पशुपालकों के लिए पशुपालन कार्यों का माहवार कैलेंडर
डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा
जनवरी/ पौष:
१. पशुओं का शीत अथवा ठंड से समुचित बचाव करें।
२. 3 माह पूर्व कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराए। जो पशु गर्भित नहीं है उन पशुओं की सम्यक जांच उपरांत समुचित उपचार कराएं।
३. उत्पन्न संतति का विशेष ध्यान रखें।
४.दुहान से पहले, एवं बाद मैं अयन एवं थनों को1:१००० पोटेशियम परमैंगनेट के घोल, से अच्छी तरह साफ कर ले।
५. नवजात बच्चों को खीस पिलाएं एवं ठंड से बचाएं।
६. बच्चों को अंतः परजीवी नाशक औषधि पान कराएं।
७. पशुओं को ताजा या गुनगुना पानी पिलाएं।
८. बकरी व भेड़ों को अधिक दाना ना खिलाकर अन्य चारा दें।
९. दुधारू पशुओं को गुड़ खिलाएं।
१०. दुहान के पश्चात थन पर नारियल का तेल लगाएं।
११. पशुशाला को समुचित स्वच्छ व सूखा रखें।
१२. कमजोर करोगी पशुओं को बोरी की झूल बना कर ढके । सर्दी से बचने के लिए रात के समय पशुओं को छत के नीचे या घास फूस के छप्पर के नीचे बांध कर रखें।
१३. दुधारू पशु को तेल व गुड़ देने से भी शरीर का तापमान सामान्य रखने में सहायता मिलती है।
१४. पशुओं को बाहरी परजीवी से बचाने के लिए पशुशाला में फर्श एवं दीवार आज सभी स्थानों पर 1% मेलाथियान के घोलकर छिड़काव या स्प्रे कर सफाई करें।
फरवरी/ माघ:
१. बाहरी परजीवी से बचाव हेतु दवा से नहलाये या पशु चिकित्सक के परामर्श से इंजेक्शन लगवाएं।
२. गर्मी में आए पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कराएं।
३. खुर पका मुंह पका रोग से बचाव हेतु समुचित टीकाकरण कराएं।
४. गर्भ परीक्षण कराएं एवं अनुउर्वर अशोका का सम्यक जांच उपरांत उपचार कराएं।
५. नवजात शिशुओं को अंता परजीवी नाशक औषधि 6 माह तक प्रत्येक माह दे।
६. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए संपूर्ण दूध को मुट्ठी बांधकर निकालें।
७. बरसीम रिजका व जई, की सिंचाई क्रमशः 12 से 14 दिन एवं 18 से 20 दिन के अंतराल पर करें।
८. बरसीम रिजका एवं जय से सूखा चारा या अचार अर्थात साइलेज के रूप में इकट्ठा कर चारे की कमी के समय के लिए सुरक्षित रखें।
मार्च/ फाल्गुन:-
१. पशुशाला की सफाई व पुताई करें।
२. नर पशुओं का बधियाकरण कराएं।
३. खेतों में चरी सूडान तथा लोबिया की बुवाई करें।
४. गाय भैंस व बकरी का क्रय करें।
५. मौसम में परिवर्तन से पशुओं का बचाव करें।
६. बच्चा देने वाले पशुओं को खनिज मिश्रण 50 ग्राम प्रति पशु प्रतिदिन दें।
७. बहु वर्षीय घासो जैसे हाइब्रिड नैपियर, गिनी घास की रोपाई खेतों में करें।
८. हरे चारे से साइलेज तैयार करें।
९. बदलते मौसम में पशुओं की स्वास्थ्य रक्षा का समुचित ध्यान रखें।
अप्रैल/ चैत्र:
१. जायद के हरे चारे की बुवाई करें एवं बरसीम चारा बीज उत्पाद हेतु कटाई करें।
२. अधिक आय हेतु स्वच्छ दुग्ध उत्पादन करें।
३. 3 माह पूर्व कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराएं। जो पशु गर्भित नहीं है उन पशुओं की सम्यक जांच उपरांत समुचित उपचार कराएं।
४. पशुओं में जलवा लवण की कमी भूख कम होना एवं कम उत्पादन अधिक तापमान के प्रमुख प्रभाव हैं अतः पशुओं को अधिक धूप से बचाव के उपाय करें।
५. 6 माह से अधिक गर्भित पशु को अतिरिक्त राशन दें।
६.चारागाहों, मैं घास अपने न्यूनतम स्तर पर होती है तथा पशु पोषण भी वर्षा न होने तक कमजोर रहता है। ऐसी स्थिति में विशेषकर फास्फोरस तत्व की कमी के कारण पशुओं में “पाइका” नामक रोग हो सकता है, अतः दाने में खनिज मिश्रण अवश्य मिलाएं।
