मशरूम की खेती : जीविकोपार्जन का एक महत्वपूर्ण जरिया
अविरल कुमार सिंह, जीविकोपार्जन विशेषज्ञ, BRLPS,Bihar
पौष्टिकता से भरपूर सब्जी के रूप में मशरूम का तेजी से विकास हो रहा है | बाजार के अनरूप मांग को देखते हुए मशरूम की खेती पर भी बहुत अधिक जोर दिया जा रहा है | किसानों के लिए कम भूमि में तथा कम खर्चे में और कम समय अधिक उत्पादन के साथ मुनाफा देने वाली फसल बनते जा रही है | पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजार में मशरूम की मांग तेजी से बढ़ी है, जिस हिसाब से बाजार में इसकी मांग है, उस हिसाब से अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम एक पूर्ण स्वास्थ्यवर्धक है जो सभी लोगों बच्चों से लेकर वृद्ध तक के लिए अनुकूल है इसमे प्रोटीन, रेशा, विटामिन तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाये जाते है ताजे मशरूम में 80-90 प्रतिशत पानी होता है तथा प्रोटीन की मात्रा 12- 35 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 26-82 प्रतिशत एवं रेशा 8-10 प्रतिशत होता है मशरूम में पाये जाने वाला रेशा पाचक होता है। मशरूम शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढाता है स्वास्थ्य ठीक रहता है कैंसर की सम्भावना कम करता है गॉठ की वृद्धि को रोकता है, रक्त शर्करा को सन्तुलित करता है। मशरूम हृदय के लिए, मधुमेह के रोगियों एवं मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए, कैंसर रोधी प्रभाव रोगों में लाभदायक है।
तीन तरह के मशरूम की कर सकते हैं खेती :
1/ बटन मशरूम
2/ ढिंगरी मशरूम (ऑयस्टर मशरुम)
3/ दूधिया मशरूम (मिल्की)
किसानों को कितना सब्सिडी दिया जा रहा है ?
मशरूम की खेती के लिए बिहार राज्य सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है | योजना के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा क्रेडिट लिंक्ड बैंक इंडेड आधारित 50% अनुदान उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसका लाभ कोई भी इच्छुक कृषक प्राप्त कर सकते हैं | मशरूम उत्पादन के लिए 20 लाख रूपये प्रति इकाई लागत पर 10 लाख रूपये सहायतानुदान दिया जा रहा है | मशरूम स्पान उत्पादन के लिए 15 लाख रूपये प्रति इकाई लागत पर 7.50 लाख रूपये अनुदान दिया जा रहा है | इसी प्रकार, मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन के लिए 20 लाख रूपये प्रति इकाई लागत पर 10 लाख रूपये की सहायता राशि दी जाती है तथा 60 रूपये प्रति मशरूम कीट पर 54 रूपये अनुदान दिया जा रहा है |
आप को बता दें कि कुछ राज्यों जैसे कि हरियाणा में मशरूम उत्पादन के लिए किसानों को चालीस प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। हरियाणा पूरे देश में बटन मशरूम उत्पादन के लिए काफी मशहूर है और नंबर एक बना हुआ है। राज्य के उद्यान विभाग ने मशरूम की सफल खेती के लिए डेढ़ सौ नए प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। यह प्रोजेक्ट सामान्य तौर पर नहीं बल्कि तीस करोड़ रुपए से पूरे किए जाएंगें। जिसके अंतर्गत सरकार करीब बारह करोड़ रुपए का अनुदान देगा। इसके अतिरिक्त बताते चलें कि मशरूम उत्पादन के लिए एक किसान बड़ी यूनिट बनाने के लिए बीस लाख रुपए से शुरुआत कर सकता है। जिसके लिए उसे सरकार की तरफ से किसान को चालीस फीसदी सब्सिडी दी जाएगी। बटन मशरूम की कीमत करीब 200 रुपए प्रति किलो तक सामान्य तौर पर मिल जाती है। खासकर सफेद बटन मशरूम की किस्म का उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है। https://www.nabard.org वेबसाइट के जरिये आप इस योजना का बारे में और जानकारी ले सकते हैं.
मशरूम के बीज की कीमत व इसे आप कहाँ बेच सकते हैं –
इसके बीज की कीमत लगभग 75 रुपए प्रति किलोग्राम होती है, जो कि ब्रांड और किस्म के अनुसार बदलती रहती है. इसलिए आपको पहले यह तय करना होगा, कि आप किस किस्म की मशरूम को उगाना चाहते है. जैसा कि हमने आपको कहा कि यह काफी पोषक तत्वो का स्त्रोत है इसलिए यह रोजमर्रा की वस्तुओं के अलावा औषधी बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। इस वजह से मशरूम की मांग की जगहों पर होती है। इसके अलावा मशरूम का उपयोग अधिकतर चाइनीज खाने में किया जाता है। इसके अन्य लाभकारी गुणों के कारण इसको मेडिकल के क्षेत्र में भी उपयोग किया जा रहा है। इतना ही नहीं इसका निर्यात एवं आयात भी कई देशों में किया जाता है, अर्थात इसको बेचने के लिए बहुत से क्षेत्र मौजूद है।
मशरूम की खेती के लिए महत्वपूर्ण सामान :
फफूंदी रहित ताजे पिले धान के तिनके।
एक ब्लाक बनाने के लिए तकरीबन 1 वर्ग मीटर की प्लास्टिक की सीट, 400 गेज के माप की मोटाई वाली
45x30x15 से. मी. के माप के लकड़ी के सांचे,
तिनकों को काटने के लिए गंडासा या भूसा कटर।
तिनकों को उबालने के लिए ड्रम (कम से कम दो)
जूट की रस्सी, नारियल की रस्सी या प्लास्टिक की रस्सियां
टाट के बोरे
स्पान अथवा मशरूम जीवाणु जिन्हें सहायक रोगविज्ञानी, मशरूम विकास केन्द्र, से प्रत्येक ब्लॉक के लिए प्राप्त किया जा सकता है।
एक स्प्रेयर
तिनकों के भंडारण के लिए शेड 10X8 मी. आकार का।
घर पर मशरूम की खेती करने की प्रक्रिया :
इसकी खेती करने के लिए आपको एक कमरे की जरुरत होती है, लेकिन आप चाहें तो लकड़ियों का एक जाल बनाकर भी उसके नीचे मशरूम उगाना आरम्भ कर सकते हैं।
प्रथम चरण – मशरूम की खेती के प्रथम चरण के लिए सबसे उपयोगी है खाद। जिसके लिए आप गेहूं या धान का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन खाद के लिए भूसे को कीटाणू रहित बनाना अनिवार्य है, ताकि इसकी अशुद्धियाँ खत्म हो जाए। 1500 लीटर पानी में 1.5 किलोग्राम फार्मलीन व 150 ग्राम बेबिस्टीन मिलाया जाए। इसके बाद इस पानी में 1 कुंटल, 50 किलोग्राम गेहूं का भूसा डालकर अच्छे से मिला ले। उसके बाद इसे कुछ समय के लिए ढक्कर रखना पड़ता है। इसके बाद इस खाद या भूसे का उपयोग आप मशरूम की खेती के लिए कर सकते हैं।
दूसरा चरण – खाद के अंतर पायी जाने वाली नमी को 50 प्रतिशत तक कम करने के लिए बनाए गए भूसे को आप बाहर हवा में कहीं अच्छे से फैला दें औऱ समय — समय पर पलटते रहे। बुवाई करने के लिए 16 बाई 18 की एख पॉलिथीन बैग लेकर इसमें परत दर 4 परतें बनाएं। जिसमेंं पहले भूसा रखें और उस पर बीज ़डाले। ध्यान रखें की उस पॉलिथिन बैग के दोनों ओऱ छेद हो। ताकि इसमें बचा हुआ पानी भी बाहर निकल जाए।बुवाई की प्रक्रिया समाप्त हो जाने के बाद इस पैकेट में कुछ छोटे-छोटे छिद्र कर दिए जाते है। जिससे मशरूम के पौधे बाहर निकल सकें।
हवा एवं पंखे की सहायता से रख रखाव :
बुवाई के बाद मशरूम की फसल को कम से कम 15 दिन के लिए एक कमरे में खुला छोड़ देना चाहिए या पंखे के नीचे।
नमी एवं तापमान पर नियंत्रण :
