पशु के प्रसव (ब्याने) की प्रक्रिया और लछण
डॉ मुकेश कुमार श्रीवास्तव १ और डॉ संजय कुमार मिश्र २
१ सहायक आचार्य, पशु औषधि विज्ञानं विभाग, दुवासु, मथुरा
२ पशु चिकित्साधिकारी, चौमुहा, मथुरा, पशु पालन विभाग, उत्तर प्रदेश
प्रसव एक सामान्य गर्भावस्था अवधि के पूरा होने पर पूरी तरह से विकसित बच्चे के गर्भाशय से बाहर निकलने की प्रक्रिया है विभाजन यह पशु पालको के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है क्योंकि इसके बाद उन्हें दूध या पशु की बिक्री और उसके बछिया/बछड़ो से लाभ प्राप्त होगा । इसलिए, उचित देखभाल के लिए अग्रिम रूप से तैयारी की जानी चाहिए और आंशिक समस्याओं को कम करने के लिए प्रसव के दौरान पर्याप्त सतर्कता रखी जानी चाहिए। पशुओं में ब्याने के संकेत को जानना पशु पालको के लिए जरुरी है, मादा पशुओं ब्याने के संकेतों को समझने से पशुपालक को यह जानने में मदद मिलती है कि पशु चिकित्सा सहायता की कब आवश्यकता होगी और उनका निदान कैसे होगा। पशु यदि सामान्य अवस्था में नहीं है तो वह संकेतों के माध्यम से बताते है। ब्याने की विभिन्न अवस्थाओं का भी पूर्व में ही कुछ संकेत देते हैं।
प्रसव की सामान्य प्रक्रिया और चरण
पशुपालक जब भी पशु का गर्भधान करवाएं हमेशा गर्भाधान की तारीख लिखकर रखें और अगर पशु पुन: मद में नहीं आता है तो गर्भाधान के 3 माह पश्चात् गर्भ की जाँच अवश्य करवाएं। यदि गर्भाधान सही हुआ है, तो उसके ब्याने का समय का अनुमान लगाया जा सकता हैं, क्योकि गाय का औसत गर्भकाल 280-290 दिन एवं भैंस का 305 – 318 दिन होता है। ब्याने के संकेतों को समझने से पशुपालक को यह जानने में मदद मिलती है कि पशु चिकित्सा सहायता की कब आवश्यकता होगी। ब्याने के संकेतों को मूल रूप से 3 अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है।
(1) ब्याने से पहले (ब्याने से 24 घंटे पहले) – प्रथम चरण
(2) प्रसव – (ब्याने के 30 मिनट पहले से लेकर 4 घंटे बाद तक)- द्वितीय चरण
(3) गर्भनाल/जेर का निष्कासन- (ब्याने के 3-12 घंटे बाद)- तृतीय चरण
१- प्रथम चरण (गर्भाशय ग्रीवा का चौड़ा होना)
प्रसव के पहले चरण को तैयारी का चरण माना जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस चरण के दौरान मादा अपने को प्रसव के लिए तैयार करती है। इस चरण को 2 से 24 घंटों के बीच माना जाता है, लेकिन केवल गर्भाशय ग्रीवा के चौड़े होने के साथ इसकी पुष्टि की जा सकती है लेकिन गर्भाशय की मांसपेशियों की गतिविधि अभी भी शांत रहती है प्रथम चरण का पूरी तरह से किसी का ध्यान नहीं जाने की संभावना रहती है, लेकिन व्यवहार संबंधी परिवर्तन हो सकते हैं जैसे अन्य पशुओ से अलगाव या बेचैनी, ऐसे समय में पशु की भूख खत्म हो जाती है और वह खाने में दिलचस्पी नहीं लेता। पशु पेट पर लातें मारता है या अपने पार्श्व/बगलों को किसी चीज से रगड़ने लगता है। इस अवस्था के पशुओ को “बछड़ा देने को बीमार” की संज्ञा दी जाती है । इसके अलावा कुछ लछण जैसे कि पूंछ का ऊंचा उठाना, योनि से श्लेष्म निर्वहन में वृद्धि। पेल्विक लिगामेंट्स की शिथिलता (नरमी) भी स्पष्ट हो सकती है, जिससे पूँछ के प्रत्येक तरफ धँसा हुआ दिखाई देता है। योनि बहुत ढीली, आकार बड़ा एवं मांसल और शिथिल हो जाती है, शरीर के तापमान में कमी आती है। इस चरण में अयन बहुत बड़ा हो जाता है। चूचुक में कोई झुर्रियां नहीं होंगी, यह एक छोटे कोण पर अकड़ी हुई होगी, लेकिन कभी कभी यह लछण थोड़ा धोखा देने वाला हो सकता है, क्योंकि कभी-कभी गाय वास्तविक समय से महीनों पहले ये लछण दिखाना शुरू कर देती है।यदि पशु भारी उत्पादक छमता वाला है, तो कभी-कभी दूध थोड़ा बाहर निकलना शुरू हो जाता है, लेकिन इस समय दूध को निकालना नहीं चाहिए।
२- द्वितीय चरण (शिशु का वास्तविक प्रसव)
इस चरण की शुरुवात में बच्चा मय झिल्ली के श्रोणि कुल्या (पेल्विक कैनाल) में आ जाता है, और शिशु के पूर्ण जन्म के साथ चरण समाप्त होता है। यदि प्रक्रिया प्राकतिक रूप के ठीक चल रही है तो अगले घंटे के भीतर गाय के पीछे एक पानी की थैली (एलेंटोकोरियन) दिखाई देंगी, जिसके तुरंत बाद दूसरा बैग (एमनिओन) निकलता है, जिसमे बछड़े का सिर और दो सामने वाले पैर होते है। यदि बछड़े या बछिया की स्थिति सामान्य है तो पानी का थैला फटने के 30 मिनट के अंदर पशु बछड़े को जन्म दे देता है। प्रथम बार ब्याने वाली बछड़ियों में यह समय 4 घंटे तक हो सकता है। पेट की मांसपेशियों के संकुचन और गर्भाशय के संकुचन धीरे-धीरे गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से और योनी के माध्यम से बछड़े को बाहर निकालते है। बछड़ा अगले पैरो को विस्तारित करते हुए सिर को आगे की ओर लाता है, और जैसे ही सिर और पसलियां गर्भाशय ग्रीवा से बाहर आती है, बछड़े हवा में साँस लेना शुरू कर देता है और जन्म प्रक्रिया के दौरान फेफड़े से बलगम को साफ करना शुरू कर देता है। एक बार जब बछड़ा या बछिया पूरी तरह से योनि से बाहर हो जाते हैं, तो गाय के चलने से गर्भनाल टूट जाती है। पशु खड़े खड़े या बैठकर ब्या सकता है। यदि पशु को प्रसव पीड़ा शुरु हुए एक से ज्यादा समय हो जाएँ और पानी का थैला दिखाई न दे तो तुरंत पशु चिकित्सा सहायता बुलानी चाहिए। सामान्यतः यह चरण 2 से 5 घंटे तक रहता है।
३- तीसरा चरण (प्लेसेंटा या भ्रूण की झिल्लियों/जेर का बाहर आना) / सफाई का चरण
लगातार हो रहे गर्भाशय के संकुचन से भ्रूण की झिल्लिया बाहर निकलती है, मवेशियों में यह सामान्य रूप से 8 से 12 घंटे से कम समय में होता है। यदि जेर 12 घंटे के बाद भी बाहर नहीं आता है तो उन्हें प्रतिधारित माना जायेगा (रेटेंसन ऑफ़ प्लेसेंटा)। पहले इसे हाथ से “अनबटनिंग” करके हटाना आवश्यक माना जाता था। लेकिन हाथो के द्वारा निष्कासन गर्भाशय के स्वास्थ्य और भविष्य की गर्भाधान दर के लिए हानिकारक हो सकता है। प्रतिजैविक दवाओं का प्रयोग आमतौर पर संक्रमण से रक्षा करेगा और जेर 4 से 7 दिनों में बाहर हो जाता है। ध्यान देना चाहिए कि गाय अपने जेर को खाने न पाए, साथ ही इसे मांसाहारी पशुओ से दूर रखना चाहिए ।
प्रसव के समय ध्यान देने वाली बाते
• ब्याने की अवस्था में पशु पालक को दूर से निगरानी करनी चाहिए क्योंकि नजदीक होने से पशु का ध्यान बंट सकता है तथा व्याने में देरी अथवा बाधा उत्पन्न हो सकती है।
• व्याने से पहले बिछावन बदल देनी चाहिए और जर्मरहित वातावरण प्रदान करना चाहिए। ब्याने के स्थान को समय पूर्व फिनाइल घोल से अच्छी तरह साफ कर देना चाहिए।
• यदि व्याने में किसी प्रकार की बाधा दिखाई पड़े तो ही सहायता करनी चाहिए।
• यदि प्रसव पीड़ा की शुरुआत के दो घंटे बाद भी बच्चा बाहर नहीं निकला है तो योनि मार्ग में बच्चा फ़सने की संभावना होती है। ऐसी स्थिति में तुरंत नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
• आमतौर पर पशुओं में ब्याने के 4-6 घंटे के अन्दर जेर अपने आप बाहर निकल आती है, परन्तु अगर ब्याने के 12 घंटे के बाद भी जेर नहीं गिरती तो उस स्थिति को जेर का रुकना अथवा रेटेंसन ऑफ़ प्लेसेंटा कहा जाता है। ऐसी स्थिति में भी नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
• जैसे ही और निकल कर गिरे, उसे तुरंत हटाकर कहीं दूर गड्ढे में गाड़ देना चाहिए, अन्यथा कुछ पशु जेर को खा लेते हैं, जिसका दुष्प्रभाव पशु के स्वास्थ्य एवं दूध उत्पादन पर पड़ता है।
• कभी भी रुकी हुई गर्भनाल को ताकत लगाकर नहीं खींचे, इससे तीव्र रक्तस्राव हो सकता है और कभी-कभी पशु की मौत भी हो सकती है।