मई/ वैशाख:
१. गर्मी से बचाव का उपाय करें।
२. गला घोटू तथा लंगड़ियां बुखार से बचाव का टीका समस्त पशुओं में लगवाएं।
३. पशुओं को हरा चारा पर्याप्त मात्रा में खिलाए।
४. पशुओं को स्वच्छ ताजा जल पिलाएं तथा प्रातः एवं सायं नहलाएं।
५. पशुओं को लू एवं गर्मी से बचाने की व्यवस्था करें।
६. पशुओं को 50 ग्राम खनिज मिश्रण एवं 50 ग्राम नमक का सेवन प्रतिदिन कराएं।
७. गर्भ परीक्षण तथा अनु उर्वर पशुओं का समुचित उपचार कराएं।
८. चारे के संग्रहण वह उसकी उचित समय पर खरीद कर ले।
९. पशुओं के राशन में गेहूं के चोकर तथा जौ की मात्रा बढ़ाए।
१०. किलनी अर्थात कलीली एवं पेट के कीड़ों से पशुओं के बचाव का समुचित प्रबंध करें।
जून/ जेठ:
१. पशुओं को लू से बचाएं।
२. पर्याप्त मात्रा में हरा चारा दें।
३. अंत: परजीवी से बचाव हेतु औषधि पान कराएं।
४. खरीफ के चारे मक्का लोबिया की खेत की तैयारी करें। सूखे खेत की छोरी न खिलाएं अन्यथा एचसीएन जहर फैलने की संभावना भी हो सकती है।
५. 3 माह पूर्व कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराए। जो पशु गर्भित नहीं है उनकी समुचित जांच के उपरांत समुचित उपचार कराएं।
६. चारागाह मैं चरने वाले पशुओं को, सुबह शाम या रात्रि में चराई कराएं तथा आवश्यकतानुसार जल भी पिलाएं।
७. पशुओं को यदि हरा चारा नहीं मिल पा रहा हो तो विटामिन “ए” के इंजेक्शन लगवाएं।
८. पशुओं को विटामिन एवं खनिज लवण मिश्रित आहार दें।
९. अप्रैल में बुवाई की गई ज्वार के खिलाने से पूर्व दो से तीन बार सिंचाई अवश्य करें अन्यथा एचसीएन विषाक्तता हो सकती है और तुरंत उपचार न मिलने की स्थिति में पशु की मृत्यु भी हो सकती है।
जुलाई/ आषाढ़:
१. गला घोटू अर्थात घुरका तथा लंगड़ियां बुखार का टीका अवशेष पशुओं में लगवाएं।
२. खरीफ चारा की बुवाई करें तथा तकनीकी जानकारी प्राप्त करें।
३. पशुओं को अंत: कृमि नाशक औषधि पान कराएं।
४. वर्षा ऋतु में पशुओं के रहने की समुचित व्यवस्था करें।
५. पशु दुहान के समय खाने का चारा डाल दें।
६. पशुओं को 50 ग्राम खड़िया एवं 50 ग्राम नमक खिलाएं।
७. कृत्रिम गर्भाधान कराएं।
८. ब्रायलर पालन करें एवं आर्थिक लाभ बढ़ाएं।
९. अधिक दूध देने वाले पशुओं के ब्याने के 8 से 10 दिन तक दुग्ध ज्वर होने की संभावना अधिक होती है इसलिए पशु को जाने के पश्चात कैल्शियम फास्फोरस का घोल १०० मिलीलीटर प्रतिदिन पिलाएं।
१०. पशुपालकों को वर्षा जनित रोगों से बचाव के उपाय करने हैं।
११. यदि खुर पका मुंह पका गला घोटू एवं लगड़िया के टीके नहीं लगे हैं तो कृपया अब भी लगवा ले।
अगस्त/ सावन:
१. नए खरीदे गए पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोटू एवं लंगुरिया बुखार का टीका लगवाए।
२. यकृत क्रम के हेतु दवा पान कराएं।
३. गर्भित पशुओं की समुचित देखभाल करें।
४. बच्चा दिए हुए पशुओं को अजवाइन और सोंठ खिलाएं।
५. नवजात शिशु के पैदा होने के आधे घंटे के अंदर खीस पिलाएं एवं थोड़े दूध का दोहन कर ले जिससे की जेर आसानी से गिर सके।
६. जेर ना निकलने पर इन्वोलोन दवा 200ml पिलाएं।
७. भेड़ बकरियों को अंतः कृमि नाशक औषधि पान कराएं।
८. मुंह पका खुर पका रोग से पीड़ित पशुओं को अलग स्थान पर बांधे ताकि स्वस्थ पशुओं को संक्रमण ना हो। इस बीमारी से ग्रस्त गाय का दूध बछड़ों को न पीने दे क्योंकि उनमें इस रोग से, हृदयाघात जैसी अवस्था से मृत्यु हो सकती है।
९. रोग ग्रस्त पशुओं के मुंह खुर एवं थनों के छालो या घाव को पोटेशियम परमैंगनेट के 1% घोल से धोएं।
१०. पशुशाला को भूखा रखें एवं मक्खी रहित करने के लिए फिनायल के घोल का छिड़काव करें।
११. पशुशाला में फर्श एवं दीवारों आदि सभी स्थानों पर 1% मेलाथियान के घोल से सफाई करें।
सितंबर/ भादो:
१.संतति को खीस/ कोलोस्ट्रम अवश्य पिलाएं।
२. अवशेष पशुओं में एचएस तथा बीक्यू का टीका लगवाएं।
३. खुर पका मुंह पका का टीका अवश्य लगवाएं।
४. पशुओं को कृमि नाशक औषधि का पान कराएं।
५. भैंसों के नवजात शिशु का विशेष ध्यान रखें क्योंकि इनमें मृत्यु दर अधिक होती है इन्हें भी कृमि नाशक औषधि का पान कराएं।
६. बच्चा दे चुके पशुओं को खड़िया में नमक अवश्य खिलाएं।
७. गर्भ परीक्षण एवं कृतिम गर्भाधान कराएं।
८. पशुओं को तालाब में न जाने दें।
९. दूध में छिछडे़ आने पर थनैला रोग की जांच पशु चिकित्सालय पर अवश्य कराएं।
१०. खींस पिलाकर नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं।
११. हरे चारे की अधिक उपलब्धता के कारण पशुओं में अधिक सेवन से संबंधित समस्याओं से बचने के लिए पशुओं को बाहर खुले में चरने के लिए ना भेजें। हरे चारे से साइलेज बनाएं। हरे चारे के साथ सूखे चारे को मिलाकर खिलाएं।
अक्टूबर/ कवार:
१. मुंह पका खुर पका रोग का टीका अवश्य लगवाएं।
२. बरसीम एवं रिजका के खेत की तैयारी एवं बुवाई करें।
३. निम्न गुणवत्ता के अवर्णित पशुओं का बंध्याकरण कराएं।
४. उत्पन्न संतति की समुचित देखभाल करें।
५. पशुओं को स्वच्छ एवं ताजा जल पिलाएं।
६. दुहान के पूर्व एवं पश्चात पशु के अयन व थनों, को1:1000 पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से अवश्य साफ करें।
७. सर्दी के मौसम में अधिकांश भैंस गर्मी में आती हैं अतः भैंस के गर्मी या मद में आने पर समय से कृत्रिम गर्भाधान कराएं।
८. अंत: परजीवी नाशक औषधियों को हर बार पशु चिकित्सक की सलाह से बदल बदल कर उपयोग में लें।
९. पशु आहार में हरे चारे की मात्रा नियंत्रित ही रखें व सूखे चारे की मात्रा बढा कर दे क्योंकि हरे चारे को अधिक मात्रा में खाने से पशुओं में हरे रंग के दस्त अथवा एसिडोसिस की समस्या हो सकती है।
नवंबर/ कार्तिक:
१. मुंह पका खुर पका रोग का टीका अवशेष पशुओं को लगवाएं।
२. अंतः क्रमी नाशक दवा का सेवन अवश्य कराएं।
३. पशुओं को संतुलित आहार दें।
४. बरसीम तथा जई अवश्य बोए।
५. 50 ग्राम खनिज मिश्रण एवं 50 ग्राम नमक प्रत्येक पशु को खिलाएं।
६. थनैला रोग होने पर पशुचिकित्सक से समुचित उपचार कराएं।
७. बहु वर्षीय घासों की कटाई करें, इसके बाद यह सुसुप्त अवस्था में चली जाती हैं जिससे अगली कटाई तापमान बढ़ने पर फरवरी-मार्च में ही प्राप्त होती हैं।
दिसंबर/ अगहन:
१. पशुओं का ठंडक से बचाव करें परंतु झूल डालने के पश्चात आग से दूर रखें।
२. पशु तथा नवजात बच्चों को अंतः क्रमिक नाशक अवश्य अवश्य पिलाएं।
३. अवशेष पशुओं में खुर पका मुंह पका का टीका अवश्य लगवाएं।
४. सूकरो मैं स्वाइन फीवर का टीका अवश्य लगवाएं।
५. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए पूरा दूध निकालें और दूध दोहन के बाद थनों को कीटाणुनाशक घोल से धो लें।
६. यदि इस समय वातावरण में बादल नहीं है और पशुओं को खिलाने के लिए अतिरिक्त हरा चारा बचा हुआ है तो उसे छाया में सुखाकर “हे” के रूप में संरक्षित कर लें।
७. बुवाई के 50 से 55 दिन बाद बरसीम एवं 55 से 60 दिन बाद जई के चारे की कटाई करें।