नमी पर नियंत्रण करने के लिए आपको कभी-कभी दीवारों पर पानी का छिड़काव करना होगा, ध्यान रहे नमी लगभग 70 डिग्री तक की होनी चाहिए इसके बाद आपको कमरे के तापमान पर भी ध्यान देना बहुत जरुरी है। मशरूम की फसल को अच्छे से उगाने हेतु लगभग 20 से 30 डिग्री का तापमान ही ठीक रहता है।
मशरूम के थैले रखने के तरीके :
अपने कमरे में मशरूम की खेती करने के लिए आपको मशरूम वाले थैले को तरीकों से रखना होता है। इसे या तो आप किसी लकड़ी और रस्सी की सहायता से बांध कर लटका दें या फिर एक तरह से लकड़ियों या किसी धातु से पलंगनुमा जंजाल तैयार कर लें जिस पर मशरूम के पैकेट्स आसानी से रख सकें।
कब और कैसे करें कटाई :
इसकी फसल अधिकतम 30 से 40 दिनों के भीतर काटने के लिए तैयार हो जाती है। उसके बाद आपको इसका फल दिखाई देने लगता है, जिसे आप आसानी से हाथ से ही तोड़ सकते हैं।
1/ वटन मशरूम की खेती शरद ऋतु में अक्टूबर से फरवरी तक –
खेती की विधि
मशरूम की खेती हेतु गेहूँ के भूसे को बोरे में रात भर के लिए साफ पानी में भिगो दिया जाता है यदि आवश्यक हो तो 7 ग्राम कार्बेन्डाइजिन (50 प्रतिशत) तथा 115 मिली. फार्सलीन प्रति 100 लीटर पानी की दर से मिला दिया जाता है, इसके पश्चात भूसे को बाहर निकालकर अतिरिक्त पानी निथारकर अलग कर दिया जाता है और जब भूसे से लगभग 70 प्रतिशत नमी रह जाये तब यह बिजाई के लिए तैयार हो जाता है।
बिजाई
भारत में बटन मशरूम उगाने का उपयुक्त समय अक्तुबर से मार्च के महीने हैं। इन छ: महीनो में दो फसलें उगाई जाती हैं। बटन खुम्बी की फसल के लिए आरम्भ में 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड ताप की आवश्यकता होती है| इस ताप पर कवक जाल बहुत तेजी से बढता है। बाद मे इसके लिए 14 से 18 डिग्री ताप ही उपयुक्त रहता है। इससें कम तापमान पर फलनकाय की बढवार बहुत धीमी हो जाती है। 18 डिग्री से अधिक तापमान भी खुम्बी के लिए हानिकारक होता है।
आवरण मृदा तैयार करना
विजाई के वी 20-25 दिन बाद फफूँद पूरे भूसे में सामान रूप से फैल जाती है, इसके बाद आवरण मृदा तैयार कर 2 से 3 इंच मोटी पर्त थैली के मुँह को खोलकर ऊपर समान रूप से फैला दिया जाता है इसके पश्चात पानी के फव्वारे से इस तरह आवरण मृदा के ऊपर सिचाई की जाती है कि पानी से आवरण मृदा की लगभग आधी मोटाई ही भीगने पाये आवरण मृदा लगाने के लगभग 20 से 25 दिन बाद आवरण मृदा के ऊपर मशरूम की बिन्दुनुमा अवस्था दिखाई देने लगती है। इस समय फसल का तापमान 32 से 35 तथा आर्द्रता 90 प्रतिशत से अधिक बनाये रखा जाता है अगले 3 से 4 दिन में मशरूम तोड़ाई योग्य हो जाती है।
मशरूम की पैदावार तथा भंडारण
सामान्यत: 8 से 9 किलोग्राम खुम्बी प्रतिवर्ग मीटर में पैदा होती है। 100 किलोग्राम कम्पोस्ट से लगभग 12 किलोग्राम खुम्बी आसानी से प्राप्त होती है। खुम्बी तोडने के बाद साफ पानी में अच्छी तरह से धोयें तथा बाद मे 25 से 30 मिनट के लिए उनको ठंडे पानी में भीगो दें। खुम्बी को ताजा ही प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है परन्तू फ्रिज में 5 डिग्री ताप पर 4-5 दिनों के लिए इनका भंडारण भी किया जा सकता है। स्थानीय बिक्री के लिए पोलिथिन की थैलियों का प्रयोग किया जाता है। ज्यादा सफेद मशरूम की मॉग अधिक होने के कारण ताजा बिकने वाली अधिकांश खुम्बीयों को पोटेशियम मेटाबाइसल्फेट के घोल में उपचारित किया जाता है। बटन खुम्बी का खुदरा मुल्य 100-125 रूपये प्रति किलोग्राम रहता है। शादी-ब्याह के मौसम में कुछ समय के लिए तो यह 150 रूपये किलो तक भी आसानी से बिक जाती है।
2. ढिंगरी मशरूम की खेती –
ढींगरी मशरूम की कुछ विशेषताएं हैं जिसकी वजहसे इसकी खेती भारत में ही नहीं अपितु विश्वभर में भी लोकप्रिय हो रही है। ढींगरी को किसी भी प्रकार के कृषि अवशिष्टों परआसानी से उगाया जा सकता है, इसका फसल चक्र भी 45-60दिन का होता है और इसे आसानी से सुखाया जा सकता है। ढींगरीमशरूम में भी अन्य मशरूमों की तरह सभी प्रकार के विटामिन,लवण तथा औषधीय तत्व मौजूद होते हैं तथा ढींगरी को वर्षभरसर्दी या गर्मियों में सही प्रजाति का चुनाव कर उगाया जा सकता है। ढींगरी मशरूम (ओएस्टर मशरूम) साधन है जिससे इन कृषि अवशिष्टों को प्रयोग कर किसान भाई अपने परिवार को पौष्टिक आहार दे सकते हैं तथा अपनी आमदनी को भी बढ़ा सकते हैं तथा इन कृषि अवशिष्टों का वैज्ञानिक ढंग से दोहनकर अपने खेतों की उर्वकता को बढ़ा सकते हैं। आज ढींगरी की खेती हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु,केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुतायत से हो रही है।
ढींगरी मशरूम उगाने का सही समय
दक्षिण भारत तथा तटवर्ती क्षेत्रों में सर्दी का मौसम विशेष उपयुक्त है. उत्तर भारत में ढींगरी खुम्बी उगाने का उपयुक्त समय अक्तुबर से मध्य अप्रैल के महीने हैं. ढींगरी खुम्बी की फसल के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा 80-85% आर्द्रता बहुत उपयुक्त होती है. उपलब्ध प्रजातियों को समय-समय पर पूरा साल बिना वातावरण को नियंत्रित किये वर्ष भर लगा कर किसान अतिरिक्त आयुपर्जन कर सकते हैं.
ढींगरी मशरूम को उगाने की विधि
पराल जोकि एक या डेढ़ साल से ज्यादा पुराना न हो व बरसात में भीगा हुआ न हो को 3-5 इंच के टुकड़ो में काटा जाता है फिर इस कटे पराल को बोरियों में भरकर साफ पानी में 10-12 घंटों के लिए भिगो दिया जाता है. इस भीगे हुए पराल को 70-75 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले पानी में तकरीबन दो घंटे रखा जाता है या इसे इतनी देर पानी की भाप भी दी जा सकती है. इस तरह तैयार पराल को ठंडा करने के बाद इस में बीज मिलाया जाता है. ढींगरी का स्पान/बीज शीशे की बोतल या प्लास्टिक की छोटी थैलियों में मिलता है या आर्डर पर बनवाया जा सकता है. ढींगरी की खेती पोलीथीन की थैलियों (13 X 22 ईंच) में की जाती है. इन थैलियों में 6 इंच की दूरी पर आध-आध सेंटीमीटर के छेद कर दिये जाते हैं. एक थैली बीज, चार पोलीथीन की थैलियों के लिए पर्याप्त होती है. पोलीथीन की थैली का मूँह खोलकर उसमें थोड़ा सा स्पान डालकर उसके ऊपर चार इंच पराल की तह दबाकर लगा दी जाती है व हर तह के बाद थोड़ा स्पान बिखेर दिया जाता है. इतनी तह लगाये कि अंततः करीब छः इंच थैली खाली रह जाये. इस प्रकार करीब 5-6 पराल की तहें लग जाती है. सबसे ऊपर की तह पर भी थोड़ा सा स्पान जरूर डालें. अब सावधनी से थैली का मुँह एक छोटी रस्सी से बाँध् दें. इस प्रकार आप जितनी चाहे उतनी थैलियों में समय व जगह को ध्यान में रखकर उत्पादन शुरू कर सकते हैं.
इन तैयार थैलियों को एक ऐसे कमरे में रखें जिसका फर्श पक्का हो.इस कमरे का तापमान सर्दियों में 15- 20 डिग्री सेंटीग्रेड़ जाड़े वाली प्रजाति व गर्मियों में 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड गर्मियों वाली प्रजाति व नमी की मात्रा 85-90 प्रतिशत के बीच हो. इस प्रकार कृषक पूरे वर्ष सही प्रजाति का बीज डालकर ढींगरी उत्पादन कर सकते हैं. बरसात के दो महीनों को छोड़कर पूरा वर्ष ढींगरी की फसल ली जा सकती है. सही समय पर सही प्रजाति का बीज डालने से ठण्डी व गरम हवा देने वाली मशीन की जरूरत भी नहीं रहती जिससे इसका उत्पादन-व्यय और भी कम हो जाता है. 12-14 दिनों में स्पान थैली के अंदर पराल में फैल जाता है . यह थैलियाँ बाहर से सफेद नज़र आने लगती है. अब यह थैलियाँ फसल देने के लिए तैयार है. इन थैलियों के ऊपर से पोलीथीन काट कर अलग कर दें. अंदर का पराल बिखरेगा नहीं बल्कि एक सफेद गट्ठे की तरह नजर आयेगा. इस गट्ठे को रस्सी की सहायता से बाँस के बने ढ़ांचों पर लटका देते हैं. एक से दूसरे गट्ठे की दूरी एक फुट रखनी चाहिए. दिन में आवश्यकतानुसार एक या दो बार पानी का छिड़काव करें. कमरे को हवादार रखें व ध्यान रखें कि गट्ठे सूखें नहीं. लटकाने के 6-7 दिनों बाद इनके चारों तरफ छोटे-छोटे सफेद दानें नजर आने लगते हैं जोकि 3-4 दिन में बड़े हो जाते हैं.
ढींगरी के किनारों से मुड़ने से पहले तोड़ लेना चाहिए क्योंकि इससे इसके खराब होने की संभावना बढ़ जाती है व इसके आकर्षण एवं मुल्य में गिरावट आ जाती है. इस प्रकार एक किलोग्राम सूखी पराल से लगभग सात सो पचास ग्रा. ताजी ढींगरी प्राप्त हो जाती है. तोड़ने के पश्चात इसे अतिशीघ्र बेचा जाना चाहिए. यदि किसी कारणवश यह न विक पाये तो इसे धूप में सुखाया जा सकता है या पिफर 450 सैंटीग्रेड पर गरम हवा देने वाली मशीन का उपयोग किया जा सकता है. सूखने पर मोड़ने से अगर यह टूट जाये तो समझना चाहिए कि यह ठीक से सूख गई है. 10 किलो ढींगरी सूख कर करीब एक किलो रह जाती है . ताजी ढींगरी को पोलीथीन की थैलियों में पांच-छः छोटे-छोटे छेद करके रखा जा सकता है. सूखी ढींगरी बेचने के लिए पोलीथीन में छिद्र की आवश्यकता नहीं होती.
कुछ आवश्यक सुझाव ढींगरी उत्पादन के लिए :
कमरा स्वच्छ एवं हवादार हो. ढींगरी के गट्ठों पर पानी देते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानीं की मात्रा ज्यादा भी न हो और इतनी कम भी न हो कि गट्ठा सूख जाए.
कमरे में नमी कम न होने दें. हपफते में दो बार ब्लीचिंग पाउडर दो ग्राम प्रति दस लिटर पानी में घोल बना कर गट्ठों पर छिड़काव करें.
गट्ठे ज्यादा सूख रहे हों तो कमरे की खिड़कियों पर गीली बोरियाँ लटका दें ताकि नमीयुक्त हवा कमरे में आती रहे.
3. दूधिया मशरूम की खेती –
देश के पहाड़ी इलाकों को छोड़कर लगभग समस्त मैदानी भागों में दूधिया मशरूम की खेती की एक फसल ली जा सकती है, जहां कुछ महीनों के लिये तापमान 25 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है| दूधिया मशरूम का आकार व रूप श्वेत बटन मशरूम से मिलता-जुलता है| श्वेत बटन मशरूम की अपेक्षा दूधिया मशरूम का तना अधिक मांसल, लम्बा तथा आधार पर काफी मोटा होता है| टोपी बहुत ही छोटी तथा जल्दी खुलने वाला होता है, दूधिया मशरूम की तुड़ाई के बाद भण्डारण करने की अवधि अधिक होती है| मांग कम होने पर इस मशरूम की तुड़ाई दो से तीन दिन देर से भी करने पर गुणवत्ता में कमी नहीं आती है|
उपयुक्त जलवायु
दूधिया मशरूम की खेती के लिये अधिक तापमान की आवश्यकता होती है| कवक जाल फैलाव या बीज जमाव के लिये 25 से 35 डिग्री सैल्शियस और 80 से 90 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है| केसिंग परत बिछाने से लेकर फसल लेने तक तापमान 30 से 35 डिग्री सैल्शियस और नमी 80 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए| अधिक तापमान 38 से 40 डिग्री सैल्शियस होने पर भी दूधिया मशरूम की खेती पैदावार देती रहती है|
सामग्री का उपचार
सामग्री को हानिकारक सूक्ष्मजीवियों से मुक्त कराने और दूधिया मशरूम की वृद्धि हेतु उपयुक्त बनाने के लिये, इसको उपचारित करना आवश्यक होता है| चुनी हुई सामग्री को निम्नलिखित में से किसी एक विधि द्वारा उपचारित कर सकते हैं, जैसे-
गर्म पानी से उपचार- इस विधि के अनुसार भूसा या धान के पुआल की कुट्टी को टाट के छोटे बोरे मे भरकर, इसे साफ पानी में अच्छी प्रकार से कम-से-कम 6 से 7 घंटे तक डुबोकर रखते हैं, ताकि भूसा या पुआल अच्छी तरह से पानी सोख ले| इसके पश्चात् इस गीले भूसे से भरे बोरे को उबलते हुए गर्म पानी में 40 मिनट तक डूबोकर रखते हैं| इस समय ध्यान देने योग्य बात यह है, कि भूसा डुबोने के बाद पानी 40 मिनट तक उबलता रहना चाहिए, तभी सामग्री का उपचार सफल हो सकता है| इसके बाद भूसे को गर्म पानी से निकाल कर साफ फर्श पर फैला दें ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए और भूसा ठंडा हो जाए| भूसा डालने से पहले फर्श को धोकर उस पर 2 प्रतिशत फार्मेलिीन के घोल 50 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें| इस समय भूसे में पानी की मात्रा यानि नमी 65 से 70 प्रशित होनी चाहिए| इस स्थिति को जानने के लिए भूसे को मुठ्ठी में कसकर दबाकर रखें, दबाने पर यदि भूसे से पानी न निकले और हथेली मामूली सी नम हो जाये तो समझना चाहिए, कि भूसे में नमी की मात्रा ठीक है| इस प्रकार उपचारित भूसा बीजाई के लिये तैयार हो जाता है|
रासायनिक उपचार- गर्म पानी उपचार विधि को लघु स्तर पर उपयोग में लाना उचित है, परन्तु बड़े स्तर पर यह अधिक खर्चीले साबित होते हैं| अत: विकल्प के रूप में रासायनिक विधि को उपचारित करने का तरीका इस प्रकार है, जैसे- दूधिया मशरूम की खेती के लिए किसी हौद या ड्रम में 90 लीटर पानी व उसमें 10 से 12 किलोग्राम भूसा भिगो दें| एक बाल्टी में 10 लीटर पानी ले और उसमें 7.5 ग्राम बॉविस्टीन साथ में 125 मिलीलीटर फार्मेलीन का घोल बना ले, इस घोल को ड्रम में भिगोये भूसे पर उड़ेल दें और ड्रम को पॉलीथीन से अच्छे से ढक दें| सामग्री को 12 से 17 घंटे बाद, ड्रम से भूसे को बाहर निकाल कर साफ फर्श पर फैला दें, ताकि भूसे से अतिरिक्त पानी निकल जाए| प्राप्त गीला भूसा बीजाई के लिये तैयार हो जाता है| उपरोक्त नमी रखना आवश्यक है|
बीजाई :
उपरोक्त बताई गई किसी एक विधि के माध्यम भूसा या पुआल को उपचारित कर उसमें 4 से 5 प्रतिशत गीले भूसे के वजन के अनुसार की दर से बीज मिलायें, यानि एक किलोग्राम गीले भूसे में 40 से 45 ग्राम बीज मिलाया जाता है| दूधिया मशरूम की बीजाई की विधि छिटकवां भी हो सकती है या फिर सतह में भी बीजाई की जा सकती है| सतह में बीजाई करने के लिए पहले पॉलीथीन के बैग 15 से 16 इंच चौड़ा और 20 से 21 इंच ऊँचा में एक परत भूसे की बिछायें फिर उसके ऊपर बीज बिखेर दें| उसके ऊपर फिर भूसे की परत डालें, व बीज डालें, दो परतों के बीच का अंतर लगभग 3 से 4 इंच होना चाहिए| इस प्रकार सतह में बीजाई की जा सकती है, एक बैग में करीब 3 से 4 किलाग्राम उपचारित गीली सामग्री भरी जाती है।
केसिंग मिश्रण बनाना और केसिंग परत बिछाना
दूधिया मशरूम की बीजाई किये गये बैगों में 15 से 20 दिनों में बीज भूसे में फैल जाता है, व भूसे पर सफेद फफूद दिखाई देती है| ऐसी अवस्था केसिंग परत चढ़ाने के लिये उपयुक्त मानी जाती है| केसिंग मिश्रण, केसिंग करने के एक सप्ताह पहले तैयार करते हैं| केसिंग मिश्रण तैयार करने के लिए 3/4 भाग दोमट मिट्टी व 1/4 भाग बालू मिट्टी को मिलायें| अब इस मिश्रण के वजन का 10 प्रतिशत चाक पाउडर मिलायें और मिश्रण को 4 प्रतिशत फार्मेलीन 100 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी व 0.1 प्रतिशत बॉविस्टीन के घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से गीला कर ऊपर से पॉलीथीन शीट से 7 से 9 दिन तक ढंक दें|
केसिंग करने के 24 घण्टे पूर्व ही केसिंग मिश्रण से पॉलीथीन हटायें और मिश्रण को बेलचे से उलट-पलट दें, ताकि फार्मेलीन की गंध निकल जाये| इस प्रकार तैयार केसिंग मिश्रण की 2 से 3 सेंटीमीटर मोटी परत बीज फैले हुए बैग के मुंह को खोलकर, सतह को चौरस कर बिछा देते हैं| इस दौरान तापमान 30 से 35 डिग्री सैल्शियस और नमी 80 से 90 प्रतिशत बनाये रखते हैं| लगभग 10 से 12 दिनों में कवक जाल यानि बीज के तंतु केसिंग मिश्रण में फैल जाते है|
फसल देखभाल :
दूधिया मशरूम की खेती के लिए केसिंग मिश्रण में कवक जाल फैलने के बाद, बैगों पर प्रतिदिन पानी का छिड़काव किया जाता है, कमरे में ताजी हवा दी जाती है और 30 से 35 डिग्री सैल्शियस तापमान और 80 से 90 प्रतिशत नमी रखी जाती है, जिससे 3 से 5 दिनों में दूधिया मशरूम की कलिकायें निकलना प्रारम्भ हो जाती है| जो लगभग एक सप्ताह में पूर्ण मशरूम का रूप ले लेती है, ढींगरी मशरूम की तरह, दूधिया मशरूम की बढ़वार के लिये भी प्रकाश की आवश्यकता होती है|
तुड़ाई :
दूधिया मशरूम की टोपी जब 5 से 6 सेंटीमीटर मोटी हो जाये तो इसे परिपक्व समझना चाहिए और अंगूठे व ऊँगली की सहायता से घुमाकर तोड़ लेना चाहिए| तने के निचले भाग को, जिसमें मिट्टी लगी होती है काट दिया जाता है और मशरूम को पॉलिथीन बैग में जिसमें 4 से 5 मिलीमीटर के कम से कम चार छेद हों पैक कर दिया जाता है|
मशरूम की खेती -एक महत्वपूर्ण जीविकोपार्जन
मशरूम की खेती -जीविकोपार्जन का एक महत्वपूर्ण जरिया