मुझे से अधिक दुलारी गाय

0
642

मुझे से अधिक दुलारी गाय

सोच रहा हूँ इस धरती पर, कितनी है दुखियारी गाय।
माँ होकर भी गली- गली में, फिरती मारी- मारी गाय।।

पीकर जिसका दूध देश के, बेटे गोल-मटोल हुए।
आज उन्ही को बोझ लग रही पल- पल यह बेचारी गाय।।

गाँधी! देखो आज तुम्हारी ‘कविता’ के है हाल बुरे।
सुनो विनोबा! श्रद्धा की मूरत, नही रही तुम्हारी गाय।।

बच्चे स्वस्थ, खेत उपजाऊ देने का ईनाम अहा!।
झेल रही अपनी गर्दन पर, छुरियाँ और कटारी गाय।।

पहली रोटी मुझे न देती, मेरी माँ का नही जवाब।
में उसका बेटा हूँ फिर भी, “मुझसे अधिक दुलारी” गाय।।

आँखे खोलो देशवासियों, समझौ उपकारों का मोल।
चली गई तो फिर न मिलेगी, हमें दुबारा प्यारी गाय।।

———–—दिनेश ‘प्रभात’ की कलम से—-
(मुझसे अधिक दुलारी गाय)

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON
READ MORE :  Poem by Dr.Sanju Paul