पशुओ में टीकाकरण से सम्बंधित भ्रांतियां

0
626

पशुओ में टीकाकरण से सम्बंधित भ्रांतियां

डॉ मुकेश कुमार श्रीवास्तव १ और डॉ संजय कुमार मिश्र २
१ सहायक आचार्य, पशु औषधि विज्ञानं विभाग, दुवासु, मथुरा
२ पशु चिकित्साधिकारी, चौमुहा, मथुरा, पशु पालन विभाग, उत्तर प्रदेश

पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए पशुओं में टीकाकरण अति आवश्यक कार्यो में से एक है। अगर पशुपालक सही समय पर टीकाकरण कराए तो पशुओ को न केवल भयंकर बीमारियों से बचाया जा सकता है, बल्कि उनके दूध उत्पादन में भी वृद्धि की आशा की जा सकती है। टीकाकरण संक्रामक रोगों से जु्ड़े उपचार की लागत को कम करके किसानों के आर्थिक बोझ को कम करने में मदद करता है। टीकाकरण को लेकर लापरवाही बरतने वाले किसानों को पशुओं की मौत से आर्थिक घाटा सहन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त पशुओं में कई ऐसी बीमारियां ऐसी होती है, जिनका संक्रमण मनुष्यों में भी फैल सकता है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि पशुओं को टीकाकरण के द्वारा जूनोटिक बीमारियों का पशुओं से मनुष्यों में संक्रमण को रोका जाय। इस बात की कम जानकारी होने के कारण कि टीकाकरण कैसे काम करता है, टीकों के बारे में भ्रांतियां दशकों तक बनी रही और अभी भी कुछ ग्रामीण छेत्रों में बनी हुई है। आज के वैज्ञानिक युग में भी बहुत से पशुपालक टीकाकरण से अनभिज्ञ हैं। पशुपालक टीकाकरण के महत्व को नही जानते हैं। इसके लिए जरुरी है की पशुधन प्रसार अधिकारी, कृत्रिम गर्भाधान अधिकारी एवं पशुचिकित्साधिकारी विभागीय गतिविधियों के बारे में पशुपालकों को जागरूक करे। वैक्सीन के कारण गर्दन पर सूजन आना एवं मामूली बुखार आना पशु के शारीर द्वारा टीके के लिए एक सामान्य प्रक्रिया है। कभी कभी ढूध भी थोड़े समय के लिए कम हो जाता है, इससे पशुपालकों को घबराने की आवश्यकता नहीं है। अन्य कारकों के साथ-साथ उच्च स्वच्छता और पोषण, निश्चित रूप से कुछ रोगों की घटना को कम सकते हैं। यह भी देखने में आता है कि जो पशु पालक अपने पशुओं का टीकाकरण नही करवाते तो पशु चिकित्सक उनको समझाता है तो पशुओं का टीकाकरण करने वाले चिकित्सक से दुर्व्यवहार भी करते हैं, लड़ने को तैयार हो जाते हैं। ये पशुपालक जब पशुओं का टीकाकरण नही करवाना होता है तो अधिकारी को बोल देते हैं कि हमारे पशुओं का टीकाकरण हो चुका है। या कई बार जब पशुओं में समस्या आ जाती है तो कहते हैं कि हमारे गाँव या घर में तो भी टीका लगाने आता ही नही है। टीकाकरण एक राष्ट्रीय पशु प्रतिरक्षा योजना है जिसके तहत हर पशु को टीकाकरण ‌‌‌आवश्यक है। इसलिए सभी पशुपालकों को टीकाकरण करते समय पशु चिकित्सक का सहयोग करना चाहिए ताकि हमारा पशुधन रोगमुक्त रहे।
प्रस्तुत लेख में पशुओ में टीकाकरण से सम्बंधित भ्रांतियां की चर्चा की जा रही है।

READ MORE :  Methanogenesis and manipulation of ruminal fermentation by physical means

१- अतिभारित प्रतिरक्षी तंत्र –भ्रांति
शायद सबसे आम गलतफहमी यह है कि किसी पशु का प्रतिरक्षी तंत्र “अतिभारित” हो सकता है यदि पशु को एक बार में अनेक टीके लगाए जाएं। हालांकि, कई अध्ययनों से यह पता चल चूका है कि एक साथ दिए जाने वाले टीकों का कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं है जब इन्हें अलग-अलग दिए जाने के बजाए कॉम्बिनेशन में दिया जाता है।
२- गायब रोग-भ्रांति
कुछ पशुपालक यह मानते हैं कि चूंकि कुछ पशु रोग जो अब कम हो गए हैं, इसलिए अब उनके खिलाफ पशुओ को टीका देना जरूरी नहीं है। हालांकि, यह नजरिया गलत है। इसलिए पशु पालन विभाग द्वारा सुझाये गए सभी टीको का लगवाना आवश्यक है।
३- बिना टीका की तुलना में टीकायुक्त पशु अधिक बीमार होते हैं-भ्रांति
यदि किसी ऐसे रोग का प्रकोप होता है जो किसी दिए गए क्षेत्र के लिए दुर्लभ है, तो बिना टीका वाले पशु ही केवल जोखिम में नहीं होते। चूंकि कोई भी टीकाकरण 100% सुरक्षित नहीं है, इसलिए टीका लिए हुए पशु भी रोग का शिकार हो सकते हैं।
४- टीका-अर्जित प्रतिरक्षा क्षमता की तुलना में प्राकृतिक प्रतिरक्षा क्षमता बेहतर होती है- भ्रांति
कुछ पशुपालक यह तर्क करते हैं कि प्राकृतिक संक्रमण से हासिल प्रतिरक्षा क्षमता टीका प्रदत्त प्रतिरक्षा क्षमता की तुलना में अधिक सुरक्षा देती है। यह सही है कि कुछ स्थितियों में प्राकृतिक प्रतिरक्षा क्षमता टीका-प्रेरित प्रतिरक्षा क्षमता से अधिक समय तक टिकती है, लेकिन प्राकृतिक संक्रमण के खतरे प्रत्येक अनुशंसित टीका के लिए प्रतिरक्षण के खतरे से अधिक होते हैं।
५- हमारे पशुओं में ये बीमारी कभी नही हुई – भ्रांति
अक्सर देखने में आता है कि कई पशु पालक अपने पशुओं को टीकाकरण इसलिए नही करवाते हैं, कि उनके पशुओं में वह बीमारी कभी नहीं हुई जिसका टीकाकरण होने जा रहा है और इसलिए टीके लगाने की कोई जरूरत नही है। लेकिन बीमारी कभी भी कही भी आ सकती है। टीकाकरण को एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम की तरह लिया जाना चाहिए है, जिसका लक्ष्य पशुधन को रोग मुक्त रखना है।
६- दूधारू पशु का दूध कम होता है – भ्रांति
अक्सर यह यह देखने में आया है कि टीकाकरण के बाद दूधारू पशु का दूध कम हो जाता है जिससे पशुपालक अपने दूधारू पशुओं का टीकाकरण नही करवाते हैं। वास्तव में टीकाकरण के कारण पशु का दूध कम नही होता है दूध टीकाकरण के समय उत्पन्न डर के कारण होता है। अगर अल्पसमय के लिए दूध कम भी हो जाता है और उसके बदले पशु की संक्रामक बीमारियों से बचाव हो रहा है, तो यह भी पशुपालक के लिए लम्बे समय में घाटे का सौदा नहीं है।
७- ग्याभिन पशु का गर्भपात हो सकता है- भ्रांति:
टीकाकरण से ग्याभिन का गर्भपात कभी नही होता है, यह अन्य कारणों जैसे कि पशु को पकड़ने में हुए तनाव, डर से तनाव, ज्यादा गर्मी या सर्दी के कारण या अन्य संक्रमण रोगों के कारण पशु का गर्भपात होता है। इसलिए टीकाकरण ग्याभिन पशुओं को अवश्य लगवाना चाहिए।
८- टीकाकरण के बाद भी पशुओ को रोग आ गया है- भ्रांति
कई बार टीकाकरण होने के बाद भी पशुओं में रोग आ जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि कई बार पशुपालक दूधारू या ग्याभिन पशु का टीकाकरण नही करवाता है जिससे वह पशु तो हमेशा बीमार आने की सम्भावना में रहता ही है उसके साथ उन पशुओं का खतरा भी बढ़ जाता है जिनको टीकाकरण हुआ है। यही सम्भावना उन परिवारों से भी रहती है जिन्होने अपने पशुधन का टीकाकरण नही करवाया।
९- मुफ्त का टीका है, क्या काम करेगा- भ्रांति
अक्सर पशुपालको में आमधारणा है है कि निशुल्क टीका रोगप्रतिरोधकता उत्पन्न नही करता है। लेकिन यह कोरी भ्रान्ति के अलावा कुछ नहीं है। पशुओं में बीमारी आने से केवल उस पशुपालक का ही नुकसान नही होता है, बल्कि पूरा सरकारी तंत्र प्रभावित होता है। इसलिए पशुपालक अपने पशुओं का टीकाकरण करवाकर सरकारी नीतियों में अपनी सहभागिता निभाएं।
१०- बार-बार टीकाकरण की क्या जरुरत – भ्रांति
साल में कई बार टीकाकरण से पशु बार-बार तनाव में आते हैं, जिससे दूधारू पशुओं का दूध उत्पादन का प्रभावित होना लाजिमी है। और संभवत इसीलिये पशुपालक पशुओ में बार-बार टीकाकरण करवाने में हिचकिचाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए बहुरोगप्रतिरोधक टीके पशुओं के लिए उपलब्ध है।
११- गाँव के स्थानीय मुख्य लोगों की टीकाकरण में रूची न होना- भ्रांति
अक्सर देखने में आता है कि गाँव के स्थानीय नेता, पंच या सरपंच प्रधान क्षेत्र पंचायत सदस्य गाँव में टीकाकरण में सहयोग नही देते और अपने पशुओं को भी टीकाकरण नही करवाते। जिसकी देखा देखी अन्य लोग भी टीके के लिए इंकार करते है, अतः गाँव के स्थानीय मुख्य लोगों को चाहिए कि टीकाकरण को सफल बनाने के टीकाकरण करने वाले कर्मचारी का सहयोग दें ताकि टीकाकरण के माध्यम से पशुओ को भी स्वस्थ और निरोग रखा जा सके। वर्तमान में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा खुर पका मुंह पका रोग एवं संक्रामक गर्भपात अर्थात ब्रूसेलोसिस का निशुल्क टीकाकरण प्रत्येक स्वामी के द्वार पर विभागीय टीका करता अर्थात वैक्सीनेटर के द्वारा निशुल्क लगाया जा रहा है । इस टीकाकरण में शर्त यह है कि पशुपालक अपने पशुओं को करण छल्ला जोकि 12 नंबर का यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड है पशुओं में अवश्य लगवाएं । इस नंबर को स्थानक के आधार कार्ड से जोड़ दिया जाएगा। इससे आने वाले समय में पशुपालकों के लिए केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा अनेक लाभदायक योजनाएं बनाई जाएंगी जिससे पशुपालक को लाभ होगा और उनकी आमदनी दुगनी करने का लक्ष्य भी प्राप्त होगा जो कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी की सर्वोच्च वरीयता है। अतः सभी पशुपालक भाइयों से अनुरोध है कि वे अपने पशुओं में करण छल्ला अर्थात टैग अवश्य लगवाएं और सरकार की योजनाओं जैसे पशुधन बीमा का लाभ उठाएं। उत्तर प्रदेश में सामान्य व अन्य पिछड़ा वर्ग के पशु हेतु बीमा प्रीमियम का 75% एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पशुपालकों के पशुओं हेतु बीमा प्रीमियम का 90% अनुदान सरकार द्वारा दिया जा रहा है।

    पशुओं में टीकाकरण का महत्व: एक दृश्य

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON