सुकर पालन : एक लाभकारी  व्यवसाय

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सुकर पालन : एक लाभकारी  व्यवसाय

DR. JITENDRA SINGH, KANPUR DEHAT

सूअर पालन का व्यवसाय काफी कम समय में अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय है. सूअर के माँस का इस्तेमाल खाने के साथ साथ सौंदर्य प्रसाधन की चीजों में भी किया जाता है. सूअर के मास में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. इस कारण भारत सहित विदेशी बाजार में इसकी मांग बहुत ज्यादा है.

भारत में इसका कारोबार ज्यादातर उत्तर पूर्वी राज्यों में किया जाता हैं. लेकिन अब इसका दायरा बढ़ने लगा है. जिसको देखते हुए अब काफी लोग इस कारोबार से जुड़ चुके हैं. इसके व्यापार को करने के लिए कई तरह की चीजों का ध्यान रखा जाना जरूरी होता है.

 

पहले के समय में सुअर पालन की समाज में एक खराब छवि बनी हुई थी, ऐसा इसलिए क्योंकि इस व्यवसाय को केवल सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के भारतीय लोगों द्वारा किया जाता था। लेकिन वर्तमान में परिदृश्य काफी बदल गया है और भारत में व्यावसायिक सुअर पालन पिछड़े वर्ग के लोगों तक सीमित नहीं रहा है। सुअर पालन न केवल एक लाभदायक व्यवसाय है बल्कि एक बहुत ही लोकप्रिय और आकर्षक व्यवसाय है। सुअर का उपयोग व्यापक रूप से सुअर के मांस के लिए किया जाता है, लेकिन इनका पालन करना इतना आसान नहीं है। एक लाभदायक सुअर फार्म (Farm) बनाने के लिए बहुत समय और पैसा लगता है। साथ ही एक अच्छा सुअर फार्म बनाने के लिए कुछ तरीकों का पालन करने की आवश्यकता होती है, जो नीचे वर्णित हैं।

इसके लिए सबसे पहले एक घास और मिट्टी सहित एक बहुत बड़ा क्षेत्र होना आवश्यक है। फिर उसमें एक विशाल बाड़ की भी ज़रूरत होती है ताकि सुअर आराम से दूर तक घूम सकें और बाड़ की मदद से सूअरों के खोने और भागने का खतरा कम रहता है। बाड़ के लिए किसानों द्वारा बहुत मजबूत लकड़ी और मोटे कोने के खंभे का उपयोग करना चाहिए क्योंकि वयस्क सुअर बहुत मजबूत हो जाते हैं और वे बाड़ को नष्ट करने की कोशिश कर सकते हैं। वहीं खलिहान में सुअर पालन काफी आसान होता है और बस किसान को ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सुअर पालन के लिए खलिहान यदि बजरी का बना हो तो काफी अच्छा होता है।

 

बाजार में सुअर के मांस के अलावा, अन्य उत्पाद जैसे सुअर की चर्बी, खाल, बाल और हड्डियों का उपयोग कुछ विशिष्ट चीजें बनाने में उपयोग किया जाता है। वहीं सुअर पालन के कुछ फायदे भी हैं:

  • सुअर में अधिकतम चारा विपर्यय की क्षमता होती है, यानी वे मुर्गे को छोड़कर मांस उत्पादक जानवरों के किसी भी अन्य वर्ग की तुलना में चारे के दिए गए वजन से सजीव वजन बढ़ाते हैं।
    • सुअर अनाज, चारा, क्षतिग्रस्त चारे और कचरे का सेवन करके भी एक मूल्यवान पौष्टिक मांस का उत्पादन करते हैं। हालांकि खराब अनाज, कचरे और अन्य असंतुलित राशन का सेवन करने से पाचन क्षमता कम हो जाती है।
    • सुअर पालन व्यवसाय को शुरू करने के लिए इमारतों और उपकरणों में एक छोटे से निवेश की आवश्यकता होती है।

 

व्यवसायिक सुअर पालन व्यवसाय में सफल होने के लिए, एक व्यक्ति के पास बजट के आधार पर एक उचित सुअर पालन व्यवसाय योजना होनी चाहिए। वर्तमान समय में भारत में कई सुअर पालन प्रशिक्षण केंद्र और सुअर प्रजनन केंद्र मौजूद हैं। साथ ही सुअर पालन व्यवसाय में प्रवेश करने से पहले उनकी विभिन्न नस्लों और उनके प्रबंधन के तथ्यों को जानना सबसे महत्वपूर्ण है। विश्व भर में सुअर की कई नस्लें उपलब्ध हैं। आप शुरुआत करने के लिए पहले स्थानीय नस्लों को चुन सकते हैं, लेकिन आकार में छोटे होने की वजह से वे वांछित उत्पादन नहीं दे पाते हैं।

 

कुछ सामान्य और लोकप्रिय सुअर की नस्लें हैं: –

 

यॉर्कशायर, स्पॉटेड, पोलैंड चीन, लैंड्रेस, हैम्पशायर, ड्यूक, चेस्टर व्हाइट, घुँघरू, नाइट हाउस और बर्कशायर सुअर। इन सब में बड़े सफेद बड़े सफेद यॉर्कशायर मांस उत्पादन के लिए शीर्ष नस्ल है। एक वयस्क सुअर का वजन 200 से 400 किलो के आसपास होता है।

जैसा की हम देख सकते हैं कि सुअर पालन एक प्रकार से काफी लाभदायक व्यवसाय है और यदि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की मौजूदा बाधाओं को हटा दिया जाए तो सुअर पालन उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सुअर पालन के लिए बैंक से ऋण भी लिया जा सकता है। सुअर पालन के लिए बैंक ऋण में भूमि, पशुधन बाजार, पानी की उपलब्धता, पशु चिकित्सा सहायता, प्रजनन सुविधाएं, विपणन पहलू, प्रशिक्षण सुविधाएं, किसान के अनुभव और राज्य सरकार के क्षेत्रीय सुअर प्रजनन केंद्रों से उपलब्ध सहायता के प्रकार की जानकारी होती है। इसमें खरीदे जाने वाले जानवरों की संख्या और प्रकार, उनकी नस्ल, उत्पादन प्रदर्शन, लागत और अन्य प्रासंगिक निवेश और उत्पादन लागत की जानकारी भी शामिल है।

इसके आधार पर, परियोजना की कुल लागत, लाभार्थी द्वारा प्रदान की जाने वाली अतिरिक्त राशि, बैंक ऋण की आवश्यकता, वार्षिक व्यय, आय, लाभ और हानि विवरण, पुनर्भुगतान अवधि, आदि पर की जानकारी प्राप्त की जाती है और परियोजना लागत में शामिल किया जा सकता है। वहीं सुअर पालन विकास योजनाओं के लिए बैंकों / नाबार्ड (NABARD) से प्राप्त वित्तीय सहायता एक विस्तृत परियोजना विवरण तैयार करती है। भूमि विकास, छप्पर का निर्माण और अन्य नागरिक संरचनाएं, प्रजनन भंडार की खरीद, उपकरण, आय सृजन के बिंदु तक चारे की लागत को आम तौर पर बैंक ऋण के तहत माना जाता है। इसके अलावा निवेश की अन्य वस्तुओं पर जरूरत के आधार पर विचार किया जाता है, बशर्ते कि संतोषजनक जानकारी ऐसी वस्तुओं की आवश्यकता को उचित ठहराए। सूअरों को प्रभावी ढंग से पालने के लिए किसानों को सूअरों के लिए सही आश्रय बनाना चाहिए। उन्हें उचित भोजन और उचित चिकित्सा सुरक्षा देनी चाहिए। सूअरों का ठीक से ख्याल रखे बिना, अच्छी कमाई होना संभव नहीं है। इसलिए, पैसा कमाने के लिए किसानों को हमेशा अपने सूअरों की देख रेख करनी चाहिए। वैसे तो सुअर पालन एक आसान काम नहीं है लेकिन यह बहुत ही आकर्षक व्यवसाय है। बड़े खेत बनाने के लिए किसानों को बहुत काम करना पड़ता है और काफी पैसा लगाना पड़ता है।

