ब्याने के बाद दुधारू पशुओं में होने वाली उत्पादक बीमारियां/ चपापचई रोग

0
935

ब्याने के बाद दुधारू पशुओं में होने वाली उत्पादक बीमारियां/ चपापचई रोग

१.डॉ संजय कुमार मिश्र पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा
२. प्रो० (डॉ) अतुल सक्सेना निदेशक शोध, दुवासु मथुरा

बहुधा पशु ब्याने के वक्त बिल्कुल निरोग होता है एवं ब्याने की प्रक्रिया में भी कोई मुश्किल नहीं होती परंतु रक्त में किसी खास तत्व की कमी आने से वह पशु बीमारी के लक्षण प्रकट करने लगता है। इन बीमारियों में प्रमुख है मिल्क फीवर या हाइपोकैर्ल़्सीमिया, लाल पेशाब या हाइपोफॉसफेटीमिया/ पोस्ट पार्चुरियंट हिमोग्लोबिनुरिया, कीटोसिस या अम्ल रक्तता, हाइपोमैग्नीसीमिक टिटैनी, पोस्ट पारचूरियनट पैरालाइसिस इत्यादि।
१. मिल्क फीवर/ हाइपोकैर्ल्सीमिया / प्रसव ज्वर:

यह रोग अधिक दूध देने वाले पशुओं में पाया जाता है। तीसरी बार ब्याने पर इस बीमारी की संभावना सबसे अधिक होती है। यह रोग रक्त में कैल्शियम की कमी के कारण होता है। खास बात यह है कि इस रोग में पशु को बुखार नहीं होता है बल्कि शरीर का तापमान सामान्य से नीचे हो जाता है अतः इसका मिल्क फीवर नाम एक मिशनोमर है। पशु का दूध सुखाने पर उसकी कैल्शियम की आवश्यकता बहुत कम होती है परंतु ब्याने के बाद दूध बढ़ने से इसकी आवश्यकता भी बढ़ जाती है। यह बड़ी हुई आवश्यकता पशु के आहार से पूरी नहीं की जा सकती। अतः पशु की हड्डियों में मौजूद कैल्शियम को वहां से निकालना पड़ता है। यदि हड्डियों में ही कैल्शियम की कमी हो तो रक्त में भी इसकी कमी होना स्वाभाविक है। ब्याने के बाद पशु अचानक जमीन पर बैठ जाता है फिर उस से उठा नहीं जाता। वह उठने की पूरी कोशिश अवश्य करता है। पशु खाना कम खाता है तथा गर्दन एक तरफ घुमा कर बैठता है। शरीर के कुछ हिस्से जैसे कान,थन पैर इत्यादि ठंडे रहते हैं। चिकित्सक द्वारा जुगुलर नस में कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट की बोतल लगवाने से रोगी पशु शीघ्र ही ठीक हो जाता है। इससे बचने के लिए पशुपालक पशु का पूरा दूध ना निकाले। गर्भकाल के अंतिम 45 दिन में आवश्यकता से अधिक कैल्शियम न दे। पशु को ब्याने से पहले संतुलित पशु आहार, खिलाने से इस रोग से बचा जा सकता है।

READ MORE :  STRATEGIES TO CONTROL THE ORAL TRANSMISSION OF DISEASE IN FARM ANIMALS

२. लाल पेशाब करना या हाइपोफॉसफेटीमिया/ पोस्ट पार्चुरियंट हिमोग्लोबिनुरिया:

यह रोग भी आमतौर पर तीसरी बार ब्याने के बाद होता है। रक्त में फास्फोरस की कमी हो जाने पर इसमें उपस्थित लाल रक्त कणिकाएं टूट जाती हैं और इनमें से लाल रंग की हीमोग्लोबिन बाहर निकल आती है और यह गुर्दों के रास्ते मूत्र में घुल जाती है। पशु को अम्लीय सोडियम फास्फेट खिलाने एवं पशु चिकित्सक द्वारा फास्फोरस का इंजेक्शन देने से यह रोग ठीक हो जाता है।

३. कीटोसिस/ अम्ल रक्तता:

गर्भकाल के अंतिम त्रैमास में पशु को अधिक ऊर्जा वाला आहार मिलना चाहिए क्योंकि यह ऊर्जा गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि पशु को कम खाद्य ऊर्जा वाली खुराक मिलती रहे तो ब्याने के बाद उसमें ऊर्जा की कमी आ जाती है। पशु हरी घास या चारा खाना बंद कर देता है एवं दाना या सूखा राशन इत्यादि भी नहीं खाता है। वह सिर्फ सूखे पत्ते , सूखी घास जैसे गेहूं का भूसा, मक्का एवं ज्वार की सूखी कड़बी आदि खाता रहता है। अधिक मात्रा में कीटोन बॉडी के शरीर में उत्पादन से, स्नायुविक लक्षण आ जाते हैं। पशु खाना छोड़ देता है व सुस्त बैठा रहता है
यह सब अम्ल रक्तता, या कीटोसिस, रोग की पहचान है। इसके उपचार के लिए पशु चिकित्सक द्वारा ग्लूकोस का घोल रक्त वाली शिरा में लगवाया जा सकता है। संतुलित आहार से इस रोग से बचा जा सकता है।

४. हाइपोमैंगनीसीमिक टिटैनी/ घास टिटैनी:

कभी-कभी ब्याने के बाद पशुओं में मैग्नीशियम तत्व की कमी आ जाती है जिसके कारण शरीर की मांसपेशियों में अकड़ाव आना शुरू हो जाता है। पशु लड़खड़ा करके चलता है और कई बार चलते-चलते गिर पड़ता है। इस परिस्थिति में पशु चिकित्सक द्वारा मैग्निशियम सल्फेट का 10% घोल रक्त की नस में चढ़ाने से पशु ठीक हो जाता है।
ब्याने से पूर्व व ब्याने के बाद होने वाले इन लोगों से गाय या भैंस की दुग्ध उत्पादन शक्ति व प्रजनन क्षमता पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

READ MORE :  CONCEPT OF PROTEIN & NPN SUBSTANCE FEEDING TO DAIRY CATTLE FOR BETTER PRODUCTION & REPRODUCTION

५. प्रसव के उपरांत खड़े ना हो पाना या पोस्टपार्चुरियंट पैरालाइसिस:

जब कभी भी बच्चे का आकार बड़ा हो वह उसे सामान्य से अधिक जोर लगाकर निकाला जाए तो मां की नसों / नर्व के बच्चे कूल्हे की हड्डी में आने से नुकसान पहुंचता है जिसके कारण प्रसव उपरांत मां खड़ी नहीं हो पाती है। अतः अधिक बड़े बच्चे को योनि द्वार के रास्ते निकालते वक्त उसे कूलहे, के अधिक माप वाली जगह का इस्तेमाल कर निकालें। मृत बच्चे के होने पर उसे काटकर अर्थात फिटोटमी, द्वारा निकाले। यदि बच्चा जीवित हो तो सिजेरियन ऑपरेशन की मदद लें।

दुधारू पशुओं में ब्याने की अवधि में होने वाले प्रमुख रोग

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON