अन्तिम डेढ़ महीने में चराने के अतिरिक्त कम से कम 200 ग्राम दाना का मिश्रण अवश्य दें।

-बकरियों के आवास में प्रति बकरी 10-12 वर्गफीटा जगह दें तथा एक घर में एक साथ 20 बकरियों से ज्यादा नहीं रखें।

 

बकरी पालकों को बकरी के ऋतुकाल (गर्म होने) के लक्षण के विषय में जानकारी रखनीचाहिए। बकरी के गर्म होने के लक्षण निम्नलिखित हैं : 

-विशेष प्रकार की आवाज निकालना।

लगातार पूंछ हिलाना।

चरने के समय इधर-उधर भागना।

नर के नजदीक जाकर पूंछ हिलाना तथा विशेष प्रकार का आवाज निकालना।

घबरायी हुई सी रहना।

दूध उत्पादन में कमी

भगोष्ठ में सूजन और योनि द्वार का लाल होना

योनि से साफ पतला लेसेदार द्रव्य निकलना तथा नर का मादा के उपर चढ़ना या मादा का नर के उपर चढ़ना।

 

उपरोक्त लक्षणों को पहचानकर बकरी पालक समझ सकते है कि उनकी बकरी गर्म हुई है अथवा नहीं। इन लक्षणों को जानने पर ही समय से गर्म बकरी को पाल दिलाया जा सकता है। बच्चा पैदा करने के 30-31 दिनों के बाद ही गर्म होने पर बकरी को पाल दिलावें।

 

सामान्यतया 30-40 बकरियों के लिए एक बकरा काफी है। एक बकरा से एक दिन में केवल एक ही बकरी को पाल दिलाना चाहिए एवं एक सप्ताह में अधिक से अधिक पांच बकरियों को। इस बीच बकरों को अधिक पौष्टिक भोजन देना जरूरी है नहीं तो बकरा कमजोर हो जायेगा।

 

 

प्रजनन हेतु नर का चयन:

 

प्रजनन हेतु नर का चयन निम्नलिखित गुणों के आधार पर करें-

जुड़वा उत्पन्न नर का चुनाव करें।

नर के माँ का दूध उत्पादन पर ध्यान दें।

नर के शारीरिक वजन एवं बनावट पर ध्यान दें।

नर के अंडकोश की वृद्धि पर ध्यान देना चाहिए।

 

गर्भवती बकरी की देख-रेख:

 

गर्भवती बकरियों को गर्भावस्था के अंतिम डेढ़ महीने में अधिक सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके पेट में पल रहे भ्रूण का विकास काफी तेजी से होने लगता है। इस समय गर्भवती बकरी के पोषण एवं रख-रखाव पर ध्यान देने से स्वस्थ्य बच्चा पैदा होगा एवं बकरी अधिक मात्रा में दूध देगी जिससे इनके बच्चों में शारीरिक विकास अच्छा होगी।

 

बकरियों में गर्भावस्था औसतन 142-148 दिनों का होता है। बच्चा देने के 2-3 दिन पहले से बकरी को साफा-सुथरा एवं अन्य बकरी से अलग रखें।

 

आवास – वातावरण के अनुसार बकरियों के लिए आवास की व्यवस्था करनी चाहिए। यहाँ बकरियों को गर्मी, सर्दी, वर्षा तथा जंगली जानवरों से बचाने योग्य आवास की जरूरत है। आवास के लिए सस्ती से सस्ती सामग्री का व्यवहार करना चाहिए ताकि आवास लागत कम रहे। प्रत्येक वयस्क बकरी के परिवार के लिए 10-12 वर्गफीट जमीन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक 10 बकरियों के परिवार के लिये 100-120 वर्ग फीट यानि 10’x12′ जमीन की आवश्यकता होगी। बकरा-बकरी को अलग-अलग रखना चाहिए। बकरी के लिए घर के किनारे-किनारे डेढ़ फीट ऊँचा तथा ढ़ाई से तीन फीट चौड़ा मचान बना देना चाहिए। मचान बनाने में यह ध्यान रखना चाहिए कि दो लकड़ी या बांस के टुकड़ों के बीच इतना कम जगह हो कि बकरी या बकरी के बच्चों का पांव उसमें न फंस सके।

 

पोषण – बकरियाँ चरने के अतिरिक्त हरे पेड़ की पत्तियाँ, हरी घास, दाल चुन्नी, चोकर आदि पसन्द करती है। बकरियों को रोज 6-8 घंटा चराना जरूरी है। यदि बकरी को घर में बांध कर रखना पड़े तब इसे कम से कम दो बार भोजन दें। बकरी हरा चारा( बरसीम, जई, मकई, नेपियर आदि) और पत्ता (बबूल, बेर, बकाइन, पीपल, बरगद, गुलर कटहल आदि) भी खाती है। एक वयस्क बकरी को औसतन एक किलो ग्राम घास या पत्ता तथा 100-250 ग्राम दाना का मिश्रण (मकई दरों, चोकर, खल्ली, नमक मिलाकर) दिया जा सकता है। उम्र तथा वजन के अनुसार भोजन की मात्रा को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। बकरा,

दूध देने वाली बकरी एवं गर्भवती बकरी के पोषण पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है।

 

बकरियों के लिए उपयोगी चारा

झाड़ियाँ : बेर, झरबेर

पेड़ की पत्तियाँ : नीम, कटहल, पीपल, बरगद, जामुन, आम, बकेन, गुल्लड, शीशम

चारा वृक्ष की पत्तियाँ : सू-बबूल, सेसबेनिया

सदाबहार घास : दूब, दीनानाथ, गिनी घास

हरा घास : लोबिया, बरसीम, लूसर्न आदि।

 

मांस उत्पादन हेतु बकरी पालन:

 

बाजार में मांस की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जिसके कारण बकरियों की मूल्यों में भी काफी वृद्धि हुई है। ब्लैक बंगाल मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। इसका प्रजनन बीटल या सिरोही नस्ल के बकरों से कराकर अधिक लाभ ले सकते है क्योंकि इससे उत्पन्न नर बच्चे छः माह की उम्र में औसतन 14-15 किलो ग्राम वजन प्राप्त कर लेता है। मांस उत्पादन वजन का 50 प्रतिशत मानकर चलें तब एक पाठा से 7-7.5 किलोग्राम मांस मिलेगा। जिसका बाजार भाव (100 रुपये/ किलो ग्राम) 700 रुपये से 750 रुपये तक आयेगा।

 

अधिक वजन के लिए नर बच्चों का बंध्याकरण 2 माह की उम्र में कराना चाहिए तथा 15 किलोग्राम वजन प्राप्त कर लेने के बाद माँस हेतु उपयोग में लाना चाहिए। इस वजन को प्राप्त कर लेने पर, वजन की तुलना में माँस उत्पादन में वृद्धि होती है।

 

बकरियों में होने वाले रोग, रोग के लक्षण एवं रोकथाम:

 

अन्य पशुओं की तरह बकरियाँ भी बीमार पड़ती है। बीमार पड़ने पर उसकी मृत्यु भी हो सकती है। बकरियों में मृत्यु दर कम कर बकरी पालन से होने वाली आय में वृद्धि की जा सकती है। बीमारी की अवस्था में पशुचिकित्सक की राय लेनी चाहिए।

 

बकरियों में होने वाले रोग

 

(क) परजीवी रोग – बकरी में परजीवी से उत्पन्न रोग अधिक होते है। परजीवी रोग से काफी क्षति पहुँचती है।

 

बकरी को आंतरिक परजीवी से अधिक हानि पहुँचती है। इसमें गोल कृमि, फीता कृमि, फ्लूक, एमफिस्टोम और प्रोटोजोआ प्रमुख है। इसके प्रकोप के कारण उत्पादन में कमी, वजन कम होना, दस्त लगना, शरीर में खून की कमी होती है। शरीर का बाल तथा चमड़ा रूखा-रूखा दीखता है। इसके कारण पेट भी फूल सकता है तथा जबड़े के नीचे हल्की सूजन भी हो सकती है।

