वन हेल्थ’ की अवधारणा है समय की आवश्यकता
डॉ. विवेक जोशी
वैज्ञानिक (वेटनरी मेडिसिन), रिसर्च यूनिट, शूकर उत्पादन प्रक्षेत्र
भा.कृ.अनु.प.-भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली, उत्तर प्रदेश 243 122
विश्व के किसी देश, महाद्वीप अथवा क्षेत्र में कोई भी एक ऐसा विभाग नहीं है जोकि अकेले ही जनस्वास्थ्य की चुनौतियों का पर्याप्त प्रबंधन कर सके I विगत कुछ वर्षों में जनस्वास्थ्य के वैश्विक खतरों के खिलाफ लड़ाई के अनुभव से बहु-क्षेत्रीय एवं बहु-विषयक योजनाओं की प्रभावशीलता प्रमाणित होती है I मनुष्यों का स्वास्थ्य पशुओं के स्वास्थ्य और हमारे साझा पर्यावरण से जुड़ा हुआ है । कोविड-19 महामारी ने मनुष्य, पशु और पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्संबंध को चित्रित किया है I कोविड-19 महामारी जोकि पशु मूल के वायरस से उत्पन्न एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट था, वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों को समझने और उनका सामना करने में वन हेल्थ की वैधता को रेखांकित करता है I इसी प्रकार आज के समय में अप्रत्याशित मौसम की घटनाएं तथा प्राकृतिक आपदाएं इस बात का स्पष्ट और जोरदार संकेत हैं I संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.) के विश्व मौसम-विज्ञान संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5 दशकों में प्राकृतिक आपदाओं में पांच गुना की वृद्धि हुई है I मनुष्यों को संक्रमित करने वाले आधे से ज्यादा रोग पशुओं द्वारा ही फैलाए जाते हैं I हाल ही में उभरने वाले मनुष्यों के लगभग 75 % संक्रामक रोग पशु मूल के रोग हैं I इसी प्रकार 60 % मानव रोग पशुजन्य रोग (मनुष्यों और पशुओं के बीच साझा रोग) हैं तथा जैव आतंकवाद से संबंधित 80 % रोगजनक जानवरों से उत्पन्न होते हैं I यह अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल पशुजन्य रोगों के कारण करीब 2.5 अरब लोग बीमार पड़ते हैं जबकि 2.7 लाख लोगों की मौत हो जाती है I इसलिए मनुष्य, पशु और पर्यावरण के लिए इष्टतम स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु स्थानीय, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर किया जाने वाला बहु-विषयक सहयोगात्मक प्रयास को ‘वन हेल्थ’ या ‘एक स्वास्थ्य’ योजना कहते हैं I
‘वन हेल्थ’ शब्द का पहली बार 2003-04 में प्रयोग किया गया था I इसका उद्भव वर्ष 2003 के प्रारंभ में तीव्र श्वसन रोग (सार्स) तथा बाद में एवियन इन्फ्लूएंजा एच5एन1 के तेजी से फैलने से जोड़कर देखा जाता है I इसमें पशु चिकित्सक, वन्यजीव विशेषज्ञ, मानवविज्ञानी, अर्थशास्त्री, पर्यावरणविद, व्यवहार वैज्ञानिक और समाजशास्त्री शामिल होते हैं I हालांकि वन हेल्थ कोई नई अवधारणा नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रणनीति बन के उभरी है I यह एक विश्वव्यापी रणनीति है जिसकी उत्पत्ति इस मान्यता से हुई है कि मनुष्यों व पशुओं का कल्याण और पारिस्थितिकी तंत्र परस्पर जुड़े हुए तथा परस्पर निर्भर होते हैं I एक स्वास्थ्य अवधारणा स्पष्ट रूप से पशु-मानव-पारिस्थितिकी तंत्र के अंतरापृष्ठ पर ध्यान केंद्रित करती है I
बहु-क्षेत्रीय सहयोग एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की कुंजी है I विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों के पेशेवरों जैसे मानव स्वास्थ्य (डॉक्टर, नर्स, सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक, महामारी विज्ञानी), पशु स्वास्थ्य (पशु चिकित्सक, पशु चिकित्सा तकनीशियन, पैराप्रोफेशनल, किसान और अन्य कृषि श्रमिक), पर्यावरण विज्ञान (पारिस्थितिकी विज्ञानी, वन्यजीव विशेषज्ञ), नीति निर्माताओं, पालतू जानवरों के मालिक, इत्यादि को संवाद, सहयोग और समन्वय करने की आवश्यकता होती है I इस योजना का उद्देश्य कार्यबल क्षमता में सुधार करना है जोकि संक्रामक और पशुजन्य रोगों से उत्पन्न खतरों का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए कारगर साबित हो सके I यह भिन्न-भिन्न विषयों में काम करने में सक्षम बनाता है जिससे जनस्वास्थ्य का क्षेत्र कहीं अधिक प्रभावी और मजबूत बन सकता है I यदि ठीक से लागू किया जाए तो वन हेल्थ रणनीति वर्तमान और भविष्य में लाखों मनुष्यों और पशुओं की जान बचाने में मदद करेगी I जिन मुद्दों को एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण से लाभ हो सकता है उनमें जूनोटिक रोग, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, सुरक्षित और टिकाऊ खाद्य आपूर्ति, रोगवाहक जनित रोग, स्वास्थ्य सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, इत्यादि शामिल हैं I हाल ही में 3 नवंबर को ‘वन हेल्थ दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा है और माना जा रहा है कि यह कदम वन हेल्थ के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकता है I वन हेल्थ योजना लोगों को मानसिकता में बदलाव लाने और समस्या-समाधान के लिए सिस्टम-आधारित दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है I
वन हेल्थ का इतिहास
एक स्वास्थ्य की अवधारणा लगभग दो सौ साल पुरानी है, पहले ‘एक चिकित्सा’ के रूप में, फिर ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य’ और अंत में ‘एक स्वास्थ्य’ के रूप में इसका वर्णन किया गया है I 1800 के दशक में जर्मन विद्वान रुडोल्फ विरचो वन हेल्थ के शुरुआती प्रस्तावक थे और उन्होंने ही ‘जूनोसिस’ शब्द गढ़ा था I उन्होंने कहा था कि मानव और पशु चिकित्सा के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं है और न ही होनी चाहिए I दोनों का उद्देश्य अलग है लेकिन इनसे प्राप्त अनुभव सभी चिकित्सा पद्धतियों का आधार होता है I 1980 के दशक में, जानपदिक रोग विज्ञानी केल्विन श्वाबे ने पशुजन्य रोगों से निपटने के लिए एकीकृत मानव और पशु चिकित्सा प्रलाणी का सुझाव दिया था जिसने एक स्वास्थ्य की आधुनिक नींव रखने का काम किया I इस अवधारणा को और आगे बढ़ाया गया, जब 2004 में, वन्यजीव संरक्षण संस्था द्वारा एक संगोष्ठी की मेजबानी की गई जिसमें मनुष्य, जंगली और घरेलू पशुओं के बीच साझा बीमारियों पर चर्चा करने के लिए मानव और पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एक साथ एक मंच पर लाया गया I इस संगोष्ठी के दौरान वन हेल्थ के 12 सिद्धांतों पर सहमती बनी थी जिन्हें पहले ‘मैनहट्टन के सिद्धांत’ और वर्ष 2019 में अद्यतन कर ‘बर्लिन के सिद्धांत’ बना दिया गया I
