मुख्य विषों से- विषाक्त पशुओं के लक्षण तथा प्राथमिक उपचार
डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा
१. यूरिया विषाक्तता:
प्राय: ऐसा देखा गया है कि पशु खुला छूट जाने के कारण लालचवस यूरिया खाद को खा लेता है जिसके कारण पशुओं में विषाक्तता के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं और यदि समय पर उपचार ना मिले तो पशु की मृत्यु हो जाती है।
लक्षण:
तीव्र उदर शूल, कराहना, कंपन, लड़खड़ाना, कष्टदायक तीव्र श्वास अत्याधिक लार गिरना, स्पष्ट जुगुलर पल्स तथा इनके उपरांत उत्तेजित संघर्ष, रंभाना, और पशु की मृत्यु हो जाना।
शव परीक्षण में कोई विशेष चिह्न नहीं मिलते हैं। साधारण उदर, आंत्र शोथ, ब्रोंकाइटिस के लक्षण ही दृष्टिगोचर होते हैं। उदर के पदार्थ का यूरिया के लिए परीक्षण किया जा सकता है।
प्राथमिक उपचार:
वयस्क गोवंशीय तथा महिष वंशीय, पशुओं को, 2 से 4 लीटर तक 5% एसीटिक अम्ल पिलाया जाए। पशु भार के अनुरूप माईफेक्स, या कैलबोरल अंता शिरा सूची वेध, विधि से दिया जाए। एड्रिनर्जिक ब्लॉकिंग औषधियां भी सूची वेध द्वारा दी जाएं।
२. ऑर्गेनोफॉस्फोरस विषाक्तता: मैलाथियोन,सायथियान, तथा पैरापैराथियान, ।
लक्षण:
इस विषाक्तता मैं मस्करीनिक, निकोटीनिक तथा सेंट्रल नर्वस सिस्टम अर्थात केंद्रीय नाड़ी तंत्र के लक्षण प्रकट होते हैं। मस्करीनिक लक्षणों में वमन की इच्छा, वमन, उदरशूल, अतिसार, मांसपेशियों की ऐंठन, अत्याधिक अश्रु तथा पसीना बहना एवं स्वास में कष्ट आदि होते हैं। निकोटीनिक लक्षणों में मांसपेशियो की दुर्बलता तथा पक्षाघात, मांसपेशियों की फड़कन तथा अंतडियो की गति वृद्धि आदि तथा केंद्रीय नाड़ी तंत्र के लक्षणों में सुस्ती एवं मुरझाना, रिफ्लेक्सेस का समाप्त हो जाना, चकराना बेहोश हो जाना तथा सांस क्रिया के बंद हो जाने के कारण उसकी मृत्यु हो जाना आदि आते हैं।
शव परीक्षण:
विशेष चिन्ह नहीं मिलते हैं। विष की जांच के लिए अंगों के नमूने एकत्र किए जाते हैं।
प्राथमिक उपचार:
एट्रोपिन सल्फेट, अंत: शिरा सूची वेध अथवा अंत: पेसी, सूची वेध, द्वारा दी जानी चाहिए।
गाय भैंस में 30 एमजी प्रति 50 किलो ग्राम शरीर भार पर,।
भेड़ 1 मिलीग्राम प्रति किलो शरीर भार पर।
घोड़ा 7 मिलीग्राम प्रति 50 किलो शरीर भार पर।
कुत्ता 2 से 4 मिलीग्राम संपूर्ण खुराक।
नोट :औषधी का 1/ 3 भाग धीमी गति से अंतः शिरा सूची वेध एवं शेष औषधि अंत: पेशी वेध विधि से देना चाहिए।
३. डीडीटी तथा गेमैक्सीन विषाक्तता:
लक्षण:
अति तीव्र अवस्था में कंपन, ऐंठन तथा चकराना एवं मृत्यु हो जाना। तीव्र उत्तेजना, अधिक लार गिरना, लड़खड़ा ना, असामान्य बैठना एवं उठना, कराहना और दांत किटकिटाना तथा चक्कर आना आदि।
शव परीक्षण:
फेफड़े, यकृत तथा गुर्दों मैं कंजेशन, इपीकार्डियम में रक्तस्राव, न्यूमोनिया, स्वास नली तथा ब्रांकाई में रक्त युक्त झाग, ब्रेन कंजेशन तथा अधिक तरल पदार्थ आदि।
प्राथमिक चिकित्सा:
सलाइन परगेटिव दिया जाए ।
नोट:आयल परगेटिव कभी नहीं देना चाहिए।
छोटे पशुओं को पेंटोबर्बिटल सोडियम तथा बड़े पशुओं को क्लोरल हाइड्रेट पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार दिया जाए।