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सूअर पालन की शुरुआत कैसे करें

सूअर पालन की शुरुआत करने के लिए पहले सूअर पालन के बारें में हर प्रकार की जानकारी ले लेनी चाहिए. और सूअर पालन की शुरुआत किसान भाइयों को छोटे पैमाने पर करनी चाहिए. इसके लिए अधिक पैसों को जरूरत भी नही होती. सूअर साल में दो या तीन बार नए बच्चों को जन्म देता है. जो एक बार में ही 5 से 12 बच्चों को जन्म देता हैं. ये बच्चे लगभग दो महीने बाद दूध पीना छोड़ देते हैं. अगर बच्चों को उचित पोष्टिक खाना दिया जाये तो प्रत्येक बच्चे आसानी से एक साल में 80 से 100 किलो वजन के हो जाते हैं. किसान भाई सूअर पालन की शुरुआत एक पशु रखकर भी कर सकता हैं. या फिर बड़े पैमाने पर भी इसे शुरू कर सकता हैं. बड़े पैमाने पर शुरू करने के लिए कई तरह की चीजों की जरूरत होती है. जिन पर खर्च भी ज्यादा आता हैं.

सूअर पालन के लिए आवश्यक चीजें

किसी भी व्यवसाय को चलाने और उसकी शुरुआत के लिए कई तरह की मूलभूत चीजों को आवश्यकता होती हैं. जिनके बिना किसी व्यवसाय को सुचारु रूप से शुरू नही किया जा सकता. उसी तरह सूअर पालन के लिए भी कई तरह की मूलभूत चीजें हैं जिनकी आवश्यकता व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने के लिए काफी जरूरी हैं.

जमीन

किसी भी तरह के व्यवसाय को चलाने के लिए जमीन की जरूरत सबसे पहले होती हैं. बिना जमीन के किसी भी व्यवसाय को शुरू नही किया जा सकता, सूअर पालन करने के लिए जमीन का चयन करने के दौरान शांत जगह वाली जमीन का चयन करना चाहिए. जमीन के पास सभी तरह की आवश्यक मूलभूत चीजें उपलब्ध होनी चाहिए. जिस जगह इसका व्यवसाय शुरू करें वो जमीन शहर से बहार ग्रामीण एरिया में हो तो काफी बेहतर मानी जाती है. क्योंकि शहरी इलाकों में इसके पालन के लिए पहले नगर पालिका से इसकी अनुमति लेनी होती हैं.

सूअर के रहने का स्थान-

सूअर के रहने के स्थान का निर्माण करने के दौरान भी ख़ास ध्यान रखा जाता हैं. क्योंकि सूअर के बीच लड़ाई काफी ज्यादा देखने को मिलती हैं. जिसमें पशु एक दूसरे को अधिक नुक्सान पहुंचा देते हैं. इसलिए अलग अलग उम्र के सूअरों के रहने के लिए अलग अलग जगह का निर्माण किया जाना जरूरी होता है.

प्रसूति सूअरी के लिए-

प्रसूति सूअर के पास दो महीने तक बच्चे रहते हैं. इस दौरान उनके अच्छे से विकास के लिए एक अलग घर की जरूरत होती हैं. प्रसूति सूअर के लिए लगभग 10 फिट लम्बा और आठ फिट चौड़े घर की जरूरत होती हैं. और इससे लगभग दुगनी जगह का खुला वातावरण होना चाहिए. जिसमें बच्चे माँ के साथ आसानी से घूम सके. सर्दी के मौसम में बच्चों को बचाने के लिए घर में लोहे की छड़ों या लकड़ी के माध्यम से रिले बनाई जाती हैं. जिन पर इसके बच्चे आसानी से रहा सके. क्योंकि इसके बच्चे रात के समय माँ के नीचे आने पर मर जाते हैं. इस रिले की ऊंचाई लगभग 9 से 10 इंच ऊँची होनी चाहिए.

गाभिन सुअरी के लिए-

गाभिन सूअर के लिए भी अलग से घर की जरूरत होती हैं. क्योंकि गाभिन अवस्था में इनके आपस में लड़ने की वजह से कारोबारी को नुक्सान उठाना पड सकता हैं. गाभिन सुअरी के रहने के लिए लगभग 12 फिट लम्बे और आठ फिट चौड़े मकान की आवश्यकता होती हैं. जिसमें उसे खाना दिया जाता हैं. और उसी मकान में उसके घुमने की जगह होती हैं. इनके घुमने के लिए अलग से खुली जगह की जरूरत नही होती.

विसूखी सुअरी के लिए-

विसूखी सुअरी के रहने के लिए भी अलग से जगह का निर्माण किया जाता है. जिसमें तीन से चार सुअरी को एक साथ रखा जा सकता हैं. विसुखी सुअरी के रूप में कुआरी सुअरी को ही रखा जाता हैं. जिसमें प्रत्येक कुआरी सुअरी के रहने के लिए 10 से 12 वर्ग फिट की जगह होनी चाहिए. जिसमें उनके खाने और रहने की नाद और घुमाने की जगह होती हैं.

नर सूअरों के लिए-

नर सूअर में अलग उन्ही सूअरों को रखना चाहिए जिनका इस्तेमाल प्रजनन के लिए किया जाता हैं. और प्रत्येक घर में केवल एक ही सूअर को रखना चाहिए. क्योंकि दो या दो से ज्यादा नर सूअर को अगर एक कमरे में रख दिया जाए तो दोनों एक दूसरे को खाने की कोशिश करते हैं. जिससे दोनों एक दूसरे को नुक्सान पहुँचा देते हैं. एक नर सूअर के रहने के लिए 10 फिट चौड़ा और आठ फिट लम्बे कमरे की जरूरत होती हैं जिसमें उसकी नाद बनाई जाती हैं. जिसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई क्रमशः 6, 4, 4 होनी चाहिए. और कमरें में ही खुला स्थान होना चाहिए, जिसमें नर के घुमने और खाने की व्यवस्था की जाती है.

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छोटे बच्चों के लिए-

सुअरी अपने बच्चों को दो महीने तक ही दूध पिलाती हैं. उसके बाद वह अपने बच्चों को अपने से अलग कर देती है. जिससे बाद इन बच्चों के लग रहने की व्यवस्था की जाती हैं जो एक खुला स्थान ही होता है. जिसमें सभी बच्चे साथ रहते हैं. लेकिन जब इन बच्चों की उम्र चार महीने से ज्यादा हो जाती है तब इनमें नर और मादा को अलग अलग कर दिया जाता है. तब भी इन्हें एक साथ ही नर और मादा को अलग अलग रखा जाता है और सामान रूप से आहार दिया जाता हैं. जिसके बाद इनमें से नर सूअर को एक साल बाद बेच दिया जाता है. जबकि मादा को प्रजनन के लिए तैयार किया जाता हैं.

सूअरों का खाना-

सूअर पालन में होने वाला खर्च का सबसे ज्यादा खर्च इनके खाने पर ही किया जाता है. सूअर की अलग अलग अवस्था में इसके जीवों को खाने की जरूरत अलग अलग होती है. बच्चे और सुअरी के प्रसूति होने की स्थिति में अधिक प्रोटीन की जरूरत होती हैं. इस दौरान खाना उचित मात्रा में देना चाहिए.

वैसे सूअर पालन के दौरान खाने की अधिक दिक्कत नही होती. क्योंकि सूअर ज्यादातर ख़राब और सड़ी गली सब्जी और फल के साथ साथ अन्य कई वस्तुओं को खाते हैं. इसके अलावा बाजार में बड़े होटलों में बचे खाने का इस्तेमाल भी इनके खाने के लिए उपयोग में लिए जा सकता है. ख़राब चीजों के अलावा भी इन्हें पोष्टिक खाना दिया जाता हैं. जिसमें मछली का चूरा, मूंगफली की खली, खनिज लवण, गेहूं का चोकर, नमक और मकई दी जाती हैं.

इनके खाने का दाना भी बाजार में आसानी से मिल जाता हैं. जिसका इस्तेमाल इनके खाने के रूप में किया जाता हैं. इनके दाने के रूप में कम उम्र के बच्चों को प्रति दिन एक से डेढ़ किलो दाना की मात्रा देनी चाहिए. जबकि पूर्ण रूप से तैयार होने वाले एक पशु को प्रतिदिन दो से ढाई किलो दाने की जरूरत होती हैं. इसके अलावा गाभिन और दुधारू सूअर को प्रतिदिन तीन किलो से ज्यादा दाना देना चाहिए.

पानी की व्यवस्था-

सूअरों के नहाने और पीने के लिए पानी की जरूरत होती हैं. जिसके लिए एक छोटे कुंडे का निर्माण करवाना चाहिए. जिसमें पानी की ऊंचाई एक से डेढ़ फिट तक ही रखनी चाहिए. क्योंकि अधिक पानी होने पर छोटे बच्चों के डूबने का डर बना रहता हैं. सूअर को दिन में कम से कम दिन में तीन बार पानी देना चाहिए. हालांकि सर्दियों में पानी की आवश्यकता काफी कम होती हैं.

सूअर की प्रमुख प्रजातियाँ-

सूअर पालन के दौरान सूअर की प्रजातियों का चयन करना भी सबसे अहम माना जाता है. अगर आप सूअर पालन का व्यवसाय करना चाहते हैं तो देशी प्रजाति के सूअर ना पालकर अच्छी प्रजाति के सूअरों का पालन करना चाहिए. वर्तमान में भारत में इसकी कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं.

सफेद यॉर्कशायर सूकर-

सफेद यॉर्कशायर सूकर एक विदेशी नस्ल हैं. जो भारत में सबसे ज्यादा पाई जाती हैं. इस नस्ल के सूअर का शरीर सफ़ेद रंग का होता है. जिसके शरीर पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इस नस्ल के सूअर के कान सामान्य आकार के पाए जाते हैं. जबकि इनका मुख थोड़ा खड़ा होता है. इस प्रजाति के सूअर पालन के लिए सबसे बेहतर माने जाते हैं. क्योंकि इनमें प्रजनन का गुण सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस प्रजाति के नर सूअर का वजन 300 से 400 किलो और मादा का वजन ढाई से तीन सौ किलो तक पाया जाता है.

लैंडरेस-

लैंडरेस नस्ल के सूअर लम्बे शरीर के दिखाई देते हैं. जबकि इनका वजन कम पाया जाता हैं. इस प्रजाति के नर सूअर का वजन 250 से 350 किलो के बीच पाया जाता है. वहीं मादा प्रजाति के सूअर का वजन 300 किलो तक पाया जाता हैं. इस नस्ल के सूअरों का रंग सफ़ेद दिखाई देता है. और इनके कान और नाक की लम्बाई अधिक पाई जाती हैं.

हैम्पशायर-

सूअर की इस प्रजाति के जीवों का रंग काला दिखाई देता हैं. माँस व्यवसाय के लिए इस प्रजाति को भी अच्छी माना जाता हैं. इस प्रजाति के नर पशु में तीन सौ किलो तक वजन पाया जाता हैं. और मादा में भी ढाई सौ किलो तक वजन पाया जाता हैं. इस प्रजाति के पशुओं का आकार सामान्य पाया जाता हैं. जो साल में दो बार बच्चे देते हैं.

घुंघरू-

घुंघरू नस्ल के सूअर का पालन सबसे ज्यादा बंगाल राज्य में किया जाता है. बंगाल के अलावा उत्तर पूर्वी और भी कई राज्यों में इसका पालन किया जाता हैं. इस प्रजाति के जीवों का आकर छोटा होता है. लेकिन इनके माँस की गुणवत्ता अच्छी होती हैं. जो खाने में सबसे बेहतर माना जाता हैं. इस प्रजाति के सूअरों में प्रजनन क्षमता सबसे बेहतर होती हैं. इस प्रजाति के जीव एक बार में 10 से 12 बच्चे आसानी देते हैं. इस प्रजाति के जीवों का वजन अधिक नही होता. इसके जीव खाने के रूप में ख़राब और सड़ी गली चीजों को ही खाते हैं. इसलिए इनके खाने के लिए भी अधिक परेशानी का सामना नही करना पड़ता. इस प्रजाति के सूअर ज्यादातर काले रंग के ही दिखाई देते हैं.

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इनके अलावा और भी कुछ नस्लें हैं जिन्हें अलग अलग जगहों पर पाला जाता हैं. जिनसे किसान भाई काफी अच्छी कमाई कर रहे हैं.

सूअर पालन में सरकार की तरफ से सहायता

सूअर पालन के लिए सरकार की तरफ से वैसे तो किसी तरह की सहायता नही दी जाती. लेकिन लोन के रूप में सरकार की तरफ से छूट दी जाती हैं. इस योजना के अंतर्गत लोन की सुविधा नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा प्रदान की जाती हैं. जिस पर 8 से 15 प्रतिशत तक ब्याज दर लगाई जाती हैं. लेकिन एक लाख तक के लोन पर किसी तरह का ब्याज नही लागत. सूअर पालन हेतु लोन लेने के लिए सुरक्षा के रूप में जमीन या घर के कागजात रखने होते हैं. इस योजना में अधिकतम लाभ आपको सुरक्षा में रखी गई प्रोपर्टी के आधार पर दिया जाता है. इसका ऋण मिलने के बाद उसे एक निशचित अवधि में चुकाना होता है.

पशुओं की देखभाल-

सूअर पालन के दौरान पशुओं की देखभाल काफी अहम होती है. सूअरों की देखभाल के दौरान पशुओं के रहने के स्थान की सफाई नियमित रूप से करते रहना चाहिए. और सूअर के अच्छे विकास के लिए उन्हें आहार के साथ साथ औषधियों की जरूरत भी होती है. जो पशुओं के विकास के लिए उपयोगी होती हैं.

सूअर की देखभाल के साथ साथ जो पशु बेचने योग्य हो जाए उसे अलग कर बेच देना चाहिए. जबकि मादा सुअरी जो अच्छी दिखाई दे उसे प्रजनन के लिए रख लेना चाहिए. इसके बच्चे दो साल बाद ही प्रजनन के लिए तैयार हो जाते हैं.

सूअर को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

सूअर पालन के दौरान जीवों में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते हैं. जिनकी उचित समय पर पहचान कर उनका उपचार कर देना चाहिए, या चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए.

खौरा-

सूअर के अंदर खौरा रोग बहुत ज्यादा पाया जाता है. जिसमें पशु अपने शरीर को दीवार से घिसते रहते हैं जिसकी रोकथाम के लिए गंधक से बनी दवा के घोल में बोरी को भिगोकर दीवार के पास खम्बे लगकार बांध दे. इससे खौरा रोग ख़तम हो जाता है.

एनये पील्ही ज्वर-

पशुओं में एनये पील्ही ज्वर के लगने की वजह से पशुओं की नाड़ी तेज़ हो जाती हैं. पशुओं के हाथ पैर ठंडे पड जाते हैं. पशुओं के पेशाब में खून आने लगता है. रोग के बढ़ने पर पशु की मौत जल्द हो आती हैं. इसकी रोकथाम के लिए पशु में रोग के लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए. और पशु की नियमित जांच करवाते रहना चाहिए.

पेचिश-

सूअर में लगने वाला पेचिश रोग काफी खतरनाक माना जाता है जो पशुओं में बहुत तेजी से फैलता हैं. इसके लगने पर पशु हमेशा लौटा रहता है. पशु के शरीर में हल्का बुखार भी दिखाई देता है. जिससे पशु दुबला होने लगता हैं. इस रोग के लगने पर पशुओं को खाना उचित मात्रा में देते रहना चाहिए. इसके अलावा रोग के लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए.

इसके अलावा और भी कई रोग है. जिनकी रोकथाम के लिए पशुओं की उचित टाइम पर देखभाल करते रहना चाहिए.

सूअर पालन के दौरान रखी जाने वाली सावधानियाँ

सूअर पालन के दौरान कई तरह की सावधानियां रखना आवश्यक है. जो पशु के जन्म से ही रखनी होती हैं.-

  1. नवजात के जन्म लेने बाद ही नाभि में आयोडीन टिंचर लगा देना चाहिए. और दो दिन बाद उसे इन्फेरोनका टिका लगवा देना चाहिए.
  2. जन्म के बाद ध्यान रहे की सभी बच्चों को समान मात्रा में दूध मिलना चाहिए. कमजोर बच्चों के लिए अलग से दूध की व्यवस्था करनी चाहिए. अन्यथा बच्चा मर भी सकता हैं. कमजोर बच्चे को आगे वाले स्तन का दूध पिलाना चाहिए. क्योंकि आगे के स्तन में दूध का प्रवाह अधिक होता है.
  3. सूअर में लड़ने की आदत ज्यादा पाई जाती हैं. इसलिए शुरुआत से बच्चों के लक्षण देखकर उन्हें अलग कर देना चाहिए.
  4. पशुओं में टीकाकरण उचित समय पर करवाते रहना चाहिए. और जगह की साफ-सफाई का भी खास ध्यान रखना चाहिए.
  5. सूअर पालन के दौरान पशुओं के प्रजनन का खास ध्यान रखना चाहिए. बच्चे देने के दो महीने बाद जब बच्चों को अलग कर दिया जाता है. उसके बाद लगभग एक सप्ताह में की सुअरी मीटिंग करने के लिए तैयार हो जाती हैं. उस दौरान अगर पशु स्वस्थ और अच्छे से हो तो मीटिंग करवा देनी चाहिए. जिससे पशु जल्दी गर्भित हो जाता हैं.

आय और व्यय का लेखा-जोखा

सूअर पालन का व्यवसाय काफी ज्यादा कमाई करने वाला व्यापार है, अगर जानवरों में किसी तरह की बीमारी ना आयें तो. क्योंकि एक उन्नत नस्ल का एक सुअर साल में 20 बच्चों को भी जन्म देता है तो वो बच्चे एक साल बाद बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं. और एक सूअर का बाजार भाव 5 से 8 हजार के बीच पाया जाता हैं. जिस हिसाब से 20 बच्चों के बेचने पर औसत कमाई डेढ़ लाख तक की होती हैं. जबकि 20 बच्चों के खाने का अधिकतम खर्च 60 हजार होता है. और बाकी खर्च अगर 30 हजार और मान लिया जाये तो एक सूअर से दो साल में 60 हजार की कमाई हो जाती हैं. जो बाद में सूअरों की संख्या के बढ़ने पर बढती ही जाती हैं.

 

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