पाईका पशुओं में कई अन्य बीमारियों की जड़ है

0
1459

पाईका पशुओं में कई अन्य बीमारियों की जड़ है

डॉ. पुरुषोत्तम (पी.एच.डी. स्कोलर)

एनाटोमी विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविधालय,

राजुवास, बीकानेर-334001, राजस्थान

(Email – purushottam.beniwal@gmail.com)

परिचय :

एलोट्रओफेजिया / पाइका बीमारी में पशु खाध्य पदार्थों के अलावा अन्य पदार्थ व वस्तु खाने लगता है । इसमे पशु प्लास्टिक, कागज, मिट्टी, कपड़ा, चमडा, पुराने जूते, लकड़ी, ठाण, खिलौने, मल, कीचड़ आदि अपाच्य पदार्थ / वस्तु मुख्य है। ये बीमारी साधारणतया भेड़ , बकरी, गाय, भैंस, घोडे. व कुत्ते में पाई जाती है।

कारण :

  • पशु में मिनरल की कमी होना जैसे पोस्फोरस, कोबाल्ट, नमक व अन्य खनिजों की कमी होना।
  • पशु को छोटी जगह में रखना ।
  • पशु के पेट में कीड़े या वर्म हो जाना ।
  • पशु में पेट क व पित्ताशय संबंधित रोग होना ।

 प्रकार :

  • कोप्रोफेजिया : इसमे पशु खुद या अन्य पशु का मल व गोबर खाने लग जाता है ।
  • इनफेंटोफेजिया : इसमें मादा पशु द्वारा खुद के छोटे न्यू बोर्न बच्चों को खाना ।
  • ऑस्टियोफेजिया : मृत जानवरों की हड्डीयाँ चाटना या चबाना ।
  • साल्ट हंगर : पशु स्वयं या दूसरे पशु की चमड़ी चाटने लगता है ।

लक्षण

  • पशु खाना पीना कम कर देता है ।
  • पशु मूल खाध्य पदार्थ कम खाकर अखाध्य पदार्थ खाने लगता है ।
  • पशु उत्पादन कम कि देता है व शरीर में दुबला पतला होने लगता है ।
  • चमड़ी चिपक जाती है ।
  • कई बार आफरा भी होने लगता है ।

 उपचार :

  • पशु की बीमारी का कारण ढूंढ कि दूर किया जाता है ।
  • पशु को पौष्टिक व संतुलित आहार देते हैं ।
  • पशु को समय समय कृमिनाशक दवाई दी जाती है ।
  • पशु को प्रतिदिन 40-50 ग्राम मिनरल मिक्स्चर अवश्य दिया जाता है जिसमे विटामिन भी हो ।
  • पशु के ठाण में मिनरल मिक्स्चर की ईंट रखी जाती है ।
  • पशु को प्रतिदिन 50 ग्राम सादा नमक आहार में देते हैं ।
  • इन्जेक्सशन फोस्फोरस व विटामिन A, D व E एक सप्ताह के लिए दें ।
READ MORE :  गोपशुओं में प्रजनन सम्बन्धी समस्यायें एवं प्रबन्धन

इस बीमारी के कारण पशु पालक को भारी आर्थिक हानि होती है क्योंकि पशु दुबला हो जाता है तथा उत्पादन कम कर देता है। और कई बार पशु में बांझपन भी आ जाता है । ये बीमारी दुधारू व अन्य पशुओं के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है क्योंकि पशु इस बीमारी के कारण अखाध्य / अपाचक पदार्थ जैसे प्लास्टिक व लोहे की कीलें खाने के साथ रुमेन में चली जाती है जिसके कारण पशु में आफरा आने लगता है तथा इस कारण कई बार ट्रॉमैटिक रेटिकुलिटिस व ट्रॉमैटिक पेरिकिडाईटिस जैसी जानलेवा बीमारी भी हो जाती है जिसके कारण पशु की मृत्यु हो जाती है । इसीलिए पशु पालक इस बीमारी के प्रति जागरूक और सजग रहते हुए चिकित्सीय सलाह लेकर तुरंत उपचार करावें, जिससे कि अपने पशु धन को बचाया जा सके और होने वाली आर्थिक हानि से बचा जा सके ।

https://www.pashudhanpraharee.com/care-for-diseased-animals/

https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/92a936941913902-92e947902-93094b917/%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82-%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96-%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B5

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON