आजकल हमारे पास किसानों के काफी सवाल आ रहे हैं जिनमें किसान अक्सर यह शिकायत करते मिल रहे हैं कि जब से उन्होंने नया भूसा खिलाना शुरू किया तब से कुछ पशुओं को दस्त लग गए हैं।
*नए भूसे में ऐसा क्या है जिसके कारण पशु को दस्त लग जाते हैं?*
कुछ लोग कहते हैं कि नया भूसा गर्मी करता है।
गर्मी सर्दी कुछ नहीं आज आपको समझाते हैं कि नए भूसे से दस्त क्यों लग जाते हैं!!!
खाद्यान्न फसलों को कीड़े मकोड़ों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के हरबीसाइड, इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स फसलों पर छिड़के जाते हैं। ये हरबीसाइड खरपतवार तो खत्म कर देते हैं और इन्सेक्टिसाइड व पेस्टिसाइड्स फसलों को तो कीड़ों से बचा लेते हैं मगर इनकी रेजिडयू भूसे के ऊपर लगी रह जाती है। यही भूसा जब पशु को खिलाया जाता है तो ये हरबीसाइड, इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स पशु के पाचन तंत्र में पहुंचकर उसे डिस्टर्ब कर देते हैं और पशु को दस्त लग जाते हैं।
इन हरबीसाइड, इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स की मात्रा इतनी भी नहीं होती कि पशु मर ही जाए मगर इतनी तो होती है कि उसका पाचन खराब हो जाता है और उसे दस्त लग जाते हैं।
खेत में जो भी केमिकल्स छिड़के जाते हैं वह पौधे के अंदर या तो सीधे ही चले जाते हैं या फिर जब पौधा मिट्टी से अपना पोषण प्राप्त करता है तो उस समय ये सब केमिकल्स पौधे के अंदर चले जाते हैं। वैसे तो इनका एक समय होता है जिसके बाद यह अपने आप ही डिएक्टिवेट हो जाते हैं मगर इन केमिकल्स के डिएक्टिवेट होने से पहले ही अगर वह भूसा पशुओं ने खाया तो ये सब केमिकल्स उनके अंदर चले जाते हैं।
हरबीसाइड, इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स लिपोफिलिक होते हैं जिसका अर्थ है कि ये केमिकल्स फैट के साथ घुल मिल जाते हैं। कभी कभी तो पशु के अंदर इन केमिकल्स की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि वह लिपोफिलिक होने के कारण पशु के दूध में उपस्थित फैट के साथ जुड़कर दूध तक में स्रावित होने लगते हैं और अगर पशु मांस के लिए पाला गया है तो यह केमिकल्स मांस में जमा होने लगते हैं और जब इन पशुओं का दूध या मांस कोई व्यक्ति उपभोग करता हैं तो यह केमिकल्स उस व्यक्ति को भी प्रभावित करते हैं।
एक किलोग्राम गेहूं भूसे में 1.1 से 1.2 मिलीग्राम तक एंडोसल्फान पाया गया है। ज्वार की कड़बी में 0.46 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम एंडोसल्फान पाया गया है। एंडोसल्फान दूध में तो स्रावित नहीं होता है मगर यह पशु को जरूर प्रभावित करता है।
उत्तराखंड के कुमायूं की पहाड़ियों और तराई के क्षेत्रों से इकट्ठे किये गए दूध के नमूनों में क्लोरोपायरिफॉस मैक्सिमम रेसिड्यू लिमिट से ज्यादा पाया गया।
हैदराबाद के आसपास के क्षेत्रों से इकट्ठा किये गए दूध के नमूनों में डाईमेथोएट पाया गया।
*ये हरबीसाइड, इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स पशुओं को किस तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं?*
इनके कारण बड़े पशुओं का गोबर पतला हो सकता है। छोटे पशुओं को दस्त लग सकते हैं। दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन घट सकता है और उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। पशुओं के हीट में ना आने की समस्या आ सकती है। गर्भवती मादाओं में गर्भपात हो सकता है। पशुओं का लीवर और किडनी तक खराब हो सकते हैं। इन केमिकल्स के कारण इम्युनिटी कमजोर हो जाती है और तो और कैंसर तक हो सकता है।
*तो इन सबसे बचने के क्या उपाय हैं?*
सबसे पहला उपाय है कि केमिकल्स की जगह बायोपेस्टिसाइड्स ही उपयोग में लाये जाएं।
दूसरा उपाय है कि अगर इन केमिकल्स का उपयोग करना मजबूरी हो तो इन केमिकल्स के छिड़काव करने के तुरंत बाद फसल को पशुओं को खाने के लिए ना दिया जाए।
तीसरा उपाय है कि नए भूसे को तुरंत ही पशुओं को खिलाना शुरू नहीं करना है। बल्कि कम से कम दो महीने बाद ही उसे पशुओं को खाने के लिए देना है ताकि उसके ऊपर अगर कोई केमिकल लगा भी है तो वह डिएक्टिवेट हो जाए।
चौथा उपाय है कि अगर फ्रेश भूसे को खिलाना मजबूरी हो तो उसे रात भर पानी में भिगोने के बाद ही पशुओं को खाने को देना है। जिस पानी में भूसा भिगोया जाएगा उसमें से कुछ पानी तो भूसा सोख ही लेगा और बाकी बचे पानी को फेंक देना है।
इसके अलावा सरकार द्वारा बैन किये गए इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना है। जो इन्सेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड्स बैन कर दिए गए हैं उनके नाम हैं…
*एलाक्लोर
एलडीकार्ब
एल्ड्रीन
बेंजीन हेक्साक्लोराइड (बीएचसी)
कैल्शियम साइनाइड
कैप्टाफोल
कार्बारिल
कार्बोफ़्यूरान
क्लोर्डेन
क्लोरोबेंजाईलेट
साईब्रोमोक्लोरोप्रोपेन
कॉपर एसीटोआर्सेनाइट
डाईएल्ड्रिन
डाईक्लोरोवास
एंड्रिन
इथाइलीन डाई ब्रोमाइड (ईडीबी)
इथाइल मर्करी क्लोराइड (ईएमसी)
इथाइल पैराथियोन
फेनारिमोल
फेंथियोन
हेप्टाक्लोर
लाईन्यूरॉन
मिथोक्सिइथाइल मरकरी क्लोराइड (एमईएमसी)
मिथाइल पैराथियोन
मैलिक हैडराजाइड (एमएच)
मेनाज़ोन
मेथामोल
निकोटीन सल्फेट
नाइट्रोफेन
फोरेट
फॉस्फ़ामिडोन
सोडियम साइनाइड
टॉक्साफेन
ट्राईक्लोरो एसिटिक एसिड आदि*
संकलन-*डॉ संजीव कुमार वर्मा*
*प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)*
*केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान*
*मेरठ छावनी*
Edited by – डॉक्टर साबिन भोगरा, पशुधन विशेषज्ञ