2007 में अमेरिकन वेटरनरी मेडिकल एसोसिएशन और अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने एक स्वास्थ्य की अवधारणा का समर्थन करते हुए इसे अपनाया और एक स्वास्थ्य के लिए टास्क फोर्स का गठन किया गया I अमेरिका की स्वास्थ्य एजेंसी सी.डी.सी. (सेन्टर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एंड प्रिवेन्शन) ने वर्ष 2009 में अपना वन हेल्थ कार्यालय स्थापित किया I 2010 में संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक ने वन हेल्थ को अपनाने की सिफारिश की थी I फरवरी 2011 में पहली अंतर्राष्ट्रीय वन हेल्थ कांग्रेस ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में आयोजित की गई थी I
वन हेल्थ की भारत में शुरुआत
‘एक स्वास्थ्य’ की तत्काल आवश्यकता को महसूस करते हुए वर्ष 2021 में भारत सरकार के जैवप्रौद्योगिकी विभाग (डी.बी.टी.) ने ‘वन हेल्थ’ पर एक मेगा कंसोर्टियम शुरू किया है I यह कंसोर्टियम भारत सरकार द्वारा कोविड के बाद के समय में शुरू किए गए सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है जिसमें डीबीटी-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बायोटेक्नोलॉजी, हैदराबाद के नेतृत्व में 27 संगठन शामिल हैं। वन हेल्थ कंसोर्टियम में मुख्य रूप से एम्स, दिल्ली, एम्स जोधपुर, आई.वी.आर.आई., बरेली, गडवासु, लुधियाना, तनुवास, चेन्नई, माफसु, नागपुर, असम कृषि और पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय, वन्यजीव एजेंसियां, इत्यादि शामिल हैं I इस कार्यक्रम के तहत देश के उत्तर-पूर्वी हिस्सों सहित संपूर्ण भारत में जूनोटिक तथा ट्रांसबाउंड्री रोगजनकों के महत्वपूर्ण जीवाणु, विषाणु और परजीवी संक्रमणों की निगरानी करने की परिकल्पना की गई है I मौजूदा नैदानिक परीक्षणों का उपयोग और नई पद्धतियों का विकास उभरती बीमारियों की निगरानी और उनके प्रसार को समझने के लिए अनिवार्य है।
वन हेल्थ से लाभ
एक स्वास्थ्य के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:
- पशुओं और मनुष्यों के बीच फैलने वाली बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस पर संभावित खतरों को कम करने में सक्षम है I
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस) से निपटने में लाभकारी हो सकता है I
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक है I
- मनुष्यों और पशुओं के लिए पर्यावरण संबंधी स्वास्थ्य खतरों को रोकने में सक्षम है I
- जैव विविधता की रक्षा कर सकता है I
वन हेल्थ के समक्ष चुनौतियाँ
- बहु-क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण आसान नहीं है I
- वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाने से होने वाले लाभ को मापने के लिए लंबी समय सीमा की आवश्यकता हो सकती है I
- अनुसंधान के लिए वित्तीय व्यवस्था की कमी के कारण वन हेल्थ का उपयोग बाधित होता रहा है I
- वन हेल्थ एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए उपकरणों, कार्यप्रणाली और कुशल नेतृत्व का अभाव I
- वन हेल्थ परियोजनाओं को लागू करना जटिल बना हुआ है क्योंकि इसमें हमेशा कई दलों के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है और सहयोग के लिए प्रोत्साहन की सदैव कमी देखी गई है I
वन हेल्थ में पशु चिकित्सा की भूमिका
मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पशु चिकित्सा सेवाओं के माध्यम से समय-समय पर पशु जनस्वास्थ्य के सिद्धांतों को लागू किया जाता रहा है I वर्षों से पशु चिकित्सा ने दुधारू पशुओं और कुक्कुट में कई गंभीर पशुजन्य रोगों को नियंत्रित कर मनुष्यों में इन घातक रोगों के संचरण को कम किया है I वर्ष 1900 के आरंभ से मध्य तक दो प्रमुख रोगों (गोजातीय टी.बी., ब्रुसेलोसिस) की रोकथाम के लिए प्रयास शुरू किये गए थे I जीवित पशुओं और पशु शवों के संपर्क में आने से फैलने योग्य होने के अलावा, यह दोनों रोग दूध के माध्यम से भी फैल सकते हैं I आज बहु-क्षेत्रीय प्रयासों के कारण मनुष्यों और मवेशियों दोनों में टी.बी. के मामलों में बहुत तीव्र गति से कमी आई है I आज के समय में दिन-प्रतिदिन उभरते गंभीर पशुजन्य रोगों (बर्ड फ्लू, मंकी पॉक्स, स्वाइन फ्लू, कोविड-19, रेबीज, इत्यादि) की रोकथाम के लिए बहु-विषयक सहयोग अति आवश्यक है I आजकल की स्वास्थ्य समस्याएं अक्सर जटिल, सीमापारिक, बहुक्रियात्मक और विभिन्न प्रजातियों की होती हैं और यदि विशुद्ध रूप से मानव चिकित्सा, पशु चिकित्सा या पारिस्थितिक दृष्टिकोण से इनका हल खोजने का प्रयत्न किया जाए, तो इसकी संभावना बहुत ही कम है कि इन स्वास्थ्य समस्याओं का कोई स्थायी हल मिल सके I
वन हेल्थ अवधारणा सबसे स्पष्ट तरीकों में से एक है जोकि वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिए भविष्य में उपयोगी साबित हो सकती है क्योंकि वन्यजीवों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव कई मार्गों के माध्यम से मानव शरीर में पहुंचकर मानव स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं I वन हेल्थ का संबंध पशु मूल के रोगों से है जो न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं बल्कि पशुओं के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल सकते हैं I एक स्वास्थ्य प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा, पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न गंभीर खतरे, मानव स्वास्थ्य और खाद्य आपूर्ति की रक्षा के लिए की जाने वाली कार्रवाइयाँ पर्यावरण को कैसे प्रभावित कर सकती हैं, इन सभी से संबंधित है I
जनसंख्या वृद्धि और बढ़ती भोजन की मांग तथा जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव (चिलचिलाती गर्मी, सूखा, जंगल की आग, बाढ़, तापमान में बदलाव) के परिणामस्वरूप प्राकृतिक आवासों का तेजी से कृषि भूमि में रूपांतरण हुआ है I फलस्वरूप पालतू जानवर, मनुष्य, वन्यजीव और उनके आवास लगातार करीब आते जा रहे हैं जिससे अधिक बार संपर्क और संघर्ष के कारण वन्यजीवों से मनुष्यों और पालतू जानवरों में संक्रामक रोगजनकों के संचरण का जोखिम कई गुणा बढ़ गया है I वन हेल्थ इन अंतर्संबंधों को पहचानता है जिससे संबंधित जोखिमों को बेहतर ढंग से समझकर, समय पर उचित प्रबंधन किया जा सकता है I
अत्यधिक रोगजनक बर्ड फ्लू के खिलाफ लड़ाई वन हेल्थ के सफल कार्यान्वयन का एक उदाहरण है I बर्ड फ्लू के खिलाफ लड़ाई ओ.आई.ई. और एफ.ए.ओ. के माध्यम से समन्वित है जिसमें पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मानव स्वास्थ्य क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, बर्ड फ्लू वायरस के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए काम किया जाता रहा है I पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञ उभरते हुए बर्ड फ्लू विषाणु के स्ट्रेन और रोग के लक्षणों की प्रारंभिक पहचान करते हैं जिससे कुक्कट आबादी में फ्लू संक्रमण का प्रभावी प्रबंधन संभव हो पता है और इसी कारण से मानव स्वास्थ्य के लिए बर्ड फ्लू का जोखिम बहुत कम हो जाता है I
हाल के वर्षों में, पालतू पशुओं और मनुष्यों को प्रभावित करने वाले किलनी-जनित रोगों का तेजी से विस्तार हुआ है I कई महत्वपूर्ण जूनोटिक किलनी-जनित रोग जैसे एनाप्लास्मोसिस, बबेसिओसिस, एर्लिचियोसिस और लाइम बोरेलिओसिस तेजी से बढ़ रहे हैं जिन्होंने मानव और पशु चिकित्सकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है I किलनियाँ और वन्यजीव किलनी-जनित रोगों के मुख्य स्रोत हैं I वन्यजीव कई मानव रोगजनकों के लिए स्रोत या प्रवर्धक मेजबान का काम कर सकते हैं I बबेसिया डाइवर्जेंस के कारण होने वाला मानव बबेसिओसिस रोग, मवेशियों से फैलने वाला एक पशुजन्य रोग है I अभी हाल ही में, वेनेजुएला में एर्लिचिया कैनिस के कुछ मानवीय मामले देखे गए थे और पेरू में, कुत्तों में एर्लिचिया कैनिस का एक नया स्ट्रेन भी पाया गया है I रिकेट्सिया स्लोवाका, रिकेट्सिया पार्केरी और रिकेट्सिया मासिलिया की मानव रोगों से संबंध होने की पुष्टि होने से दशकों पहले पशु किलनियों में इनकी पहचान की गई थी I रिकेट्सिया मासिलिया एक जीवाणु है जो सर्वप्रथम फ्रांस में रीफीसीफैलस सेंगुइनियस (कुत्ते की किलनी) से पृथक किया गया था I बाद में यूरोप और दक्षिण अमेरिका के लोगों में होने वाले चित्तीदार बुखार से इसका संबंध पाया गया I पालतू जानवर (गाय, भैंस, कुत्ता) संक्रमित किलनियों के स्रोत होते हैं जोकि मनुष्यों के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं I किलनी-जनित रोगों के लिए कोई भी नियंत्रण रणनीति बनाने से पहले किलनी पारिस्थितिकी के सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए I
उभरते हुए जूनोटिक रोगों जैसे कोविड-19, इबोला और जीका के खतरों से लड़ने के लिए मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य संगठनों को एक स्वास्थ्य अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता है I
वन हेल्थ का रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने में महत्व
रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक जटिल, बहुआयामी समस्या है जो मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है I वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध को वैश्विक स्तर पर शीर्ष दस खतरों में शामिल किया था I दो हालिया उदाहरण एंटीबायोटिक प्रतिरोध के उभरने और तेजी से भौगोलिक प्रसार के खतरे को उजागर करते हैं I नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज 1 (एन.डी.एम.-1) एक एंजाइम है जोकि कई एंटीबायोटिक्स को प्रतिरोध प्रदान करता है I यह भारतीय उपमहाद्वीप में उभरा और चिकित्सा पर्यटन के परिणामस्वरूप ब्रिटेन तक फैल गया है I इसी प्रकार, मोबिलाइज्ड कॉलिस्टिन रेजिस्टेंस -1 जीन की पहचान 2014 में चीन में सूअर में की गई थी और बाद में दर्जनों अन्य देशों में फैल गई I वर्तमान वन हेल्थ दृष्टिकोण ए.एम.आर. के लिए मुख्य रूप से खाद्य पशुओं में एंटीबायोटिक उपयोग को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है I वर्ष 2017 में डब्ल्यूएचओ ने स्वस्थ खाद्य पशुओं में एंटीबायोटिक का उपयोग सीमित करने के लिए नए दिशानिर्देश प्रकाशित किए थे I जबकि मनुष्य और खाद्य पशुओं में एंटीबायोटिक उपयोग पर दिशा-निर्देश महत्वपूर्ण हैं, ए.एम.