भारत में डेयरी फार्मिंग की आवश्यकता एवं उसका भविष्य
डॉ. माधवी धैर्यकर, डॉ. राहुल सेहर
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)
भारत को दुनिया में सबसे बड़े दूध उत्पादक के रूप में जाना जाता है। भारतीय बाजारों में गाय और भेंस के दूध के अलावा बकरी और ऊँट का दूध भी उपलब्ध है। पिछले पाँच वर्षो के दौरान भारत में दूध का उत्पादन 6.4 फीसदी बढ़ा है। जुलाई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 188 मिलियन टन दूध उत्पादन किया जा रहा है और 2024 तक दूध उत्पादन बढ़कर 330 मिलियन टन तक होने की संभावना है। अभी केवल 20-25 फीसदी दूध प्रसंस्करण क्षेत्र के अंर्तगत आता है, और सरकार की कोशिश इसे 40 फीसदी तक ले जाने की है। देश में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए मत्स्यपालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की ओर कई योजनाएँ भी चलाई जा रही है। परंतु इन्ही सभी कार्यक्रमों के बीच कोविड-19 महामारी ने दुग्ध उत्पादको की स्थिति को बदतर कर दिया है। महामारी के दौरान शहरी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में परिवारों द्वारा दूध की घर-घर बिक्री स्वतः बंद हो गई थी जिससे किसानों को डेयरी उत्पादन नजदीक के डेयरी सहकारी समितियों को बहुत कम कीमत पर बेचने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है। इसके अलावा, दुकानों के बंद होने से दूध और दूध उत्पादों की मांग में कमी आई है, जबकि पशुओं के चारे की भारी कमी ने लागत को बढ़ा दिया है। साथ ही, कोविड-19 के कारण निजी पशु चिकित्सा सेवाएॅं लगभग बंद हो गई हैं, जिससे दुधारू पशुओं की मौत हो रही है। भारत में दूध के उत्पादन और बिक्री की प्रकृति को देखते हुए दुग्ध उत्पादकों को मामूली झटके भी लग सकते हैं क्योंकि दूध और दुग्ध उत्पादों की मांग उपभोक्ताओं के रोज़गार और आय में बदलाव के प्रति संवेदनशील है। इसलिये भारतीय अर्थव्यवस्था के इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को बचाने के लिये बहुत कुछ करने की जरूरत है।
पिछले 10 वर्षों में, भारत में पशुपालको का डेयरी फार्मिंग में अप्रत्याशित रुझान देखा गया है। अत्याधुनिक उपकरण और उन्नत पशुओं की नस्ल के हजारों नए डेयरी फार्म खोले गए हैं। हालांकि, लंबे समय से इनमें से आधे से भी कम डेयरी फार्म टिकाऊ साबित हुए हैं। इस लेख का उद्देश्य है कि इतनी संख्या में डेयरी फार्मा का विफल होना, विफलता के कारणों का विश्लेषण करना तथा भविष्य में एक आधुनिक डेयरी फार्म को कैसे ठीक किया जा सकता है, यही इस लेख का मुख्य उद्देश्य है।
डेयरी फार्मिंग की जानकारी
डेयरी फार्मिंग की वर्तमान प्रवृत्ति को अपनाने के लिए लोगों का चुनाव करने के लिये उन्हें मोटे तौर पर चार समूहों में विभाजित किया जा सकता है। सबसे पहले, कुछ स्थानीय लोग नए डेयरी फार्म शुरू करने के लिए वित्तीय साधनों का प्रबंधन करते हैं। दूसरे, ऐसे एनआरआई (छत्प्) हैं जो अपनी अधिशेष आय का चयन कृषि क्षेत्र में निवेश करने में करते हैं। तीसरे समूह में युवा शहरी पेशेवर शामिल हैं जो अपनी दैनिक नौकरी के साथ असंतोष बढ़ने के कारण डेयरी फार्मिंग की ओर वापस लौटना चाहते हैं। अंत में, चौथा समूह बेरोजगार, लेकिन उच्च-मध्यम वर्गीय परिवारों के शिक्षित युवाओं से बना है, जो एक वैकल्पिक पेशा चाहते हैं। इनमें से किसी भी समूह को पहले कभी भी डेयरी फार्मिंग का अनुभव नहीं था और आधुनिक तकनीक और उपकरणों का ज्ञान तब तक नहीं होता जब आपको मवेशियों की आवश्यक समझ नहीं होती।
डेयरी फार्मिंग की उन्नत कृषि में आवश्यकता
अधिकांश अन्य प्रकार की खेती की तरह डेयरी फार्मिंग एक व्यवसाय नहीं है बल्कि एक आजीविका है। डेयरी फार्मिंग के लिए ज्ञान, धैर्य और बहुत हद तक जुनून की आवश्यकता होती है। नए डेयरी किसान विशेष रूप से यह समझने में विफल रहते हैं कि वे मशीनों से नहीं बल्कि जीवित पशुओं के साथ काम कर रहे हैं। बड़े परिणाम के लिए छोटे पैमाने पर कई उच्च तकनीक व आधुनिक डेयरी फार्म वाले शुरुआत में विशाल पैमाने पर डेयरी फार्म शुरू करने की गलती करते हैं। वे बड़े पैमाने पर शेड का निर्माण करते हैं और शुरुआत में ही बड़ी संख्या में पशुओं को खरीदते हैं। जब आप डेयरी फार्मिंग के लिए नए हैं तो अधिक संख्या में पशओ का प्रबंधन करना बहुत मुश्किल है। एक बार में अधिक संख्या में पशुओ को खरीदने के बजाय, आपको नियमित मासिक दूध की उपलब्धतता बनाए रखने के लिए अपने मवेशियों की खरीद को कम करना चाहिए।
पशु की जैविक क्रियाओं का ज्ञान
कई नए किसान अपने मवेशियों के जीव विज्ञान को समझने के बजाय पूरी तरह से दूध देने और प्रसंस्करण की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उनमें से ज्यादातर को पशु के ताव में आने, या कि पशु को 4 या 5 वें महीने में गर्भधारण करना चाहिए, का पता ही नहीं लगता हैं। ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें बड़ी संख्या में दुधारू पशुओं के फार्म में एक भी बैल नहीं था और वे कृत्रिम गर्भाधान के लिए स्थानीय सरकारी पशु चिकित्सकों पर निर्भर थे परिणामस्वरूप लंबे समय तक पशु के ताव में आने का पता नहीं लगने के कारण कुछ ही पशु दूध देने लायक रहते हैं। बड़ी संख्या में गैर-दूध देने वाली गायों को खिलाने के लिए लंबी अवधि में भारी नुकसान हो सकता है।
पशु की देखभाल
कई आधुनिक डेयरी फार्म बछड़ों की उचित देखभाल के अभाव में विफल हो गए हैं। प्राय 100 से अधिक दुधारू पशुओं के फार्म में केवल 20-30 बछड़े ही वयस्कता तक जीवित रहने में कामयाब रहे हैं। बछड़ों की देखभाल करना डेयरी फार्म के दीर्घकालिक कल्याण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मादा बछड़े विशेष रूप से डेयरी फार्म के लिए मूल्यवान हैं, क्योंकि वे 3-4 साल के भीतर दूध देना शुरू कर देते हैं।
उचित चारे की व्यवस्था
कई किसानों ने दुग्ध उत्पादन के प्रारंभिक चरण के दौरान अच्छा चारा प्रदान किया। हालाँकि, जब 5 या 6 महीने के बाद दूध की पैदावार कम होने लगी, तो किसानों को जो चारा और चारा उपलब्ध कराया गया था, उसे कम करने की कोशिश की गई कभी-कभी तो इतनी भारी मात्रा में कि पशु का आकार भी आधा हो गया। जबकि आवश्यक फीड की मात्रा पशु के दूध की उपज के साथ- साथ शरीर के वजन पर भी निर्भर है और किसी भी कारण से इसमें कभी भी कटौती नहीं की जानी चाहिए। किसी भी पोषण संबंधी असंतुलन से दीर्घकालिक में गंभीर स्वास्थ्य और प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
संतुलन की आवश्यकता
अधिकांश नए फार्म मालिक अपने डेयरी फार्म को पूरी तरह से स्वचालित करना चाहते हैं। दूध देने वाली मशीनरी के लिए हाथ से दूध देने वाले मवेशियों को पालना एक परीक्षण-दर-त्रुटि प्रक्रिया है जिसमें समय और धैर्य की आवश्यकता होती है। जब यह तुरंत काम नहीं करता है, तो किसान अक्सर अपनी दूध देने वाली मशीनों को छोड़ देते हैं जो कि पैसे की भारी बर्बादी है। यह उन्हें पूरी तरह से श्रमिकों की दया पर रखता है जो बिना किसी सूचना के छोड़ सकते हैं। डेयरी फार्म की दीर्घकालिक सफलता के लिए स्वचालन और श्रम के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है।
प्रबंधन की उचित व्यवस्था
कई मालिक डेयरी फार्म की देखभाल करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं, जिन्हें स्वयं डेयरी फार्मिंग का अधिक ज्ञान नहीं होता है। डेयरी फार्मिंग के लिए मालिक का ध्यान 24 घंटे, सप्ताह में 7 दिन और वर्ष के 365 दिन मालिक के ध्यान की आवश्यकता होती है। दूसरे आपके लिए ऐसा नहीं कर पाएंगे। यदि आप अपने खेत पर समय नहीं बिता सकते हैं (कम से कम जब तक डेयरी फार्मिंग संचालन स्थिर नहीं हो जाता है), कृपया डेयरी फार्मिंग में न जाएं।
डेयरी फार्म की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता
कई नए आधुनिक डेयरी फार्म उन लोगों द्वारा शुरू किए गए हैं जिनके पास अधिशेष नकदी है जिसे वे खो सकते हैं, और पूर्णकालिक व्यवसायों के लिए वे अपनी मुख्य आय के लिए भरोसा कर सकते हैं। जब चीजें अच्छी तरह से नहीं चलती हैं जो कि अक्सर डेयरी फार्मिंग के शुरुआती चरणों के दौरान होती हैं तो वे फार्म को बंद कर देते हैं और पशुओं को वध के लिए भेज देते हैं। डेयरी फार्म के लिए दीर्घकालिक रूप से सफल होने के लिए, शुरुआती असफलताओं के माध्यम से धक्का देना और चीजों को काम करने के लिए प्रतिबद्ध करना महत्वपूर्ण है। एक आसान निकास, या एक पूर्णकालिक नौकरी, जो आपका सबसे अधिक ध्यान देने की मांग करती है, एक प्रोत्साहन है लेकिन फार्म को अपनी आजीविका या प्राथमिक जुनून के स्रोत के रूप में मानने से आपको इसे लंबे समय में काम करने के लिए प्रेरित करने में मदद मिल सकती है।
लाभ
साल 2015-16 के दौरान किए गए एक आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक दूध उत्पादन में भारत पहले स्थान पर है. भारत विश्व में होने वाले दूध उत्पादन का 18.5ः हिस्सा उत्पाद करता है. जिसका मतलब ये है कि इस व्यापार की मांग हमारे देश में काफी है. वहीं दूध एक ऐसा उत्पाद है जिसका निर्यात करके भी आप पैसे कमा सकते हैं. वहीं अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 से लेकर साल 2017 तक डेयरी किसानों की आय में 23.77ः की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. इतना ही नहीं साल 2013-14 की तुलना में साल 2016-17 में देश के दूध के उत्पादन में 20.12ः की बढ़त हुई है. इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि इस व्यापार से ना केवल दूध की बल्कि इससे जुड़े किसानों की भी आय में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। कच्चे दूध के अलावा भी एक बहुत बड़ा मार्केट है मिल्क प्रोडक्ट्स का जैसे की मिल्क पाउडर, घी, चीज़ इत्यादि। यहाँ तक की डेयरी फार्म का वेस्ट तक बहुत उपयोगी है और इसका मार्केट में डिमांड भी अच्छी है। गोबर या काऊ डंग आर्गेनिक कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट में उपयोग होने वाला पदार्थ है। अगर आप अपने गौशाला में देसी गाय या इंडियन ब्रीड है तो गाय का यूरिन (गौमूत्र) भी एक उपयोगी प्रोडक्ट है। इसका इस्तेमाल पंचगव्य बनाने के लिए होता है जो की आर्गेनिक फार्मिंग मे नेचुरल कीटनाशक के रूप में प्रयोग होता है। इस बिज़नेस में कम से कम 40ः का प्रॉफिट मार्जिन है जो की आपकी मेहनत के साथ बढ़ता रहता है।
आधुनिक तकनीक की आवश्यकता
करनाल में नई बछड़े की ब्रीड विकसित की गई है। जो अधिक दुग्ध उत्पादन में सहायक है। खेत पर निर्भर आबादी में वैसे किसान और खेतिहर मज़दूर भी शामिल हैं जो डेयरी और पशुधन पर निर्भर हैं। इनकी संख्या लगभग 70 मिलियन है। इसके अलावा मवेशी और भैंस पालन में कुल कार्यबल 7.7 मिलियन में 69 प्रतिशत महिला श्रमिक हैं। कृषि से सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में पशुधन क्षेत्र का योगदान 2019-20 में 28 प्रतिशत था। दुग्ध उत्पादन में प्रति वर्ष 6 प्रतिशत की वृद्धि दर से किसानों को सूखे और बाढ़ के दौरान एक बड़ा आर्थिक सहारा प्राप्त होता है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल खराब होने पर दूध का उत्पादन बढ़ जाता है क्योंकि किसान तब पशुपालन पर अधिक निर्भर होते हैं।
चुनौतियॉं
* किसान के लिये पॉंच में से दो दुधारू पशु आजीविका के लिये रखते हैं। ऐसे में परिवार के उपयोग हेतु दुग्ध उत्पादन के लिये आवश्यक श्रम परिवार की अवैतनिक या औपचारिक रूप से बेरोज़गार महिलाओं के हिस्से आता।
* उनमें से भूमिहीन और सीमांत किसानों के पास दूध के लिये खरीदारों की कमी होने पर आजीविका का कोई विकल्प नहीं है।
*डेयरी क्षेत्र की असंगठित प्राकृतिक गन्ना, गेहूं और चावल उत्पादक किसानों के विपरीत पशुपालक असंगठित हैं और उनके पास अपने अधिकारों की वकालत करने के लिये राजनीतिक ताकत नहीं है।
*हालॉंकि उत्पादित दूध का मूल्य भारत में गेहूं और चावल के उत्पादन के संयुक्त मूल्य से अधिक है लेकिन उत्पादन की लागत और दूध के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं है।
* भले ही डेयरी सहकारी समितियॉं देश में दूध के कुल विपणन योग्य अधिशेष में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान करती हैं, लेकिन वे भूमिहीन या छोटे किसानों का पसंदीदा विकल्प नहीं हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि डेयरी सहकारी समितियों द्वारा खरीदा गया 75 प्रतिशत से अधिक दूध अपने न्यूनतम मूल्य पर है।
* अगस्त 2020 में विभाग ने भारत में 2.02 लाख कृत्रिम गर्भाधान (।तजपपिबपंस पदेमउपदंजपवद – ।प्) तकनीशियनों की आवश्यकता की सूचना दी, जबकि उपलब्धता केवल 1.16 लाख है।
*किसान क्रेडिट कार्ड कार्यक्रम में डेयरी किसानों को शामिल किया गया है। भारत में 230 दुग्ध संघों के कुल 1.5 करोड़ किसानों में से अक्टूबर 2020 तक डेयरी किसानों के ऋण आवेदनों का एक-चौथाई भी बैंकों को नहीं भेजा गया था।
* किसानों को कोविड-19 के कारण आय के नुकसान की भरपाई के लिये डेयरी को मनरेगा के तहत लाया गया था। हालॉंकि 2021-22 के लिये बजटीय आवंटन में 34.5 प्रतिशत की कटौती की गई थी।
डेयरी फार्मिंग का भविष्य
* पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन सुविधाओं और डेयरी पशुओं के प्रबंधन की आवश्यकता है। इससे दूध उत्पादन की लागत कम हो सकती है।
* साथ ही पशु चिकित्सा सेवाओं, कृत्रिम गर्भाधान (।तजपपिबपंस पदेमउपदंजपवद – ।प्), चारा और किसान शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करके दूध उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। सरकार और डेयरी उद्योग इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
*यदि भारत को डेयरी निर्यातक देश के रूप में उभरना है, तो उचित उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढॉंचे को विकसित करना अनिवार्य है, जो अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।
* इस प्रकार गुणवत्ता और सुरक्षित डेयरी उत्पादों के उत्पादन के लिये एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। इसके लिये उपयुक्त कानूनी ढॉंचा भी बनाना चाहिये।
* इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढॉंचे की कमी को दूर करने और बिजली की कमी को दूर करने के लिये, सौर ऊर्जा संचालित डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश करने की आवश्यकता है।
* साथ ही डेयरी सहकारिता को मजबूत करने की जरूरत है। इस प्रयास में, सरकार को किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना चाहिये।
निष्कर्ष
पिछले कुछ दशकों में डेयरी क्षेत्र भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा के रूप में उभरा है। हालॉंकि दूध और दुग्ध उत्पादों की उच्च कीमत में अस्थिरता को देखते हुए डेयरी क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सबसे कमजोर क्षेत्रों में से एक बन गया है। इसलिये किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये डेयरी क्षेत्रों के महत्त्व को देखते हुए इस संकट को दूर करने और क्षेत्र के समग्र विकास हेतु एक समग्र ढॉंचा स्थापित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर कार्य करने की आवश्यकता है।
https://www.indianfarmer.org/p/dairy-industry-milk-production.html