पशुओं को वैसे तो उनके रंग, रुप तथा समान्य आकृति से ही पहचाना जाता है इस विधि से पशुपालक केवल तीन अथवा चार पशुओं को ही पहचान कर पाता है। परंतु जिस जगह अधिक पशु रखे जाते है, तब इस प्रकार उनको एक दूसरे से अलग पहचानना कठिन हो जाता है।
पशुओं को पहचान करने से लाभ-
1.पशुओं के पंजीकरण में स्थाई रुप से चिन्हित होना आवश्यक है ।
2.पशुओं का अभिलेख संरक्षित रखने में सहायक है।
3.पशु चोरी होने पर पहचान करने में सहायक है।
4.पशुओं को यथोचित प्रबन्धन प्रक्रिया हेतु अति आवश्यक है।
5.पशु की खरीद या बेचते समय पशु का हुलिया लिखने में पहचान की जरुरत पड़ती है।
6.सरकार की जब कोई योजना सामूहिक रुप से पशुओं में चलाई जाती है, तब उन में भी पहचान के निशान लगाने पड़ते है।
7.सांड़ो से पैदा सन्तति को अन्य पशुओं से अलग पहचान के लिए उन पर भी नंबर डालना जरुरी है
8.पशु प्रजनन, आहार, पशु चयन, पशु बीमारी एवं शव परीक्षण में पशु की पहचान करनी पड़ती है।
9.बड़ी-बड़ी गोशालाओं, गो-सदनों, राजकीय फार्मो आदि पर पशुओं को एक दूसरे से अलग पहचानने के लिए उनमें तरह-तरह के निषान लगाये जाते है।
पशुओं में निशान लगाने की विधियाँ
पशु पहचान बनाने के तरीको को दो भागों में बाटा गया है
1.स्थायी-
गोदना (टेटूइंग)
दागना (ब्राँडिंग)
(1) गरम दागना (हाट ब्राँडिंग)
(2) ठंड दागना (कोल्ड ब्राँडिंग)
(3) रसायन से दागना
कान काटना (ईयर नाचिंग)
2.अस्थायी-
कान में लेबल लगाना
गले में रस्सी डालना
गर्दन में जंजीर के साथ लेवल लगाना
पूंछ में लेवल लगाना
अ.गोदना-
जिस प्रकार पुरुष और महिलायें अपने बाजुओं और हथेली पर अपने नाम अथवा चित्र गुदवाँ लेती है। उसी प्रकार पशु के शरीर पर भी पक्की स्याही से चिन्ह गोंदे जाते हैं। गोदने की मशीन के सेट की सहायता से वांछित शब्दो और अंको को त्वचा पर गोद कर पहचान बनाई जाती है। गोदने के लिए उपयुक्त स्थान कान के अन्दर वाला भाग है। गोदने की मशीन में लगे नंबरों या अक्षरो को उपयुक्त स्थान पर रख कर दबा देते हैं, तत्पश्चात उस स्थान पर गोदने की स्याही लगा देते है, जिससे घाव भी जल्दी से भर जाये तथा उसकी दूर-दर्षिता भी बढ़ती हैं।
लाभ-
1.यह पहचान करने की स्थायी विधि है ।
2.यह आर्थिक रुप से सस्ती विधि है।
3.गोदना के लिए पशु की किसी भी उम्र में कर सकते है।
4.शरीर के किसी भाग से इसकी क्षति नही होती है।
हानि-
1.रक्त वाहीनियों को नुकसान पहुँचने की अधिक संभावना रहती है।
2.काले पशु के लिए यह विधि नहीं अपनायी जाती ।
3.काफी समय बाद गोदने का रंग हल्का पड़ जाता है।
ब. दागना-
यह विधि से गाय, भैंसो, घोड़ो और ऊंटो मे अपनायी जाती है
गरम ब्रांडिंग छड़ से दागना-
लकड़ी के कोयला या कन्डे की आग से दागने वाला लोहा जिसके एक सिरे पर नम्बर या निशान लगे होते है को रक्ततप्त गर्म करके पशु के पुठ्ठे पर पशु को गिराने के पश्चात दागते है। इस विधि से दागने वाले लोहे का तापमान लगभग 1000॰F तथा पशु के पुठ्ठे पर 2-3 क्षण तक दाबते है। दागने के पश्चात सरसो का तेल और जिंक आक्साइड का लेप लगा देते है जिस से घाव जल्दी भर जाता है।
लाभ-
1.यह पहचान करने की स्थायी विधि है।
2.यह काफी सस्ती विधि है।
3.किसी भी रंग के पशु को कर सकते है।
4.लगभग 30 फीट की दूरी से पशु की पहचान की जा सकती है।
हानि-
1.यह अधिक पीड़ादायी विधि है।
2.नवजात बछड़ों में यह विधि नहीं अपनायी जाती है।
3.बरसात के मौसम में यह विधि नहीं अपनायी जाती है।
4.इस विधि से चमड़े की क्षति होती है।
ठण्डी ब्रांडिंग छड़ से दागना –
इस विधि में पशु को गिराने की आवश्यकता नहीं होती है। इस विधि में प्रयोग होने वाले रसायन तरल नाइट्रोजन या शुष्क कार्बनडाइआक्साइड प्रयोग करते है। पशु के चिन्हित करने वाले स्थान को ब्लेड की सहायता से बाल हटा देते है। और ब्राडिंग राड की छड़ को रसायन में डुबोकर पुठ्ठे पर 10-15 क्षण दबा कर चिन्हित करते है।
लाभ-
1.यह पहचान करने की स्थायी विधि है।
2.यह कम पीड़ादायी विधि है।
3.इस विधि से संक्रमण होने का भय कम रहता है।
4.पशु की दूर से पहचान की जा सकती है।
हानि-
1.इस विधि में रसायन की आवष्यकता होती है, जिसमें अधिक व्यय होता है।
2.गर्म ब्रैडिंग की तुलना में चमड़ो की क्षति कम होती है।
3.नवजात बछड़ो में यह विधि नहीं अपनायी जाती है।
स.कान को काटकर निशान लगाना-
यह विधि शुकरो में अधिक प्रचलित है। कभी-कभी इस विधि को मांस वाले पशुओं अर्थात बीफ गाय/भैंस में भी प्रयुक्त किया जाता है। इस कार्य हेतु साइड ईयर पंच एवं सेन्ट्रल मशीन प्रयोग में लायी जाती है। इनके स्थान पर तेज कैंची का प्रयोग किया जाता है। कैंची द्वारा लगाये गये कट्स मुख्यतः ‘‘ V ’’ आकृति के होते है। जो कट्स लगाये जाये न ज्यादा छोटे हो न ज्यादा बडे होने चाहिए। ज्यादा छोटे होगें तो घाव भरने के बाद बन्द हो जायेगे ज्यादा बड़े हुए तो कान की आकृति खराब हो जायेगी।
लाभ-
1.यह पहचान करने की स्थायी विधि है।
2.बगैर पशु पकडे ही आसानी से पहचान की जाती है।
हानि-
1.कान की आकृति खराब हो जाती है ।
2.छोटे कट्स करने से घाव जल्दी भर जाते है।
2. अस्थायी विधि-
इस प्रकार की पहचान बनाने के मुख्य तरीके गले में रस्सी डालना, कान मे लेबल लगाना, गर्दन में जंजीर के साथ लेवल लगाना टांग तथा पूंछ में लेवल लगाना।
कान में लेबल लगाना- टैग मुख्यतः एल्युमिनियम और तांबा धातु के बने होते है जिस पर नंबर पड़े होते है। पशु के कान में लेबल लगाने के लिए सिर को पकड़ ले जहां लेबल लगाना है वहां टैगिगं मशीन के द्वारा कान में पहना दिया जाता है। लेबल का नम्बर वाला भाग कान के बाहर की ओर हो। लेबल लगाते समय यह ध्यान रहे कि कोई खून की नलिका या नस बिंध न जाये। जब छोटे पशुओ को लेबल लगाना हो तो कान विकसित होने की जगह छोड़नी चाहिए।
पूंछ में लेबल लगाना- पूंछ को लेबल घुसेड़ने में कठिनाई होती है। यदि ढीला रह जाता है तो खिसक जाता है और ज्यादा कसा होने पर खून का बहाव रुक जाता है और पूंछ का उतना हिस्सा गिर जाता है। पशुओ को लेबल लगाते समय कुछ बातो का ध्यान रखना चाहिए लेबल ऐसा चुने, जो आसानी से खिंच न सके ,लगाने में आासान हो, आसानी से पड़ा जा सकता हो। जिसके नम्बर स्थायी हो जो कि बाजार में आसानी से उपलब्ध हो ।
लाभ-
1.लेबल लगाने के लिए पशु की किसी भी उम्र में कर सकते है।
2.यह अधिक खर्चीला भी नहीं है ।
3.पशु पहचान बनाने का एक आसान तरीका है।
हानि-
1.यह पहचाने करने की अस्थायी विधि है ।
2.जब पशु एक दूसरे से लड़ते है, तो यह लेबल खो सकता है।
3.कान वाला लेबल पशु द्वारा दीवार में रगड़ने से खुल सकता है।
इस प्रकार पशु की पहचाने करने के लिए स्थायी एवं अस्थायी निशान लगाये जाते है। जो कि डेरी व्यवसाय में काफी महत्वपूर्ण है जैसा कि पशुओं के दूध का हिसाब रखना पडता है। पशु की छटनी करने तथा पशु की मिलाई की तारीख और ब्यात के दिन का हिसाब लगाना पडता है। पशु गर्मी में है या नहीं यह जानने के लिए पशुओं स्थायी एवं अस्थायी निशान लगाये जाते है।
संकलन -डॉ. सावीन भोगरा, पशुधन विशेषज्ञ ,