 

इसके आक्रमण से बचाव तथा उपचार के लिए नियमित रूप से बकरी के मल की जाँच कराकर कृमि नाशक दवा (नीलवर्म, पानाकिआर, वेन्डाजोल, वेनमीन्थ, डिस्टोडीन आदि) देनी चाहिए। कृमि नाशक दवा तीन से चार माह के अंतराल पर खासकर वर्षा ऋतु शुरू होने के पहले और बाद अवश्य दें।

 

आंतरिक परजीवी के अलावे वाह्य परजीवी से भी बकरी को बहुत हानि पहुँचती है। बकरी में विशेषकर छौनों में जूँ लग जाते है। गेमेक्सीन या मालाथिऑन या साईथिऑन का प्रयोग कर जूँ से बचाना जरूरी है। बकरी में खुजली की बीमारी भी वाह्य परजीवी के कारण ही होती है। बकरी को खुजली से बचाने के लिए प्रत्येक तीन महीने पर 0.25 प्रतिशत (1 लीटर पानी में 5 मिली लीटर दवा)

मैलाथियॉन या साईथिऑन का घोल से नहलाना चाहिए। नहलाने के पहले बकरी को खासकर गर्दन, नाक, पूँछ जाँघ के अन्दर का भाग तथा छाती के नीचने भाग को सेवलॉन का घोल या कपड़ा धोने वाला साबुन लगा देना चाहिए। इसके बाद मैलाथियॉन या साईथिऑन के घोल से बकरी को नहलावें तथा पूरा शरीर को ब्रश से खूब रगड़े। बकरी को दवा का घोल पीने नहीं दें क्योंकि यह जहर है। नहलाने के एक घंटा बाद जहाँ-जहाँ खुजली है करंज का तेल लगा दें।

 

(ख) सर्दी-जुकाम (न्यूमोनिया)– यह रोग कीटाणु, सर्दी लगने या प्रतिकूल वातावरण के कारण हो सकता है। इस रोग से पीड़ित बकरी को बुखार रहता है, सांस लेने में तकलीफ होती है एवं नाक से पानी या नेटा निकलता रहता है। कभी-कभी न्यूमोनिया के साथ दस्त भी होता है। सर्दी-जुकाम की बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है एवं इससे अधिक बच्चे मरते हैं। इस रोग से ग्रसित बकरी या बच्चों को ठंढ़ से बचावें तथा पशुचिकित्सक की सलाह पर उचित एण्टीबायोटिक दवा (ऑक्सी टेट्रासाइकलिन, डाइक्स्ट्रीसिन, पेनसिलीन, जेन्टामाइसिन, इनरोफ्लोक्सासीन, सल्फा आदि) दें। उचित समय पर उपचार करने से बीमारी ठीक हो जायेगी।

 

(ग) पतला दस्त (छेरा रोग) – यह खासकर पेट की कृमि या अधिक हरा चारा खाने से हो सकता है। यह कीटाणु (बैक्टीरिया या वायरस) के कारण भी होता है।

 

इसमें पतला दस्त होता है। खून या ऑव मिला हुआ दस्त हो सकता है। सर्वप्रथम उचित दस्त निरोधक दवा (सल्फा, एण्टीबायोटिक, मेट्रान, केओलिन, ऑरीप्रीम, नेवलोन आदि) का प्रयोग कर दस्त को रोकना जरूरी है। दस्त वाले पशु को पानी में ग्लूकोज तथा नमक मिलाकर अवश्य पिलाते रहना चाहिए। कभी-कभी सूई द्वारा पानी चढ़ाने की भी आवश्यकता पड़ सकती है। पतला दस्त ठीक होने (यानि भेनाड़ी आ जाने पर) के बाद मल की जाँच कराकर उचित कृमि नाशक दवा दें। नियमित रूप से कृमि नाशक दवा देते रहने से पतला दस्त की बीमारी कम होगी। इस बीमारी का उचित उपचार पशुचिकित्सक की सलाह से करें।

 

(घ) सुरहा-चपका – यह संक्रामक रोग है। इस रोग में जीभ, ओंठ, तालु तथा खुर में फफोले पड़ जाते हैं। बकरी को तेज बुखार हो सकता है। मुँह से लार गिरता है तथा बकरी लँगड़ाने लगती है।

 

ऐसी स्थिति में बीमार बकरी को अलग रखें। मुँह तथा खुर को लाल पोटास (पोटाशियम परमेगनेट) के घोल से साफ करें। खुरों के फफोले या घाव को फिनाइल से धोना चाहिए। मुँह पर सुहागा और गंधक के मिश्रण का लेप लगा सकते हैं।

 

इस रोग से बचाव के लिए मई-जून माह में एफ॰एम॰डी॰ का टीका लगवा दें।

 

(ङ) आंत ज्वर (इन्टेरोटोक्सिमियां)– इस बीमारी में खाने की रुचि कम हो जाती है। पेट में दर्द होता है, दाँत पीसना भी संभव है, पतला दस्त तथा दस्त के साथ खून आ सकता है।

 

दस्त होने पर नमक तथा चीनी मिला हुआ पानी देते रहें। एण्टीबायोटिक एवं सल्फा का प्रयोग करें। इस बीमारी से बचाव के लिए इन्टेरोटेक्सिमियां या एम.सी.सी. का टीका बरसात शुरू होने के पहले लगवा दें।

 

(च) पेट फूलना– इस बीमारी में भूख कम लगती है, पेट फूल जाता है, पेट को बजाने पर ढ़ोल के जैसा आवाज निकलता है।

 

इस बीमारी में टिमपॉल पाउडर 15-20 ग्राम पानी में मिलाकर 3-3 घंटों पर दें। ब्लोटी सील दवा पिलावें तथा एभील की गोली खिलावें। आप हींग मिलाकर तीसी का तेल भी पिला सकते हैं। कभी-कभी इन्जेक्सन देने वाला सूई को पेट में भोंक कर गैस बाहर निकालना पड़ता है।

 

(छ) जोन्स रोग – पतला दस्त का बार-बार होना, बदबूदार दस्त आना तथा वजन में क्रमशः गिरावट इस बीमारी का पहचान है।

 

इससे ग्रसित बकरी को अलग रखें। अगर स्वास्थ्य में गिरावट नहीं हुई हो तो इस तरह के पशु का उपयोग मांस के लिए किया जा सकता है अन्यथा मरने के बाद इसे जमीन में गाड़ दें ताकि बीमारी फैले नहीं।

 

(ज) थनैल – बकरी के थन में सूजन, दूध में खराबी कभी-कभी बुखार आ जाना इस रोग के लक्षण हैं।

 

दूध निकालने के बाद थन में पशु चिकित्सक की सलाह से दवा देनी चाहिए। थनैल वाले थन को छूने के बाद हाथ अच्छी तरह साबुन एवं डिटॉल से साफ कर लेना चाहिए।

 

(झ) कोकसिडिओसिस – यह बकरी के बच्चों में अधिक होता है लेकिन वयस्क बकरी में भी हो सकता है। इसके प्रकोप से पतला दस्त, कभी-कभी खूनी दस्त भी हो सकता है।

 

इससे बचाव के लिए पशुचिकित्सक की सलाह पर उचित दवा (सल्फा, एम्प्रोसील, नेफटीन आदि) दें। रोग हो जाने पर दस्त का इलाज करें तथा मल की जांच के बाद उचित दवा दें।

 

(ञ) कन्टेजियस इकथाईमा – इस रोग से ग्रसित बकरी के बच्चों के ओठों पर तथा दोनों जबड़ों के बीच वाली जगह पर छाले पड़ जाते है जो कुछ दिनों के बाद सूख जाता है तथा पपड़ी पड़ जाता है यह संक्रामक रोग है।

 

इस रोग से ग्रस्त पशु को अलग रखें तथा ओठों को लाल पोटास के घोल से धोकर बोरोग्लिसरिन लगावें।

 

ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का सुरक्षित स्रोत- ब्रॉयलर बकरी पालन:

 

भारत में बकरियां, मुर्गियां या पशु पालन की प्रथा सदियों पुरानी है। बीते समय में, ग्रामीणों का मुख्य रोजगार पशु पालन होने के कारण वे इसी पर आश्रित रहते थे। लेकिन देश के विभिन्न भागों में, चारागाह भूमि और हरे चारे की कमी की वजह से पशु पालन, विशेष रुप से बकरी पालन, छोटे एवं घरेलू स्तर के पालकों के लिए कठिन हो गया है। देश के कई भागों में, बकरी पालन गैर-लाभदायक और महंगा होने के कारण अब एक अतीत बन कर रह गया है।

 

शेड बनाते टाइम ध्यान रखें की आप जिस राज्य के हिसाब से बकरियों की नस्ल का पालन कर रहे हैं वातावरण उसके अनूकुल हो। वातावरण के अनुकूल न होने पर आपको बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है। शेड के लिए कोई उचित सुरक्षित का चुनाव करें जहाँ जंगली जानवरों की छाव भी न पहुँच पाए।

बकरियों के लिए चारा : कैसे व कहाँ लें:

बकरियों के चारे का प्रंबध आप स्वयं से कर सकते हैं। बकरियों को हरी पत्तियाँ, हरी घास, चुन्नी, चोकर भी चारे के रूप मे दिया जा सकता है। वैसे तो बकरियों को 7 से 8 घंटे खुले स्थान में चराना चाहिए। अगर आपका खुद का खेत नहीं हैं तो आप इन्हें दिन मे तीन भार भोजन अवश्य दें। बकरियों की उम्र भी आप इनके दातों से पता कर सकते हैं। 4 साल की बकरी के सारे दाँत होते हैं।

 

बकरियों का टीकाकरण व डीवॉर्मींग :-

बकरियों का टीकाकरण करवाना चाहिए इनमें मुख्य रूप से चार बीमारी का डर होता है। यह बीमारियाँ व इनका टीकाकरण कुछ इस प्रकार से है:

किसान भाइयों बकरियों में वर्ष भर होने वाले रोगों के निवारण हेतु वार्षिक चक्र के अनुसार बकरी के नवजात बच्चों में मासिक टीकाकरण करवाना चाहिए। खासकर बकरियों में खुरपका आदि की गंभीर समस्याएं देखने को मिलती है। इसके लिए केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र, मखदूम द्वारा किसानों को बकरी की वार्षिक चक्र के अनुसार टीके के जानकारी दी गई है। व्यावसायिक दौर में जहां आप बकरीपालन के द्वारा अधिक आमदनी प्राप्त कर सकते हैं तो वहीं इसकी रोगों से रोकथाम के लिए नवजात बकरियों के बच्चों में टीकाकरण करवाना चाहिए। बकरी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उसे प्रथम कीला/खीस पिलाना आवश्यक है।

खुरपका-

खुरपका से रोकथाम के लिए बकरी शिशु में तीन माह में प्रथम टीका लगवाना चाहिए। जबकि बूस्टर टीका प्राथमिक टीका के 3 से 4 सप्ताह के बाद करना चाहिए। इसके बाद पुन:टीकाकरण प्रतिवर्ष कराया जा सकता है।

बकरी प्लेग-

बकरी प्लेग से रोकथाम के लिए बकरी में तीन माह की आयु में प्राथमिक टीका लगवाना चाहिए। जबकि इसके लिए बूस्टर टीका आवश्यक नहीं है। पुन: टीकाकरण तीन वर्ष पश्चात कराया जा सकता है।

 

बकरी चेचक-

इस रोग से रोकथाम के लिए बकरियों में 3 से 5 महीने की आयु में टीकाकरण करवाना चाहिए। इसका बूस्टर टीका प्राथमिक टीके के तीन माह पश्चात करवाया जा सकता है। पुन: टीकाकरण प्रतिवर्ष कराया जा सकता है।

आंत्र विषाक्तता-

इससे निवारण के लिए प्राथमिक टीका 3 माह की आयु में ही करवाना चाहिए। साथ ही 3 से 4 सप्ताह के बाद बूस्टर टीकाकरण करवा सकते हैं। जबकि 6 माह व प्रतिवर्ष इसका पुन:टीकाकरण करवाया जा सकता है।

गलघोंटू-

बकरियों में गलघोंटू रोग से निवारण के लिए 3 माह की आयु में ही प्रथम टीकाकरण करवा सकते हैं साथ ही बूस्टर टीका ठीक 3 से 4 सप्ताह बाद करवाना चाहिए। तो वहीं 6 महीने व साल भर में पुन:टीकाकरण करवा सकते हैं।

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बकरियों के प्रजनन की जानकारी (Goat reproduction)

बकरियों के प्रजनन की अवधि सितम्बर से मार्च तक होती है। बकरियों की जीवनकाल 8 वर्ष से 12 वर्ष होता है। मादा (female goat) की 11 से 15 महीने व नर (male goat) की 8 से 12 महीने के बकरे में प्रजनन क्षमता अधिक होती है। बकरी का गर्भकाल 146 से 156 दिन तक होता है। गर्मी में आने का समय 18 से 22 दिन व गर्मी में रहने का चक्र 12 से 36 घंटे का होता है। गर्भ रखने का सही समय गर्मी के 12 घंटे बाद होता है।

बकरियों को कहाँ व कैसे बेचें

बकरियों को सही ग्राहकों को उचित मूल्य में बेचें। ग्राहकों को बकरियों की नस्ल, आकार और उम्र के बारे मे पूर्ण जानकारी प्रदान करें। बकरी पालन (goat production) उनके मांस, खाल, दूध, ऊन और खाद के लिए किया जाता है। इनको ज्यादातर व्यापारी खरीदते हैं या आप कसाई को बेच सकते हैं। आप इन्हें सीधा बाजार और कसाईखाने (butcher house) में भी बेच सकते हैं। यहाँ आपको अधिक मूल्य प्राप्त होगा। कही बार व्यापारी इन्हें कम मूल्य में खरीद इन्हें बाजार में ज्यादा रेट मे बेचते हैं तो अगर आप इन्हें सीधा बाजार मे बेंचे तो आपके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा।

 

बकरी पालन शेड का निर्माण :

बकरी पालन करने के लिए एक अच्छे शेड के निर्माण की आवश्यकता होती हैं, जाने कैसे करते हैं

  • शेड के लिए अच्छी तरह सुखी जगह और बिजली पानी और परिवहन के लिए अनुकल जगह का चुनाव करें
  • पोजीशनिंग- हमारे देश में धूप ज्यादा होती हैं इसलिए शेड की लंबी धुरी (लंबाई) पूर्व-पश्चिम दिशा में होनी चाहिए
  • फर्श- भारतीय स्तिथि के अनुसार फर्श मिट्टी का होना चाहियें, आप इसे बांस,लकड़ी की पट्टीया, प्लाइवुड या प्लास्टिक से भी बना सकते हैं
  • छत: बकरी पालन शेड की छत आप सिमेन्ट शीट या थर्मल रोधक GI शीट का भी उपयोग कर सकते हैं
  • दीवारें: शेड की लंबाई के साथ-साथ दिवारे 4 फ़ीट ऊंची होनी चाहिए, बाकी ऊपर की जगह हवा और प्रकाश आने के लिए खुली होना चाहिए उसमें आप लोहे की जाली लगा सकते हैं.
  • शेल्टर(शेड) के आसपास का वातावरण: आस-पास के वातावरण को हरा-भरा बनाए रखे, इसके लियें आप शेड के आसपास पेड़-पौधे लगाए.
  • प्रत्येक बाड़े में एक पानी के फीडर रखें, आप स्थायी फीडर भी बना सकते हैं या अस्थायी फीडर भी रख सकते हैं.
  • बकरियों को धूप से बचाएं व थर्मल कम्फर्ट ज़ोन में रखे, जिससे की बकरियों की उत्पादकता अधिकतम होगी.
  • बाहर खुला बाड़ा, शेड हाउस से दोगुणा होना चाहिए, जिससे की घूमने फिरने में आसानी हो
  • न्यूनतम से शुरुआत करे जैसे जैसे बकरियों की संख्या बढ़ती हैं वैसे शेड को भी बड़ा बनाएं.

एक सफल बकरी पालन फार्म बनाने के लिए, आपको इन बातों को जानना चाहिए.

1.उचित जगह का चुनाव

सही स्थान का पता लगाना सबसे पहला बिन्दु हैं, बकरियाँ आमतौर पर गर्म वातावरण मे रहने वाले पशु हैं, इसलिए निश्चित करे की स्थान अच्छी तरह से सूखा हों और जगह(Space) भी अच्छा हो. बकरियाँ समूह मे रहती हैं इसलिए हर एक के लिए अलग से जगह का विभाजन जरूरी नहीं हैं सभी एक कमरे मे रह सकती हैं.

अगर आप चाहते हैं की बकरियों के घूमने के लिए अतिरिक्त बाड़े की व्यवस्था कर सकते हैं ऐसे मे आमतौर पर बीमारी और संक्रमण होने का खतरा कम हो जाता हैं.

Goat Farm के लिए सबसे अच्छे स्थान शहरों से दूर हैं क्योंकि शहरी प्रदूषण पशु स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है जैसे कि बकरी रोजाना बहुत सारी घास खाती हैं. इसलिए, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका भोजन स्रोत ज्यादा दूर नहीं हो। अगर आपके पास खेत हैं तो कोशिश करे की बकरी फार्म वहीं बनाए.

बकरी पालन के लिए कितनी जगह चाहिए?

  • एक वयस्क मादा बकरी के लिए 12 वर्ग फ़ीट जगह की आवशयकता होती हैं.
  • एक वयस्क नर बकरे के लिए 15 वर्ग फ़ीट जगह की आवशयकता होती हैं.
  • प्रत्येक बकरी के बच्चे के लिए 8 वर्ग फ़ीट जगह जगह होना चाहिए.
  1. भूमि की आवश्यकता (Land Requirement):

अगर आप पूरक चारा (supplemental feed) का उपयोग करते हैं तो आपका काम कम जमीन मे भी चल जाएगा अगर आप चरवाते हैं तो आपको 10 बकरियों के लिए 1 एकड़ जमीन लग सकती हैं.

3.बकरीयों की नस्ल (Goat Breed):

आपको अपनी आवश्यकताओं के आधार पर नस्ल का चुनाव करना चाहिए, आपको यह देखना होगा की आप दूध उत्पादन करना चाहते हैं या माँस का उत्पादन. आप दोनों तरह की नस्लों को लेकर भी फार्म डाल सकते हैं.

4.पशुचिकित्सा (Veterinarian):

अगर आप Goat Farm की शुरुआत करते हैं तो संभावना है कि आपके पशुओं मे किसी तरह का रोग उत्पन्न हो
इसलिए एक पशु चिकित्सक से संपर्क होना जरूरी हैं, अगर पशु चिकित्सक पास मे रहता हैं तो वह और भी अधिक
अच्छा हैं, एक पशु चिकित्सक नुकसान से बचने के लिए रोग नियंत्रण और प्रबंधन में मदद कर सकता है। वे
आपको रोगों का निदान करने में मदद करते हैं या विटामिन और पूरक आहार की सलाह देते हैं ताकि आपके
जानवरों को अच्छे स्वास्थ्य में रखा जा सके विशेष रूप से तनावपूर्ण परिस्थितियों में.

5.उचित भोजन और आवास:

बकरियों को अपने पसंद का खाना चाहिए होता हैं। वे सूखे या गंदे घास नहीं खाते हैं। आपको उनके लिए पर्याप्त
स्वच्छ ताज़ी घास सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि वे भूखे न रहें। यह सर्वविदित है कि बकरियां मांसाहारी जानवर नहीं हैं.
वे आमतौर पर घास, पौधों, झाड़ियों, मातम और जड़ी-बूटियों को खाना पसंद करते हैं। उचित वृद्धि के लिए बकरियों को
भी ऊर्जा,विटामिन, फाइबर और पानी की आवश्यकता होती है.

एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए खलिहान या शेड और अच्छे प्रबंधन से आपको बकरी पालन से होने वाले सभी
लाभों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। घर को हमेशा साफ, स्वच्छ और सूखा रखें। घर के अंदर उचित वेंटिलेशन और
ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था करें। घर के अंदर पर्याप्त ताजी हवा और प्रकाश की उपलब्धता सुनिश्चित करें.

6.उचित योजना (Proper Planning): 

उचित और प्रभावी बकरी पालन (Goat Farming) व्यवसाय योजना बनाएं और उसके अनुसार चलें.

7.अच्छा परिवहन (Good Transportation):

Farm के आस-पास एक बाजार हो तो अच्छा होगा, क्योंकि यह आपको अपने उत्पादों को आसानी से बेचने
और आवश्यक वस्तुओं को खरीदने में मदद करेगा.

8.देखभाल और प्रबंधन (Care & Management):

हमेशा अपनी बकरियों की उचित देखभाल करने की कोशिश करें। उन्हें दूषित भोजन या प्रदूषित पानी कभी न पिलाएं,
जितना हो सके उनके घर को साफ सुथरा रखें, उनके घर को नियमित रूप से साफ करें. प्रजनन के समय बच्चों और
गर्भवती के लिए अतिरिक्त देखभाल करें, जन्म के बाद कई हफ्तों तक बच्चों को उनकी माँ के पास रखें.

एक ही दिन में कई नर बकरों के साथ संभोग न कराए, कृत्रिम गर्भाधान भी आपके प्रजनन के लिए एक अच्छा तरीका है.
उन्हें सभी प्रकार की बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्त रखने के लिए समय पर उनका टीकाकरण करें।
कुछ आवश्यक टीकों और दवाओं का स्टॉक रखें.

9.टीकाकरण (Vaccination): 

कई प्रकार के वायरल रोग जैसे पीपीआर(PPR), गोट पॉक्स(Goat Pox), पैर और मुंह के रोग और बैक्टीरियल रोग जैसे
एंथ्रेक्स, ब्रुसेलोसिस आदि बकरियों के लिए बहुत हानिकारक हैं। इस प्रकार, इन प्रकार के रोगों को रोकने के लिए
उचित टीकाकरण आवश्यक है. जिन्हे PPR का टीका नहीं लगाया गया हैं उन्हे गर्भधारण के पाँचवे महीने मे लगाए,

10.कुल व्यय और लाभ (Total Expenditure & Profit):

बकरी पालन व्यवसाय से कुल व्यय और लाभ पूरी तरह से कृषि प्रणाली, स्थान, नस्लों, खिलाने की लागत और कुछ अन्य कारकों पर निर्भर हैं। अच्छी योजना और उचित प्रबंधन के साथ, कोई भी आसानी से बकरी पालन व्यवसाय को लाभदायक बना सकता है.

एक तरफ, छोटे पैमाने पर खेती में कम निवेश की आवश्यकता होती है और लाभ आपकी नियमित आय में योगदान कर सकता है. दूसरी ओर, बड़े पैमाने पर या व्यावसायिक उत्पादन के लिए उच्च निवेश और कुछ अन्य अतिरिक्त लागतों की आवश्यकता होती है.

बकरी पालन के फायदे: Advantages of Goat Farming:

1.बकरी से मिलने वाले उत्पाद स्वस्थ (Healthy) और आसानी से पचने (Easily Digestible) वाले होते हैं:

दूध और माँस जैसे बकरी उत्पाद (Goat Products) न केवल पौष्टिक अपितु पचने योग्य होते हैंतथा यह गरीब व भूमिहीन किसानों की आय का एक बड़ा स्रोत हैं। यह ग्रामीण आय मेऔर राष्ट्रीय आय मे बहुत बड़ा योगदान देते हैं।
बकरी का माँस और दूध कोलेस्ट्रॉल मुक्त (Cholesterol Free) तथा पचने योग्य होता हैं। बकरी के दूध का उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाने मे किया जाता हैं।

2.आसान रखरखाव और कम लागत:

बकरियाँ छोटे जानवरों की श्रेणी मे आती हैं, इसलिए महिलाओं और बच्चों द्वारा भी आसानी से देखभाल की जा सकती हैं एक सफल Goat Farmer बनने के लिए आपको इनकी देखभाल करनी पड़ेगी जैसे उन्हे खिलाना, साफ सफाई करना व देखभाल करना आदि इसमे आपको कोई ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती हैं इन कार्यों को करने के लिए आपको किसी उपकरण या एक्स्ट्रा पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं हैं,आपका काम लागत मे काम हो जाएगा। इनका वापसी अनुपात (Return Ratio) भी अधिक हैं मतलब अगर आपका खर्च मानकर चलो 10000 रुपये हैं तो आपकी आय 40000 हजार से 50000 हजार रुपये की होगी। (नोट:यह विवरण केवल समझाने के लिए हैं)

  1. बहुत बड़े क्षेत्र की आवश्यकता नहीं होती हैं:

आपने छोटे शरीर आकार के कारण बकरियों को रहने के लिए किसी बड़ी जगह की आवश्यकता नहीं होती हैं। वह आसानी से अपने मालिक के घर या अन्य पशुओ के साथ रह सकती हैं। अगर हम मिश्रित खेती की बात करते हैं तो बकरिया अन्य पशुओ के साथ मिश्रित रहने वाली एक उपयुक्त पशु हैं.

  1. अच्छी प्रजनक (Good Breeders):

बकरिया न केवल हमसे घुली मिली और प्यारी होती होती हैं, बल्कि बहुत अच्छी प्रजनक (Good Breeders) भी होती हैं. आपको यह जानकार हैरानी होगी की वह 7 से 12 माह की उम्र मे यौन परिपक्वता (Sexual Maturity) तक पहुच जाती हैं और कुछ समय बाद ही बच्चों को जन्म दे देती हैं, इसके अतिरिक्त कुछ बकरियों की नस्ले की प्रति बच्चे, बच्चे पैदा करने की दर अधिक होती हैं.

  1. जोखिम कम हैं(Less Risk):

आपको जानकर हैरानी होगी सूखाग्रस्त क्षेत्रों मे भी जहा चारा कम होता हैं वहाँ भी बकरियों को पाला जा सकता हैं यह किसी अन्य पशु व्यवसाय के लिए मुश्किल काम हैं. ऐसी परस्थितियों मे भी बकरिया दूध दे सकती हैं यह सूखाग्रस्त क्षेत्रों मे यह प्रशीतन लागत (Refrigeration Cost) और दूध भंडारण समस्याओं को भी रोकता है.

6.बाजार में समान मूल्य:

क्या आप जानते है कि बाजार में नर व मादा बकरियों की कीमत समान होती हैं(कुछ ईवेंट को छोड़कर) इसके अलावा बकरी के माँस के खपत मे कोई धार्मिक व्यवधान भी नहीं हैं। इसलिए बेरोजगार युवाओं के लिए व्यवसाय शुरू करने के लिए बहुत अच्छा तरीका हैं. उनके माँस की स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग और उच्च कीमत है। अधिक मुनाफ़े के लिए आप अपने उत्पादों को विदेशों में निर्यात करने पर भी विचार कर सकते हैं.

7.रोगों की कम संभावना:

बकरियां लगभग सभी प्रकार के कृषि-जलवायु वातावरण और स्थितियों के साथ खुद को ढालने में बहुत सक्षम हैं। वे दुनिया भर में उच्च और निम्न तापमान भी सहन कर सकते हैं और खुशी से रह सकती हैं, वे किसी भी अन्य जानवर से अधिक गर्म जलवायु को सहन कर सकते हैं। अन्य घरेलू पशुओं की तुलना में बकरियों में बीमारियाँ भी कम होती हैं.

8.श्रेष्ठ दुग्ध उत्पादक (Best Milk Producers):

इस गुण के कारण, बकरियों को “मानव की पालक माँ” कहा जाता है। उनके दूध को पशुओं के दूध की अन्य प्रजातियों की तुलना में मानव उपभोग के लिए सबसे अच्छा दूध माना जाता है। दूध कम लागत वाला,पौष्टिक और आसानी से पचने वाला होता है। वास्तव में, बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी वृद्ध लोग बकरी के दूध को आसानी
से पचा सकते हैं। बकरी के दूध से एलर्जी की समस्या भी कम होती है। यह उन लोगों के लिए एक आयुर्वेदिक दवा के रूप में भी उपयोग किया जाता है जो मधुमेह, अस्थमा, खांसी, आदि के साथ बीमार हैं.

  1. प्राकृतिक उर्वरक:

बकरी के खाद का उपयोग फसल के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जा सकता है जो सीधे फसल उत्पादन को अधिकतम करने में मदद करेगा.

बकरी पालन के बारे में तथ्य व सुझाव :

  • बकरियों की देखभाल कैसे करनी है, इस पर उचित शोध और योजना पढ़ें और करें.
  • अपनी बकरियों के अच्छे और मजबूत स्वास्थ्य को बनाए रखें.
  • अपने व्यवसाय के लिए सही और उच्च उत्पादक बकरी की नस्लें चुनें.
  • निकटतम पशुधन प्रशिक्षण केंद्र या विशेषज्ञ उत्पादकों से बकरी पालन व्यवसाय के बारे में अधिक जानें.
  • बकरियां समूहों में रहना पसंद करती हैं, इसलिए एक बड़ा क्षेत्र सुनिश्चित करें ताकि वे स्वतंत्र रूप से घूम सकें.
  • बकरी फार्म के लिए आवश्यक सभी उपकरणों की उपलब्धता होनी चाहिए.
  • बेहतर दूध, मांस का उत्पादन करने और बकरी को बीमारियों से मुक्त रखने के लिए अच्छी तरह से नस्ल के आचरण सुनिश्चित करें.
  • उनकी दैनिक मांग के अनुसार, उन्हें पर्याप्त स्वच्छ पानी, भोजन और ताजा घास दें.
  • बकरियों को कभी भी दूषित भोजन या प्रदूषित पानी न पिलाएं.
  • गर्भवती बकरी और बच्चों के लिए अतिरिक्त देखभाल करें.
  • संभोग की अवधि के दौरान पशु को अतिरिक्त पौष्टिक भोजन खिलाएं.
  • अपने बकरी के स्वास्थ्य संपर्क को बेहतर बनाने के लिए नियमित रूप से पशु चिकित्सक के पास जाएँ
  • गर्मी के मौसम के दौरान, उन्हें बहुत सारे पानी के साथ नमक और खनिज प्रदान करें.
  • सामूहिक मृत्यु से बचने के लिए उन्हें ठंड और बारिश से दूर रखें.

नर बकरे (बक) का चुनाव करते समय महत्वपूर्ण तथ्य:-

  • बक सदैव समूह में सबसे भारी एवं चैड़ी छाती का होना चाहिए
  • शरीर स्वस्थ, मजबूत टाँगों के साथ उत्तेजक दिखने वाला होना चाहिए
  • किसी भी बीमारी से रहित होना चाहिए
  • प्रजनन क्षमता से पूर्ण होना चाहिए वीर्य की गुणवत्ता अधिक शुक्राणुओं सहित उत्तम व असमान्य शुक्राणु नहीं होना चाहिए

बकरी प्रजनन संबंधी महत्पवूर्ण जानकारियाँ (Important information about goat breeding)

  • सदैव समूह में शुद्ध जाति का बक होना चाहिए
  • बक (नर) सदैव 15 माह तक प्रजनन के लिए प्रयोग करना चाहिए
  • 18-24 माह का नर 25-30 डो (मादा) को गर्भित कर सकता है एवं पूर्ण परिपक्वता 2-25 वर्ष होने पर 50-60 मादाओं को गर्भित कर सकता है
  • बक संभोग के लिए जाडे के मौसम में ज्यादा उत्तेजित रहता है
  • डो (मादा) 15-18 माह में संभोग के लिए परिपक्व होती है परन्तु अच्छी खिलाई पिलाई एवं प्रबंधन द्वारा इस समय को तीन से पाँच माह तक कम किया जा सकता है
  • बकरियों में गर्मी का समय 36 घंटे तक होता है केवल बीटल बकरी में 18 घंटे का होता है एवं गर्मीचक्र 19 दिवस तक रहता है. गर्भकाल अवधि 145-150 दिन का होता है
  • ज्यादातर मादाएं सितम्बर एवं मार्च में गर्मी में आती है
  • बकरियाँ ज्यादातर दो बार जनवरी-अप्रैल एवं सितम्बर नवम्बर में बच्चा देती है
  • जो बच्चे जनवरी-अप्रैल में पैदा होते है वह ज्यादा स्वस्थ होते है तुलना में जो बच्चे अगस्त-नवम्बर में संभोग के दौरान पैदा होते हैं
  • जिन बक (नरों) को अच्छी एवं नियमित खिलाई कराई जाती है वह 8-10 वर्ष तक प्रजनन के योग्य रहते हैं
  • बकरियों की औसत उम्र 12 वर्ष होती है
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बकरियों की खिलाई पिलाई

बकरी एक ऐसा पशु है जो खराब से खराब और कम से कम चारे पर अपना निर्वाह कर लेती है बकरी हरी घास, कँटीली झाड़ी तथा पेड़ पौधों की पत्तियों से अपना निर्वाह कर लेती है. यह चरना खूब पसन्द करती है। कँटीली झाड़ियाँ, बबूल, पीपल, नीम और बेर आदि की पत्तियों को बकरियाँ खूब खाती है। अतः इनको चरने के लिए बाहर भेजना परम आवश्यक है. लेकिन बकरियाँ चरागाह बदलना बहुत पंसद करती है.

बकरियों को प्रतिदिन एक ही चरागाह में भेजने पर वे शीघ्र ही बीमार पड़ जाती है. ओंस में भीगी घास चराए जाने पर वे बकरियों को मुंह की बीमारी हो जाती है. वृक्षों की शाखाओं के अंकुर चबा जाने और अनेक प्रकार के पौधों और वृक्षों को अपना आहार बना लेने की बकरी की आदत के कारण उसे पेड़-पौधों का शत्रु समझा जाता है लेकिन इसके लिए इस निर्दोष पशु को दोषी नहीं समझना चाहिए. इसके लिए तो बकरियाँ पालने वाले वे गडरिएं उत्तरदायी हैं. जो अपनी गरीबी के कारण् इन बकरियों को झुण्डों में खुला छोड़ देते हैं.

यदि हमें अपनी वनस्पति की रक्षा करती है तो बकरियों के पालन की वर्तमान विधियों में सुधार लाना आवश्यक है. शीत ऋतु में रातें लम्बी होती है अतः दिन की चराई इनके लिए पर्याप्त नहीं होती. इन दिनों के लिए बकरियों को हरा चारा दिए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. प्रति बकरी 2 कि.ग्रा. हरा चारा रात्रि के लिए पर्याप्त होता है. चारे को बाँधकर लटका देना चाहिए अथवा पैरों द्वारा बकरियाँ उसे खराब कर देती हैं. बकरियों को भीगा चारा कदापि नहीं देना चाहिए.

बकरियों की भोजन संबंधी मुख्य बातें (Goats food highlights)

  • बकरियों को अगर चरागाह में नहीं भेजा जाता तो उन्हें तीन बार-सुबह, दोपहर व शाम को चारा देना चाहिए.
  • बकरियों के चारे की मात्रा निश्चित नहीं है परन्तु उन्हें इतना भोजन अवश्य मिलना चाहिए जितना कि एक बार में उस भोजन को समाप्त कर लें.
  • एक औसत दुधारू बकरी को दिनमें करीब 5-5.0 कि.ग्रा. चारा मिलना चाहिए. इस चारे में कम से कम 1.0 कि.ग्रा. सूखा चारा (अरहर, चना या मटर की सूखी पत्तियाँ या अन्य कोई दलहनी घास) मिलना चाहिए.

बकरियों के भोजन की मात्रा निश्चित करने में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • एक वयस्क बकरी को 50 कि.ग्रा. भार के पीछे 500 ग्राम राशन
  • दुधारू बकरी के प्रति 3 कि.ग्रा. दुध उत्पादन पर 1 किग्रा. राशन
  • नौ से 12 माह तक की आयु के बच्चों को 250-500 ग्राम राशन प्रतिदिन
  • प्रसव से दो माह पहले गर्भकाल का राशन 500 ग्राम प्रतिदिन
  • बकरे को साधारण दिनों में 350 ग्राम राशन प्रतिदिन व प्रजनन काल में 500 ग्राम राशन प्रतिदिन

दूध से सूखी बकरी को सुबह शाम में 400 ग्राम राशन प्रतिदिन देना चाहिए।

बकरियों के लिए उपयुक्त रातब

स्र्टाटरराशन: 15 दिवस से बड़े बच्चों को स्र्टाटरराशन जो कि आसानी से बच्चों को पच सके

मक्का: 20 प्रतिशत

चना: 20 प्रतिशत

मूंगफली की खाली: 35 प्रतिशत

गेहूँ की चूरी: 22 प्रतिशत

खनिज मिश्रण: 2.5 प्रतिशत

साधारण नमक: 0.5 प्रतिशत

इस राशन में पचनीयक्रूड प्रोटीन 18-20 प्रतिशत कुल पाच्य तत्व 72 प्रतिशत एवं ऊर्जा 2.5-2.9 मेगाकैलोरी/किग्रा. बच्चों को 4 से 8 किग्रा. भार पर 50-250 ग्राम दाने का मिश्रण एवं 9-20 किग्रा. पर 350 ग्राम दाना मिश्रण प्रतिदिन देते हैं

ग्रोवर राशन: तीन माह से बड़े बच्चों को दलहनी चारा सामान्य बढ़वार के लिए देना चाहिए. कम गुणवत्ता वाले चारे में 12-14 प्रतिशत पचनीय क्रूडप्रोटीन एवं कुल पाच्य तत्व 63-65 प्रतिशत 350-400 ग्राम प्रतिदिन मिलाकर देना चाहिए। आधिक खिलाई पिलाई को रोकना चाहिए। ग्रोइंग किड्स को निम्न दाने का मिश्रण देना चाहिए.

मक्का: 20 प्रतिशत

चना: 32 प्रतिशत

मूंगफली की खाली: 30 प्रतिशत

गेहूँ की चूरी: 15 प्रतिशत

खनिज मिश्रण: 2.5 प्रतिशत

साधारण नमक: 0.5 प्रतिशत

फिनिशर राशन: काबोहाइड्रेट ऊर्जा वाले खाद्य फैटी कारकस के लिए देना चाहिए. इस दाने मिश्रण में 6-8 पचनीय क्रूड प्रोटीन एवं 60-65 कुल पाच्य पोषक तत्व होने चाहिए.

बड़ी बकरियों के लिए दाने की मात्रा

जीवन निर्वाह राशन – 250 ग्राम प्रति 50 किग्रा. भार

उत्पादन राशन – 450 ग्राम प्रति 2.5 ली. दूध/मादा (डो)

गर्भवती राशन – अंतिम दो माह गर्भकाल में 220 ग्राम/दिन

बक राशन – 400-500 ग्राम राशन प्रतिदिन

बकरियों के प्रमुख चारे (Main fodder for goats)

पेड़ों की पत्तियाँ-गूलर, पाकर, पीपल, नीम, आम, अशोक, बनयान, मलबेरी

झाड़ियाँ-बेर, झरबरी, करौंदा, गोखरू, हिबिस्कस

घासे- दूब, मोथा, अंजन, सेंजी, हिरनखुरी आदि

कृषित चारे- लूरार्न, बरसीम, लोबिया, सरसों, जई, मक्का, जौ

गर्भवती बकरियों का आहार: गर्भवती बकरियों को अंतिम 6-7 सप्ताह अच्छा आहार देना जरूरी है. इनको हरी पत्तियों के अलावा 400-500 दाना चाहिए. इसके साथ कैल्शियम, फास्फोरस, नमक के मिश्रण चाटने के लिए रखने चाहिए. बकरी की प्रसूति के 4-5 दिन पहले 50 प्रतिशत दाना कम करके 10 किलो चोकर के साथ लूरार्न/बरसीम घास 1 किग्रा., हराचारा 1 किग्रा., दाना मिश्रण 0.5 किग्रा. और सूखा चारा 1 किग्रा. खाद्य देना चाहिए.

बकरियों के लिए खनिज मिश्रण का संगठन

हड्डी का चूरा – 42 प्रतिशत

लाइम चूना/चाक – 30 प्रतिशत

साधारण नमक – 20 प्रतिशत

सल्फर – 5 प्रतिशत

फोरस सल्फेट – 3 प्रतिशत

दाने के मिश्रण में मिलाने की दर- 2 प्रतिशत

बकरियों को पानी की आवश्यकता: बकरी को कच्छ पानी की आवश्यकता होती है. गंदा बरसात का पानी बकरी नहीं पीती है. एक दिन में 6-8 लीटर तक पानी पीती है। वातावरण के होने वाले बदलाव पर बकरी की प्यास अबलंबन रहती है। धूप के गर्भ मौसम में ज्यादा एवं ठंड़े मौसम में कम पानी लगता है. कम पानी पीने से उत्पादन में भी कमी आती होती है.

बकरियों का निवास: बकरियों के लिए किसी बाड़े की आवश्यकता नहीं होती. साधारण स्थान में वह बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह सूखा, नमीरहित, हवादार, स्वच्छ व खुला हुआ हो, जंगली पशुओं से सुरक्षित हो और गर्मी, वर्षा व शीत तीनों ऋतुओं से बचाव हो सके. प्रत्येक बकरी के लिए लगभग एक वर्ग मीटर जगह पर्याप्त होती है। यदि बकरियाँ कम हो तो इन्हें एक ही पंक्ति में बांधना चाहिए अधिक संख्या होने पर दोहरी पंक्ति में बाँधा जा सकता है. बकरियों के लिए चरही की ऊंचाई 15 सेंमी. और चैड़ाई 40 सेंमी. पर्याप्त होती है. बाड़े का फर्श भूमि से 15 सेंमी. ऊँचा हो और चरही से नाली तक 8 सेंमी. का ढ़ाल हो। जिससे की सारा मूत्र बहकर नाली में चला जाए। फर्श साफ व सूखा होना चाहिए. हवा और बौछारों को रोकने के लिए एक दीवार का होना आवश्यक है.

दो बकरियों के लिए 3 मी. लम्बा व 1.5 मी. चैड़ा बाड़ा पर्याप्त होता है. नर पशु 2.5 ग 2.0 मीटर के बाड़े में अकेले रखी जानी चाहिए. खुला बाड़ा जिसका आकार 12 मी. ग 18 मी. हो 100 बकरियों को रखा जा सकता है.

बकरों का बाड़ा बकरियों के बाड़े से कम से कम 16 मी. की दूरी पर होना चाहिए. उनका निवास स्थान तो बकरियों जैसा ही हो, लेकिन इसमें बकरों के व्यायाम का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए.

बकरी पालन व्यवस्थापन (Goat farming management)

  • बच्चे के जन्म पर सावधानियाँ: जन्म के पश्चात नाभि स्थान में आयोडीन अच्छी तरह लगाना चाहिए. एक दो दिन के अंतर पर आयोडीन फिर लगानी चाहिए.
  • माँ का पहला दूध 36 घंटे के अन्दर किसी न किसी तरह पिलाना आति आवश्यक है। पहले दूध के सभी पोषक तत्व विपुल मात्रा में होते हैं. इससे बच्चे की रोग प्रतिकारिता शाक्ति बढ़ती है.
  • बच्चे को माँ से अलग करना: बकरी माँ से बच्चों को 2-3 माह की उम्र में अलग कर देना चाहिए क्योंकि इसके बाद बच्चों में वयस्कता आती है.
  • सींग रोहान काना: सींग रहित करने की सबसे अच्छी उम्र 5-7 दिन तक होती है. कास्टिक पोटाश की छड़ लेकर उसको सींग पर इतना रगड़े कि सींग का बटन जलकर नष्ट हो जाए. दूसरे तरह से गर्भ लाल लोहे की छड़ से दागकर जलाने के बाद उस पर बीटाडीन आयोडीन मलहम लगातार लगाएं.

चिन्हित करना: बकरियों पर पहचान स्थापित करने के लिए कानों पर संख्या छेदकर कान पर टेग बाँधकर या कान को ट आकार में काटकर किया जाता है.

बकरी के खुरों को काटना: बकरियों के खुर जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं. अतः प्रत्येक माह निश्चित समय पर खुरो को काट छाँटकर सुव्यवस्थित करते रहना चाहिए। अन्यथा बकरियों को स्वास्थ्य एवं दुग्ध उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है.

बाधियाकरण करना: नर बकरे का बधियाकरण करना निताँत आवश्यक होता है जिससे कि अनचाही पैदाइश एवं उनकी शक्ति का सही प्रयोग हो सके। मटन के लिए रखे गए बकरे का बधियाकरण 2 माह की उम्र में उपयुक्त होता है. बधियाकरण के निम्न फायदे हैं.

  • मटन स्वादिष्ट लगता है
  • बकरे का वजन बढ़ने में मदद होती है
  • खाल मुलायम होती है
  • अनचाही पैदाइश रोकी जा सकती है

परजीवियों का नियंत्रण: बकरी के शरी पर रहने वाली (कृमी रक्त तथा अन्न रस का शोषण करती है.  इसके कारण बकरियाँ ठीक से नहीं बढ़ पाती है। शरीरिक विकास तथा परजीवियों को मारने के लिए बी.एच.सी. एवं मैलाथियान जैसी दवाओं का छिड़काव किया जाता है.

पशुओं का बीमा करना: इनकी बीमा योजना पंचायतों द्वारा निकाली जाती है. गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने वाले लोगों को रोजगार का साधन देकर उनका जीवन स्तर ऊँचा उठाने के उद्देश्य से एकीकृत ग्रामीण कार्यक्रम लागू किया जाता है. इसमें पशुओं की आकस्मिक मृत्यु होने पर व्यक्ति को पंशु के बीमे का भुगतान किया जाता है. ग्राम पंचायत दावा फार्म भरकर बीमा कम्पनी को भेज देती है और दावा फार्म मिलने के 21 दिन बाद व्यक्ति को चेक द्वारा मरे हुए पशु/पक्षी की कीमत मिल जाती है.

निमोनिया: यह बकरियों का प्रमुख रोग है. यह रोग बकरियों को ठंड लगने या भीगने से होता है. जिससे बकरियों को तेज बुखार आता है एवं साँस लेने में तकलीफ होती है. सर्वप्रथम तो ठंड आने वाले मार्ग को बंद कर देना चाहिए एवं तेल की कुछ बूँदे गरम पानी में डालकर देनी चाहिए.

एंथ्रेक्स: यह रोग बैसिलस एन्थ्रेसिस नामक जीवाणु द्वारा होता है इस रोग में चमड़ी में खून जमा हो जाता है. बुखार आने के साथ-साथ नाक, मुँह एवं मल द्वार से खून रिसता हुआ दिखता है एवं मरे हुए पशु को गहरे गढ्ठें में चुनखुड़ी डालकर गाड़ देना चाहिए.

घटसर्प: यह रोग पाश्चुरेला नामक जीवाणु द्वारा होता है. इस रोग में तेज बुखार आता है गले एवं जीभ में सूजन आ जाती है. इसलिए सांस लेने में तकलीफ होती है एवं 24 घंटे में मृत्यु हो जाती है. यदि एन्टीसीरम उपलब्ध हो तो 150 घ.से. की मात्रा का अंतःशिरा इंजेक्शन देने से लाभ होता है. सल्फा ड्रग्स का इंजेक्सन भी लाभकारी रहता है.

विषाणु जनित रोग:

खुरपका मुँहपका: यह रोग वायरस से होने वाला एक भयानक रोग है. इस रोग में खुर तथा मुँह में फफोले पड़ जाते हैं एवं पशु का शारीकि तापक्रम 104-105 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. रोग हो जाने पर पशु के फफोलों को बोरिक एसिड, फार्मलीन आदि घोलों से धोना चाहिए. छालों पर बोरोग्लिसरीन का लेप भी गुणकारी है. पैरों के छालों पर 1 प्रतिशत तूतिया या फिनायल का घोल छिड़काव करना चाहिएं इन घावों को शीघ्र अच्छा करने के लिए पशु को 10 उस टेरामारसिन का इंजेक्शन गुणकारी रहता है. साथ ही साथ पादस्नान करवाना चाहिए इसके लिए 3-4 मी. लंबी 1 मी. चैड़ी व 30 सेमी. गहरी नाँद बनाकर पैरों को स्नान कराएं.

पाचन संबंधी रोग (Digestive diseases)

अफारा रोग: यह रोग पशुओं में अधिक हरा चारा खाने के कारण हो जाता है या चारे में अचानक परिवर्तन होने पर भी हो जाता है. पेट की बाई कोख फूल जाती है व दर्द होता है पशु खाना पीना बन्द कर देता है साँस लेने में कष्ट होता है। पशुओ को ऐसी स्थित में तारपीन का तेल पिला दें एवं प्रोटीन युक्त आहार न दें.

कब्ज हो जाना: कब्ज होने पर पशु जुगाली भी बन्द कर देता है भूख कम हो जाती है यह रोग उनमें ज्यादा होता है जिन्हं भोजन अधिक एवं व्यायाम कम मिलता है. ऐसी स्थिति में पशु का तापमान बढ़ जाता है और पशु की मृत्यु तक हो सकती है इसके हेतु रोज व्यायाम अवश्य कराएं एवं पेट का एसिड कम करने हेतु सोडियमबाइकार्बोनेट दें.

परजीवी रोग: परजीवी रोग दो तरह के होते हैं वाह्य परजीवी एवं अंतः परजीवी बाह्य परजीवी में बकरीघर में कीड़े भी हो सकते हैं जिन्हें तीन सप्ताह तक खाली छोड़ने पर कीडें मर जाते है. आईवरमैक्सि का इंजेक्शन चमड़ी में दिया जाता है एवं ब्यूटाक्स दवा का भी प्रयोग किया जाता है जिससे वाह्य परजीवी कीड़े मर जाते हैं. आँतरिक परजीवी के लिए आलबेंडाजोल, फेनबेंडाजोल, लेवामेरजेल दवाओं का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है.

प्रजनन संबंधी रोग (Reproductive diseases)

बच्चेदानी का बाहर आना: कभी-कभी बच्चेदानी वाह्सजननाँग से बाहर निकल जाती है, ऐसी स्थिति में पोटेशियम परमैगनेट या लाल दवा का एक भाग तथा साफ पानी का हजार भाग मिलाकर घोल बना लिया जाता है, जिससे बच्चेदानी को धो दिया जाता है. फिर धीर-धीरे उसे अंदर करने का प्रयत्न किया जाता है.

बच्चे का जन्म के बाद जेर न गिरना: जन्म के 12 घण्टे के अन्दर जेर गिर जाना चाहिए. यदि जेर नहीं गिरती तो सूजन एवं मवाद पड़ बीमारियाँ पैदा हो सकती है. जेर न गिरने पर फ्युरिया नामक गोली बच्चेदानी के अन्दर डालनी चाहिए। इसके अलावा हार्मोटोन नामक दवा पिलानी चाहिए.

बकरी का दूध: बकरी का दूध हल्का होने के कारण बच्चों तथा रोगियों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद होता है. बकरी के दूध में वसागोलिकाएं छोटी-छोटी होती है. जिसके कारण यह दूध शीघ्र ही पच जाता है. इस दूध में गाय की दूध की अपेक्षा कैल्शियम, फाॅस्फोरस तथा क्लोरीन की पर्याप्त मात्रा होती हैं. इस प्रकार यह दूध अत्यंत गुणकारी है. बकरी के दूध में एक विशेष प्रकार की दुर्गन्ध आती है जो दूध दुहते समय बकरे के पास बँधे रहने के कारण होती है. बकरे की गर्दन की त्वचा में कुछ ऐसी ग्रन्थियाँ होती है जिससे कैप्रिक अम्ल निकलता है इस दुर्गन्ध को दूध सोख लेता है अतः बकरी का दूध दुहते समय बकरी को बकरे से कम से कम 16 मी. की दूरी पर बाँधना चाहिए.

संघटक पदार्थ    प्रतिशत संगठन

वसा               4.25 प्रतिशत

प्रोटीन              3.52 प्रतिशत

लैक्टोज            4.27 प्रतिशत

खनिज लवण        0.86 प्रतिशत

जल               87.10 प्रतिशत

कुल               100.00 प्रतिशत


चालू खर्चे :

 

1- हराचारा 1 किलो/बकरी/दिन कीमत 1/किलो

21 बकरी 1 किलो/दिन 450 दिन 1 कीमत/किलो = 9,450

2-  हराचारा 1 किलो/बढ़तेस्टाक पर/दिन /1 कीमत/किलो = 3,240

3-  दनामिश्रण 250ग्राम/बकरी/दिन/9कीमत/किलो  0.25किलो X 21 X 450 X 9 = 21, 262.50

4-  दनामिश्रण 100 ग्राम/दिन/किड /9कीमत/किलो   27 X 0.1 X 180 X 9 = 4,374

कुल आय 98,070-25,637                                               72,433

कुल लाभ 72,433-22,300                                               50,133

प्रति माह लाभ 4,178 कीमत

प्रति बकरी लाभ 209 कीमत

डॉ राजेश कुमार सिंह, प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी, बहरागोड़ा, पूर्वी सिंहभूम

डॉ आरती विना एका

डायरेक्टर ,कृषि विज्ञान केंद्र, दारिसाई ,पूर्वी सिंहभूम

आधुनिक बकरी पालन से संबंधित हिंदी बुक आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं:

  1. Goat Farming
  2. Hindi_Scientific goat farming Mathura
  3. बकरिओं-का-आहार-प्रबंधन
  4. बकरियों का टीकाकरण
  5. बकरी पालन
  6. बकरी पालन-एक परिचय

Edited,Compiled  & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

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