आर. के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की विशेष रूप से जरूरत है जो वन्य जीवन, जलीय कृषि और पर्यावरण को संबोधित करता हो I वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र प्रतिरोधी जीवों और प्रतिरोध जीन का भंडार माना जाता है I एंटीबायोटिक प्रतिरोधी ई. कोलाई कई वन्यजीव प्रजातियों में पाया गया है जोकि पर्यावरण में मानव और पशुधन एंटीबायोटिक दवाओं के प्रसार का परिणाम हो सकता है I अभयारण्यों में चिंपैंजी में दवा प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस के मानव उपभेद मिलना यह दर्शाता है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध मनुष्यों से पशुओं में भी फैल सकता है I इसलिए वन्यजीव और संरक्षण सहयोगियों को ए.एम.आर. की निगरानी करने और रोकथाम की रणनीति बनाने के लिए एक स्वास्थ्य में शामिल करना प्राथमिकता होनी चाहिए I डब्ल्यूएचओ ने खाद्य-उत्पादक पशुओं में मानव-चिकित्सा में महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक के उपयोग पर नए दिशा-निर्देश दिए हैं जिसमें सिफारिश की गई है कि किसान और खाद्य उद्योग स्वस्थ पशुओं में विकास को बढ़ावा देने और बीमारी को रोकने के लिए एंटीबायोटिक का उपयोग बंद कर दें। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य एंटीबायोटिक्स की प्रभावशीलता को बनाए रखने में मदद करना है I
‘एक स्वास्थ्य’ के माध्यम से ए.एम.आर. की समस्या को कम करने के लिए प्रमुख रणनीतियाँ हैं:
- जन जागरूकता अभियानों के संचालन से एंटीबायोटिक्स के अति प्रयोग और दुरुपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में समाज को शिक्षित करना I
- मानव संसाधन (सूक्ष्म जीवविज्ञानी, संक्रामक रोग विशेषज्ञ, संक्रमण नियंत्रण विशेषज्ञ, फार्मासिस्ट, नर्स, पशु चिकित्सक) के प्रशिक्षण में निवेश करना चाहिए I
- नए उपचार पर प्रारंभिक चरण के अनुसंधान के लिए एक वैश्विक नवाचार कोष की स्थापना करने की जरुरत I
- स्वास्थ्य प्रणाली और जीवन स्तर में सुधार करके एंटीबायोटिक्स की मांग को काफी कम कर सकते हैं और इस प्रकार नए प्रतिरोधी रोगजनकों के उद्भव के जोखिम को भी कम कर सकते हैं I
- दवा प्रतिरोध की वैश्विक निगरानी में सुधार करने की जरुरत है I
- तेजी से और सटीक निदान के लिए परीक्षणों के विकास द्वारा चिकित्सकों को उन रोगियों को रोगाणुरोधी दवा देने में सहायता मिलेगी जिन्हें वास्तव में उनकी आवश्यकता है I
- एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणु के खिलाफ वैक्सीन का विकास संक्रमित रोगियों की संख्या को कम करेगा जिन्हें रोगाणुरोधी उपचार की आवश्यकता होती है I
वन हेल्थ वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाने के लिए साझा हितों को पहचानने, सामान्य लक्ष्य निर्धारित करने और टीम वर्क करने का अवसर प्रदान करता है I एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण वर्तमान समय की आवश्यकता है क्योंकि यह तीव्र और दीर्घकालिक रोगों को पहचानने और उनकी रोकथाम के लिए नवाचार प्रदान करता है I यह दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के बीच में बेहतर तालमेल प्रदान करता है जिसके परिणामस्वरूप बेहतर संचार, सिस्टम-विचारकों की एक नई पीढ़ी का विकास, रोगों की बेहतर निगरानी, प्रतिक्रिया के अंतराल में कमी, बेहतर स्वास्थ्य और आर्थिक बचत संभव है I यह शायद विश्व के सभी देशों के लिए उपयुक्त समय है जब उनको अपनी राष्ट्रीय रणनीतिक स्वास्थ्य योजनाओं में वन हेल्थ के सिद्धांत को शामिल करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए I