एक विश्व -एक स्वास्थ्य : जूनोसिस से बचाव

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One world, one health
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  एक विश्व -एक स्वास्थ्य : जूनोसिस से बचाव

डॉ संजय  कुमार मिश्र 1 डॉ राकेश कुमार 2

1.पशु चिकित्साअधिकारी पशुपालन विभाग मथुरा उत्तर प्रदेश

2 पशु चिकित्सा अधिकारी पशुपालन विभाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश

एक विश्व -एक स्वास्थ्य एक ऐसा दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य  और हमारे चारों ओर के पर्यावरण के साथ घनिष्ठ  रुप से जुड़ा हुआ है।

वन हेल्थ का सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन(FAO) एवं विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE/WAHO) के , संयुक्त गठबंधन के बीच हुए समझौते के “एक पहल” अथवा ब्लूप्रिंट है।

इसका उद्देश्य मानव  स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, पौधों, मिट्टी, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र जैसे विविध विषयों के अनुसंधान और ज्ञान को विभिन्न स्तरों पर साझा करने के लिए प्रेरित करना है, जो सभी प्रजातियों के स्वास्थ्य में सुधार, उनकी रक्षा,व बचाव के लिए आवश्यक है ।

वन हेल्थ का महत्त्व:

वर्तमान समय में यह और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि कई कारको ने मनुष्य, पशुओं, पौधों और हमारे पर्यावरण के बीच पारस्परिक प्रभाव को बदल दिया है।

मानव विस्तार:

मानव आबादी लगातार बढ़ रही है और नए भौगोलिक क्षेत्र का विस्तार कर रही है जिसके कारण पशुओं तथा उनके वातावरण के साथ निकट के संपर्क के कारण पशु द्वारा मनुष्यों में दीवारों के फैलने का खतरा बढ़ रहा है।

मनुष्यों  को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों में से 65%  से अधिक जुनोटिक रोगों की उत्पत्ति के मुख्य स्रोत पशु है।

पर्यावरण संबंधी व्यवधान:

पर्यावरणीय परिस्थितियों और आवास में व्यवधान पशुओं में रोगों का संचार करने के नये  अवसर प्रदान कर सकता है।

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अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार:

अंतरराष्ट्रीय यात्रा व व्यापार के कारण मनुष्य, पशुओं तथा पशु उत्पादों की आवाजाही बढ़ गई है, जिसके कारण बीमारियां तेजी से सीमाओं एवं विश्व भर में फैल सकती है।

वन्यजीवो में विषाणु:

वैज्ञानिकों के अनुसार  वन्यजीवों में लगभग 1.7 मिलियन से अधिक विषाणु पाए जाते हैं जिसमें से अधिकतर के जूनोटिक होने की संभावना है।

इसका अर्थ यह है कि समय रहते अगर इन विषाणु का पता नहीं चलता है तो भारत को आने वाले समय में कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।

कोविड-19 महामारी ने संक्रामक रोगों के दौरान वन हेल्थ सिद्धांत की प्रासंगिकता को विशेष रुप से पूरे विश्व में जूनोटिक  रोगों को रोकने और नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में प्रदर्शित किया है।

भारत को पूरे देश में इस तरह के एक मॉडल को विकसित करने और दुनिया भर में सार्थक अनुसंधान सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता है।

अनोपचारिक बाजार और बूचडखानो के संचालन (जैसे निरीक्षण, रोग प्रसार आकलन हेतु) सर्वोत्तम अभ्यास, दिशा निर्देश विकसित करने तथा ग्राम स्तर तक प्रत्येक स्तर पर “वन हेल्थ”अवधारणा के संचालन के लिए तन्त्र बनाने की नितांत आवशकता है।

जागरुकता फैलाना और “वन हेल्थ” लक्ष्यो  को पूरा करने के लिए निवेश बढाना समय की मांग है।

इसी क्रम में बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने देश का पहला “वन हेल्थ कंसोर्टियम” लांच किया है।

भारत का वन हेल्थ फ्रेमवर्क:

दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारत ने 1980 के दशक में जूनोसिस पर एक राष्ट्रीय स्थाई समिति की स्थापना की।पशुपालन एवं डेयरी विभाग (डी ए एच डी) ने पशु रोगों के प्रसार को कम करने के लिए कई योजनाएं प्रारंभ की है। इसके अतिरिक्त डी ए एच डी शीघ्र ही अपने मंत्रालय के भीतर एक एक स्वास्थ्य इकाई स्थापित करेगा। सरकार ऐसे कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रही है जो पशु चिकित्सकों के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं एवं पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली जैसे कि राज्यों को पशु रोग नियंत्रण हेतु सहायता प्रदान करना (ASCAD)हेतु उपयोगी है। हाल ही में नागपुर में “वन हेल्थ केंद्र” स्थापित करने के लिए धनराशि स्वीकृत की गई थी।

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रोगों की निगरानी को समेकित करना:

वर्तमान में पशु स्वास्थ्य और रोग निगरानी प्रणाली जैसे , पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिए सूचना नेटवर्क एवं राष्ट्रीय पशु रोग रिपोर्टिंग प्रणाली को समेकित करने की आवश्यकता है।

विकासशील दिशा निर्देश:

अनौपचारिक बाजार और स्लॉटर हाउस ऑपरेशन (जैसे निरीक्षण प्रो प्रसार आकलन) के लिए सर्वोत्तम दिशानिर्देशों का विकास करना और ग्रामीण स्तर पर प्रत्येक चरण में वन हेल्थ के संचालन के लिए तंत्र बनाना।

समग्र सहयोग:

वन हेल्थ के अलग-अलग आयामों को संबोधित करना इसे मंत्रालयों से लेकर स्थानीय स्तर पर भूमिका को रेखांकित कर आपस में सहयोग करना इससे जुड़ी सूचनाओं को प्रत्येक स्तर पर साझा करना इत्यादि पहल की आवश्यकता है। वन हेल्थ के लिए राजनीतिक वित्तीय और प्रशासनिक जवाबदेही के संदर्भ में नवाचार अनुकूलन और लचीलापन को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

संस्थागत तंत्र की स्थापना

भारत में पहले से ही कई प्रयास चल रहे हैं जोकि जूनोटिक रोगों में अनुसंधान के डेटाबेस के लिए प्रोटोकॉल विकसित करने से जुड़े हैं। हालांकि कोई एकल एजेंसी या ढांचा नहीं है जो वन हेल्थ एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए अंब्रेला कार्यक्रम  की तरह कार्य कर सकेंl अतः वन हेल्थ अवधारणा को लागू करने के लिए एक उचित संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।

 निष्कर्ष:

भारत में कोविड-19 जैसी पशुओं से फैलने वाली खतरनाक महामारी की , दूसरी लहर से लड़ा जा चुका है। इसे देखते हुए भारत को वन हेल्थ सिद्धांत के प्रति  जागरूकता फैलाने चाहिए तथा इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास हेतु निवेश करना चाहिए।

संदर्भ

  1. डॉ एस. के. मिश्र एवं रुचि सिंह गौर 12/09/2021, एक स्वास्थ्य पहल : पशुजनित रोगों के नियंत्रण में पशु चिकित्सा विदों की भूमिका
  2. एक स्वास्थ्य। WOAH – पशु स्वास्थ्य के लिए विश्व संगठन।
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https://www.woah.org/hi/what-we-do/global-initiatives/one-health/

  1. एफएओ, 2011. विश्व पशुधन 2011-खाद्य सुरक्षा में पशुधन
  2. नायर, डॉ. श्रीजा एस., वन लाइफ – वन हेल्थ – वन ट्रीटमेंट (26 अगस्त, 2019)।

SSRN पर उपलब्ध: https://ssrn.com/abstract=3442786

  1. देश का पहला ‘वन हेल्थ’ कंसोर्टियम।
  2. पशुपालन और डेयरी विभाग ने ‘वन हेल्थ’ पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया उत्तराखंड। https://pib.gov.in/pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1814260

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