वन हेल्थ नो रेबीज
डॉ. नितिन वैष्णव, डॉ. रणवीर सिंह जाटव
पशु औषधि विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय,
नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)
रेबीज, विषाणु जनित खतरनाक एवं जानलेवा बीमारी है जो कि लिसा विषाणु (बुलिट आकार का) से फैलती है। लक्षण दिखने के पश्चात् रेबीज 100% जानलेवा है परंतु उचित समय पर टीकाकरण होने के बाद इस रोग से शत प्रतिशत बचाव भी संभत है। रेबीज मनुष्यों एवं अन्य पशुओ में कुत्ते तथा स्तनपायी जानवरों के काटने से फैलती है एवं दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक आतंक/खतरे का विषय है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्वभर में 59,000 लोग प्रतिवर्ष रेबीज संक्रमण की वजह से अपनी जान गवाते है इसमें 95% मौते सिर्फ एशिया एवं अफ्रीका में आकी गई है तथा रेबीज से होने वाली मौतों मे संपूर्ण विश्व की 36% मौते अकेले भारत में होती है। जिसका उन्मूलन एक स्वास्थ्य के माध्यम से संभव है। भारत में होने वाली मौतों में अधिकांश मौते सिर्फ अशिक्षा, झाडफूक एवं सही समय पर टीकाकरण ना मिलने से होती है। रेबीज से होने वाली मौतों में बड़ी संख्या बच्चों की है क्योंकि भारत में 99% रेबीज संक्रमण के मामले कुत्ते के काटने से है एवं बच्चे आसानी से हमले का शिकार बनते है।
एक स्वास्थ्य मनुष्य, पशुओं एवं पर्यावरण के स्वास्थ्य में संतुलन स्थापित करना है एवं इस विषय पर अग्रसर होते हुए 2030 तक रेबीज का खात्मा ही विश्व स्तर पर लक्ष्य है।
रेबीज का संक्रमण- रेबीज प्रमुख रूप से संक्रमित कुत्तों के काटने से फैलता परंतु यह सवंमित बिल्ली, बंदर, गीदड़, लोमड़ी, नेवले एवं चमगादड़ के काटने अथवा संक्रमित पशु की लार घाव पर लगने से फैलती है। यह प्रमुख रूप से तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है एवं लक्षण प्रकट होने की समयावधि काटे गये स्थान से मस्तिष्क की दूरी द्वारा तय होती है। अतः लक्षणों के प्रकट होने में सप्ताह से लेकर कई वर्षो का समय लग सकता है।
रेबीज संक्रमित पशु में लक्षण–
- अजीब व्यवहार करना एवं अंधेरे में बैठना।
- अत्याधिक शांत पड़ जाना या अत्याधिक आक्रामक व्यवहार करना।
- मुँह से लार आना एवं ज्वर का बना होना।
- आवाज का बदल जाना एवं कभी-कभी लकवा ग्रसित हो जाना।
- पशु का पागल हो जाना एवं मनुष्य या हिलती हुई वस्तु पर आक्रमण कर देना।
मनुष्यों में लक्षण–
- मुँह से लार आना एवं दौरे पड़ना।
- व्यक्तियों को ना पहचान पाना।
- पानी से डरना।
- श्वान जैसी आवाज निकालना।
- काटी हुई जगह पर पीड़ा एवं झंनझनाहट होना।
- अत्याधिक आवेशित रहना।
जाँच –
- रेबीज के लक्षणों से बीमारी का काफी हद तक पता लगाया जा सकता है।
- प्रयोगशाला में रेबीज का पता संक्रमित मरीज के मस्तिष्क में नेग्री बॉडी का पता लगाकर एवं इम्यूनोफ्लोरेसेंस टेस्ट किया जाता है।
उपचार एवं बचाव–
- लक्षणों के प्रकट होने के पश्चात् रेबीज से बचाव असंभव है अतः रेबीज से एकमात्र बचाव प्रभारी टीकाकरण ही है।
- काटे गये घाव को 15 मिनट तक नल के बहते हुए पानी से कास्टिक सोडा युक्त साबुन से या हाइपो से लगातार धोये एवं चिकित्सक से संपर्क कर एंटीसेप्टिक दवा घाव पर लगाये एवं पहला टीकाकरण 0 दिन पर, दूसरा टीका 3वें दिन पर, तीसरा टीका 7वें दिन पर, चौथा टीका 14वें दिन पर एवं पाँचवा टीका 28वें दिन पर करवाये।
- अपने पालतू श्वान का प्रतिवर्ष रेबीज के प्रति टीकाकरण अवश्य करवाये।
रेबीज के खात्मे में वैश्विक प्रयास–
विश्व के कुछ देशों ने प्रभावित टीकाकरण पद्धति एवं व्यापक रोकथाम के उपायों द्वारा स्वयं को श्वानजनित रेबीज से मुक्त कर लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन तथा ग्लोबल एलायंश फॉर रेबीज कंट्रोल का कार्य एक स्वास्थ्य पर केन्द्रित है एवं इनका लक्ष्य 2030 तक श्वान जनित रेबीज को खत्म करना है। इन संस्थाओं के साथ भारत सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देशित कर जिला प्रशासन के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग, वन विभाग, पशु पालन विभाग एवं नगर निगम/नगर पालिका/नगर पंचायत के सामूहिक सहयोग द्वारा भारत को 2030 तक रेबीज से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके अंतर्गत जन जागरूकता अभियान, आवारा श्वान की संख्या में नियंत्रण, श्वान के काटे जाने के पश्चात् प्रभावी टीकाकरण के बारे में अवगत कराकर रेबीज उन्मूलन है।
मानव, पशु एवं पर्यावरण स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े हुये है अतः वर्तमान समय में एक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की नितांत आवश्यकता है एवं एक स्वास्थ्य को पाकर ही रेबीज जैसी घातक बीमारी का उन्मूलन संभव है।